"क्या यार..अभी अभी तो ऑफिस से आया हूँ ...और तुम कह रही हो मंदिर चलो ....घर में ही हनुमान जी के हाथ जोड़ लो न" सन्दर्भ ने झल्लाते हुए कहा
"अरे ...बस10 मिनट ही तो लगेंगे..मंगल है आज दर्शन भी कर लेंगे..और....और बच्चों की छोटी सी आउटिंग भी हो जायेगी....चलो फटाफट नहा लो..मैं चाय बनाती हूँ" व्याख्या उसे बहलाके बच्चों को तैयार करने लगी
" निष्कर्ष बेटा...टीवी बंद कीजिये...बहुत हो गया डोरेमॉन..अब हम मंदिर चलेंगे"
"मम्मा ...क्या वहाँ मुझे लड्डू मिलेगा" निष्कर्ष ने मासूमियत से पुछा
व्याख्या ने हँसते हुए "हाँ वहाँ खूब सारे लड्डू मिलेंगे"
"पर मम्मा...मैं टिपनी को अपने लड्डू नहीं दूंगा" निष्कर्ष ने घोषणा की
"नो बेटा...टिपण्णी आपको छोटी सिस्टर है न ..और आपको तो पता है सबके साथ शेयर करके खाने से ..इतना सारा प्यार बढ़ता है" व्याख्या ने अपने दोनों हाथ फैला के उसे दिखाया
"ओके मम्मा...पर मैं सिर्फ एक लड्डू शेयर करूँगा...बाकी सब मेरे" निष्कर्ष ने बहुत बड़ा सा दिल दिखाते हुए कहा
(उसके बाद चाय शाय पीकर ...संदर्भ और व्याख्या, अपने दोनों बच्चों निष्कर्ष और टिपण्णी को लेकर मंदिर पहुंचे और प्रसाद चढ़ा के लौट रहे थे कि मंदिर के बाहर बैठे छोटे छोटे बच्चों ने उन्हें घेर लिया और उनसे प्रसाद और पैसे मांगने लगे)
"ओ अंकल जी.....आंटी जी...कुछ खिला दो बहुत भूख लगी है"
(निष्कर्ष ने अपने हाथ में पकड़े प्रसाद के डिब्बे से सारे लड्डू उन सभी बच्चों को दे दिए फिर जब कार में सब बैठ गए तो व्याख्या ने उससे पुछा)
"निष्कर्ष...बेटा..आप तो कह रहे थे आप किसी को लड्डू नहीं देंगे फिर सारे के सारे क्यों दे दिए"
"मम्मा ...वो...हनुमैन तो...एक भी लड्डू नहीं खा रहे थे...तो फिर ...फिर...yellow कपड़े वाले अंकल ने ...हमारे आधे लड्डू क्यों ले लिए
...फिर आधे बचे लड्डू ..मैंने उन डर्टी किड्स को दे दिए ....वो बहुत हंगरी थे ...और मम्मा.....आपने ही सिखाया था..न...शेयर करने से प्यार बढ़ता है ।
निष्कर्ष के लिए माँ से बड़ा कोई संस्कार नहीं कोई मंदिर नहीं :)
तुषारापात®™
"अरे ...बस10 मिनट ही तो लगेंगे..मंगल है आज दर्शन भी कर लेंगे..और....और बच्चों की छोटी सी आउटिंग भी हो जायेगी....चलो फटाफट नहा लो..मैं चाय बनाती हूँ" व्याख्या उसे बहलाके बच्चों को तैयार करने लगी
" निष्कर्ष बेटा...टीवी बंद कीजिये...बहुत हो गया डोरेमॉन..अब हम मंदिर चलेंगे"
"मम्मा ...क्या वहाँ मुझे लड्डू मिलेगा" निष्कर्ष ने मासूमियत से पुछा
व्याख्या ने हँसते हुए "हाँ वहाँ खूब सारे लड्डू मिलेंगे"
"पर मम्मा...मैं टिपनी को अपने लड्डू नहीं दूंगा" निष्कर्ष ने घोषणा की
"नो बेटा...टिपण्णी आपको छोटी सिस्टर है न ..और आपको तो पता है सबके साथ शेयर करके खाने से ..इतना सारा प्यार बढ़ता है" व्याख्या ने अपने दोनों हाथ फैला के उसे दिखाया
"ओके मम्मा...पर मैं सिर्फ एक लड्डू शेयर करूँगा...बाकी सब मेरे" निष्कर्ष ने बहुत बड़ा सा दिल दिखाते हुए कहा
(उसके बाद चाय शाय पीकर ...संदर्भ और व्याख्या, अपने दोनों बच्चों निष्कर्ष और टिपण्णी को लेकर मंदिर पहुंचे और प्रसाद चढ़ा के लौट रहे थे कि मंदिर के बाहर बैठे छोटे छोटे बच्चों ने उन्हें घेर लिया और उनसे प्रसाद और पैसे मांगने लगे)
"ओ अंकल जी.....आंटी जी...कुछ खिला दो बहुत भूख लगी है"
(निष्कर्ष ने अपने हाथ में पकड़े प्रसाद के डिब्बे से सारे लड्डू उन सभी बच्चों को दे दिए फिर जब कार में सब बैठ गए तो व्याख्या ने उससे पुछा)
"निष्कर्ष...बेटा..आप तो कह रहे थे आप किसी को लड्डू नहीं देंगे फिर सारे के सारे क्यों दे दिए"
"मम्मा ...वो...हनुमैन तो...एक भी लड्डू नहीं खा रहे थे...तो फिर ...फिर...yellow कपड़े वाले अंकल ने ...हमारे आधे लड्डू क्यों ले लिए
...फिर आधे बचे लड्डू ..मैंने उन डर्टी किड्स को दे दिए ....वो बहुत हंगरी थे ...और मम्मा.....आपने ही सिखाया था..न...शेयर करने से प्यार बढ़ता है ।
निष्कर्ष के लिए माँ से बड़ा कोई संस्कार नहीं कोई मंदिर नहीं :)
तुषारापात®™
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