Monday 17 July 2017

एक लंबी कहानी का छोटा सा अंश

उसने एक हाथ से मुझे कमर से साध रखा था और उसके दूसरे हाथ की खुरदरी उंगलियाँ मेरे चेहरे पे यहाँ वहाँ फिर रही थीं मानो कोई कुशल वीणावादक अपने अवसान काल में वीणा का भार भी संभाल रहा हो और काँपते हाथों से वीणा के तारों को झंकृत भी कर रहा हो,जानती हूँ..तुम उतने कुशल नहीं रहे और इस वीणा के तार भी जंग खा चुके हैं..फिर भी सावन की इस उमस भरी दोपहरी में ये जो संगीत तुम मुझमें जगा रहे हो...ये वासना नहीं..देह की कामना नहीं वरन..ये तो देह की साधना है..ये संगीत ही प्रेम है..मेरी झुर्रियों के तारों से खेलतीं तुम्हारी खुरदरी काँपती उँगलियाँ का संगीत!

-तुषारापात®