Sunday, 10 June 2018

भीगी मुस्कान

पलकों के बाँधों में बंधी रहती है
आँख की नहर भीतर बहती है

लब खिंचे रहते हैं कानों तक
शाम के कहकहे सुबह सहती है

~तुषारापात®