गांडीव जिसे था सिद्ध
लक्ष्यभेद के लिये प्रसिद्ध
दृष्ट उसे था नियतिशाख पे
काल बना बैठा है गिद्ध
विनती की उसने केशव से
विचलित होगा हर शव से
उसे सुनाई गई हर लोरी
लुप्त होगी काल के रव में
चहुँओर होगा मृत्यु का नृत्य
आह! कितनी क्रूरता का कृत्य
जगत मिथ्या, तो जगतेश्वर!
कौन स्वामी और कौन भृत्य?
बोले कृष्ण सुनकर अर्जुन-रूदन
पार्थ! ले देख काल का हर मर्दन
उपभोगी को चुकाना पड़ता मूल्य
मैं कोष, निसंकोच कर तू पुनर्भरण
यह ब्रह्माण्ड मेरी कनिष्ठा का अणु
मैं विशेषण से परे क्यूँकि हूँ सहिष्णु
मत हो भयभीत यह सब अतीत
मैं ही जन्मता विषाणु और विष्णु
गांडीव उठा हे कुंती पुत्र! महारथी!
मोह त्याग अधर्मियों के हैं वे साथी
कर स्थापित धर्म का राज, रख लाज
सृष्टि चलाने वाला बना है तेरा सारथी!
~#तुषारापात