Monday 29 April 2019

प्रयाग/इलाहाबाद

तुम्हारे बाद भी
इलाही ये शहर बहुत आबाद रहा
गंगा है जमुना है मगर ओ सरस्वती!
तुम्हारे बाद प्रयाग न रहा, इलाहाबाद रहा।

#तुषारापात®

द पोएटेस विद द रेडिश ब्राउन हेयर

तुम्हारी कविताएं
पहले पढ़ती थी तो
बिल्कुल समझ नहीं आतीं थीं
और बहुत
जोर डालने पे
दिमाग का फ्यूज उड़ जाया करता था
अरे हाँ
फ्यूज से याद आया कि
पिछले दिनों
जब कमरे के बोर्ड का
फ्यूज उड़ा था
तो तुम एक तार के टुकड़े का
मांस छील रहे थे
और अंदर से
तार की लाल हड्डियां निकाल रहे थे
मैं तुम्हें देख रही थी ध्यान से
तुमने फ्यूज स्विच के दोनों त्रिशूलों पे
तार की लाल हड्डियों को
अंग्रेजी के एस आकार में लपेटा
स्विच को फ्यूज सॉकेट में लगाया
और कमरे की लाइट जगमगा उठी थी
मानो किसी तांत्रिक ने
किसी हवन कुंड में हड्डियों की आहुति दे
कोई जादू कर दिखाया हो
तार छीलते हुए तुमने एक बात बुदबुदाई थी
कि ताँबा बिजली का बढ़िया सुचालक है
हमारे दिमाग में भी क्या
ताँबे के तार होते हैं
जिसपे ये विचारों की विद्युत
सरपट दौड़ा करती है
तुम्हारी उस बुदबुदाहट से
बचपन का एक खेल याद आया था
सूखे बालों में कंघी करके
कागज़ के टुकड़ों को चिपकाने का खेल
दिमाग के ऊपर
ये बालों की बाइंडिंग यूँ ही नहीं की गई होगी
बस यही सोचकर बालों में तबसे
खूब मेहंदी लगाने लगी हूँ
एन्ड यस कॉपर इज द बेस्ट कंडक्टर
तुम्हारी कविताएं तो अब भी नहीं समझ आतीं पर
अब मैं अपनी कविताएं करने लगी हूँ।


~तुषार सिंह #तुषारापात®