Thursday 2 August 2018

ज्योतिष

सबसे पहले संचालक महोदय का धन्यवाद क्योंकि आजकल कुर्सी और माइक कोई किसी के लिए जल्दी छोड़ता नहीं है, तो संचालक महोदय जो कि दूसरों के अभिवादन और सम्मान के लिए तालियाँ गूँजवाते हैं मेरी आप सबसे प्रार्थना है कि एक बार सभी जोर से उनके लिए ताली बजाएं,

मंच पर उपस्थित समस्त गुरुजनों व वरिष्ठ जन को मेरा सादर प्रणाम और सम्मेलन में आए सभी दैवज्ञ बंधुओं भगिनीयों को मेरा प्रेम भरा नमस्कार! वीरों की इस धरती जयपुर नगर को मेरा सलाम ये शहर इतना तहजीब  और नजाकत वाला है कि दिल मे भले लाखों गम हों पर आने वालों के लिए हमेशा इतनी लंबी मुस्कान अपने चेहरे पे लिए रहता है  कि इसके खिंचे हुए गाल गुलाबी हो जाते हैं , कभी अपनी एक कहानी में लिखा था कि आदमी जब इश्क में जयपुर बना हो तो कानपुर का काला आसमान भी उसे गुलाबी दिखता है तो इस गुलाबी नगरी और इसके निवासियों के लिए एक बार फिर जोर से तालियां बजा के अपनी हथेलियों को थोड़ा सा और गुलाबी करिए।

मैं आभार व्यक्त करता हूँ अखिल भारतीय प्राच्य ज्योतिष शोध संस्थान का जिन्होंने मुझे यहाँ आमंत्रित किया सम्पूर्ण संस्था को आभार इसलिए क्योंकि मेरा मानना है कि किसी व्यक्ति विशेष मात्र से अकेले कोई महान कार्य नहीं सम्भव होता, लोग आते जाते रहते हैं संस्था सदैव रहती है इसलिए पूरी संस्था सभी आयोजकों संयजकों और कर्मचारियों के लिए एक बार करतल ध्वनि से उनका अभिनंदन हम सभी करें सम्मेलन की सफलता और उद्देश्य प्राप्ति के लिए किए गए उनके इस सराहनीय कार्य की जितनी प्रशंसा की जाए कम है।

कुंडली के किसी एक भाव का विश्लेषण प्रस्तुत करना ऐसा ही है जैसा मानव शरीर से कोई अंग निकालकर उसकी कार्यप्रणाली को बतलाना
ये शोध के लिए अच्छा है परंतु मात्र इसको रटने से कोई हल नहीं निकलने वाला मंगलदोष और उसके परिहार आदि विषय इसके ज्वलन्त उदाहरण हैं क्योंकि शरीर के किसी अंग के बारे में जानकारी चाहे जितनी हो जाए वो अंग कार्य तभी करता है जब वो शरीर में स्थित हो और अन्य अंगों से जुड़ा हो, इसी तरह कुंडली का कोई भी भाव स्वतंत्र रूप से कुछ महत्व नहीं रखता सम्पूर्ण कुंडली से जुड़कर और अन्य भावों उनके स्वामियों से संबंध बना के गोचरानुसार अलग अलग फल प्रदर्शित करता है।

इसलिए मैं आज यहाँ अपना पांडित्य प्रदर्शन करने नहीं जा रहा कि अमुक विषय पर मुझे कितना ज्ञान है यहाँ उपस्थित सभी ज्योतिषी मुझसे बहुत अधिक ज्ञानी हैं और कहा भी गया है कि जहाँ आपसे ज्यादा बली व्यक्ति उपस्थित हों वहाँ अपने बल का प्रदर्शन उचित नहीं होता मैं बस छोटी छोटी कुछ बातों पर आपका ध्यान खींचना चाहूँगा, उससे पहले मैं छोटा सा अपना परिचय दिए देता हूँ।

मेरा नाम तुषार सिंह है मैं लखनऊ आकाशवाणी में उद्घोषक हूँ और हिंदी भाषा का सेवक एक छोटा सा लेखक हूँ। लेखन में मैंने क्या क्या किया है वो आप गूगल में तुषारापात सर्च करके जान सकते हैं ।
ज्योतिष में मेरी रुचि तब जागी जब मुझे पता चला कि ज्योतिष के बारे में सीधे तौर पे एक विशेषज्ञ की तरह आकाशवाणी से कोई कार्यक्रम प्रसारित नहीं किया जा सकता क्योंकि इसे मान्यता नहीं प्राप्त है।

ये मेरे लिए बहुत ही आश्चर्य की बात थी क्योंकि एक ओर लगभग हर टी वी चैनल पे कोई न कोई ज्योतिष संबंधी कार्यक्रम आता है पर आकाशवाणी पर क्यों नहीं। मन मे कई विचार आये कि क्या ये अंधविश्वास है या विज्ञान है तो क्यों इसे मान्यता प्राप्त नहीं है? आदि आदि

मेरी जिज्ञासा ने मुझे टी वी चैनल पे आने वाले एक प्रसिद्ध ज्योतिषी के पास पहुँचाया यहाँ मैं उनका नाम लेकर उन्हें अमर नहीं करूंगा, तो उनके साथ करीबन तीन वर्ष मैंने बिताए और इन तीन सालों में मुझे ये आभास हो गया कि ज्योतिष सही है या नहीं पर इन महोदय को ज्योतिष का ज्ञान नहीं है, ये मैंने कैसे जाना ये मेरे दैवज्ञ भाई अच्छी तरह समझ सकते हैं। हालाँकि वो सज्जन अभी भी टी वी पर आते हैं।

तो उनसे विमुख होकर मैं गया लखनऊ विश्विद्यालय और वहाँ से मास्टर ऑफ ज्योतिर्विज्ञान की डिग्री ली और आगे राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान से ज्योतिषाचार्य भी हुआ।

इतने अध्ययन के बाद मैंने ये तो जान लिया कि ज्योतिष कपोल कल्पना नहीं है ये वास्तव में एक अल्प विकसित विज्ञान है जो कि एक बहुत लंबे समय तक अछूता रहा इस पर कोई नई रिसर्च नहीं हुई एक के बाद एक दैवज्ञ आए और उपलब्ध प्राचीन ग्रन्थों पर ही अपने ग्रंथ आधारित कर लिखते गए। ज्योतिष का विकास अपने उस स्तर पर न हो सका इसका एक बहुत बड़ा कारण है कि हम बहुत लंबे अरसे तक गुलाम रहे और विदेशी शाषन में इसको कोई शासक क्यों आगे बढ़ने देता उन्होंने हमारे तत्कालीन उपलब्ध ज्योतिषीय ग्रंथों को नष्ट करवा दिया और इसका दमन करने का हर सम्भव प्रयास किया पर चूंकि ज्योतिष कोई विद्या नहीं थी कि विलुप्त हो जाती ज्योतिष तो हमारे दैनिक जीवन में रहा है और हमारे जीवन के सभी संस्कारों में घुला मिला रहा है जैसे कि वेदों में ज्योतिष का वर्णन प्राप्त होता है परंतु यह कोई अलग विषय के रूप में न होकर हर काल के कार्य के लिए अप्रत्यक्ष रूप से वहाँ सम्मिलित दिखता है तो ये भले ही उतना पनप नहीं पाया पर इसका अंत भी नहीं हो पाया। हजारों वर्ष की परतंत्रता के बावजूद इसका वर्चस्व बना रहा है ये भी कम बड़ी उपलब्धि नहीं है।

खैर ये तो हुई पुरानी बात अब आते हैं उस बात पर जिसे मैं कहना चाहता हूँ
हम सभी का जीवन खूंटे से बंधी गाय की तरह है हम अपने जीवन मे उतने ही हाँथ पाँव मार सकते हैं जितनी की खूँटे से बंधी रस्सी है गाय उतनी ही दूरी के वृत्त की घास खा सकती है जितनी त्रिज्या तुल्य मान की उसकी रस्सी है।
अब सवाल उठता है कि ज्योतिष इस खूँटे रस्सी और गाय रूपी मानव जीवन में क्या काम आ सकता है तो मेरा मानना है कि ज्योतिष इस रस्सी में आई गाँठे सिलवटें आदि जिससे की रस्सी छोटी हो गई हो और गाय अधिक दूरी की घास न खा पा रही हो उसकी गाँठे खोल के उसे उसकी पूरी पहुँच तक की घास उसे दिला सकता है। लेकिन ज्योतिष उस रस्सी की लंबाई नहीं बढ़ा सकता कि 43 दिन नारियल पानी मे बहाओ और 44वें दिन रस्सी चालीस मीटर लंबी पाओ।

आज ज्योतिष का जो स्वरूप प्रस्तुत किया जा रहा है वो इसके मूल स्वरूप से बहुत भिन्न है। टी वी पर लोग बैठे हैं कुछ भी परोस रहे हैं अखबारों में तरह तरह के विज्ञापन भ्रामक प्रचार कर रहे हैं और जनता को भटका रहे हैं.. ज्योतिष न हुआ जुलाब की गोली हो गई..  कल कीन्हीं सज्जन ने बताया कि मंगलदोष के लिए पाँच तरह की कुंडली मिला के फल कहना चाहिए अब सोचिये कि टी वी पे एक मिनट में लाइव उपाय बताने वाले कितनी तेज काम करते होंगें कि इधर पूछा उधर बताया। या किसी ने  गणना किये बिना ही ऐसे ही किसी को देखा और गहन से गहन विषय पर अपना मत प्रस्तुत कर दिया क्या इतना चमत्कारी है ज्योतिष कि बस कुछ मिनटों में आप सटीक फल निकाल लेंगे या क्या वास्तव में ये ज्योतिष है? ज्योतिषी का मतलब है काल का गणक और काल की गणना में कुछ काल व्यतीत करना पड़ता है राह चलते सटीक फल कथन मेरे विचार से असम्भव है।
मैं इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि मैं ज्योतिष को सही मानो में विज्ञान के तौर पे स्थापित देखना चाहता हूँ क्योंकि विज्ञान में किसी निश्चित स्थिति परिस्थित में किसी एक या कई सिद्धान्त,सिद्धांतों पर आधारित प्रयोग सदैव एक सा फल देते हैं हमें उस ओर प्रयास करने की आवश्यकता है  मुझे इस सम्मेलन में आकर प्रसन्नता हुई कि कुछ लोग ऐसे प्रयासों में जी जान से लगे हैं मेरा उनसे आग्रह है कि वो अपना कार्य ऐसे ही जारी रखें क्योंकि यदि आपके शोध से आपकी दी गई थ्योरी से लोगों को फायदा होगा तो आपके आजके यही ग्रथ कल के शास्त्र बन जाएंगे।

ज्योतिषी बेचारा एक ऐसा विद्यार्थी है जिसकी सदैव परीक्षा ही चलती रहती है एक तो एक ज्योतिषी ही दूसरे की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से परीक्षा मन ही मन लेता रहता है जैसे कि कल तो चलो बृहस्पतिवार था तो ये पीला कुर्ता पहन के आये थे पर आज शुक्रवार को नारंगी परिधान में क्यों ? और दूसरा आपसे परामर्श लेने आया व्यक्ति,उसका सवाल पूछने से ज्यादा ध्यान इसपर रहता है कि आप सच्चे वाले ज्योतिषी हो कि नहीं वो आपके सामने आकर बैठ जाएगा और अब अगर आप सच्चे वाले ज्योतिषी हो तो बताओ वो क्यों आया है अरे भाई आप गूगल सर्च में भी जब कुछ अक्षर लिखते हो तो उससे संबंधित जानकारी सामने आती है .. अच्छा वही आदमी जब डॉक्टर के पास जाता है तो सबसे पहले बोलता है डॉक्टर साहब दुइ दिन से पेट मा बड़ो दर्द है और उल्टी भी आए रहीं हैं इसपर भी जब डॉक्टर उसे पेट का अल्ट्रा साउंड कराने को कहता है तो वो डॉक्टर की डिग्री या उसके ज्ञान पे शक नहीं करता आखिर क्यों? क्योंकि मेडिकल साइंस में नित नई रिसर्च ने कुछ असाध्य रोगों को छोड़कर रोग उपचार की सफलता का प्रतिशत अधिक बढ़ा दिया है हमें भी ऐसी ही रिसर्च की आवश्यकता है सुनहरे अतीत का मोह हमें छोड़ना होगा वर्तमान काल के अनुसार सटीक पद्धति विकसित कर के एक विज्ञान के तौर पे ज्योतिष को स्थापित करना होगा यदि हम पूर्व की ओर ही मुख किये खड़े रहे तो क्या कभी जान पाएंगे सूर्य पश्चिम में अस्त होता है नजर पूर्व पर नहीं सूर्य पर रखनी होगी।

हमें अंतर्यामी या त्रिकालदर्शी होने की या बनने की कोई आवश्यकता नहीं होनी चाहिए हमारा काम  जातक द्वारा दिए गए जन्म विवरण के आधार पर उसे संतुष्ट करने पर होना चाहिए न कि चमत्कार द्वारा उसे अचंभित करने पर हमें ज्योतिष की सीमा स्वयं भी स्वीकार करनी चाहिए और अपने पास आये व्यक्ति को बतानी चाहियें जैसे कि कोई डॉक्टर ऑपरेशन से पहले आपसे साइन करा लेता है यदि कुछ गड़बड़ हो गई तो वो जिम्मेदार नहीं है यहाँ ऐसा करके वह अपनी सीमा ही बता रहा होता है। इस तरह से हम ज्योतिष को प्रामाणिक और विश्वसनीय बना सकते हैं। और तब शायद किसी दिन मैं ज्योतिष विशेषज्ञ के तौर पर आकाशवाणी में ज्योतिष पर कोई प्रोग्राम प्रसारित कर रहा होऊंगा।

आशा है ऐसा ही होगा और हम ज्योतिष को सड़क पर तोते के उठाये पोस्टकार्ड पर लिखे भविष्य कथन जैसा कुछ नहीं होने देंगे।

विषयांतर पर बहुत अधिक कह चुका हूं अब अपनी वाणी को यहीं विराम देता हूँ अंत मे बस इतना ही कि ऐसे उबाऊ भाषण के बाद जब आप जोर से ताली बजाते हैं तो आसपास ऊँघ से गये व्यक्ति ताली की आवाज़ से जग जाते हैं और अगले वक्ता की महत्वपूर्ण जानकारियों को सुन पाते हैं।
धन्यवाद नमस्कार!

~तुषारापात®