आओ बैठें साथ जरा देर
किस्सों के आँगन में
अल्फ़ाज़ों से बुनी चटाई पे
धूप का हुक्का पीते हैं
फिर शाम उतर आएगी
रात की बाहें थामे हुए
ओस की नन्हीं बूँदों से
इन दोनों आँखों में
इक इक माला बन जायेगी
चाँद के हवन कुंड में
सूरज जब आएगा
उनचास फेरों के बाद
फिर पग फेरे को
तुम अपने घर चली जाना
हर दफे टूटता ये ख्वाब
हर बार एक सितारा बढ़ता है
ऊपरवाले के ब्लैकबोर्ड पे
फिर नई अर्जी टँकती है
जो दिखती सितारों की पट्टी
वो आसमान के सीने पे
चमकती आलपिनों की मूठें हैं।
#तुषारापात®™
किस्सों के आँगन में
अल्फ़ाज़ों से बुनी चटाई पे
धूप का हुक्का पीते हैं
फिर शाम उतर आएगी
रात की बाहें थामे हुए
ओस की नन्हीं बूँदों से
इन दोनों आँखों में
इक इक माला बन जायेगी
चाँद के हवन कुंड में
सूरज जब आएगा
उनचास फेरों के बाद
फिर पग फेरे को
तुम अपने घर चली जाना
हर दफे टूटता ये ख्वाब
हर बार एक सितारा बढ़ता है
ऊपरवाले के ब्लैकबोर्ड पे
फिर नई अर्जी टँकती है
जो दिखती सितारों की पट्टी
वो आसमान के सीने पे
चमकती आलपिनों की मूठें हैं।
#तुषारापात®™