Tuesday 28 July 2015

सच्ची कहानी: एक और आतंकी हमला

तड़..तड़..तड़ तड़...गोलियों की लगातार आवाज से पूरी चौकी थर्रा गई....दूर कहीं बम का जोरदार धमाका होता है..........धड़ाम............... ..

"अबे...ये आर्मी वाले..हमपे गोलियॉं क्यूँ बरसा रहे हैं..ओये फटाफट..दीवार फांदो ..और पोजीशन लो" इंस्पेक्टर बादल सिंह ने खुद चौकी की दीवार की ओट लेते हुए अपने सभी सिपाहियों से कहा
उधर सेना की वर्दी पहने चार लोग लगातार गोलियाँ चलाते चौकी के अंदर घुसे चले आ रहे थे..उन्होंने चौकी में किसी को न पाकर गुस्से में आकर चौकी को बम से उड़ा दिया और पास के एक मकान की तरफ दौड़ गए

" करमजीत..ये सेना के नहीं लगते..साले चेहरे मोहरे से तो अफगानी लगते हैं..तू फटाफट हेड क्वार्टर फोन कर फोर्स मंगा..इन बहन के टकों को मैं
जरा देखता हूँ " सिपाही से ये कहकर अपनी पिस्तौल निकाल बादल सिंह उन चारों के पीछे जाते हैं, करमजीत हेडक्वार्टर फ़ोन लगाने लगता है उधर उस मकान में छिपे लोग जब इंस्पेक्टर बादल को अपनी तरफ आते देखते हैं तो फिर से फायरिंग शुरू कर देते हैं इंस्पेक्टर किसी तरह खुद को बचा के वापस आता है इतनी देर में एस पी बलजीत सिंह फ़ोर्स लेकर आ जाते हैं और उस मकान को चारों ओर से घेर लेते हैं अब आतंकवादी उस मकान में फंस जाते हैं और गोलियों की बौछार दोनों तरफ से होने लगती है

पूरे देश में आग की तरह ये खबर फ़ैल जाती है कि पंजाब की पुलिस चौकी पे आतंकवादियों का दुस्साहसिक हमला,न्यूज़ चैनल पे ख़बरें दौड़ने लगती हैं फेसबुक ट्विटर व्हाटसएप पे तुषार सिंह जैसे सत्तारी लोग पोस्ट चेपने लगते हैं संसद में प्रश्न उठने लगते हैं प्रधानमन्त्री गृहमंत्री गोपनीय मीटिंग करने लगते हैं सेना भेजने का आदेश दिया जाता है उधर एस पी बलजीत सिंह स्थिति का पूरा जायजा लेकर अपने जवानो से कहते हैं " जवानो ये हमला हमपे हुआ है और इसका जवाब हम ही देंगे ,सेना आती रहेगी तब तक हम इन्हें इनकी बहत्तर हूरों से मिलवा चुके होंगे...सब तैयार ?"
"जी साब जी" सारे जवान अपने अपने हथियार से लैस होकर तेज आवाज में एक सुर से कहते हैं
एस पी बलजीत सिंह दो घंटे की मुठभेड़ के बाद तीन आतंकवादियों को मार गिराते हैं और चौथे को जिन्दा पकड़ लेते हैं और उसे सेना के हवाले कर देते हैं इस मुठभेड़ में न तो कोई पुलिस का जवान घायल हुआ न मरा और न ही किसी नागरिक को एक हलकी सी भी खरोंच आई ।
सेना उस चौथे बचे आतंकवादी से पक्के सबूत पा जाती है कि इसमें पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के हाफिज सईद का हाथ है ये सच जानकर प्रधानमन्त्री तुरंत कैबिनेट की मीटिंग बुलाते हैं जहाँ दस मिनट में ये सामूहिक निर्णय होता है कि जिस तरह अमेरिका ने पाकिस्तान में घुस कर लादेन को मार गिराया था उसी तरह हम भी देश की इज्जत पे हुए इस हमले का बदला लेते हैं
वायुसेना के 11 सर्वश्रेष्ठ फाइटर प्लेन पूरा असलहा और जरुरी सामान लोड कर पाकिस्तान पे वहाँ हमला करते हैं जहाँ हाफ़िज़ सईद छुपा होता है और चार घंटों में हाफिज सईद को मार कर उसका शव लाकर संसद भवन के सामने रख देते हैं और इस तरह देश की अस्मिता... ............. .. ... .............................................
क्या हुआ ?
कहानी सच्ची नहीं लग रही क्या ?
इतने सालों से नेताओं के बयानों से बहलते आ रहे हो.. इस बार मेरी कहानी से बहल जाओ..क्या फर्क पड़ता है.. कल से मन बहुत बेचैन है कलाम सर की खबर के बाद तो रात एक कौर भी नहीं निगला गया , सोचा मैं तो राइटर हूँ मनचाही कहानी लिख के अपना दिल तो बहला ही सकता हूँ तो हैप्पी एंडिंग की ये कहानी लिख ली है..जब खुद को बहलाना ही है तो अपनी मनचाही कहानी से बहलाऊँगा किसी नेता की कड़ी निंदा या ये हमला हम बर्दाश्त नहीं करेंगे से क्यूँ बहलूं ?
वो तो कलाम साब इतनी पुण्य आत्मा थे कि जाते जाते भी सरकार को राहत दे गए आतंकवादी हमले से लोग उनकी तरफ डाइवर्ट हो गए और सरकार ने कुछ चैन की सांस ले ली वरना इस बार जनता में कुछ आक्रोश तो था
चलो एक और तारिख जोड़ लेते हैं या याद कर लो विजय दिवस मनाने को हम भी चलते हैं अपने काम धंदे पे.....जिंदगी चलती रहती है चाहे कोई मरे कोई जिए........................।

-तुषारापात©™

Monday 27 July 2015

कयामत

बनी थी कायनात जब
सितारे और इंसान बराबर थे
ज़मीं पे फिर कुछ दरिंदे हुए
वो इन्सां मारते गए
फलक पे सितारे बढ़ते गए
कभी कभी टूटता है कोई तारा
कयामत का दिन
ख़ुदा को याद दिलाने को ।

-तुषारापात®™

डियर पड़ोसन !

डियर पड़ोसन !
माना कि तुमने नई नई स्कूटी ली है और पिछले ७ दिनों से मुझे दिखाने को लेकर बहुत परेशान हो,आज जब मैं वापस घर आया हुँ तो देखता हूँ कि अपनी सफ़ेद चमचमाती स्कूटी पर,अपनी ज़ुल्फ़ें उड़ाती,मुझे देखकर मुस्कुराती हुयी तुम फरररररररररररर से मेरे सामने से निकल जाती हो।
भई! ऐसा मत किया करो ! तुम्हारी जागरूक मम्मी को शक़ हो सकता है।
अपने घर के बाहर,स्कूटी का स्टैंड लगाने का वो तुम्हारा अंदाज़!
उफ़! पूरी ताकत लगा देने पर भी मुझे ये दिखाने कि कोशिश करना कि कितनी ease के साथ तुमने ये 'करिश्मा' किया।
तुम्हारी स्कूटी के वो पीले पीले indicators ,उनके जलने बुझने पर buzzer का वो ए. आर. रहमान टाइप का संगीत,मेरे घर के सामने से गुजरने पर तुम्हारा स्कूटी का वो हॉर्न का बार बार बजाना,आखिरकार मेरी मोटरसाइकिल के पेट्रोल को जलाने पर मुझे अमादा कर ही गया !
मेरी मोटरसाइकिल तुम्हारी स्कूटी के पीछे ऐसे चलने लगी जैसे कृष्ण कि बांसुरी के पीछे गोकुल कि गईया!
न जाने कब क्या हुआ कि  मोटरसाइकिल का मेरा right indicator तुम्हारी स्कूटी के left indicator के साथ जलने लगा और तुम्हारे मेरे प्यार का orchestra हॉर्न के साथ साथ पुरे मोहल्ले में बजने लगा।
पर जबसे त्रिपाठी अंकल का लड़का राहुल pcs mains में clear हुआ है तुमने मुझे interview करना ही बंद कर दिया है।
अब तुम्हारी स्कूटी कि main light उसकी कार कि head light से मिलकर जलने लगी और तुम उसकी कार कि front seat पर देखी जाने लगीं।
मेरी मोटरसाइकिल में पेट्रोल तो है पर होती नहीं start है,
मेरी तरह वो भी बहुत उदास है
पर अभी अभी पता चला है कि मेहरोत्रा अंकल के यहाँ नए किरायेदार आये हैं और साथ में लाल लाल स्कूटी भी लाएं हैं;
इस बार मैंने मोटरसाइकिल को गैराज में park कर दिया है और bank में car loan का application पहले ही भर दिया है।

(कुछ समय पहले radio RJ class के लिखा था )

-तुषारापात®™

Sunday 26 July 2015

बजरंगी भाईजान

"कहानी वो भी सलमान खान की फ़िल्म में" मुझसे जब किसी ने फ़िल्म देख आने को कहा वो भी बड़ी तारीफ करके तो मेरे मुंह से सबसे पहले ये ही शब्द निकले, फिर सोचा ये सलमान खान को नापसन्द करने वाला मेरा दोस्त अगर फ़िल्म की इतनी तारीफ कर रहा है तो कोई तो बात होगी तो जहाँ कहानी हो वहाँ राइटर को तो पहुँचना ही था तो मैं भी पहुँच गया नॉवेल्टी थियेटर में और देख आया फ़िल्म।
फ़िल्म की शुरुआत में जब बच्ची शाहिदा (असली नाम शायद हर्षिला) एक मेमने को गढ्ढे से निकालने के चक्कर में अपनी माँ से ट्रेन में बिछड़ जाती है और वो गूंगी होने के कारण अपनी माँ को आवाज नहीं लगा पाती है तो उसकी छटपटाहत देख के मन उसी मासूम के साथ बंध जाता है पूरी फ़िल्म में जब जब वो बच्ची स्क्रीन पे आती है तो मेरी आँखों में या तो नमी थी या होंठो पे मुस्कान और कभी कभी दोनों एक साथ एक तरफ मेरी आँखे सीलन पकड़े थीं और दूसरी तरफ मेरे सूखे होंठ मुस्कुराहट, भावनाओं से भरी कहानी आपको पूरी तरह बांधे रखती है और आप मन ही मन बस ये दुआ करने लगते हैं कि काश ये बच्ची पाकिस्तान अपने माँ बाप के पास पहुँच जाए आप भूल जाते हैं की वो पाकिस्तानी है मुस्लिम है या मांसाहारी है जानते हैं मन में ये जो भावना उठती है उसे ही इंसानियत कहते हैं और कबीर खान की ये फ़िल्म बहुत ही बढ़िया तरीके से इसी पे आधारित है।
जिस वक्त बजरंगी शाहिदा को ट्रेवल एजेंट के पास छोड़ के जाने लगता है और वो गूंगी मासूम बच्ची अपनी आँखों में ख़ौफ़ और आंसू लिए जब खिड़की के शीशे पे हाथ पटक पटक के उसे बुला रही होती है तो ऐसा लगा अरे ये ही तो वो इंसानियत है जिसकी आवाज़ दोनों मुल्कों के सियासत दानो ने कभी मुल्क और कभी मजहब के नाम से दबा रखी है वो बजरंगी को न बुलाकर हमें ही तो बुला रही है और आखिर में जब दोनों देशों के लोगों की इंसानियत जागती है तो वो सरहद पे लगे कांटे तोड़ देते हैं और वो प्यारी सी बच्ची बोल उठती है यानी इंसानियत जाग गई और बंटवारे की सारी हदें टूट गई।
सलमान खान चरित्र अभिनेता के रूप में अच्छा काम किया तुमने क्योंकि इस फ़िल्म की हीरो तो वो बच्ची है जो इंसानियत का रूप है।
नहीं देखी अभी तक तो देख आओ ये फ़िल्म फ़िलहाल मैं अपनी बहुत पहले लिखी दो पंक्तियों के साथ अब अल्प विराम लेता हूँ-
'क़ौम के ठेकेदारों ने एक खामोश सरहद खींची थी
  दोनों मुल्कों में आज तक बंटवारा बोल रहा है'

-तुषारापात®™




निराला से निराले तक

"जो बिकता है वो लिखिए
बेवजह कानून मत छौंकिए"

आज अगर महाकवि 'निराला' भी होते तो उन्हें भी अपनी कविता
'वो तोड़ती पत्थर
देखा उसे मैंने इलाहाबाद के पथ पर'
(जिन्होंने पढ़ी होगी वो जानते होंगे इस कविता का मोल, जिसने न पढ़ी हो तो पढ़ लीजिये मातृभाषा हिंदी पे थोडा अहसान तो कर ही सकते हैं न ) लिखते तो उन्हें भी कुछ यूँ लिखना पड़ता :

'वो भेजती sms टाइपकर
 देखा उसे मैंने एंड्राइड मोबाइल पर
 वो भेजती sms टाइपकर
 कई हैं whatsapp यार
 जिनके msg हैं उसे स्वीकार
 white white कलाइयां
 touch screen पे चलती उंगलिया
 नाखुनो से झटाझट प्रहार
 गर्मियों के दिन
 चढ़ रही थी धूप
 Make-up से दिव्य रूप
 प्यास बुझाती pepsi गटगटाकर
 उठी झुलसाती हुई लू
 Cotton के जैसे जलती हुई भू
 हनी सिंह का गाना बजाती
 मंगाने को boyfriend की AC कार
 वो भेजती sms टाइपकर ।

-तुषारापात®™

Saturday 25 July 2015

लापता पता

दिल के डाकखाने में कुछ लिख के दबा रखा है
बंजारे लापता लोगों को ख़त भेजूँ तो कहाँ भेजूं

-तुषारापात®™

You born as a 'Terrorist' but Now you are a Muslim!

अंग्रेजो का एक महीने का त्योहार चल रहा था जिसमे वो NON VEG नही खाते थे.उनके मोहल्ले मे एक सरदार रहता था,जो हर रोज चिकन बनाकर खाता था.चिकन की खुशबू से परेशान होकर अंग्रेजो ने अपने पादरी से शिकायत की.
पादरी ने सरदार जी को कहा कि तुम भी ईसाई धर्म स्वीकार कर लो,जिससे किसी को आपसे कोई समस्या ना हो.हमारे सरदार जी मान गए.तो पादरी ने सरदार जी पर Holy water छिडकते हुए कहा

"You born as a 'SIKH' but Now you are a 'Christian'

अगले दिन फिर सरदार जी के घर से फिर चिकन की खुशबू आई तो सब अंग्रेजो ने पादरी से उसकी फिर शिकायत की.अब पादरी अंग्रेजो को साथ लेकर सरदार जी के घर मे गए तो देखा,
सरदार जी चिकन पर Holy Water छिडक रहे थे और कह रहे थे,

"You born as 'Chicken' but Now you are 'Potato'

भारत सरकार भी बेकार में फाँसी की सजा दे रही है उसे भी याकूब मेमन पे बकरी का दूध छिड़क के ये कहना चाहिए,

"You born as a 'terrorist' but Now you are a 'Muslim'

और कोई भी मुसलमान तो आतंकवादी होता ही नहीं तो सजा कैसी ? क्यों ओवैसी साहब..आपने कभी देखा क्या कोई मुस्लिम आतंकवादी? नहीं न ? मैंने भी नहीं देखा ।

-तुषारापात®™
© tusharapaat.blogspot.com

सीने में कब्रिस्तान

एक एक कर के मेरे/हर लफ्ज ने/खुदखुशी कर ली
मैं एक शायर/सीने में दबाये फिरता हूँ/न जाने लाशें कितनी

-तुषारापात®™

Thursday 23 July 2015

सौतन सड़क

पैरों में मेरे लिपट के/खूब रोइ/एक रोज गली मेरी
कि तू कैसे किसी/सौतन सड़क का/हमसफ़र हो गया

-तुषारापात®™

डेटॉल

दिल को डेटॉल में भिगो के रखिये
ये इश्क बड़ी संक्रामक बीमारी है

(मानसूनी मौसम में जनहित में जारी)
-तुषारापात®™

खाली हाथ

तू है शहंशाह/हाथी घोड़े/अपने नाम के महल/छोड़ जायेगा
'तुषार'/एक मामूली शायर/बस/कागज़ कलम/छोड़ जायेगा
उसके घर/झुका सर लेकर/मैं भी पैदल/तू भी/पैदल जायेगा

-तुषारपात®™



Wednesday 22 July 2015

रात के शहंशाह

दिन के खण्डहर से
शाम,छुड़ा लाइ है रात का महल
नींद के मुजरे पे,ख्वाब लुटाए जायेंगे
कई एक रात के शहंशाह
सुबह तक फिर खाली हाथ
अपने खण्डहर के चौकीदार हो जायँगे

-तुषारापात®™

इलाज़

आज भी खाना खाने के बाद कमल के पेट में जोरों का दर्द होने लगा तो वो अपनी पत्नी सुंदरी से बोला "सुनती हो...वर्मा डॉक्टर बिल्कुलहि बेकार हई .....बस नीली पीली गोली दै के पइसा अइन्ठत है सालो.."

सुंदरी उसका रोज रोज का दुखड़ा सुन सुनकर ऊब चुकी थी और अपने पति की चिंता में परेशान भी थी, खीज के बोली " कित्ती बार तो कहो हई तुमसे....नखलऊ जाइके बड़े डाक्टर कहियां दिखाई लेव....इहाँ मल्लावां महियाँ का धरो हई...लेकिन नाई...पेट पकड़े रहियो...पर जइहउ नाहि"

"कलहि निकल जइबो...राजेश भइयाक साथ उनकी मोट साइकल सेरे" कमल ने आखिरकार मन बना ही लिया था, अगले दिन वो और राजेश लखनऊ के मशहूर और बड़े डॉक्टर मेहरोत्रा के नर्सिंग होम में पहुँचते हैं
" भइया राजेश..इहाँ तो जइसे पंजीरी बट रही होय..इत्ती भीड़ हई" कमल ने वहाँ जमा भीड़ देखते हुए कहा

"अरे बहुत बड़ो डाक्टर हई..चार पाँच घण्टा महियां अपनो नम्बर अईहई" राजेश ने कहा
करीबन पाँच घण्टे के बाद वो लोग डॉक्टर मेहरोत्रा के चेम्बर में बैठे थे

"डाक्टर साहब...पेट बहुत पिरावत राहत हई..खाना खायेक बाद तो बर्दाश्त नाइ होत" जितनी देर में कमल ने अपना कष्ट डॉक्टर को बताया उससे पहले ही डॉक्टर मेहरोत्रा पूरा प्रेस्क्रिबशन लिख चुके थे और बोले " देखिये आपकी समस्या गंभीर लग रही है.. मैंने कुछ खून और पेट की जाँचे लिखी हैं वो आज ही करवा लीजिये...और हाँ ये एक कैप्सूल अभी ही खा लीजिये..कल रिपोर्ट लेकर फिर दिखाइए मुझे"

"पर डाक्टर साहब..हम तो बाहिर केरे हैं...कमल की बात अधूरी रह गई एक डॉक्टर का हेल्पर लड़का उन्हें उठने को बोला की वो सब समझाता है वो लोग अब उसके साथ चलें

" देखिये..आप अपना खून का सैंपल यहाँ दे दीजिये..और पूरे पेट का अल्ट्रासाउंड और सीने का एक्स-रे होना है..उसकी रसीद कटवा लीजिये
आपका टोटल पैसा हुआ 9500 वो पहले जमा करा दीजिये" डॉक्टर के सहायक लड़के ने राजेश से कहा और वापस चला गया

" राजेश भइया..रुपिया पॉंच सई तो फीस महियां लइ लीन और अब 9500 और... का जरुरी है ई जाँचे कराना" कमल ने कहा

" अब डाक्टर कहिन हई तो..जरुरी ही हुईहि." राजेश और कहता भी क्या
खैर साहब डॉक्टर की वाणी ब्रह्म वाणी मान के वो पैसा जमा करा देते हैं डॉक्टर का दिया कैप्सूल खा कर और खून का सैंपल तथा अन्य जाँचे आदि कराकर परसों का अपॉइंटमेंट लेकर वापसी की राह पकड़ते हैं

एक दिन के बाद वो रिपोर्ट लेकर डॉक्टर मेहरोत्रा से फिर मिलते हैं, डॉक्टर सारी रिपोर्ट देखने के बाद बोलते हैं" स्थिति बहुत गंभीर दिख रही है, आपके पेट में गाँठ जैसी दिख रही है आप तुरंत एडमिट हो जाइये फिर आगे देखते हैं क्या इलाज सही रहेगा"

भगवान् के अवतार ने भगवान् के पास जाने का डर दिखा के उन्हें अपने यहाँ एडमिट करवा लिया,उसके बाद सात दिन तक अपने अस्पताल में रखा सी टी स्कैन, एम आर आई आदि जितनी जाँचे संभव थी करवा ली,हर दिन के रूम,नर्सिंग,डॉक्टर विजिट दूसरे डॉक्टर के विजिट के नाम पे 95000 रुपैये डकारकर जब देखा की कमल अब और नहीं दे पायेगा तब एक दिन राजेश से बोले" देखिये मुझे शक है कि आपके दोस्त को पेट का कैंसर है..जिसका सबसे अच्छा इलाज यहाँ पी जी आई में होता है..मैं कमल को वहाँ रेफर कर रहा हूँ आप आज ही इसे वहाँ ले जाकर दिखाइए"
राजेश ये बात सुनकर घबरा गया उसने कमल को बताया कमल की तकलीफ भी मेहरोत्रा के यहाँ एडमिट होने के बाद से और बढ़ गई थी तो मरता क्या न करता,तीन घंटे बाद पी जी आई के दरबार में वो दोनों हाजिरी लगाये थे नंबर आने पे डॉक्टर ने बोला " हम इन्हें एडमिट कर ले रहे हैं..पेट का ऑपरेशन करना पड़ेगा....गाँठ निकालकर बायप्सी के लिए भेजेंगे..अगर उसमे कैंसर आया तो आगे और इलाज चलेगा..और अगर नहीं ..तो आप पूरी तरह फिट हो जायेंगे"

"डाक्टर साहब..पइसा कित्तो.." कमल ने बहुत धीमी आवाज में पूछा

"आप ये परचा लेकर उस कॉउंटर न 13 पे चले जाइये वो सारा हिसाब बता देंगे" डॉक्टर ने कहा और चिल्लाया" नेक्स्ट"

राजेश और कमल कॉउंटर न. 13 से पैसा पूछ कर बुझे मन से हॉल में आकर बैठ गए

"लगत हई..राजेश भइया..जमीन बेचना पड़िहई..अब और सवा लाख रुपिया कहाँ सेरे अयिहई" कमल ने आँख के आये आंसू पोछते हुए कहा

जमीन बिक गई,ऑपरेशन हो गया पता चलता है की कमल को कैंसर नहीं है खाने में मिर्ची और तेल मसाला खाने से उसे पेट दर्द होता था और यहाँ के डॉक्टर ने जब बायप्सी से वापस आई उस गाँठ को दिखाते हुए उन्हें उसके बारे में बताया तो कमल और राजेश के होश उड़ गए और उन्हें बहुत ज्यादा गुस्सा भी आया

"नमस्का..डाक्टर साहब...आप केरी एक अमानत रहाय हमरे पास..सोचो लौटावत चलीं.." डॉक्टर मेहरोत्रा के चेम्बर में जबरदस्ती घुसते हुए कमल ने डॉक्टर मेहरोत्रा से चिल्ला के कहा

" डाक्टर साहब..ई हमरे पेट केरी गाँठ हई..जो हमका सवा दुइ लाख केरी पड़ी हई..आप कहियाँ हमरी तरफ सेरे गिफ्ट है " कहकर कमल ने बायप्सी की थैली रख दी और वापस चला आया

डॉक्टर मेहरोत्रा बहुत देर तक अपनी मेज पे रखे बायप्सी की थैली में बंद उस कैप्सूल को देखते रहे जो उन्होंने कमल को पहले दिन खाने को दिया था।

'मेडिकल साइंस ने जितनी अधिक उंचाईयाँ पाई है ,कुछ डॉक्टर उतना ही नीचे गिरते गए हैं'

-तुषारापात®™

हर्फ़

दो 'हर्फ़' जरा साथ साथ क्या थे
लोगों ने सैकड़ों 'लफ्ज़' बना दिये

हर्फ़=अक्षर
लफ्ज़= शब्द (यहाँ बातें या अफवाहों के सन्दर्भ में प्रयोग हुआ है)
-तुषारापात®™

Tuesday 21 July 2015

असमान आसमान

चलो बताता हूँ क्या है हममें तुममें असमान
बादलों के पार
चाँद के रथ पे
मेरा हाथ पकड़ के
उड़ जाएँ कर जाएँ पार सातों आसमान
ऐसे ही बहुत सपने हैं तुम्हारे प्रिया
और मेरे सपने हैं कुछ यूँ
एक बड़े घर में तुम्हारे साथ रहूँ
ई एम आई से बिलकुल न डरूँ
जिस ड्रेस पे तुम हाथ रख दो
उसका प्राइस टैग न देखूं
एक बार तुम्हे टेम्पो के बजाय
अपनी कार से आते जाते देखूँ
तुम्हारे काल्पनिक सपने तुम्हे खुश करते हैं प्रिये
और यथार्थ के वास्तविक सपने मुझे रखते हैं परेशान
चलो बताता हूँ क्या है तुममे मुझमे असमान

-तुषारापात®™


हिंदी का गुमनाम लेखक

"व्याख्या...व्याख्या...कहाँ हो तुम..." ऑफिस से वापस आकर फ्लैट के दरवाजे से ही सन्दर्भ ख़ुशी से उछलता और चिल्लाता चला आ रहा था

" क्या हुआ...राइटर बाबू....बड़े खुश लग रहे हो...लॉटरी लग गई क्या आज" व्याख्या किचेन से निकलते हुई बोली

" ये देखो...पूरे दो लाख का चेक...मुक्ता आर्ट्स से आया है..यू नो..मेरी स्क्रिप्ट सेलेक्ट हो गई...अब अगर उसपे मूवी बनी तो...कम से कम पंद्रह लाख मिलेंगे.." सन्दर्भ चेक के पंख लगा मानो उड़ा जा रहा था

" wow...सच में...ओह गॉड...सन्दर्भ तुमने कर दिखाया...मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा" व्याख्या की आवाज़ ख़ुशी से भर्रा सी गई उसे समझ ही नहीं आया इस इतनी ख़ुशी की बात पे वो अपनी कैसी प्रतिक्रिया दे

"चलो जल्दी तैयार हो जाओ...निष्कर्ष और टिप्पणी को भी तैयार कर लो..आज हम क्लार्क्स अवध में डिनर करेंगे...भई अब फाइव स्टार सेलिब्रेशन तो बनता ही है .....मैं बस फटाफट नहा लेता हूँ.." सन्दर्भ ने बैग एक तरफ फेंका और चेक व्याख्या को थमा अंदर चला गया, व्याख्या चेक को हाथ में पकड़े पकड़े सोफे पे बैठ गई और चेक को देखते देखते कहीं अतीत में खो गई (शायद व्याख्याएं अतीत की ही होती हैं भविष्य की तो बस कल्पनायें होती हैं)

उसे वो समय याद आ रहा था जब सन्दर्भ के बारे में उसने अपने घर में बताया था और कहा था कि वो शादी करना चाहती है हिंदी के इस गुमनाम लेखक से

"वो तो ठीक है...राइटर है...पर काम क्या करता है...कमाता भी है कुछ..या तुम्हारी पॉकेट मनी से ही चाय पीता है " संस्मरण बाबू ने व्यंग्य करते हुए पुछा

" पापा..वो बहुत अच्छा लिखता है..एक दिन बहुत बड़ा राइटर बनेगा..... और सबसे बड़ी बात मुझे बहुत चाहता है..और ये ही उसकी सबसे बड़ी कमाई है" व्याख्या ने आहत होते हुए अपने पापा से कहा

" बेटा..एक तो राइटर और वो भी हिंदी का.. न जाने कितने 'निराला' भूखे बेइज्जत घूमते देखे हैं मैंने...जानती हो तुमसे भी पाँच साल छोटी उम्र में मैंने अपना बिज़नेस जमा लिया था..... जिस उम्र में लोग पैसे पैसे के लिए अपने बाप का मुँह ताकते थे.. उस उम्र से मैं अपना घर शान से चला रहा हूँ और तुम्हारी माँ को सारी दुनिया की खुशियाँ देता आया हूँ....क्या दे पायेगा वो तुम्हें" संस्मरण बाबू ने अपने नाम को चरितार्थ करते हुए पहले अपनी शौर्य गाथा सुनाई और फिर व्याख्या की सपनो की मिठाई में यथार्थ का कड़वा करेला भी रख दिया

" देख व्याख्या..तेरे पापा ठीक कह रहे हैं... अरे जब कुछ कमाता नहीं है.. तो तुझे कैसे रखेगा.....तेरे पापा जैसा तो कोई हो नहीं सकता.. पर कम से कम लड़के में कुछ तो हो..जैसे वो राणा साहब का लड़का ..अरे..वो अर्थ कितना अच्छा लड़का है खूब पैसा कमा रहा है ..जैसा नाम वैसा गुण.." जीवनी ने उसे दुनियादारी समझानी चाही

" माँ.. अब तुम तो रहने ही दो..वैसे भी आपके पास पापा के शब्दों के अलावा कोई नई बात तो होती नहीं....आप तो बस उन्हीं का गुणगान करो और वैसे भी जीवनी का अपना कुछ नहीं होता वो हमेशा किसी और की जिंदगी की कहानी भर होती है" व्याख्या ने आज पहली बार अपनी माँ से इतनी बेबाकी से बात की थी

" मैं आप लोगों को बताये देती हूँ.....शादी मैं सन्दर्भ से ही करुँगी..ये व्याख्या...किसी अर्थ..या...भावार्थ की नहीं होगी....ये व्याख्या सिर्फ सन्दर्भ की है....और उसी की होगी" कहकर वो अपने कमरे में तेजी से दौड़ गई,संस्मरण बाबू और जीवनी एक दूसरे को बस देखते ही रह गए

"अरे...अभी भी चेक पकड़े बैठी हो..उठो यार तैयार हो." सन्दर्भ की आवाज़ से व्याख्या वर्तमान में आई

" हाँ...हाँ बस हो रही हूँ....जरा इस चेक की फ़ोटो क्लिक करके फेसबुक पे एक पोस्ट डाल दूँ..आखिर सबको पता तो चले तुम्हारी इस कामयाबी का....और हाँ डिनर हम क्लार्क्स में नहीं...द 'ताज' में करेंगे... ये सेलिब्रेशन फाइव स्टार नहीं.....सेवन स्टार होना चाहिए।"

'हिंदी और हिंदी लेखक के सम्मान के लिए ये एक छोटा सा प्रयास सन्दर्भ संग व्याख्या, आप सबके प्यार,आशीर्वाद और साथ की अपेक्षा रखता है'

-तुषारापात®™


Monday 20 July 2015

चाँद का मुंह काला

एक रोज सुबह नहीं हुयी
आसमान खाली था
तारे टिमटिमा टिमटिमा के
थक के घर जा रहे थे
एक तारे ने बड़ी हिम्मत करके
रात के काले लिहाफ को थोड़ा सरकाया
तो जरा सी 'ब्रहम-मुहूर्त' की सुबह फूटी
सारे तारों ने देखा
चाँद और सूरज साथ साथ थे
चाँद के काले धब्बों का राज़ अब राज़ न रहा

-तुषारापात®™


Sunday 19 July 2015

रफू

उधेड़ देता है जमाना जब जज्बात मेरे
मैं कलम से अपने हालात रफू कर लेता हूँ

-तुषारपात®™

कथा

"राम राम ! सुनीता दीदी कैसी हैं आप?"
"अरे सुदीपा ! राम राम मैं बहुत अच्छी हूँ तुम कैसी हो? ये बता तुम पिछले परिवार मिलन में आई थी क्या ? मैं नहीं आ पाई थी मेरी किटी थी"
"हाँ दीदी आई थी और बहुत मजा आया था खूब् भजन हुआ था हम सब खूब नाचे थे, गुरूजी के साथ कई फोटो भी खिंचाई थी fb पे पोस्ट तो की थी आपने नही देखी?
"हाँ देख नहीं पायी,चलो लगता है गुरूजी ध्यान शुरू कराने वाले हैं जल्दी से अपनी जगह ले लेते हैं"
"अरे दीदी उधर आगे कहाँ जा रही हैं इधर पीछे बैठते हैं न आपसे कुछ बातें भी हो जाएँगी वैसे भी आगे तो सबकी सब जगह घेर लीं हैं पहले से"
"हाँ चल पीछे इधर दीवार के पास बैठते हैं कमर भी टिक जायेगी ,आगे तो सारी की सारी चापलूस पहले ही अपना आसन बिछा के उसपे अपना बैग और पानी की बोतल रख के अपना रिजर्वेशन कर देती है हमेशा का नाटक है ये इनका सब की सब मुई बहुत चालाक हैं"
"अरे दीदी थोड़ा धीरे धीरे फुसफुसा के बात करते हैं हम,सब ध्यान में बैठ गए हैं"
" अरे क्या बताऊँ मेरा तो मूड ऑफ हो जाता है इन सबों की मक्कारी देख के आगे आगे घुस के गुरूजी की बड़ी सगी बनती हैं दिखावा करने में सब बड़ी उस्ताद हैं"
" दिखावे से याद आया अब वो भैया नहीं दिखते परिवार मिलन में पहले तो बड़ा गुरु जी के आसपास रुआब से घूमते फिरते थे"
"हाँ समझ रही हूँ किसकी बात कर रही हो, वही न जो बिलकुल गुरु जी तरह धोती कुरता पहनने लगे थे अपने को बड़ा तीस मार खाँ समझते थे"
"आजकल गायब कहाँ हैं वो fb पे भी गुरूजी या आश्रम की कोई पोस्ट न तो शेयर करते हैं like भी नहीं करते "
"अरे गायब क्या सुनने में आया है की निकाल दिए गए हैं आश्रम की मेंबरशिप से"
"लेकिन वो तो हर कार्यक्रम में बड़े जोर से मेहनत करते दिखते थे वो भी टिंच धोती कुरता पहन के"
" अरे गुरूजी की तरह कपड़े पहनने से क्या उनके जितने ज्ञानी हो जायेंगे सुनने में आया है की वो चाहते थे की यहाँ लखनऊ में गुरु जी की तरह वो अपना प्रवचन किया करें मठाधीशी करना चाहते थे गुरूजी ने निकाल बहार किया"
"लेकिन दीदी गुरु जी को उनसे क्या खतरा हो सकता था वो तो परम ज्ञानी हैं हाँ वैसे उन भैया में भी ज्ञान तो बहुत है मैंने देखा है fb पे लिखते तो बहुत अच्छा हैं और बातें भी बहुत अच्छी अच्छी बताते हैं"
"अरे कहीं से टीपते होंगे आजकल copy paste करके सब ज्ञानी बने हुए हैं फेसबुक पे"
"कुछ दिन पहले कोई फ़िल्म की कहानी लिख रहे हैं ऐसी कोई प्रेस कॉन्फ्रेंस की फ़ोटो भी डाली थी"
"अरे होगी कोई सी ग्रेड भोजपुरी पिक्चर ऐसी आलतू फालतू फिल्मों के लेखक ऐसे घटिया ही रहते हैं"
"पता नहीं दीदी दिखते तो कई जगह है अच्छा काम करते,कभी महिला दिवस कभी रामकथा कभी कोई किताब लिखते और रेडियो पे भी न जाने क्या क्या किया करते हैं यहाँ अपने आश्रम में भी काम तो बहुत करते थे अब राम जाने अंदर की क्या बात थी"
" अरे छोड़ गुरु जी के साथ पुण्य आत्माएं ही टिक पाती है अभी उनमे उतनी purity नहीं रही होगी जितनी हम सब में हैं"
" पर दीदी गुरूजी तो अंतर्यामी हैं सबको शुद्ध कर देते हैं वो गुरूजी के इतने पास रहे उनकी शुद्धि क्यूँ नहीं हुई फिर"
"अरे सुदीपा तू बहुत भोली है छोड़ ये सब हम क्यों अपना मुंह गन्दा करें ऐसे लोगों के बारे में बात करके"
"दीदी लगता है गुरु जी ध्यान से वापस ला रहे हैं सबको अब एक एक करके सबसे उनका आज के ध्यान का अनुभव पूछेंगे"
"चल जल्दी से अपनी अपनी आँखे बंद करके चुप करके सीधे बैठ जा जब वो पूछेंगे तभी आँखे खोलना और सुन अनुभव बताने के बाद गुरु जी के पास जब आशीर्वाद लेने जाऊँ तो फटाफट मेरी कई सारी फोटो खींच लेना "
"हाँ दीदी समझ गयी "
" राम राम ! माँ अब आप अपनी आँखे खोल लें और अपना अनुभव हमसे बाटें"
" अर..र कौन मैं गुरु जी"
"हाँ दीदी गुरूजी आपही से कह रहे हैं"
"गुरु जी श्री चरणों में मेरा सादर प्रणाम! गुरु जी आज ध्यान के उपरांत मुझे सब कुछ सफ़ेद सफ़ेद दिखा जैसे दूध का रंग होता हैं न वैसे कहीं कोई मैल नहीं बस सब कुछ उजला उजला धुला धुला और ...और..हाँ गुरु जी एक बहुत तेज पीली रौशनी मुझे दिखाई दी...मेरा तो मन ही नहीं कर रहा था वापस आने का ...लग रहा था बस आँखे बंद किये आनंद में और गहरे गहरे खो जाऊँ"
" बहुत अच्छे माँ ! आपने ध्यान के प्रथम स्तर की उच्च अवस्था को प्राप्त कर लिया है, ईश्वर की विशेष कृपा है आप पर,राम राम !"

-तुषारापात®™

Saturday 18 July 2015

जलनखोर सूरज

दहकता है
सुलगता है
जलता फिरता है
ये सूरज यूँ ही नहीं
देख लिया था
एक अमावस की रात
इसने उस चाँद को
कहीं और चार चाँद लगाते हुए

-तुषारपात®™
© tusharapaat.blogspot.com


कलमकार

मैंने कहा :-
"लहू की सौ बूंदों से
बनता है कहीं जा के
स्याही का एक लफ्ज़/
बड़ी आसानी से
कह दिया तुमने
तेरी मेरी अब खत्म हुई/
तुम तो माहिर हो
जाओ अपने लिए
और एक नयी कहानी बना लो"/
उसने कहा :-
"इस कागज़ पे तो हैं
हर तरफ
तुम्हारी ही इबारतें/
ख़ुद को पढ़ती भी हूँ तो
तुम्हारे दस्तख़त के साथ/
नया कुछ लिखने को
तुम्हे ही नहीं दिखती बाकी
कोई जगह मुझमें/
तो क्यों रोकूँ मैं
एक कलमकार के हाथ"/

-तुषारापात®™

Friday 17 July 2015

ईद मुबारक

किसी सूरज की रोशनाई रही होगी पुर्ज़े में
पढ़ते ही ईद के चाँद की तरह चमक गए वो

-तुषारापात®™

तुम्हारी बिंदी

बारिश की दूधिया बूंदे यूँ
तुम्हारे चेहरे पे पड़ रही थीं
जैसे शिवजटा से निकली गंगा
अपने चाँद पे छींटे लगा रही हो
छत पे बाहें थामे न जाने हम
कितने पल पानी में बहा के  
एक दूसरे की प्यार बरसाती
तरसती नजरों में खूब नहा के
वापस मेरे कमरे में जब आये
तो एक तौलिया ले तुम अपने
बाल सुखा रहीं थीं और मैं
स्टोव पे नींबू वाली चाय बना रहा था
आदतन तौलिया बिस्तर पे फेंक
चाय पी तुम अपने घर दौड़ गयी
बारिश भी तुम्हे रास्ता दे विदा हुयी
तुम्हारी खुश्बू में पूरा डूबा,पूरा भीगा मैं
तौलिये पे चिपकी रह गयी तुम्हारी
सितारे वाली कुंवारी लाल बिंदी से
खुद को तुम्हारा साजन बना रहा हूँ..

-तुषारापात®™

फेसबुक ज्ञान

'जापानी app' (केवल बालिगों के लिए)
हेलो एंड वेलकम टू टनटनाटन टेलि मार्केटिंग!
क्या आप अपनी फेसबुक वाल पे लिख नहीं पाते हैं? मन में इच्छा बहुत पर विचारों की कमजोरी है ? या लिखते तो हैं पर पढ़ने वाले को पूर्ण संतुष्ट नहीं कर पाते ? कभी कभी ऐसा होता है की आपने बहुत अच्छा लिखा पर उतने like और comments आपको नहीं मिलते जितने आपने सोचे थे तो अब आपको घबराने की कोई जरुरत नहीं है और न ही अपने like और comments बढ़ाने के लिए आपको लोगों के बेकार पोस्ट पे 'वाह बहुत खूब', very nice आदि कहने की कोई जरुरत हैं हम लेकर आये हैं आपके लिए परम संतुष्टि दायक,like और comments की बाढ़ लाने वाली, facebook seduction कंपनी की जर्मन टेक्नोलॉजी से बनी 'जापानी app' ।
इस aap का इस्तेमाल करते ही आप बेहतर से बेहतर लिखने वाले को पीछे छोड़ देंगे और आपके मन में विचारों का जोश ही जोश आ जायेगा उँगलियाँ की-पैड पे अपने आप दौड़ने लंगेगी,फ्रेंड रिक्वेस्ट की लाइन लग जायेगी पुरुष और महिला मित्रों की वाहवाही खूब मिलने लगेगी।
इस app का इस्तेमाल बहुत ही सुविधाजनक और आरामदायक है और नए से नए एंड्राइड विंडोज मोबाइल फ़ोन, टैबलेट, लैपटॉप और पुराने से पुराने 'डेस्क-टॉप' के लिए भी ये उतना ही जोरदार काम करता है इसका कोई भी साइड एफेक्ट बिलकुल भी नहीं है बस आपको इसे अपने सिस्टम में डाउनलोड करना है और facebook/whatsaap के सिकंदर बन जाना है।
पुरुषों के लिए जापानी-app M और महिलाओं के लिए जापानी-app F
अलग अलग आर्डर करें और हाँ एक बात और दोस्तों कुछ लोग जापानी-app से मिलते जुलते नामो से नकली app बेच रहे हैं सावधान रहे और धोखा न खाएं ,श्री 'तुषारापात' जी की फ़ोटो लगी जापानी-app ही पूरी तरह असली है।
जापानी-app की कीमत है सिर्फ 2999 जी हाँ सिर्फ 2999 रुपैये (data network charges extra)
तो सोच क्या रहे हैं फ़ोन उठायें!और तुरंत आर्डर करें ! और बन जाइये facebook के सिकंदर!
नोट- पहले काल करने वाले 50 लोगों को fake id पकड़ने वाली हमारी बहेनजी-app बिलकुल मुफ़्त दी जायेगी ।

-तुषारापात®™

Thursday 16 July 2015

काफिर :ईद मुबारक

निकलता हूँ घर से रोज मैं
पाँचो टाइम की नमाज को
मस्जिद वाली गली में देखता हूँ
मजलूम औरतों/ बिलखते बच्चों/ बुजर्गो को
को हाथ फैलाते हुए
पाई पाई पे ललचाते हुए
मुट्ठी भर भूख के लिए पैरों पे पड़ते हुए,
चीथड़ों से झांकती उनके बदन की आयतों पे
पाक कुरान की चादर चढ़ा के
ठण्ड से कांपते उन हाथों में
अपनी जेब का सबकुछ लुटा के
मस्जिद बिना जाये वापस आ जाता हूँ
इमाम ने देख लिया एक रोज मुझे लौटते हुए
सुना है क़ाज़ी ने फतवा ज़ारी किया है
मुझ 'काफ़िर' पे
ज़कात जमा न करने के लिए
नमाज़ अदा न करने के लिए

-तुषारापात®™

बाहुबली

बड़ी विशाल बाहें थीं उसकी जो हमें भी खींच लिया उसने एक नजदीक के सिनेमा हाल में , चारों तरफ उसकी ही चर्चा थी तो हम भी देखने चले गए उस 'बाहुबली' को ।
फ़िल्म अच्छी है और उसका प्रस्तुतिकरण और भी अच्छा है। एक एक सीन पे बड़ी मेहनत की गई है कल्पना को परदे पे उतारना कोई आसान काम नहीं पर डायरेक्टर और उनकी टीम ने बहुत बढ़िया काम कर दिखाया।
पर एक लेखक होने के नाते मेरा फ़िल्म की कहानी पे ध्यान जाना स्वाभाविक ही था,राजसत्ता और राजवंशों की सिंहासन के लिए लड़ाइयों पे आधारित कोई भी कहानी हो वो महाभारत की कथा के आसपास ही जाकर क्यों ठहर जाती है,शायद ये महाभारत की कथा की विशेषता है या लेखक इससे आगे सोच ही नहीं पाते या फिर ये भी हो सकता है कि जानबूझकर ऐसा किया गया हो कि सबसे अधिक लोकप्रिय और जन जन को याद ऐतिहासिक कथा से ही कहानी का प्लॉट उठाया जाय जिससे लोग अधिक जुड़ाव महसूस करें।
कहानी के किरदारों को अमीष के 'मेलुहा' के किरदारों की तरह प्रस्तुत किया गया है और पूरी फ़िल्म का स्टाइल और प्रेजेंटेशन हॉलीवुड की एक फ़िल्म 300 की याद दिलाता है ।
नायक द्वारा शिवलिंग पर प्रहार कर उसे झरने के नीचे स्थापित करने पर किसी की भावनाएं नहीं आहत हुईं ये मेरे लिए बहुत ही आश्चर्यजनक रहा पर फ़िल्म की इस घटना से ईश्वर के प्रतीकों से कहीं अधिक उससे जुड़ी भावना को अधिक महत्व देते दिखाया गया ये एक सराहनीय प्रयास है दूसरा नायक द्वारा देवी को जानवर की बलि को मना करना ये कहकर कि देवी को प्रसन्न करने के लिए किसी निर्बल की बलि देने की क्या आवश्यकता है मुझे पसंद आया।
झरने पे नायक का बार बार गिरकर फिर भी चढ़ने का प्रयास करते रहना एक सीख देता है कि असफलता से डरकर प्रयास नहीं छोड़ने वाला एक दिन सफल अवश्य होता है।
कुल मिलाकर बाहुबली एक अच्छा प्रयास कहा जा सकता है भारतीय फ़िल्म जगत के लिए और दर्शकों के लिए। निर्माता और निर्देशक का खेला हुआ दाँव कि इसे दो भागों में बनाया जाय सही पढता दिख रहा है अब अगले भाग की प्रतीक्षा में आपके साथ...मैं भी हूँ।

-तुषारापात®™

Wednesday 15 July 2015

अपराध बोध

-"तुमसे तो घर का कोई भी काम...सही से नहीं होता....बच्चों तक को संभाल नहीं सकती तुम...टिपण्णी को बुखार था और तुम कॉलेज चली गयीं.." सन्दर्भ बरस रहा था

"क्यूँ..कौन सा काम..मैं सही से नहीं करती...और जब मैं कॉलेज गई थी..तब टिपण्णी बिलकुल ठीक थी..और तुम भी तो उसे देख सकते थे..क्या घर की जिम्मेदारी अकेले मेरी है.....और लौटते में..मैं ही उसे डॉक्टर को दिखा के लाइ हूँ..तुम नहीं" व्याख्या की दुखती नस फड़क उठी

"कुछ ढंग से नहीं होता तुमसे....और मैं क्या..अपना ऑफिस छोड़ के..अब घर बैठ जाऊँ.....कॉलेज जाने के अलावा करती ही क्या हो.." सन्दर्भ ने गहरा तीर उतार दिया

" हाँ..हाँ.. मैं कुछ नहीं करती...बहुत बुरी हूँ मैं...यही कहना चाहते हो न तुम...सन्दर्भ ऐसा कह भी कैसे सकते हो तुम..." व्याख्या की आँखों से पीड़ा पिघलने लगी

" रोज..सुबह सबसे पहले उठो....जल्दी जल्दी नहाओ....दिया जलाओ...किसके लिए...मैं पूजा पाठ करती हूँ?....हम सबके लिए ही न..फिर तुम सबके लिए नाश्ता बनाओ... निष्कर्ष को जगा के उसे तैयार करके टिफिन देकर...आठ मंजिल उतर के नीचे स्कूल बस में बिठा के आओ..." व्याख्या का बांध टूट चूका था

"उसके बाद..टिपण्णी को जगाओ..उसे तैयार करो..कामवाली से घर की सारी सफाई करवाओ....लंच तैयार करूँ....तुम्हारे हिसाब से नाश्ता सजाऊँ..एक कप चाय तक पीने की फुरसत नहीं होती...जल्दी से तैयार होकर...टिपण्णी को चाची जी के यहाँ..छोड़ के कॉलेज जाऊँ..वहाँ इतने बड़े बड़े ..ढीठ..मुस्टंडे लड़कों को लगातार पाँच घंटे खड़े खड़े पढ़ाऊँ.....और फिर टिपण्णी को लेते हुए वापस घर आकर..पूरा घर समेटूं...बच्चों को होमवर्क करवाऊं....शाम की चाय पे ...मुस्कुराते हुए...तुम्हारा इंतज़ार करूँ.... फिर डिनर बनाऊँ .......... उसके बाद चैन से अपने कमरे में सो भी न पाऊँ...तुम रात के दो दो बजे तक टीवी चलाते रहो......जरा सा भी .....तरस नहीं आता..तुम्हें मुझपर....."व्याख्या 'कैकेयी-जोन' में पहुँच चुकी थी जहाँ बड़े से बड़े दशरथ निहत्थे हो जाते हैं

"पापा...जब आप जानते हो..कि..आप..आप..मम्मा से नहीं..जीत पाते हो.. तो झगड़ते क्यूँ हो?" अचानक से आकर निष्कर्ष ने बड़े ही ज्ञान की बात सन्दर्भ के कान में फुसफुसाईं

सन्दर्भ अच्छी तरह समझ चुका था कि कम से कम एक घंटे बाद ..हाँ एक घंटा तो अभी ज्वालामुखी शांत होने में लगेगा उसके बाद उसे ही सफ़ेद झंडा फहराकर ,व्याख्या को मनाना पड़ेगा। उसने बाहर से डिनर आर्डर किया और निष्कर्ष को लेकर बच्चों के रूम में टिपण्णी के पास आ गया।

'वर्किंग लेडी कहीं न कहीं पहले से ही मन में एक अपराध बोध के साथ जीती है कि वो अपने परिवार को पूरा समय नहीं दे पा रही है उसपर घर और ऑफिस दोनों की जिम्मेदारी रहती है उनपर दो तरफ़ा दबाव बना रहता है इसलिये उन्हें मानसिक सहारे की बहुत अधिक आवश्यकता होती है।'

-तुषारापात®™


Tuesday 14 July 2015

बुत और परिंदे

वो एक बुत के मानिंद लिपटा था कफन से
उसके वारिस अपना अपना हक़ जता रहे थे
जिनको देता था वो रोज बस मुठ्ठी भर दाने
वो परिंदे रो रो कर उसका कद बता रहे थे

-तुषारापात®™

Sunday 12 July 2015

ढपोरशंख

बड़े प्यार से सर टिकाया था तुमने
मेरी सफ़ेद शर्ट के धड़कते सीने पे
इलाहाबाद की बारिश को पीते हुए
यूनिवर्सिटी के 'वैज्ञानिक' जीने पे
गंगा किनारे की सोंधी मिटटी सी तुम
महकती,कांपती,गुनगुनी होती हुईं
जैसे कोई सोने का छल्ला अंगूठी होने को
मढ़ जाना चाहता हो किसी नगीने पे
काश तब मैं 'ढपोरशंख',अपनी उँगलियों की चाबी से
खोल पाया होता तुम्हारी उलझी जुल्फों के ताले करीने से

-तुषारापात®™
© tusharapaat.blogspot.com

Saturday 11 July 2015

धागे मन्नत के

उस पीर का दम घुट गया उसकी ही दरगाह में
लोगों ने बांधे रोशनदान में इतने धागे मन्नत के

-तुषारापात®™

Friday 10 July 2015

मुस्कुराइए हुज़ूर !

तुम्हारे हुश्न की 'भूलभुलैया' में फंसकर
हमारे इश्क का 'रूमी गेट' गिरा जाता है
दिल धड़कता था कभी 'घंटाघर' सा
अब यादों का 'कुड़ियाघाट' बना जाता है
तुम लगते हो जैसे गिलौरी 'हजरतगंज' की
यहाँ 'टुंडे के कबाब' सा मुंह हुआ जाता है
किसी गैर के नाम का दुपट्टा चिकन का ओढ़ के
हमारा मक्खन मलाई सा नवाबी दिल तोड़ के
बड़ी तहजीब से हमसे कहते हो रोते क्यों हो
ये लखनऊ है हुज़ूर! यहाँ मुस्कुराया जाता है
हैं नहीं तो
-तुषारापात®™

काफ़िर

'ये सलीका ये नज़ाकत,ये सज़दा और ये इबादत,
काफ़िर,लगता है तुझे किसी फ़रिश्ते ने छू लिया है'

इश्क की घड़ी

घड़ी देखनी आती हो तो पढ़ना :-

'इश्क का अलार्म बज उठा था तब
दिसंबर की एक सुबह देखा था जब
दस बजके दस मिनट की तरह तुम्हें
अलसाई सी अंगड़ाई लेते हुए

खड़े रहते थे एक झलक को
छह बजे की तरह सीधे साधे से
दिन बिताये सेकंड की सुई की तरह
पीछे पीछे चक्कर लगाते हुए

गर्म दिल का लहू सर्द पड़ गया
अचानक रुककर जब पूछा था
कितना बजा है तुम्हारी घडी में
तुमने आँख मिलाकर मुस्कुराते हुए

घड़ियाँ मिल चुकी थी अपनी अब
वक्त बन रहा था देखा तुम्हें जब
सवा नौ बजे की तरह बाहें फैला के
अपने आगोश में मुझे बुलाते हुए

तीन परों की उड़नतश्तरी सी
बनायीं थी इश्क की घड़ी भी
बारह बजे की तरह तुमने
मुझको अपने गले लगाते हुए

फिर अचानक कुछ हुआ बेशक
सर्दी में जम गया दौड़ता इशक
जनवरी की एक शाम देखा तुम्हे
एक नयी घड़ी में चाबी भरते हुए

किसी और को नया वक्त बताके
मुझे सात बजके बीस मिनट बनाके
कहाँ चले गए तुम ?
आओ जरा देखो तो,अपाहिज वक्त को मेरे
घड़ी की सुइयों की बैसाखियों पे लंगड़ाते हुए'

-तुषारपात®™

चवन्नी

एक फेंकी हुई चवन्नी पे
अपने अपने घर बना के
लड़ रहे हैं टके टके पे हम
चमकते तैरते घूमते
इन लाखों चाँद तारों का
राज़ बस इतना है 'तुषार'
किसी भिखारी के
टूटे कटोरे से एक दिन
कुछ रेजगारी बिखर गई थी।

-तुषारपात©™

पायजामे की चेन

बड़े बड़े नेताओं (कालान्तर में कुछ हमारे चाचा और कुछ हमारे बापू हो गए,जिससे हमारी भारत माँ को भी एक पति और एक देवर मिल गए) के नारों से देश को दो टुकड़ों में आज़ादी नसीब हुयी ।वैसे दोनों देश एक न हो जाएँ उसमे भी कुछ नारे आज तक बहुत अच्छे साबित हो रहे हैं और एक हम हैं जो नारे के उलझने से कितनी बार पानी पानी हो चुके हैं तो भइया हमने सोचा की पायजामे के इस नारे से मुक्ति पाई जाये और इलास्टिक और चेन लगवा के अपनी बेचैनी शांत की जाये।
तो हम पहुंचे कल्लन मियां ,अमीनाबाद के गुमनाम दर्ज़ी के पास हमारी मंशा जान उन्होंने हमें ऐसे देखा जैसे अभी अभी गए मंगलयान से हमारी आज ही वापसी हुयी हो वो बोले-
"मियाँ 'बोम्बे' से आये हैं क्या आप ? ये कैसी फरमाइश है ,पायजामे में चेन "
आखिरी चंद शब्द उन्होंने थोड़े ज्यादा ही ऊँचे बोले जिससे पास ही चाय की दुकान पे अपनी संसद चला रहे चार पांच बेरोजगार रेजगारी की तरह के लोगों ने भी सुना । उनमे से एक उठ कर आये,कल्लन मियाँ से सारा माजरा समझ के अपने साथियों के साथ उस पर भरपूर चटकारा मार वो हमसे बोले "भाई साब हम एक रिपोर्टर हैं क्या मैं जान सकता हूँ आप ऐसा क्यों चाहते हैं?"
हमने भी एक मासूम बच्चे की तरह उनको बता दिया की चेन से लघुशंका आदि से निपटने में थोड़ी सुविधा हो जाती है, मेरी बात पूरी तरह सुनकर उन्होंने अपने मोबाईल से हमारी फ़ोटो ली हम भी अपने को कोई अभिनेता समझ थोडा फूलकर फोटो अपना खिंचवा लिए और कल्लन मियां के दर से बेआबरू हो कर घर वापस आ गए।
अगले दिन सुबह एक दोस्त से हमें पता चला की एक कोई गुमनाम से अखबार में हमारी फोटो छपी है और हमारा मजाक बनाया गया है,
ये सब उन्ही 'broker reporter' का किया धरा था जो अखवारों को 'breaking news' बेचते थे।
अब हम अपने इस कारनामे के कारण फेसबुक व्हाट्सअप आदि आदि से गुजरते हुए देश के धमाकेदार electronic media साक्षात् advance सत्य के ज्ञानी news channels पे छा चुके थे।
एक मशहूर चैनल पे चर्चा शुरू हुयी , एक परीचेहरा रिपोर्टर साहिबा 'बन्दूक' बनी हुयी थीं।एक मौलाना साहब, एक हिन्दू ज्ञानी, दो पार्टीओं के नेता, एक युवा सुधारवादी नेता और एक मनोचिकित्सिक को साथ लेकर वो चर्चा का संचालन कुछ यूँ कर रही थीं-
"नमस्कार आपका बहुत बहुत स्वागत है आज के हमारे विशेष कार्यक्रम 'चेन बिना चैन कहाँ में' ,पूरे देश में ये मुद्दा गर्म है की क्या पायजामे में चेन लगवाना कोई गुनाह है या व्यक्ति का अधिकार ?
स्टूडियो में मौजूद हमारे अतिथियों से उनकी राय जानते हैं
मौलाना साहब बोले "देखिये ये बिलकुल ही गलत डिमांड है पायजामे में चेन तो क्या हम तो उस पायजामे को ही हराम कहते हैं जो एड़ियों से ऊपर न हो ये सीधे सीधे हमारे मजहब पर हमला है"
पंडित जी - "महाशय हमारी पुरातन भारतीय संस्कृति में पायजामे जैसी कोई वेशभूषा ही नहीं है हम तो धोती कुरता पहनने वाले लोग हैं ये पायजामे जैसा वेश तो आप जैसे लोग लेकर आये हैं भारतीय संस्कृति को कलंकित करने वाले इस कृत्य का हम मरते दम तक विरोध करेंगे।"
युवा सुधारवादी ने फ़रमाया- "पायजामे में चेन का विरोध करने वाले व्यक्ति की 'अभिव्यक्ति' की आज़ादी को रोक रहे हैं हमारा इसे पूरा समर्थन है जंतर मंतर पे हम धरना देंगे और इस जायज माँग को मनवा के ही दम लेंगे।"
दोनों पार्टी के नेता एक दूसरे पे देश के महान सेकुलरिज्म को बर्बाद करने का आरोप जितना ज्यादा लगा सकते थे उससे भी ज्यादा लगाते गए।
महान मनोचिकित्सक महोदय ने तो छक्का ही जमाया- "हमें पहले ये समझना होगा की व्यक्ति ने ऐसी मांग क्यों रखी? उसके मनोभावों का विश्लेषण बहुत आवश्यक है वैसे मेरी नजर में ये उसकी ये सोच कहीं न कहीं उसके मन में छिपी बलात्कार की प्रवृति को भी उजागर कर रही है।"
इसी बीच रिपोर्टर बोली- "देखा आपने वो व्यक्ति एक बलात्कारी भी हो सकता है जो अपनी सुविधा के लिए पायजामे में चेन की मांग इसलिए कर रहा है की उसे बलात्कार में आसानी हो । रहिये हमारे साथ आते हैं एक छोटे से ब्रेक के बाद।"
ब्रेक में आये कई जेब और पेट काटने वाले प्रोडक्ट्स के विज्ञापनों में एक विज्ञापन पुरुषों के अंडरवियर का था जिसे एक महिला मॉडल पूरी 'शालीनता' से हम सभी को खरीदने की सलाह दे रही थीं की ये बड़ा 'आरामदायक' है।
खैर ब्रेक खत्म होता है इतनी देर में लाखों sms आ जाते हैं हाँ,नहीं और पता नहीं के आंकड़े रिपोर्टर साहिबा जोर जोर से जनता को बताती हैं चर्चा चलती रहती है..........
आप लोग अब क्या पढ़ते ही रहोगे ?अरे भाई चलो हाथ में एक एक पायजामा लेकर इंडिया गेट पे पायजामा मार्च में नहीं चलना है क्या?
वैसे जो लखनऊ में हैं वो जी पी ओ तक मार्च निकाल सकते हैं।
नोट- अभी अभी पता चला है की एक ज्योतिषी सिर्फ आपके पायजामे को देख के आपका भूत भविष्य सब बता देते हैं तो मैं जरा उनसे मिलके आता हूँ आप लोग मार्च चालू रखिये।

-तुषारापात®™

तरबूज:हिन्दू या मुसलमान

जिस तरह से धर्म मजहब के साथ साथ हम रंगों को भी बांटते जा रहे है कि हरा मुस्लिम का है और लाल हिन्दू का रंग है तो वो दिन दूर नही जब सारी की सारी हरी सब्ज़ियाँ मुस्लिमों की हों जाएँगी और हम हिंदुओं के हिस्से बस टमाटर,गाजर और चुकुन्दर ही आएंगे!
अब ये समझ नहीं आ रहा कि ये तरबूज किसके हिस्से में आएगा ?
ये तो कमबख्त ऊपर से मुस्लमान और अंदर से हिन्दू है मुआ :)

-तुषारापात®™
वो अपना
पूरा बंधा एक दिन लेकर
खुल्ला कराने मेरे पास आता है
बस एक लम्हा
रोज मुझपे खर्च करके
अहसान जताता है
कि किसी
भिखारी के कटोरे में
एक बँधा नोट डालके
जैसे कोई
रेजगारी उठाता है।

-तुषारापात®™

Thursday 9 July 2015

सबसे पुराना मोबाइल: हमारा चाँद

"कल नौ बजे तुम चाँद देखना,मैं भी देखूंगा,
और यूं दोनों की निगाहें,चाँद पर मिल जायेंगीं... ...." fm पे ये गाना सुनते ही व्याख्या बोली" अरे...ये तो.अपनी स्टोरी पे सॉन्ग बन गया..... सन्दर्भ.. सन्दर्भ.....तुमने ये सॉन्ग सुना.."

" हुँ...हाँ....सुना है" सन्दर्भ लैपटॉप स्क्रीन पे आँखें जमाये जमाये बोला

"कुछ याद आया...ये तो अपनी लव स्टोरी का किस्सा है...इन्हें कैसे पता चल गया.."व्याख्या ख़ुशी और आश्चर्य से भरी आवाज़ में बोली

"अरे..हाँ..यार सच में...ये तो कमाल हो गया...वैसे कई बार अलग अलग राइटरस के थॉट एक से हो जाते हैं....और लेक्चर साहिबा..इसका मतलब ये भी है कि...हमारी प्रेम कहानी सबसे अलग नहीं है" इस बार सन्दर्भ ने ध्यान देकर गाना सुना और अपना लैपटॉप बंद कर दिया

"कितना अच्छा...अपना वो टाइम...हुआ करता था...उस वक्त आज के जैसे मोबाइल फोन्स तो हुआ नहीं करते थे...और..हम लोगों के पास रोज रोज घर के लैंडलाइन से फोन करने का मौका भी नहीं हुआ करता था.... बस ये कहते थे कि रात में दस बजे तुम भी चाँद देखना...और मैं भी देखूंगी...ऐसा लगता था जैसे हम दोनों एक दूसरे को नजर भर के देख रहे हों...wow..सोच के फिर से दिल में..अजीब सी ख़ुशी भर गई.." व्याख्या ने अतीत का एक टुकड़ा फिर से चखा

"उस वक्त तो..न आज के जैसे एयर-कंडीशन मॉल थे..जहाँ हम मिल सकते थे और न ही इतना ओपन माइंडेड क्राउड था...याद करो..कैसे सब अजीब नजरों से हमें देखा करते थे....भला हो उन PCO वाले भैया का जो मुझे तुम्हारा कॉल रिसीव कर लेने दिया करते थे...जब तक कोई कॉल करने नहीं आता था...मैं तुमसे बात करता रहता था" सन्दर्भ ने अपने अंदर रोमैंस सा महसूस किया

" राइटर बाबू...अपने बीएड के दौरान...मैं ही तुम्हें फोन किया करती थी... ........आजतक उन सारी कॉल्स के बिल संभाल के रखे हैं...अब तो चुका दो..." व्याख्या ने पुराना हिसाब पेश किया

" व्याख्या...उस वक्त भी मेरे पास पैसे नहीं हुआ करते थे...और आज भी...मैं..तुम्हारा...कर्ज़दार बने रहना चाहता हूँ..... कुछ बिल पेंडिंग ही रखो.....उन बिलों में ...हमारा इश्क..फिक्स्ड डिपाजिट की तरह है ....और समय समय पे....हम...यूँ ही उसका ब्याज लेते रहेंगे" सन्दर्भ ने उसका हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा

" चलो चाँद देखते हैं...तुम अपनी बात उससे कहना...और.मैं अपनी कहूँगी..फिर वो हमें...एक दूसरे की..सारीबातें..बता देगा...चलो फिर से चाँद को अपना मोबाइल बनाते हैं..और हाँ..फिर कभी ये मत कहना कि हमारी लव स्टोरी सबसे अलग नहीं है...हम सबसे अलग हैं..ये हमारा यूनिक तरीका है...तुम्हारे कॉपी राइट की तरह..." कहकर व्याख्या ने सन्दर्भ के होठों पे एक छोटी सी किश्त अदा कर दी।

'भविष्य की खाली प्याली भरने की भागदौड़ के बीच कभी कभी अतीत की छलकती प्याली से एक चुस्की लगा लिया करो, ठन्डे वर्तमान में नई गर्माहट आ जायेगी'

-तुषारापात®™

नैनीताल के नैन

"फिर से.....फ़ोटो देखने लगीं.....तुम को भी न...पहले तो बहुत सारी फ़ोटो क्लिक करवानी होतीं हैं.....फिर तुरंत...और बार बार देखनी भी होती हैं.... अरे...अभी तो यहीं हो........इस व्यू को...थोड़ा और एन्जॉय कर लो....देखो अपनी बालकनी से पूरा माल रोड...और..पूरी नैनी झील....कितनी बढ़िया दिख रही है...अब चलते चलते इतने महंगे रूम का... फुल पैसा तो वसूल लीजिये...लेक्चरर साहिबा" सन्दर्भ ने मोबाइल में झांकती व्याख्या को अपनी बाँहों में लेते हुए प्यार से कहा

"अरे...नहीं..फोटो नहीं देख रही..वो व्हाट्सएप पे..समीक्षा को अपनीे साथ वाली ..एक दो फोटोज शेयर की हैं...जानते हो..उसने क्या कहा.....उसने कहा जीजू को देख के ऐसा लग रहा है कि..जैसे...किसी सोलह साल की प्यारी लड़की के साथ.....कोई बत्तीस साल के अंकल घूम रहे हैं...ही ही ही ही" व्याख्या ने खिखिलाते हुए मीठी सी शरारत की

" इस सा....ली... समीक्षा की तो...वैसे...जरा...एक मिनट..उसे थैंक यू बोल देना ...मेरी उम्र चार पाँच साल कम करने के लिए" सन्दर्भ ने किसी नौजवान की तरह स्टाइल मारते हुए कहा

"और राईटर बाबू...रही बात पैसे वसूलने की तो....किसने कहा था इतना महंगा होटल करने को.....7500 एक दिन का...बाप.रे.. इतने पैसे में तो... हमारा एक महीने का राशन आ जाता" अचानक ख्वाबों की प्रेमिका से व्याख्या एक मध्यम वर्गीय गृहणी में बदल गई

"अरे यार...हम मिडिल क्लास लोग...पूरे साल पैसे बचा बचा के..अपनी कितनी इच्छाएँ मार मार कर...कुछ पैसे जोड़ कर...दो चार दिन हिल स्टेशन पे रहने आते हैं ...बिलकुल रईसों की तरह जीने को.....इतनी हाइट पे आकर...अपनी लो लाइफ से ...कुछ दिनों के लिए ही सही..मुक्त तो हो जाते हैं.....देखो बिलकुल इस चिप्स के पैकेट की हवा की तरह..ये भी मुक्त हो जाना चाहती है" सन्दर्भ ने हद से ज्यादा फूले हुए चिप्स के पैकेट को दिखाते हुए कहा

" हुँ...कैसे रईस...वो ऑन्टी को देखा था..इतना शो-ऑफ कर रहीं थीं... यहाँ नैनीताल में भी आकर...मैडम होटल में AC रूम मांग रहीं थीं..ही ही ही ही" व्याख्या ने चिप्स का पैकेट फाड़ते हुए कहा

"वैसे..राइटर बाबू..तुम्हे तो...बहुत से थॉट्स आये होंगे..यहाँ पहाड़ों पे आकर.." व्याख्या ने चिप्स का एक टुकड़ा सन्दर्भ को खिलाते हुए पूछा

" सच कहूँ...एक भी थॉट नहीं आया.....मैं बस पूरी तरह तुममे खोया रहा...तुम्हे देखता रहा..छोटी छोटी कितनी बातें ...तुम्हे बड़ी बड़ी खुशियाँ दे जाती हैं....और एक मैं था ...जो सोचता रहा कि बस जरा जिंदगी को सेट कर लूँ ...फिर एन्जॉय करेंगे...इसी चक्कर में अपने सुनहरे पाँच साल बेकार कर दिए...थैंक यू सो मच..जिद करके यहाँ लाने के लिए..वरना जिंदगी बनाते बनाते...मैं अपनी..इस..जिंदगी को ही भूल गया था" सन्दर्भ ने उसकी ठोड़ी को छूते हुए कहा

" सन्दर्भ...तुम्हारी बाँहों में बाहें डाल कर ...पिटे हुए चने खाते खाते...मुझे टहलना पसंद है ...वो चाहे माल रोड हो या फिर हजरतगंज की रोड...कोई फर्क नहीं पड़ता"

सन्दर्भ ने उसकी आँखों में खुद को खोने से बचाते हुए जल्दी से कहा" लेक्चरर साहिबा..चलो निकलना है अब..कार तैयार है..9 नंबर दबा के ..रूम सर्विस से...ग्रीन टी और टोस्ट मांगने के दिन खत्म हुए"

दोनों कार में अपना सामान रखवाने लगे...कार में एक गाना बज रहा है...आप लोगों ने सुना क्या?..नहीं ? अपने अपने मोबाइल कान के पास ले जाइये...और ध्यान से सुनिए :

"आने..वाला..पल...जाने वाला है....हो सके तो इसमें..जिंदगी..बिता लो..पल ये भी जाने वाला है..........................................................."

-तुषारापात®™

फादर्स डे

"तुम भी न..सन्दर्भ...बस...कमाल ही करते हो !...इतना महंगा स्कूल शूज...कोई बच्चे को दिलवाता है क्या ?.....इतनी महंगाई ...और 1350 का जूता..वो भी बच्चे का...जब बाटा में...399 में मिल रहा था तो... निष्कर्ष को वही दिलाया जा सकता था न..पर नहीं......तुम उसे बिगाड़ रहे हो" व्याख्या ने हलके गुस्से में और एक ही सांस में अपनी सारी बात कही

"कोई नहीं...यार..कल father's day था...मन किया...बच्चे को दिलवा दिया" सन्दर्भ ने कपड़े चेंज करते करते कहा

"अरे...father's day था...तो पापा जी के लिए कोई गिफ्ट लेते...और उन्हें भिजवाते...निष्कर्ष तो तुम्हारा बेटा है...तुम्हारा तो न...लिख लिख के...दिमाग ख़राब हो चुका है ...उल्टा सीधा सोचते हो ...और उल्टा पुल्टा काम करते हो "

" व्याख्या... तुम्हे पता है...मैं एक सरकारी सहायता प्राप्त स्कूल में पढ़ता था...वहाँ 100 पेज की...कार्डबोर्ड के कवर वाली कॉपियाँ चलती थीं...पर पापा मुझे वो न दिला के...विद आउट कवर वाली कॉपीज दिलाते थे...और...उन कॉपीज को...पिछले साल की कॉपियों के दफ़्ती वाले कवर में सिल देते थे...और एक बार..जब मेरा जूता बिलकुल ही खराब हो गया था...तो बुआ जी की बेटी का...एक पुराना जूता ले आये थे..वो गर्ल्स का होता है न..स्कूल वाला...थोड़ा लंबा सा शूज जिसमे बीच में..एक स्ट्रैप होता है..उसका स्ट्रैप काट के..मुझे पहना के स्कूल भेज दिया था...मेरे सारे दोस्त मेरा बहुत मजाक उड़ाते थे...मुझे बहुत बुरा लगता था...पर डर के मारेे.. मैं पापा से कुछ कह नहीं पाता था...और माँ से झगड़ता था जिद करता था...माँ मुझे किसी तरह बहला देती थी..पर पापा के लिए मेरे मन में एक नफरत सी बैठ गई थी" सन्दर्भ जैसे अतीत में खो सा गया और बड़बड़ाता गया

"ओह्ह्ह...पर सन्दर्भ...तुम जानते ही हो उस वक्त...तुम्हारे घर के हालात बहुत खराब थे....और पापाजी....किसी तरह पूरे घर का..खर्च किसी तरह चला पाते थे....पूरी तरह से कर्ज में डूबे हुए थे"व्याख्या ने अपनी सास से सुनी सच्चाई बयान की

"हाँ..जानता हूँ...ये बात मुझे कुछ दिनों के बाद...बहुतअच्छी तरह समझ भी आ गई थी..मैं समझ गया था कि...पापा चाहते हुए भी..मुझे वो सब नहीं दिला पा रहे थे...कितनी पीड़ा होती होगी उन्हें उस वक्त...अपने बच्चे के लिए कुछ न कर पाने पर....कितने हताश...और खुद को कितना ...कितना...कमजोर समझते होंगे वो...न जाने कितने लोगों के सामने....... हाथ फैलाना पड़ा होगा उन्हें...... आज एक बच्चे का पापा होकर मैं उन्हें बेहतर समझ सकता हूँ...निष्कर्ष को स्कूल शूज दिलाते समय वही बात मुझे याद गई...और बस मैंने निष्कर्ष को...वो जूते दिला के..अपने पापा की उन अनगिनत इच्छाओँ में से एक को पूरा कर दिया....जो उन्होंने कभी मेरे लिए सोची तो होंगी...पर..अपनी..गरीबी के चलते कर नहीं पाये..उनकी उस समय की पीड़ा को मैंने महसूस किया...ये ही मेरा...अपने पापा को..इस फादर'स डे का गिफ्ट है।" सन्दर्भ अपनी भर आई आँखों को रोकते हुए बोला।

'हर सन्दर्भ चाहता है कि उसका निष्कर्ष बेहतर से बेहतर हो, अगर कभी आपके माता पिता आपके अनुरूप कोई काम न कर पाये हों तो उनके प्रति घृणा नहीं उनकी उस मज़बूरी का सम्मान करियेगा और हाँ mother's day, father's day मनाने का यही मतलब होता है न ?

-तुषारापात®™

आलोचना या निंदा

"क्या हुआ व्याख्या बेटा ?......अरे....तुम रो रही हो क्या......क्या हुआ बहु ? ...सन्दर्भ से कुछ झगड़ा हुआ.....?" आने तो दो उसे ऑफिस से......ठीक करता हूँ उसे" संवाद ने व्याख्या से कहा

"नहीं पापा जी ....कुछ नहीं हुआ सब ठीक है " व्याख्या ने जल्दी से अपने दुपट्टे से अपने आंसू पोछे और जबरन मुस्कुराते हुए ससुर जी से बोली

"तो क्या...आलोचना जी ने तुमसे कुछ कहा.?" संवाद ने फिर पूछा

"नहीं पापा जी ....मम्मी जी तो बहुत अच्छी हैं...वो तो मुझे बहुत प्यार करती हैं...आप..न..परेशान मत होइए...मैं बिलकुल ठीक हूँ" व्याख्या ने खुद को समेटने की कोशिश की

"ठीक है बेटा....कोई भी परेशानी हो...तो...तुम मुझसे बेहिचक शेयर कर सकती हो..चलो अब मैं अपने रूम में जाता हूँ" कहकर संवाद आलोचना के पास अपने कमरे में आ जाता है और आलोचना से कहा

"आलोचना जी!...अभी जब मैं आया तो....लॉबी में..व्याख्या बहुत उदास बैठी थी..आपसे कुछ बात हुई क्या?"

आलोचना पलंग पे उठ के बैठ गई और बोली " देखिये जी.....अरे अब क्या बताऊँ..हम लोगों को यहाँ...सन्दर्भ के यहाँ आये ...हफ्ता भर हो चूका है...और एक भी दिन ऐसा नहीं गया..जब साथ आई आपकी ...निंदा बुआ जी ने ...व्याख्या के किसी न किसी काम में ..उसकी गलती निकाल के मीन मेंख न निकाला हो...आज भी उससे बोलीं कि तुम्हारी जगह...अगर सन्दर्भ ने उनकी बताई लड़की से ..शादी की होती तो आज इस घर में....संवाद के पुरखों के संस्कार तो होते.....और भी अनाप शनाप जो मन में आया बोलती गईं ......मैं तो कहती हूँ कि...आप बेकार में इन्हें साथ ले आये..खैर मैं अभी जा के व्याख्या से बात करती हूँ......बेचारी को तो परेशान कर दिया है इन्होंने"

"हाँ ...ये निंदा बुआ की बहुत बुरी आदत है...जिसके पीछे पड़ जाएँगी बस जीना हराम कर देती हैं..खैर मैं उनसे तो बाद में बात करूँगा..पर तुम्हें तो व्याख्या से बात करनी चाहिए थी...आखिर तुम उसकी सास हो...तुम्हारी बातों से उसे भी हिम्मत रहती न " संवाद ने अपनी सलाह दी

"अरे मैं तो बात करने जाने वाली ही थी ....सोचा था ..कि......जरा..निंदा बुआ..अपनी दोपहर की नींद में चलीं तो जायें...चलो मैं उससे बात करके आती हूँ...आप आराम करिये ....." आलोचना ने सफाई पेश की

"व्याख्या बेटी! आ जाऊँ मैं?" आलोचना ने व्याख्या के कमरे के दरवाजे से ही पूछा

"ओह्ह मम्मी जी....आइये न...आपको कोई पूछने की जरूरत है क्या" व्याख्या ने जल्दी से उठकर पलंग पे उनके लिए जगह बनाई

" देख बहु....मुझे पता है..कि...तुम निंदा बुआ की बात से बहुत अपसेट हो पर....मैं बस इतना ही कहना चाहती हूँ...बिलकुल भी परेशान मत हो...कोई कुछ भी बोले ...मुझे तो पता है न....कि तुमने कितनी अच्छी तरह से ..इस घर को संभाला है.....और बेटा ...मैंने तुम्हे आज तक ...जब भी किसी बात में टोका ..या ...कुछ कहा होगा तो बस... इसलिए कि उससे तुम्हारा काम और अच्छा हो सके..कोई बाहर वाला...कोई कमी न निकाल सके" आलोचना ने व्याख्या का हाथ पकड़ के कहा

"मैं जानती हूँ मम्मी जी....आपसे बहुत कुछ सीखने को मिला है मुझे ....बहुत सुधार आया है मुझमे...आप जैसी सासू माँ किस्मत से मिलती हैं"
व्याख्या की आँखों में भावुकता की नमी आने लगी

"अरे किस्मत वाली तो मैं हूँ....जो मुझे तुझ जैसी इतनी समझदार बहु मिली है ...छोड़ अब ...निंदा बुआ की बातों को दिल से मत लगा..वो तो कुछ भी बोलती रहती हैं...वो तो मुझे भी नहीं छोड़ती..तूने तो देखा ही है...
बस बेटा यूँ ही हँसते मुस्कुराते रहा कर...मैं हूँ न साथ में तेरे...तेरे हर डिसीजन में...और वैसे भी जब व्याख्या और आलोचना एक साथ हैं तो निंदा क्या कर सकती है" आलोचना की ये बात सुनते ही व्याख्या की आँखों के बाँध टूट गए और वो अपनी सास के गले लग गई दोनों सास बहु नम आँखों के साथ न जाने कितनी देर एक दूसरे को गले लगाये रहीं।

' आलोचना सुधार की दिशा दिखाती है जबकि निंदा उपहास की। व्याख्या और आलोचना के बीच स्वस्थ संवाद होना चाहिए या ये कहना चाहूँगा किसी भी रिश्ते में चाहे वो सास बहु का हो या कोई भी रिश्ता हो समस्या तब ही आती है जब संवाद टूट जाता है और तभी निंदा हावी होने लगती है'

-तुषारपात®™

प्रस्तावना का प्रवेश : सन्दर्भ संग व्याख्या

"मैं अब तुम्हें अच्छी नहीं लगती न..?" व्याख्या ने सन्दर्भ की तरफ करवट लेते हुए पूछा

सन्दर्भ समझ गया कि फिर से वही पुराना हमला होने वाला है "अरे...जान ऐसा क्यों कह रही हो.. क्या हुआ.?"

"कुछ नहीं बस यूँ ही पुछा....तुमने जवाब नहीं दिया..?"

"अरे यार....तुम बहुत अच्छी लगती हो...बहुत बहुत प्यार करता हूँ तुम्हें ...और ये भी कोई बार बार कहने की बात है..." सन्दर्भ ने बहुत सावधानी से जवाब दिया की कहीं ये महीने दो महीने में एक बार फूटने वाला बम आज आग न पकड़ ले

"और क्या....पहले तुम बात बात में...मुझ जताते रहते थे..छोटे छोटे से सरप्राइज दिया करते थे...पर अब सब....." व्याख्या ने एक गहरी सी सांस छोड़ी

"अभी भी उतना है...(फिर तुरंत सोचता है नहीं सिर्फ इससे काम नहीं चलेगा तो जल्दी से आगे बोलता है) इंफैक्ट अब तो पहले से भी बहुत ज्यादा करता हूँ....पर क्या करूँ ऑफिस का काम .....और लिखने में ही इतना थक जाता हूँ कि..."

व्याख्या उसकी बात काटते हुए बोली "नहीं मैं जानती हूँ अब मैं पहले जैसी नहीं रही...मोटी हो गयी हूँ...सारा चार्म भी खो गया है कहीं ..बस एक घरेलू भद्दी आंटी सी हो गई हूँ..."

"अरे तो भाई व्याख्या तो लंबी चौड़ी ही अच्छी होती है" संदर्भ ने बात को थोड़ा हल्का करने के लिए मजाक किया

हूँ...तो तुम भी यही कह रहे हो...कि मैं मोटी हूँ?.....अच्छा ये बताओ....वो सामने वाले घर में जो नई किरायेदार आई है उसे देखा है?"

"कौन वो प्रस्तावना की बात कर रही हो क्या?"....हाँ ...देखा है ..पर उससे इस बात का क्या मतलब ?"

"ओह्ह्ह ..मतलब नाम भी जानते हो उसका....क्या बात है वाह...बहुत बढ़िया .....हाँ हाँ खूब देखा करो उसे...."

"अरे यार...ये क्या बात हुई चलो अब सो जाओ...सुबह जल्दी उठना है" सन्दर्भ अब झल्ला गया और टेबल लैंप बंद करके दूसरी तरफ करवट ले के सोने लगा

उधर व्याख्या सोचती रही....प्रस्तावना कितनी फिट है,छरहरी ,मॉडर्न नवयौवना है फिगर तो ऐसा है की कोई मर्द ताकता रह जाये और ऊपर से फिटिंग के चुस्त मोडर्न ड्रेस उफ़....कभी वो भी तो ऐसी ही थी...तभी तो सन्दर्भ उसपे मर मिटा था...पर अब दो बच्चों के बाद कैसी बेकार सी हो गई है...सन्दर्भ अब उसपे ध्यान तक नहीं देता..और ....आज तो उसने उसे प्रस्तावना को गौर से देखते भी देख लिया था ...हाँ देखेगा ही...इतने छोटे और टाइट कपड़े जो पहनती है ..सारे मर्द एक जैसे होते हैं ......... इसी वजह से उसका मन आज कहीं नहीं लग रहा ....सन्दर्भ उससे जरा सी बात कर लेता तो मन हल्का हो जाता है...पर वो भी मुंह फेर के सो गया

"सन्दर्भ...काश तुम समझ पाते कि ...मैं भी कभी प्रस्तावना थी पर तुम्हारे लिए ...अपने घर अपने बच्चों के लिए धीरे धीरे मैं व्याख्या बन गई....और अपने को पूरा बदलने के बाद आज भी...व्याख्या जानी जाती है सन्दर्भ के नाम से....किसकी व्याख्या है...सन्दर्भ देखो...और तुम भाग रहे हो नई नवेली प्रस्तावना के लिए..... और ऐसे ही सोचती हुई.. तकिये को नम करते करते कब वो...सो गई उसे खुद पता नहीं चला।

'प्रस्तावना' चाहे जितनी अच्छी हो पर 'व्याख्या' ही 'सन्दर्भ' को पूर्ण करती है और उससे ही निष्कर्ष प्राप्त होता है ।

-तुषारापात®™

शेयरिंग: संदर्भ संग व्याख्या

"क्या यार..अभी अभी तो ऑफिस से आया हूँ ...और तुम कह रही हो मंदिर चलो ....घर में ही हनुमान जी के हाथ जोड़ लो न" सन्दर्भ ने झल्लाते हुए कहा

"अरे ...बस10 मिनट ही तो लगेंगे..मंगल है आज दर्शन भी कर लेंगे..और....और बच्चों की छोटी सी आउटिंग भी हो जायेगी....चलो फटाफट नहा लो..मैं चाय बनाती हूँ" व्याख्या उसे बहलाके बच्चों को तैयार करने लगी

" निष्कर्ष बेटा...टीवी बंद कीजिये...बहुत हो गया डोरेमॉन..अब हम मंदिर चलेंगे"

"मम्मा ...क्या वहाँ मुझे लड्डू मिलेगा" निष्कर्ष ने मासूमियत से पुछा

व्याख्या ने हँसते हुए "हाँ वहाँ खूब सारे लड्डू मिलेंगे"

"पर मम्मा...मैं टिपनी को अपने लड्डू नहीं दूंगा" निष्कर्ष ने घोषणा की

"नो बेटा...टिपण्णी आपको छोटी सिस्टर है न ..और आपको तो पता है सबके साथ शेयर करके खाने से ..इतना सारा प्यार बढ़ता है" व्याख्या ने अपने दोनों हाथ फैला के उसे दिखाया

"ओके मम्मा...पर मैं सिर्फ एक लड्डू शेयर करूँगा...बाकी सब मेरे" निष्कर्ष ने बहुत बड़ा सा दिल दिखाते हुए कहा

(उसके बाद चाय शाय पीकर ...संदर्भ और व्याख्या, अपने दोनों बच्चों निष्कर्ष और टिपण्णी को लेकर मंदिर पहुंचे और प्रसाद चढ़ा के लौट रहे थे कि मंदिर के बाहर बैठे छोटे छोटे बच्चों ने उन्हें घेर लिया और उनसे प्रसाद और पैसे मांगने लगे)

"ओ अंकल जी.....आंटी जी...कुछ खिला दो बहुत भूख लगी है"

(निष्कर्ष ने अपने हाथ में पकड़े प्रसाद के डिब्बे से सारे लड्डू उन सभी बच्चों को दे दिए फिर जब कार में सब बैठ गए तो व्याख्या ने उससे पुछा)
"निष्कर्ष...बेटा..आप तो कह रहे थे आप किसी को लड्डू नहीं देंगे फिर सारे के सारे क्यों दे दिए"

"मम्मा ...वो...हनुमैन तो...एक भी लड्डू नहीं खा रहे थे...तो फिर ...फिर...yellow कपड़े वाले अंकल ने ...हमारे आधे लड्डू क्यों ले लिए
...फिर आधे बचे लड्डू ..मैंने उन डर्टी किड्स को दे दिए ....वो बहुत हंगरी थे ...और मम्मा.....आपने ही सिखाया था..न...शेयर करने से प्यार बढ़ता है ।

निष्कर्ष के लिए माँ से बड़ा कोई संस्कार नहीं कोई मंदिर नहीं :)

तुषारापात®™

मंडे मॉर्निंग : सन्दर्भ संग व्याख्या

"उठो भी अब....सोती ही रहोगी क्या...चलो..अब जाग जाओ" चादर खींचते हुए सन्दर्भ ने फुसफुसाते हुए कहा

"हूँ....हूँ... सोने दो न ...कभी कभी तो कोई मंडे...छुट्टी का होता है" व्याख्या चादर से मुंह ढकते हुए आलस में डूबी आवाज में बोली

सन्दर्भ ने बड़े प्यार से चादर से निकली उसकी लटों में उंगलियाँ पिरोते हुए कहा "9 बज गए हैं...बदली छाई है...मौसम ने आज सूरज को भी छुट्टी दे दी है और मेरा चाँद मुंह छुपा के सो रहा है"

"हाँ...क्योंकि ....चाँद रात में निकलता है सुबह नहीं...और वैसे भी घर में पहले आदमी लोग ही उठते हैं औरते बाद में" व्याख्या ने उसे चिढ़ाया

"अरे...मैडम..ये कहाँ देख लिया..ये तो कहीं कह मत जाना..ऐसा कहीं नहीं होता"

"होता है..मेरे घर में ही ..पापा सबसे पहले उठते हैं..पूजा करते हैं...फिर मम्मी उठती हैं" व्याख्या करवट बदल के कहती है

"अच्छा अच्छा ..होता होगा..इतनी रोमैन्टिक सुबह...मैं तुम्हारे पापा को याद नहीं करना चाहता" इस बार सन्दर्भ ने निशाना लगाया

"राइटर बाबू ...तुम कभी मेरे पापा जैसे बन भी नहीं सकते......अच्छा पहले मुझे तुम्हारे हाथ की चाय पीनी है...बना लाओ न प्लीज" व्याख्या ने दुलार दिखाते हुए चादर को ढके ढके ही कहा

"अच्छा जिससे तुम्हे और टाइम मिल जाओ पसरे रहने का...ठीक है बना के लाता हूँ...पर उठ के बैठो..मैं यूँ गया और यूँ आया"

"हूँ...हूँ...जाओ तो पहले"

कुछ देर बाद सन्दर्भ चाय बेड के साइड टेबल पे रखते हुए उसे फिर जगाता है "लेक्चरर साहिबा....प्याली में गर्मागर्म इश्किया चाय ....तुम्हारे शक्करी होंठ छूने को बेताब है"

व्याख्या भावुक सी हो जाती है "सन्दर्भ जानते हो...तुम्हारी तीखी तीखी कोहनी की चुभन से....जब तुम मुझे उठाते हो तो..तो...सुबह और मीठी हो जाती है....." फिर आवाज़ कुछ यूँ बदलती है उसकी जिसे सन्दर्भ बहुत अच्छी तरह से जानता है "आ जाओ......फिर से सो जाते हैं...मंडे की छुट्टी रोज रोज नहीं मिला करती " कहकर उसने उसे भी अपनी चादर में खींच लिया

और फिर सन्दर्भ व्याख्या में विस्तारित हो गया।
-तुषारापात®™