किसे आज़ाद करवाना चाहते हो ?
जिस्म को ?
वो तो हमेशा से आज़ाद है
जानता है न
एक दिन तो तबाह हो जाना है
इसलिए कुछ भी कर लेता है ये बेख़ौफ़ जिस्म
कैद तो है रूह इसमें सालों से
चाहती कुछ है,करना पड़ता है कुछ और ही,
रूह है तो मनमौजी बिजली की तरह
जिस्म कभी बांधता है
उसे पंखा बनके कभी टीवी में
कभी जगमगाती रौशनी की रंगीन झालर से
तो कभी परखच्चे कर देने वाली मिक्सी में
तुम्हारे धमाकों से कटे फटे जिस्मों से
रूह रिस रिस कर आज़ाद हो रही है
गर जिस्म से आज़ाद हो कर ये सफ़ेदपोश
रूह बदचलन हो गयी तो क्या करोगे?
-तुषारापात®™