"वाह...मजा आ गया...खाना तो जबरदस्त है ..ये दोनों सब्जियाँ मेरी पसन्दीदा हैं..भाभी..इस बार अगली कहानी आप पर" मैंने खुशी से चटकारे लगाते हुए कहा
किचेन के अंदर से भाभी की आवाज आई "वाकई में...या यूँ ही अपनी बीवी के सामने मेरी तारीफ की जा रही है...इसे जलाने के लिए" मैं कुछ कहता इससे पहले किचेन में उनका हाथ बँटा रहीं मेरी पत्नी जी बोल उठीं "और मैं जो रोज खाना बनाती हूँ...मुझपे तो आजतक एक भी कहानी नहीं लिखी गई"
"तुम पे तो अपनी आत्मकथा में लिखूँगा... कि कितनी बार बेकार खाने पे मुझे जबरदस्ती तारीफ करनी पड़ी...सच्ची आत्मकथा होगी तो ज्यादा पसंद की जायेगी" इस बात पे सभी के ठहाके गूँजे
"आप दोनों की शादी के 22 साल पूरे हो गए न...जानतीं हैं ये मुझे इसलिए याद रहता है...क्योंकि उस साल..हम आपके हैं कौन की धूम थी...और देखो रेणुका शहाणे से भी अच्छी और सुंदर भाभी हमारे घर को मिलीं...वैसे ये मैं तभी बोलना चाहता था पर छोटा होने के कारण कह नहीं सका..आपने इस घर को अपने प्यार से बाँध के रखा..आप तो एक आदर्श भाभी हैं बिल्कुल सूरज बड़जात्या की फिल्मों की तरह" मैंने डोंगे से पनीर की सब्जी लेकर अपनी कटोरी लबालब भरते हुए कहा
भाभी और पत्नी जी दोनों अब रोटियाँ सेंककर अपनी अपनी थाली लगा के मुझे और भैया को ज्वाइन कर चुकीं थीं भाभी ने डायनिंग टेबल पे बैठते हुए कहा "चलो चलो..तब तो महाशय डॉली के आगे पीछे देखे जाते थे...वो गाना याद है...काफी दिनों तक हम लोग तुम्हें 'डॉली सजा के रखना' गा गा कर चिढ़ाते रहते थे"
"भाभी...श..श...बीवी के सामने सीक्रेट्स नहीं खोलते...वैसे भी तब मैं एफिल टॉवर के जैसे सींकिया हुआ करता था...और वो आपके मामा की लड़की डॉली गोलकुंडा का किला लगती थी..अपनी तो ये 'संगम की नाँव' अच्छी है" मैंने पत्नी जी की तरफ थोड़ा सा घी बढ़ाते हुए कहा
"वैसे देवर के राइटर होने का इतना फायदा तो मिलना ही चाहिए... अच्छा ये तो बताओ तुम्हारी कहानी में मेरा किस तरह गुणगान होगा.." भाभी ने भैया की तरफ देखते हुए कहा भैया शान्त गाय की तरह खाना खाने में लगे रहे
"उसमें कोई सेंटिमेंटल..या बढ़ा चढ़ा के बात नहीं होगी..जब भी देवर भाभी के रिश्ते की बात आती है...तो या तो उसे हँसी मजाक के रिश्ते का नाम दिया जाता है या पता नहीं क्यों..एक जबरदस्ती की सफाई सी देती हुई आदर्श बात जरूर जोड़ी जाती है...कि भाभी माँ जैसी होती है...या माँ के समान होती है... न साली आधी घरवाली होती है और न ही भाभी आधी माँ होती है...हम अतिश्योक्ति में क्यों जीते हैं... जैसे माँ का एक अलग रिश्ता है बहन का अलग रिश्ता होता है वैसे ही भाभी सिर्फ भाभी होती है..और इस शब्द का अपना अलग महत्व है अलग पद है..इसे बयां नहीं किया जा सकता...रिश्ते परिभाषित करने से बनावटी हो जाते हैं..." शायद मेरे अंदर का साहित्यकार जाग गया था
"वाह क्या बात कही...सही है प्रेम के अनेकों रूप हैं...माँ पापा भाई बहन सबसे हम प्रेम करते हैं पर इनकी व्याख्या नहीं करते..जहाँ व्याख्या करनी पड़े वहाँ प्रेम अपना स्वरूप खो देता है...अच्छा खाना क्यों रोक दिया...रुको ये रोटी वापस रखो ये लो ये गर्म है.." उन्होंने मेरी थाली से ठंडी रोटी हटा के कैसरोल से गर्म रोटी रखते हुए कहा
काफी देर से चुप भैया बोले "हाँ और इस प्रेम में समय समय पर भैया की जेब से निकालकर देवर को शाहरुख़ खान स्टाइल के कपड़े खरीदने के लिए पैसा देना भी शामिल है" एक बार फिर से सबके ठहाके गूँजे
"वैसे भाभी मैंने कभी आपसे कहा नहीं...आज कहता हूँ ..आप बिल्कुल ख़ामोशी वाली वहीदा रहमान की तरह लगतीं हैं...वही ग्रेस वही सौंदर्य... सदाबहार हैं आप इन बाइस सालों में जरा नहीं बदलीं..कसम से आपको तो संतूर का ऐड करना चाहिए" उनकी तारीफ कर मैंने भैया को चिढ़ाया
"हाय...वहीदा रहमान...मतलब...ख़ामोशी फिल्म में जैसे वो हो गईं थीं...मैं भी पागल हो जाऊँगी" उन्होंने हँसते हँसते कहा
मैंने बड़ा संजीदा सा चेहरा बनाते हुए कहा "वो तो आप पहले से थीं वरना भैया से शादी क्यों करतीं"
"वो तो मुझे तुम्हारी भाभी बनना था न इसलिए...वरना कौन इनसे शादी करता" और उनकी हाजिरजवाबी से एक बार फिर मैं लाजवाब हो चुका था।
#रिश्तों_में_शब्दों_की_अतिश्योक्ति_नहीं_भावों_की_अभिव्यक्ति_होनी_चाहिए
(पसंद आये तो शेयर करिये अपनी अपनी भाभी के लिए उन्हें अच्छा लगेगा)
#तुषारापात®™ उनके लिए जिनके लिए हमेशा तुषार रहूँगा छोटा वाला।
किचेन के अंदर से भाभी की आवाज आई "वाकई में...या यूँ ही अपनी बीवी के सामने मेरी तारीफ की जा रही है...इसे जलाने के लिए" मैं कुछ कहता इससे पहले किचेन में उनका हाथ बँटा रहीं मेरी पत्नी जी बोल उठीं "और मैं जो रोज खाना बनाती हूँ...मुझपे तो आजतक एक भी कहानी नहीं लिखी गई"
"तुम पे तो अपनी आत्मकथा में लिखूँगा... कि कितनी बार बेकार खाने पे मुझे जबरदस्ती तारीफ करनी पड़ी...सच्ची आत्मकथा होगी तो ज्यादा पसंद की जायेगी" इस बात पे सभी के ठहाके गूँजे
"आप दोनों की शादी के 22 साल पूरे हो गए न...जानतीं हैं ये मुझे इसलिए याद रहता है...क्योंकि उस साल..हम आपके हैं कौन की धूम थी...और देखो रेणुका शहाणे से भी अच्छी और सुंदर भाभी हमारे घर को मिलीं...वैसे ये मैं तभी बोलना चाहता था पर छोटा होने के कारण कह नहीं सका..आपने इस घर को अपने प्यार से बाँध के रखा..आप तो एक आदर्श भाभी हैं बिल्कुल सूरज बड़जात्या की फिल्मों की तरह" मैंने डोंगे से पनीर की सब्जी लेकर अपनी कटोरी लबालब भरते हुए कहा
भाभी और पत्नी जी दोनों अब रोटियाँ सेंककर अपनी अपनी थाली लगा के मुझे और भैया को ज्वाइन कर चुकीं थीं भाभी ने डायनिंग टेबल पे बैठते हुए कहा "चलो चलो..तब तो महाशय डॉली के आगे पीछे देखे जाते थे...वो गाना याद है...काफी दिनों तक हम लोग तुम्हें 'डॉली सजा के रखना' गा गा कर चिढ़ाते रहते थे"
"भाभी...श..श...बीवी के सामने सीक्रेट्स नहीं खोलते...वैसे भी तब मैं एफिल टॉवर के जैसे सींकिया हुआ करता था...और वो आपके मामा की लड़की डॉली गोलकुंडा का किला लगती थी..अपनी तो ये 'संगम की नाँव' अच्छी है" मैंने पत्नी जी की तरफ थोड़ा सा घी बढ़ाते हुए कहा
"वैसे देवर के राइटर होने का इतना फायदा तो मिलना ही चाहिए... अच्छा ये तो बताओ तुम्हारी कहानी में मेरा किस तरह गुणगान होगा.." भाभी ने भैया की तरफ देखते हुए कहा भैया शान्त गाय की तरह खाना खाने में लगे रहे
"उसमें कोई सेंटिमेंटल..या बढ़ा चढ़ा के बात नहीं होगी..जब भी देवर भाभी के रिश्ते की बात आती है...तो या तो उसे हँसी मजाक के रिश्ते का नाम दिया जाता है या पता नहीं क्यों..एक जबरदस्ती की सफाई सी देती हुई आदर्श बात जरूर जोड़ी जाती है...कि भाभी माँ जैसी होती है...या माँ के समान होती है... न साली आधी घरवाली होती है और न ही भाभी आधी माँ होती है...हम अतिश्योक्ति में क्यों जीते हैं... जैसे माँ का एक अलग रिश्ता है बहन का अलग रिश्ता होता है वैसे ही भाभी सिर्फ भाभी होती है..और इस शब्द का अपना अलग महत्व है अलग पद है..इसे बयां नहीं किया जा सकता...रिश्ते परिभाषित करने से बनावटी हो जाते हैं..." शायद मेरे अंदर का साहित्यकार जाग गया था
"वाह क्या बात कही...सही है प्रेम के अनेकों रूप हैं...माँ पापा भाई बहन सबसे हम प्रेम करते हैं पर इनकी व्याख्या नहीं करते..जहाँ व्याख्या करनी पड़े वहाँ प्रेम अपना स्वरूप खो देता है...अच्छा खाना क्यों रोक दिया...रुको ये रोटी वापस रखो ये लो ये गर्म है.." उन्होंने मेरी थाली से ठंडी रोटी हटा के कैसरोल से गर्म रोटी रखते हुए कहा
काफी देर से चुप भैया बोले "हाँ और इस प्रेम में समय समय पर भैया की जेब से निकालकर देवर को शाहरुख़ खान स्टाइल के कपड़े खरीदने के लिए पैसा देना भी शामिल है" एक बार फिर से सबके ठहाके गूँजे
"वैसे भाभी मैंने कभी आपसे कहा नहीं...आज कहता हूँ ..आप बिल्कुल ख़ामोशी वाली वहीदा रहमान की तरह लगतीं हैं...वही ग्रेस वही सौंदर्य... सदाबहार हैं आप इन बाइस सालों में जरा नहीं बदलीं..कसम से आपको तो संतूर का ऐड करना चाहिए" उनकी तारीफ कर मैंने भैया को चिढ़ाया
"हाय...वहीदा रहमान...मतलब...ख़ामोशी फिल्म में जैसे वो हो गईं थीं...मैं भी पागल हो जाऊँगी" उन्होंने हँसते हँसते कहा
मैंने बड़ा संजीदा सा चेहरा बनाते हुए कहा "वो तो आप पहले से थीं वरना भैया से शादी क्यों करतीं"
"वो तो मुझे तुम्हारी भाभी बनना था न इसलिए...वरना कौन इनसे शादी करता" और उनकी हाजिरजवाबी से एक बार फिर मैं लाजवाब हो चुका था।
#रिश्तों_में_शब्दों_की_अतिश्योक्ति_नहीं_भावों_की_अभिव्यक्ति_होनी_चाहिए
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#तुषारापात®™ उनके लिए जिनके लिए हमेशा तुषार रहूँगा छोटा वाला।