Saturday 13 July 2019

कर्म सिद्धान्त

किसी ने इनबॉक्स में मुझसे पूछा है कि जैसा कि कहा जाता है कि वर्तमान जन्म में जो मनुष्य अत्यधिक पाप करता है वो अगले जन्म में मनुष्य योनि की बजाय कीट,पशु योनि आदि में जन्म लेकर दुःख भोगता है क्या ये सही बात है?

मेरा मानना है कि एक बार जो मानव योनि में जन्म ले लेता है वह अपने आने वाले हर जन्म में मनुष्य ही रहता है। प्रारब्ध के पुण्य और पाप भोगने के लिए मनुष्य योनि ही सर्वश्रेष्ठ है। ईश्वर ने ऐसी सृष्टि रची जिसमें अपने को सबसे अधिक विकसित करने वाली प्रजाति मानव जाति हुई। लेकिन यह बौद्धिक विकास उसके लिए वरदान भी है और अभिशाप भी है।
पाप कर्मों के भोगने के लिए उसे मानव के अतिरिक्त किसी अन्य योनि में भेजने से उसे दुखों का उतना अनुभव नहीं हो सकता जितना कि मानव योनि में वह दुखों का अनुभव कर सकता है।

इसे एक उदाहरण से भी समझा जा सकता है कि मान लीजिये कोई व्यक्ति किसी जन्म में बहुत नीच कर्म करता है और कर्म सिद्धांत के अनुसार वह अगले जन्म में किसी श्वान (कुत्ते) की योनि प्राप्त करता है अब चूँकि किसी को अपना पिछला जन्म याद तो रहता नहीं तो वो कुत्ता होकर भी उतना दुख नहीं पा सकता क्योंकि उसके पास उतनी बुद्धि ही नहीं होगी कि वह मानव जीवन के सुखों से अपने श्वान योनि के जीवन की तुलना कर सके। परन्तु अब वही मनुष्य यदि मनुष्य जन्म प्राप्त करता है परन्तु एक आवारा कुत्ते की तरह दुत्कार और तिरस्कार का जीवन जीता है तो वह उस कष्ट को अधिक अनुभव करेगा क्योंकि उसके पास इतनी बुद्धि तो है कि वह अपने जीवन और किसी कुत्ते के जीवन की तुलना कर सके।

#तुषारापात®