कमरे के दरवाज़े बंद थे,खटखटा के अमृता ने कहा "क्या तेरे दरवाज़े पे हमें भी दस्तक देकर आना होगा"
उन्होंने मुस्कुराते हुए दरवाज़ा खोला "आम सी लकड़ी है मगर तुम आते जाते यूँ ही छू दिया करो..साहिर..इसी के संदूक में एक रोज दुनिया से रवाना होगा।"
~तुषारापात®
तुषार सिंह 'तुषारापात' हिंदी के एक उभरते हुए लेखक हैं जो सोशल मीडिया के अनेक मंचों पे बहुत लोकप्रिय हैं इनके लिखे कई लेख, कहानियाँ, कवितायें और कटाक्ष सभी प्रमुख हिंदी अख़बारों में प्रकाशित होते रहते हैं तथा रेडियो fm पर भी कई कार्यक्रमो के लिए आपने लिखा है। कुछ हिंदी फिल्मों के लिए आप स्क्रिप्ट भी लिख रहे हैं। आप इन्हें यहाँ भी पढ़ सकते हैं: https://www.facebook.com/tusharapaat?ref=hl
कमरे के दरवाज़े बंद थे,खटखटा के अमृता ने कहा "क्या तेरे दरवाज़े पे हमें भी दस्तक देकर आना होगा"
उन्होंने मुस्कुराते हुए दरवाज़ा खोला "आम सी लकड़ी है मगर तुम आते जाते यूँ ही छू दिया करो..साहिर..इसी के संदूक में एक रोज दुनिया से रवाना होगा।"
~तुषारापात®
अनंत
महासागर किनारे बैठना
और माँगना
अपनी तृप्ति का वरदान
मीठी
नदियां मिलीं हैं आकर
सोचना
शर्करा का होगा निर्माण
उठ
सागर से नमक बना
नदियाँ बाँध प्यास बुझा
अकर्मी का उससे विछोह है
प्रार्थना
सृष्टि की अपूर्णता
के लिए
ईश्वर के प्रति विद्रोह है।
~तुषारापात®
"बेटा..तुम्हारी छोटी बहन है लता..कोई पराई नहीं...लोग तो परेशानी में पड़े किसी गैर की भी मदद कर देते हैं और तुम दोनों भाई...हूँ..अच्छा है..जो तुम्हारे पिताजी नहीं रहे..रामजी मुझे भी उनके साथ उठा लेते तो अच्छा होता" कुसुम आँचल से आँसू पोछते हुए अपने बड़े बेटे विशाख से बोली।
विशाख ने तमतमाते हुए कहा "अम्मा..ये क्या बात हुई..जब पिताजी ट्रक भर भर के लता के दहेज का सामान भेज रहे थे..तब तो तुमने..कुछ न कहा था..कहतीं उनसे कि जरा अपने दोनों बेटों का भी ख्याल करो..सब कुछ बेटी दामाद को ही दे दोगे तो इनका क्या होगा..और कौन सा हम उसके यहाँ रहने पे कोई आपत्ति कर रहे हैं..पर अब तुम ये कहो कि इस मकान में भी उसका हिस्सा होगा तो अम्मा..कहे देता हूँ ये न होगा।"
"और क्या..पिताजी तो खण्डहर छोड़ के गए थे..ये तो भैया और मैंने अपना पेट काट काट के ये मकान रहने लायक बनवाया है...और वैसे भी ब्याह के बाद लता की जिम्मेदारी उसके ससुराल वालों की है हमारी नहीं.. कमबख्तों ने उसे तो अभागिन कह के घर से निकाल दिया..पर दहेज पूरा डकार गए.." छोटे बेटे प्रसून ने भी अपने बड़े भाई के सुर में सुर मिला दिया।
"ससुराल की क्या बात कहूँ..जिसके दो बड़े भाई..सबकुछ होते हुए भी दो रोटी न खिला पाएं..वो अभागन नहीं तो क्या है..और सुन रे प्रसून.. मेरा मुँह न खुलवा कि तेरे पिताजी क्या क्या तुम दोनों के लिए छोड़ गए हैं.. वसीयत किसने जलाई...लता के ब्याह के गहने के पाँच लाख रुपये कहाँ गायब हुए..सब बताऊँ क्या.. अभागिन न होती तो क्यों मेरी कोख से जन्मती... अभागन न होती तो क्यों उसका पति न रहता...राम जी की लाठी भी अभागिनों पे पड़ती है...चोरों को उनका बाण भी नहीं छूता " प्रसून को आईना दिखा कुसुम आँगन से उठकर अपने कमरे में चली गई।
उधर लता आँगन के दूसरी ओर बने कोठे में बैठी ये सारी बातें सुन रही थी, उसकी आँखों में उतना अंधेरा और पानी था जितना सावन की किसी बदली में होता है। वो अंदर ही अंदर तो ये समझती ही थी कि असल समस्या क्या है पर उसने ये कभी नहीं सोचा था कि उसके दोनों भाई इस तरह खुले रूप में ऐसा व्यवहार करेंगे।
करीब आधे घण्टे वो मंदिर के बाहर बैठी हुई भिक्षुणी सी बनी सोचती रही पर कुछ समय बाद देवालय की घंटियों सी उसके दृढ़ पगों की ताल उसकी माँ के कक्ष की ओर जाती सुनाई देती है।
"भाभियों की लाल हरी साड़ियों के बीच पैबंद लगी दो सफेद साड़ियाँ अच्छी नहीं लगती माँ.. तुम अपना जी क्यों दुखाती हो...आज्ञा दो माँ...कलकत्ता जाकर मौसी के यहाँ कुछ न कुछ कर लूँगी... नहीं चाहती कि यहाँ मेरी वजह से.... आँगन वही है माँ पर अब यहाँ तुम्हारी लगाई तुलसी नहीं भाभियों की मेंहदी महकती है...और आँगन में यहाँ वहाँ उग आए सफेद कुकरमुत्ते किसे अच्छे लगते हैं..सावन में बेटियां मायके आतीं हैं पर माँ ये बेटी तुमसे इस सावन..विदा माँग रही है" लता के ये कहते ही कुसुम की पलकें शिव की जटा की तरह हो गईं और उनसे गंगा प्रवाहित होने लगी। दोनों माँ बेटी एक दूसरे से चिपट के खूब रोईं और यदि कोई ऊपर आकाश से उन्हें देखता तो ऐसा लगता मानों गंगा-जमुना,सरस्वती के वियोग में एक दूसरे के गले लगीं दुख मना रहीं हैं।
सेकेंड की सुई किसी चुहिया की तरह धीरे धीरे ही सही,कई सदियों के पहाड़ कुतर देती है तो सात वर्ष का समय काटना कौन सा कठिन कार्य था। पिछले सात सालों में लता ने अपने जीवन यापन के लिए क्या क्या कार्य किए ये बस वो ही जानती है लेकिन उसने अपने ज्ञान को विकसित करने का कोई मौका नहीं छोड़ा। उसने अपनी पढ़ाई पूरी की और दो वर्ष पूर्व कलकत्ता के एक प्राइवेट स्कूल में उसे उसके मौसा के कारण अंग्रेजी पढ़ाने की नौकरी भी प्राप्त हो गई थी। कलकत्ते में उसे अपार साहित्य पढ़ने का मौका भी खूब मिला और एक दिन उसके साथ पढ़ाने वाली उसकी सह शिक्षिकाओं ने उसके लेखन को देखते हुए उसे एक उपन्यास लिखने की सलाह दी और लता ने अपने जीवन के समस्त दुखों और संघर्षों को एक उपन्यास 'लता में कलम लगी-ऊपर चढ़ी' में ढाल दिया उसका वो उपन्यास बहुत ही लोकप्रिय हुआ और उसे उस वर्ष का नवोदित साहित्य पुरस्कार भी मिला।
"बेटी..रामजी का बाण, कृष्ण का मोर पंख बन, तेरे जीवन की सारी स्याही को सुनहरे अक्षरों में बदल गया..जुग जुग जिये तू..ऐसी ही खूब तरक्की करो...तुझे पता है कि आज सावन की पूरनमासी पर मुझे तेरे पास आए पूरे दो साल हो गए हैं...तूने कितने दुख झेले जानती हूँ.." कुसुम उसकी बलाइयाँ लेते हुए बोली
लता उसके गले लगते हुए बोली "माँ शायद भगवान जिसे लेखक या लेखिका बनाना चाहते हैं उसे जानबूझकर खूब असफलता और कष्ट देते हैं.. जिससे कि उसमें वो मानवीय संवेदनायें जागृत हो जाएं जो आम व्यक्ति में सुप्त होतीं हैं"
"बस मन करता है कि तेरे दोनों भाइयों को सद्बुद्धि आ जाती.. काश.. याद है तेरे ब्याह से पहले आज के दिन तू कितने चाव से सिवइयां बनाया करती थी और अपने हाथ से राखी बना के विशाख और प्रसून की कलाइयों पे बाँधा करती थी...तेरे पिताजी तो....." कुसुम पुरानी यादों में खो गई
लता वर्तमान में ही रहना चाहती है " राखी तो आज भी बनाई है माँ और बाँधूँगी भी पर उसे जिसने मेरी वास्तव में रक्षा की है...मेरे ससुराल में तो ये अपना काम कर आया है..पर..आज अगर मैं चाहूँ तो बस इससे कह भर दूँ कि जा पिताजी की वसीयत में मेरा हिस्सा जलाने वालों से मेरा हक ले आ तो ये तुरंत ले आएगा..पर मेरा वो हिस्सा मैं अपने दोनों भाइयों को दान करतीं हूँ..और यही मेरी ओर से दोनों भाइयों को रक्षाबंधन की मिठाई है" कहकर लता ने अपने पर्स से निकाले अपने कलम को राखी बाँध दी।
~तुषारापात®
विवाह हेतु आतुर अविवाहित,वो बैंगन होता है जो किसी भी थाली में लुढ़कना चाहता है मगर ये नहीं जानता कि अंतोतगत्वा थाली में उसका ही भरता होगा।
#28शब्द_28_पार_की_कहानी #तुषारापात®
अल्फ़ाज़ का अंदाज़ यूँ हो कि अंदाज़ा न लगाया जा पाए
जबाँ ऐसे न रखें कि लबों का दरवाज़ा न लगाया जा पाए
~तुषारापात®
सामान्य विवाह में प्रेम, वो नाश्ता हो जाता है जो पिछली रात की ना खाई गई सब्जी से बनाया जाता है।
#तुषारापात®
सामान्य विवाह में प्रेम, वो नाश्ता हो जाता है जो पिछली रात की ना खाई गई सब्जी से बनाया जाता है।
#तुषारापात®
प्रेम-विवाह के उपरांत प्रेम,फ्रिज के ऊपर रखा वह गुलदान हो जाता है जो फ्रिज में सब्जियाँ रखते और उससे निकालते समय हर बार लुढ़कता है।
~तुषारापात®
जहाँ हर व्यक्ति हकीम हो वहाँ नीम नहीं उगती
~तुषारापात®
"माफ कीजियेगा..भाईजान...क्या आप इस तरफ बैठ जाएंगे..वो क्या है जिस तरफ ट्रेन चलती है उस ओर पीठ करके बैठने से मुझे चक्कर से आते हैं..अगर आपको तकलीफ न हो तो गुजारिश...." दाढ़ी वाले ने अपने आर.ए.सी. सहयात्री से प्रार्थना की।
"अरे तकलीफ कैसी भइया..ये लो आ गए इधर हम..आप आराम से बैठो यहाँ.. वैसे कहाँ तक चलेंगें..." चोटी वाले ने जगह बदली के बाद उससे पूछा और अपने हाथ में पकड़े मोबाइल को देखने लगा।
दाढ़ीवाला अपना सामान सीट के नीचे सेट करके,सीट पर बैठ गया और अपने गले में पड़े गमछे से पसीना पोछते हुए बोला "दिल्ली...जरा सी देर हो जाती तो ट्रेन निकल जाती आज तो..वैसे लखनऊ मेल हमेशा दस-पंद्रह मिनट बाद ही छूटती थी पर आज न जाने क्यों..राइट टाइम..."
"मतलब एक ही मंजिल है अपनी..बढ़िया..वैसे भी आर ए सी सीट पर नींद तो आने से रही...पहले नेता नगरी लोग इससे जाते थे तो लेट होती थी अब नेता मंडली रात साढ़े ग्यारह वाली ए.सी. एक्सप्रेस से जाने लगे हैं तो भइया ये हो गई है तबसे राइट टाइम.." चोटी वाले ने मोबाइल से सोशल मीडिया के किसी मठाधीस की एक पोस्ट पर हो रहे घमासान के बीच एक हरे झंडे वाली आई डी की टिप्पणी के उत्तर में अपनी तीखी टिप्पणी 'तुम लोग तो हो ही ऐसे..तुम लोगों को तो दिल्ली में घुसने भी नहीं देना चाहिए.. जरा सी जगह दे दो तो सर पर सवार होने में देर नहीं करते..साले एहसान फरामोश..' पोस्ट करते हुए उससे कहा।
दाढ़ीवाला भी अपना मोबाइल निकालकर फेकबुक देखने लगा और नोटिफिकेशन में पाया कि किसी फहरती पताका वाली आई डी से उसके कमेंट पर कोई रिप्लाई दिया गया है वो जवाब टाइप कर रहा होता है कि एक चाय वाला आता है वो उससे चाय देने का इशारा कर चोटीवाले से पूछता है "आप चाय लेंगे?"
"चाय ..हाँ..हाँ.. दे दो भाई एक और" चोटीवाला चाय वाले को इशारा करता है और "भाईसाहब..बारिश के मौसम में चाय का आनंद ही कुछ और है.." दाढ़ीवाले से यह कहकर जेब से पैसे निकालने को होता ही है कि दाढ़ीवाला चायवाले को दोनो के पैसे देकर दफा कर देता है "आपने सीट बदल ली..अब एक चाय तो हमारी ओर से बनती है.." काफी न नुकुर के बाद चोटीवाला मान जाता है और दोनों अपने अपने मोबाइल में लग जाते हैं
दाढ़ीवाले ने अपने कमेंट पर आए कमेंट के जवाब में दहकता हुआ कमेंट लिखा 'तुम कौन होते हो हमें दिल्ली में न घुसने देने वाले...हमारे पुरखों ने यहाँ राज किया है...अगर हम चाह लें तो एक बूँद पानी भी तुम लोगों को नहीं मिलेगा..हुकूमत बदली है तो ज्यादा इतराओ नहीं..हुकूमत फिर बदलेगी तब अच्छे से तुम्हारा चायपानी कराएंगे' थोड़ी देर में पताका वाली आई डी से उत्तर आता है 'तुम कमीनो के हाथ का पानी पीना भी कौन चाहता है....तुम्हारी नजर भी अगर हम पर पड़ जाती है तो स्नान करना पड़ता है..इतनी नीच और गंदी कौम है तुम्हारी..सत्ता के बल पर गीदड़ भौंकते हैं हम शेर हैं..और शेर जहाँ खड़े हो जाएं वहीं उनकी सत्ता हो जाती है..'
चूँकि चलती ट्रेन में नेटवर्क उतना अच्छा नही रहता तो टिप्पणी पोस्ट कर चोटीवाला मोबाइल जेब के हवाले कर देता है कि जब जवाब आएगा तो मुँह तोड़ जवाब दिया जाएगा, सामने बैठा दाढ़ीवाला उसे खाली देखकर पूछता है "आप दिल्ली ही रहते हैं या यहाँ लखनऊ से हैं"
"नहीं नहीं हम बनारस के हैं दिल्ली तो एक काम से जा रहे हैं...आप दिल्ली के हैं?" चोटीवाले ने उससे पूछा "अरे नहीं..हम तो लखनऊ से ही हैं एक मुशायरे में भाग लेने जा रहे हैं दिल्ली"
"अरे वाह हमें भी शेर और शायरी का बहुत शौक है..कोई शेर सुनाइये अपना शायर साहब...वैसे ग़ालिब के तो हम भक्त हैं वो क्या शेर था उनका कि.. अरे.. उनके देखे से आ जाती है जो चेहरे पे रौनक.."
"वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है" दाढ़ीवाले ने शेर पूरा किया और दोनों हँसने लगते हैं और शेरो शायरी का दौर चल पड़ता है थोड़ी देर में दाढ़ीवाले के मोबाइल पे नोटिफिकेशन की ट्यून बजती है और वो कमेंट का रिप्लाई देने लगता है 'हाँ.. जानते हैं कितने बड़े शेर हो तुम चूहे लोग.. अगर इतने ही बड़े शेर हो तो बताओ.. अपना पता..जिस शहर के हो वहीं से उठवा लेंगे तुम्हें..पता चल जाएगा कौन गीदड़ है और कौन शेर..कौन गलीच है और किसका जलवा अभी तक ग़ालिब है'
मोबाइल जेब में डाल वो कहता है "ये टी टी टिकेट चेक करने नहीं आया अभी तक...अब तो बरेली भी निकल गया..पहले शाहजहाँपुर आते आते सबका टिकट चेक हो जाया करता था"
"लखनऊ मेल है साहब..इसके टी टी भी नवाब हैं..स्लीपर के टी टी भी एसी में सोते हैं..जरा वो मेरी पानी की बोतल पकड़ा देंगे" चोटीवाले ने हँसते हुए कहा और जेब से बजते हुए मोबाइल को निकाल आए हुए कमेंट के गोले के बदले अपनी तोप दागी ' बाप धोवें सड़क और बेटा शाहेजहाँ.. तुझमें अगर हिम्मत है तो अपना पता दे..फिर देख कौन किसको क्या करवाता है इतने जूते पड़ेंगे कि साले आगरा का जूता बाजार खुल जायेगा तेरी चाँद पर"
कमेंट करने के बाद धीरे से वो पसरने लगा, दाढ़ीवाला पहले ही आधा पसर चुका था, हल्की हल्की नींद दोनो की आँखों में सुरमा लगा रही थी..रात के तीन से पाँच के बीच का समय ही ऐसा होता है कि अच्छे से अच्छा निशाचर भी ऊँघने लगता है और जैसा कि ट्रेन में अक्सर होता है लोग एक दूसरे का नाम शायद ही कभी पूछें पर आपस में बातें दोनो जहान की कर डालते हैं वैसे ही वे दोनों भी बनारसी कपड़े,खाने से लेकर लखनऊ और दिल्ली के रहन सहन खान पान , राजनीति मौसम आदि पर चर्चा करते जा रहे थे और धीरे धीरे आधे से पूरे पसरते जा रहे थे
दाढ़ीवाले के मोबाइल पे फिर नोटिफिकेशन आया उसने उनींदी आँखों से मोबाइल देखा और अनमने मन से रिप्लाई देने लगा 'बेटा.. जूते तो तुम्हें पड़ेंगे.. वो भी ऐसी जगह की बैठने से पहले जूता पहनना पड़ेगा' टाइप कर के उसने मोबाइल बंद कर दिया और पूरा पसर गया उधर चोटीवाला भी नोटिफिकेशन की ट्यून को अनसुना कर तिरछा होकर पूरा पसर गया।
सोशल मीडिया का कलर और वास्तविकता का रंग अलग अलग दिखाई दे रहा था। एक दूसरे को जूते मारने की चाहत रखने वाले,एक सीट पर ऐसे सो रहे थे जैसे किसी डिब्बे में जूते फिट रहते हैं।
~तुषारापात®
तेरे दर पे क्या आऊँ मैं अपनी फरियाद लेकर
फकीर मुझसे मांगने लगते हैं तेरा नाम लेकर
~तुषारापात®
सबसे पहले संचालक महोदय का धन्यवाद क्योंकि आजकल कुर्सी और माइक कोई किसी के लिए जल्दी छोड़ता नहीं है, तो संचालक महोदय जो कि दूसरों के अभिवादन और सम्मान के लिए तालियाँ गूँजवाते हैं मेरी आप सबसे प्रार्थना है कि एक बार सभी जोर से उनके लिए ताली बजाएं,
मंच पर उपस्थित समस्त गुरुजनों व वरिष्ठ जन को मेरा सादर प्रणाम और सम्मेलन में आए सभी दैवज्ञ बंधुओं भगिनीयों को मेरा प्रेम भरा नमस्कार! वीरों की इस धरती जयपुर नगर को मेरा सलाम ये शहर इतना तहजीब और नजाकत वाला है कि दिल मे भले लाखों गम हों पर आने वालों के लिए हमेशा इतनी लंबी मुस्कान अपने चेहरे पे लिए रहता है कि इसके खिंचे हुए गाल गुलाबी हो जाते हैं , कभी अपनी एक कहानी में लिखा था कि आदमी जब इश्क में जयपुर बना हो तो कानपुर का काला आसमान भी उसे गुलाबी दिखता है तो इस गुलाबी नगरी और इसके निवासियों के लिए एक बार फिर जोर से तालियां बजा के अपनी हथेलियों को थोड़ा सा और गुलाबी करिए।
मैं आभार व्यक्त करता हूँ अखिल भारतीय प्राच्य ज्योतिष शोध संस्थान का जिन्होंने मुझे यहाँ आमंत्रित किया सम्पूर्ण संस्था को आभार इसलिए क्योंकि मेरा मानना है कि किसी व्यक्ति विशेष मात्र से अकेले कोई महान कार्य नहीं सम्भव होता, लोग आते जाते रहते हैं संस्था सदैव रहती है इसलिए पूरी संस्था सभी आयोजकों संयजकों और कर्मचारियों के लिए एक बार करतल ध्वनि से उनका अभिनंदन हम सभी करें सम्मेलन की सफलता और उद्देश्य प्राप्ति के लिए किए गए उनके इस सराहनीय कार्य की जितनी प्रशंसा की जाए कम है।
कुंडली के किसी एक भाव का विश्लेषण प्रस्तुत करना ऐसा ही है जैसा मानव शरीर से कोई अंग निकालकर उसकी कार्यप्रणाली को बतलाना
ये शोध के लिए अच्छा है परंतु मात्र इसको रटने से कोई हल नहीं निकलने वाला मंगलदोष और उसके परिहार आदि विषय इसके ज्वलन्त उदाहरण हैं क्योंकि शरीर के किसी अंग के बारे में जानकारी चाहे जितनी हो जाए वो अंग कार्य तभी करता है जब वो शरीर में स्थित हो और अन्य अंगों से जुड़ा हो, इसी तरह कुंडली का कोई भी भाव स्वतंत्र रूप से कुछ महत्व नहीं रखता सम्पूर्ण कुंडली से जुड़कर और अन्य भावों उनके स्वामियों से संबंध बना के गोचरानुसार अलग अलग फल प्रदर्शित करता है।
इसलिए मैं आज यहाँ अपना पांडित्य प्रदर्शन करने नहीं जा रहा कि अमुक विषय पर मुझे कितना ज्ञान है यहाँ उपस्थित सभी ज्योतिषी मुझसे बहुत अधिक ज्ञानी हैं और कहा भी गया है कि जहाँ आपसे ज्यादा बली व्यक्ति उपस्थित हों वहाँ अपने बल का प्रदर्शन उचित नहीं होता मैं बस छोटी छोटी कुछ बातों पर आपका ध्यान खींचना चाहूँगा, उससे पहले मैं छोटा सा अपना परिचय दिए देता हूँ।
मेरा नाम तुषार सिंह है मैं लखनऊ आकाशवाणी में उद्घोषक हूँ और हिंदी भाषा का सेवक एक छोटा सा लेखक हूँ। लेखन में मैंने क्या क्या किया है वो आप गूगल में तुषारापात सर्च करके जान सकते हैं ।
ज्योतिष में मेरी रुचि तब जागी जब मुझे पता चला कि ज्योतिष के बारे में सीधे तौर पे एक विशेषज्ञ की तरह आकाशवाणी से कोई कार्यक्रम प्रसारित नहीं किया जा सकता क्योंकि इसे मान्यता नहीं प्राप्त है।
ये मेरे लिए बहुत ही आश्चर्य की बात थी क्योंकि एक ओर लगभग हर टी वी चैनल पे कोई न कोई ज्योतिष संबंधी कार्यक्रम आता है पर आकाशवाणी पर क्यों नहीं। मन मे कई विचार आये कि क्या ये अंधविश्वास है या विज्ञान है तो क्यों इसे मान्यता प्राप्त नहीं है? आदि आदि
मेरी जिज्ञासा ने मुझे टी वी चैनल पे आने वाले एक प्रसिद्ध ज्योतिषी के पास पहुँचाया यहाँ मैं उनका नाम लेकर उन्हें अमर नहीं करूंगा, तो उनके साथ करीबन तीन वर्ष मैंने बिताए और इन तीन सालों में मुझे ये आभास हो गया कि ज्योतिष सही है या नहीं पर इन महोदय को ज्योतिष का ज्ञान नहीं है, ये मैंने कैसे जाना ये मेरे दैवज्ञ भाई अच्छी तरह समझ सकते हैं। हालाँकि वो सज्जन अभी भी टी वी पर आते हैं।
तो उनसे विमुख होकर मैं गया लखनऊ विश्विद्यालय और वहाँ से मास्टर ऑफ ज्योतिर्विज्ञान की डिग्री ली और आगे राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान से ज्योतिषाचार्य भी हुआ।
इतने अध्ययन के बाद मैंने ये तो जान लिया कि ज्योतिष कपोल कल्पना नहीं है ये वास्तव में एक अल्प विकसित विज्ञान है जो कि एक बहुत लंबे समय तक अछूता रहा इस पर कोई नई रिसर्च नहीं हुई एक के बाद एक दैवज्ञ आए और उपलब्ध प्राचीन ग्रन्थों पर ही अपने ग्रंथ आधारित कर लिखते गए। ज्योतिष का विकास अपने उस स्तर पर न हो सका इसका एक बहुत बड़ा कारण है कि हम बहुत लंबे अरसे तक गुलाम रहे और विदेशी शाषन में इसको कोई शासक क्यों आगे बढ़ने देता उन्होंने हमारे तत्कालीन उपलब्ध ज्योतिषीय ग्रंथों को नष्ट करवा दिया और इसका दमन करने का हर सम्भव प्रयास किया पर चूंकि ज्योतिष कोई विद्या नहीं थी कि विलुप्त हो जाती ज्योतिष तो हमारे दैनिक जीवन में रहा है और हमारे जीवन के सभी संस्कारों में घुला मिला रहा है जैसे कि वेदों में ज्योतिष का वर्णन प्राप्त होता है परंतु यह कोई अलग विषय के रूप में न होकर हर काल के कार्य के लिए अप्रत्यक्ष रूप से वहाँ सम्मिलित दिखता है तो ये भले ही उतना पनप नहीं पाया पर इसका अंत भी नहीं हो पाया। हजारों वर्ष की परतंत्रता के बावजूद इसका वर्चस्व बना रहा है ये भी कम बड़ी उपलब्धि नहीं है।
खैर ये तो हुई पुरानी बात अब आते हैं उस बात पर जिसे मैं कहना चाहता हूँ
हम सभी का जीवन खूंटे से बंधी गाय की तरह है हम अपने जीवन मे उतने ही हाँथ पाँव मार सकते हैं जितनी की खूँटे से बंधी रस्सी है गाय उतनी ही दूरी के वृत्त की घास खा सकती है जितनी त्रिज्या तुल्य मान की उसकी रस्सी है।
अब सवाल उठता है कि ज्योतिष इस खूँटे रस्सी और गाय रूपी मानव जीवन में क्या काम आ सकता है तो मेरा मानना है कि ज्योतिष इस रस्सी में आई गाँठे सिलवटें आदि जिससे की रस्सी छोटी हो गई हो और गाय अधिक दूरी की घास न खा पा रही हो उसकी गाँठे खोल के उसे उसकी पूरी पहुँच तक की घास उसे दिला सकता है। लेकिन ज्योतिष उस रस्सी की लंबाई नहीं बढ़ा सकता कि 43 दिन नारियल पानी मे बहाओ और 44वें दिन रस्सी चालीस मीटर लंबी पाओ।
आज ज्योतिष का जो स्वरूप प्रस्तुत किया जा रहा है वो इसके मूल स्वरूप से बहुत भिन्न है। टी वी पर लोग बैठे हैं कुछ भी परोस रहे हैं अखबारों में तरह तरह के विज्ञापन भ्रामक प्रचार कर रहे हैं और जनता को भटका रहे हैं.. ज्योतिष न हुआ जुलाब की गोली हो गई.. कल कीन्हीं सज्जन ने बताया कि मंगलदोष के लिए पाँच तरह की कुंडली मिला के फल कहना चाहिए अब सोचिये कि टी वी पे एक मिनट में लाइव उपाय बताने वाले कितनी तेज काम करते होंगें कि इधर पूछा उधर बताया। या किसी ने गणना किये बिना ही ऐसे ही किसी को देखा और गहन से गहन विषय पर अपना मत प्रस्तुत कर दिया क्या इतना चमत्कारी है ज्योतिष कि बस कुछ मिनटों में आप सटीक फल निकाल लेंगे या क्या वास्तव में ये ज्योतिष है? ज्योतिषी का मतलब है काल का गणक और काल की गणना में कुछ काल व्यतीत करना पड़ता है राह चलते सटीक फल कथन मेरे विचार से असम्भव है।
मैं इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि मैं ज्योतिष को सही मानो में विज्ञान के तौर पे स्थापित देखना चाहता हूँ क्योंकि विज्ञान में किसी निश्चित स्थिति परिस्थित में किसी एक या कई सिद्धान्त,सिद्धांतों पर आधारित प्रयोग सदैव एक सा फल देते हैं हमें उस ओर प्रयास करने की आवश्यकता है मुझे इस सम्मेलन में आकर प्रसन्नता हुई कि कुछ लोग ऐसे प्रयासों में जी जान से लगे हैं मेरा उनसे आग्रह है कि वो अपना कार्य ऐसे ही जारी रखें क्योंकि यदि आपके शोध से आपकी दी गई थ्योरी से लोगों को फायदा होगा तो आपके आजके यही ग्रथ कल के शास्त्र बन जाएंगे।
ज्योतिषी बेचारा एक ऐसा विद्यार्थी है जिसकी सदैव परीक्षा ही चलती रहती है एक तो एक ज्योतिषी ही दूसरे की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से परीक्षा मन ही मन लेता रहता है जैसे कि कल तो चलो बृहस्पतिवार था तो ये पीला कुर्ता पहन के आये थे पर आज शुक्रवार को नारंगी परिधान में क्यों ? और दूसरा आपसे परामर्श लेने आया व्यक्ति,उसका सवाल पूछने से ज्यादा ध्यान इसपर रहता है कि आप सच्चे वाले ज्योतिषी हो कि नहीं वो आपके सामने आकर बैठ जाएगा और अब अगर आप सच्चे वाले ज्योतिषी हो तो बताओ वो क्यों आया है अरे भाई आप गूगल सर्च में भी जब कुछ अक्षर लिखते हो तो उससे संबंधित जानकारी सामने आती है .. अच्छा वही आदमी जब डॉक्टर के पास जाता है तो सबसे पहले बोलता है डॉक्टर साहब दुइ दिन से पेट मा बड़ो दर्द है और उल्टी भी आए रहीं हैं इसपर भी जब डॉक्टर उसे पेट का अल्ट्रा साउंड कराने को कहता है तो वो डॉक्टर की डिग्री या उसके ज्ञान पे शक नहीं करता आखिर क्यों? क्योंकि मेडिकल साइंस में नित नई रिसर्च ने कुछ असाध्य रोगों को छोड़कर रोग उपचार की सफलता का प्रतिशत अधिक बढ़ा दिया है हमें भी ऐसी ही रिसर्च की आवश्यकता है सुनहरे अतीत का मोह हमें छोड़ना होगा वर्तमान काल के अनुसार सटीक पद्धति विकसित कर के एक विज्ञान के तौर पे ज्योतिष को स्थापित करना होगा यदि हम पूर्व की ओर ही मुख किये खड़े रहे तो क्या कभी जान पाएंगे सूर्य पश्चिम में अस्त होता है नजर पूर्व पर नहीं सूर्य पर रखनी होगी।
हमें अंतर्यामी या त्रिकालदर्शी होने की या बनने की कोई आवश्यकता नहीं होनी चाहिए हमारा काम जातक द्वारा दिए गए जन्म विवरण के आधार पर उसे संतुष्ट करने पर होना चाहिए न कि चमत्कार द्वारा उसे अचंभित करने पर हमें ज्योतिष की सीमा स्वयं भी स्वीकार करनी चाहिए और अपने पास आये व्यक्ति को बतानी चाहियें जैसे कि कोई डॉक्टर ऑपरेशन से पहले आपसे साइन करा लेता है यदि कुछ गड़बड़ हो गई तो वो जिम्मेदार नहीं है यहाँ ऐसा करके वह अपनी सीमा ही बता रहा होता है। इस तरह से हम ज्योतिष को प्रामाणिक और विश्वसनीय बना सकते हैं। और तब शायद किसी दिन मैं ज्योतिष विशेषज्ञ के तौर पर आकाशवाणी में ज्योतिष पर कोई प्रोग्राम प्रसारित कर रहा होऊंगा।
आशा है ऐसा ही होगा और हम ज्योतिष को सड़क पर तोते के उठाये पोस्टकार्ड पर लिखे भविष्य कथन जैसा कुछ नहीं होने देंगे।
विषयांतर पर बहुत अधिक कह चुका हूं अब अपनी वाणी को यहीं विराम देता हूँ अंत मे बस इतना ही कि ऐसे उबाऊ भाषण के बाद जब आप जोर से ताली बजाते हैं तो आसपास ऊँघ से गये व्यक्ति ताली की आवाज़ से जग जाते हैं और अगले वक्ता की महत्वपूर्ण जानकारियों को सुन पाते हैं।
धन्यवाद नमस्कार!
~तुषारापात®