Thursday 9 July 2015

फादर्स डे

"तुम भी न..सन्दर्भ...बस...कमाल ही करते हो !...इतना महंगा स्कूल शूज...कोई बच्चे को दिलवाता है क्या ?.....इतनी महंगाई ...और 1350 का जूता..वो भी बच्चे का...जब बाटा में...399 में मिल रहा था तो... निष्कर्ष को वही दिलाया जा सकता था न..पर नहीं......तुम उसे बिगाड़ रहे हो" व्याख्या ने हलके गुस्से में और एक ही सांस में अपनी सारी बात कही

"कोई नहीं...यार..कल father's day था...मन किया...बच्चे को दिलवा दिया" सन्दर्भ ने कपड़े चेंज करते करते कहा

"अरे...father's day था...तो पापा जी के लिए कोई गिफ्ट लेते...और उन्हें भिजवाते...निष्कर्ष तो तुम्हारा बेटा है...तुम्हारा तो न...लिख लिख के...दिमाग ख़राब हो चुका है ...उल्टा सीधा सोचते हो ...और उल्टा पुल्टा काम करते हो "

" व्याख्या... तुम्हे पता है...मैं एक सरकारी सहायता प्राप्त स्कूल में पढ़ता था...वहाँ 100 पेज की...कार्डबोर्ड के कवर वाली कॉपियाँ चलती थीं...पर पापा मुझे वो न दिला के...विद आउट कवर वाली कॉपीज दिलाते थे...और...उन कॉपीज को...पिछले साल की कॉपियों के दफ़्ती वाले कवर में सिल देते थे...और एक बार..जब मेरा जूता बिलकुल ही खराब हो गया था...तो बुआ जी की बेटी का...एक पुराना जूता ले आये थे..वो गर्ल्स का होता है न..स्कूल वाला...थोड़ा लंबा सा शूज जिसमे बीच में..एक स्ट्रैप होता है..उसका स्ट्रैप काट के..मुझे पहना के स्कूल भेज दिया था...मेरे सारे दोस्त मेरा बहुत मजाक उड़ाते थे...मुझे बहुत बुरा लगता था...पर डर के मारेे.. मैं पापा से कुछ कह नहीं पाता था...और माँ से झगड़ता था जिद करता था...माँ मुझे किसी तरह बहला देती थी..पर पापा के लिए मेरे मन में एक नफरत सी बैठ गई थी" सन्दर्भ जैसे अतीत में खो सा गया और बड़बड़ाता गया

"ओह्ह्ह...पर सन्दर्भ...तुम जानते ही हो उस वक्त...तुम्हारे घर के हालात बहुत खराब थे....और पापाजी....किसी तरह पूरे घर का..खर्च किसी तरह चला पाते थे....पूरी तरह से कर्ज में डूबे हुए थे"व्याख्या ने अपनी सास से सुनी सच्चाई बयान की

"हाँ..जानता हूँ...ये बात मुझे कुछ दिनों के बाद...बहुतअच्छी तरह समझ भी आ गई थी..मैं समझ गया था कि...पापा चाहते हुए भी..मुझे वो सब नहीं दिला पा रहे थे...कितनी पीड़ा होती होगी उन्हें उस वक्त...अपने बच्चे के लिए कुछ न कर पाने पर....कितने हताश...और खुद को कितना ...कितना...कमजोर समझते होंगे वो...न जाने कितने लोगों के सामने....... हाथ फैलाना पड़ा होगा उन्हें...... आज एक बच्चे का पापा होकर मैं उन्हें बेहतर समझ सकता हूँ...निष्कर्ष को स्कूल शूज दिलाते समय वही बात मुझे याद गई...और बस मैंने निष्कर्ष को...वो जूते दिला के..अपने पापा की उन अनगिनत इच्छाओँ में से एक को पूरा कर दिया....जो उन्होंने कभी मेरे लिए सोची तो होंगी...पर..अपनी..गरीबी के चलते कर नहीं पाये..उनकी उस समय की पीड़ा को मैंने महसूस किया...ये ही मेरा...अपने पापा को..इस फादर'स डे का गिफ्ट है।" सन्दर्भ अपनी भर आई आँखों को रोकते हुए बोला।

'हर सन्दर्भ चाहता है कि उसका निष्कर्ष बेहतर से बेहतर हो, अगर कभी आपके माता पिता आपके अनुरूप कोई काम न कर पाये हों तो उनके प्रति घृणा नहीं उनकी उस मज़बूरी का सम्मान करियेगा और हाँ mother's day, father's day मनाने का यही मतलब होता है न ?

-तुषारापात®™

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