Friday 7 September 2018

ओ लड़के सिगरेट न सुलगाना

"हैं..क्या..स्त्री फिलम की कहानी जैसा..आपके साथ हो रहा है .. अमां.. मतलब..कुछ भी सत गुरुदत्त उड़ा रहे हैं..गररर..गरर..थू..कमाल है फिलमों का..पहले आदमी ख़ुद को शैहरुख ख़ाँ समझता था.. अब.. गलीं के लौंडे..राजकुमार राव बन रहें हैं.." केसर भाई ने कुल्ला करके लोटा एक और रखा और पानदान से  एक गिलौरी उठा के उसकी गिरह खोलते हुए बोले

वैधानिक तिवारी बेचैनी से इधर उधर चहलकदमी कर रहा था, अपने गले पे चुटकी काटते हुए वह उनसे कहता है  "अम्मा कसम ..केसर भइया.. अम्मा कसम.. सच कह रहें हैं...स्त्री पिक्चर की बात नहीं..कैसे समझाएं.. यार..सच में वो हमें नजर आती है..डराती है..हालत ये है कि ..डर के मारे चालीसा तक नहीं पढ़ी जाती उसके सामने"

"अमां..वैदानिक..सुबह ही सुबह ही क्या राजा ठंडाई चले गए थे..नज़र आती है..नज़र आती है..तो..ज़रा बुलाइये यहाँ.. हम भी तो देखें ये चुड़ैलें आखिर दिखतीं कैसीं हैं...वैसे..जनाब से आकर क्या गुफ़्तगू फरमाती हैं मोहतरमा..वाह..ये है बेहतरीन कनकौआ" केसर भाई इतनी देर में एक पतंग के कन्ने बांध चुके थे,पतंग की धनुषाकार तीली के दोनों सिरों को अपनी ओर मोड़ के उसका मिज़ाज चेक कर उससे ये कहते हैं और उसे छुड़ईया देने का इशारा करते हैं

"अमां भइया.. यहाँ हमारी नींद उड़ी पड़ी है...और आपको कनकउए उड़ाने की पड़ी है" वैधानिक पक्के पुल की तरह लाल होते हुए बोला " ऐसे नहीं आती..आती तब है जब हम अकेले में सिगरेट पी रहे होते हैं.."

ये लीजिये..तौबा..अब चुड़ैलें भी हुक्का पानी करने आने लगीं..एक दो सुट्टा लगवा देते उसे भी..पक्का फ्रेंदशिप..हो जाती..मियां" केसर भाई ने आँख मारते हुए कहा

"अमां..केसर भइया.. हँसिये मत..हुक्का आप भी पीतें हैं..जिस दिन आ गई न पायजामें में पानी आ जाएगा.. मजाक छोड़िए..कोई तरीका बताइए.. कैसे पीछा छुड़ाएं उससे..पिछले हफ्ते से पीछे पड़ गई है..सिगरेट की तलब भी अब बक्शी के तालाब में चली गई है हमारी..जब बर्दाश्त नहीं होता तो सुलगा लेते हैं...तो वो आ जाती है हमारी सुलगाने...कोई रास्ता बताओ..झाड़फूंक वाला है क्या कोई ..आपके जानने में.." वैधानिक छत पे उकड़ूं बैठते हुए पूछता है

"ये लो..अमां हमसे बेहतर कौन है जो..मनतर जनतर..जानता है..हमने तो बड़े बड़े जिन्नात काबू कर दिए..तो ये चुड़ैल की क्या औकात हमारे जलाल के सामने.." केसर भाई इमामबाड़े की तरह चौड़े होते हुए आगे बोले " देखिए वैदानिक मियां..अंदर की बात है..किसी से कहिएगा नहीं.. तुम्हारी भाभीजान पे भी पहले बहुत चुड़ैल आती थी..एक दिन बहुत आएं बाएं साएं बक रहीं थीं..उठा के छुरी..उस दिन जो हमने उनकी चोटी काटी..तब का दिन है और आजका.. चुड़ैल आना तो क्या..ख़ुद भी चियां के रहतीं हैं..पट्टे कट करवा दिया...अब तोते की तरह जो हम बोलें बस वो ही दोहराती हैं..तो मियां अबकी जब वो चुड़ैल तुम्हारे नज़दीक आए तो उड़ा दो कमज़र्फ की चोटी...दादी अम्मा कहतीं आईं हैं कि चुड़ैल की चोटी में उसकी जान होती है" केसर भाई ने बात खत्म की और अपने कमरे की ओर देखके तसल्ली करने लगे कि उनकी शरीके हयात ने कुछ सुना तो नहीं

वैधानिक उनकी सलाह मान वहाँ से रुखसत हुआ और कुड़िया घाट के एक सन्नाटे कोने में आकर सिगरेट सुलगाने लगा सिगरेट सुलगते ही लाल साड़ी में उल्टे पैर वाली चुड़ैल घूँघट से आधा मुँह ढके वहाँ प्रकट हुई और उसे डराके भयानक अट्टहास करने लगी "मारे जाओगे..सब मारे जाओगे..मरेगा तू जल्दी ही..मौत मौत..हाहाहा हाहाहा.."

वैधानिक को इतने दिनों में उसकी आदत हो गई थी तो वो इस बार कम डरता है "ठीक है ठीक है..मारे जाएंगे हम..पर तुम क्यों मारना चाहती हो हमें..और तुम्हारा नाम क्या है...चुड़ैल हो..पर उतनी डरावनी नहीं लगतीं..हो कौन तुम..

"डरावनी..डरावनी क्यों लगूँगी मैं..लखनऊ की चुड़ैल हूँ..यहाँ तो लोग गाली भी तमीज़ से देते हैं..तो चुड़ैल में थोड़ी नफ़ासत तो बनती है..मारे जाओगे आप..जल्दी मारे जाओगे आप.." चुड़ैल ने इस बार अट्टहास नहीं किया

वैधानिक कमर पे छुरी टटोलते हुए उसे बहलाने की कोशिश करते हुए कहता है "अच्छा तुमने अपना नाम तो बताया नहीं..क्या नाम है.तुम्हारा.. मरने से पहले मौत का नाम जानने का हक तो बनता है.."

चुड़ैल ने मरने वाले की आखिरी तमन्ना पूरी करते हुए नाम बता दिया "चेतावनी"

वैधानिक उसका नाम सुनकर एक पल को चौंका और अचानक से सबकुछ उसे समझ आ गया उसने उँगली में पकड़ी सिगरेट को होठों से लगाया और गोल्डन कश लेकर बोला "अलविदा"  और सिगरेट के सिर यानी फिल्टर को एक झटके से तोड़ते हुए दोनों हिस्सों को को ज़मीन पर फेंक दिया.. चुड़ैल सेकंड के सौवें हिस्से से भी कम समय में हवा में उड़ती राख की तरह छू हो गई।

वैधानिक चेतावनी: सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।

~तुषारापात®