Monday 8 August 2016

DP में तिरंगा नहीं तो.....

बहुत पहले कहीं पढ़ा था कि सरहद पे जाकर गोली खाना ही देशभक्ति नहीं तुम सड़क पे गुटखा खा के थूकना छोड़ दो देश के लिए वही बहुत है
बात व्यंग्य की है पर इसका अर्थ काफी गहरा है चूँकि अभी पंद्रह अगस्त आने वाला है तो स्वाभाविक है कि हम सबमें देशभक्ति की भावना जागृत होगी और इस भावना का प्रकटीकरण वास्तविक जीवन और सोशल मीडिया के तमाम मंचों पर भी खूब होगा।

मुझे भावनाओं के इस प्रदर्शन में कोई बुराई भी नहीं दिखती क्योंकि हम सब राष्ट्र को लेकर भावुक होते हैं तथा इन मौकों पे भावुकता अधिक हो ही जाती है और अच्छा भी लगता है जब समाज के सभी वर्गों और धर्मों के लोग एकजुट होकर देशभक्ति का और अपनी शक्ति का प्रदर्शन करते हैं।

लेकिन इसी के साथ एक बड़ी समस्या भी उत्पन्न होती है जो पहले से अनेक वर्गों में विभाजित भारतीय समाज को कुछ और नए टुकड़ों में बाँटता है इसको समझने के लिए ज्यादा नहीं कुछ दिन पहले की बात करते हैं।

अभी कुछ दिन पहले पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान ने कश्मीर में मारे गए आतंकवादी और उससे भड़की कश्मीर में हिंसा के विरोध में 'ब्लैक-डे' मनाने की घोषणा की जाहिर है उसकी इस घोषणा से भारतीय जनमानस में उसके प्रति वितृष्णा उठनी ही थी अब उसके विरोध में लोगों ने ब्लैक डे के दिन अपनी प्रोफाइल फोटो की जगह भारतीय सेना के प्रतीक चिन्ह को लगाने का निश्चय किया और ये ट्रेंड जंगल की आग की तरह फैलता गया अब समस्या वहाँ आई जो लोग या तो इससे अंजान थे या उनकी इस तरह की भावना के प्रदर्शन में कोई खास रुचि नहीं थी तो उन लोगों ने भारतीय सेना की तस्वीर नहीं लगाई बस इतनी सी बात से पूरा सोशल मीडिया दो पक्षों में बँट गया जिन्होंने तस्वीर लगाई और जिन्होंने नहीं लगाई वे दोनों पक्ष एक दूसरे के विरोधी बन गए और फिर सिलसिला शुरू हुआ आरोप प्रत्यारोप का कोई किसी को देशद्रोही कह रहा था तो कोई किसी को ढोंगी न जाने कितने लोगों की मित्रता इस बात पर टूट गई पूरा माहौल वैमनस्य से भर गया अब सोचिये तो ये कितना अजीब लगता है कि शत्रु राष्ट्र की एक बेवकूफी भरी बात से यहाँ भारत के देशवासी आपस में ही लड़ने लगे।

भावनाओं के इस तरह के अनुचित और उग्र प्रदर्शन से कुछ प्राप्त नहीं होने वाला इस तरह तो ये मात्र एक स्वांग ही लगेगा क्योंकि अगर दोनों पक्षों को राष्ट्र की चिंता होती तो यूँ सार्वजनिक रूप से लड़ते नहीं दिखाई देते और संसार के सामने जगहंसाई के पात्र न खुद बनते और न ही देश को बनाते।

आप लोग ये मत सोचियेगा कि ये महज सोशल मीडिया का मुद्दा है क्योंकि सोशल मीडिया भी वास्तविक लोगों उनकी भावनाओं और उनकी प्रवृत्तियों से ही संचालित होता है तो ये समाज के स्वरुप को ही दर्शाता है हाँ कभी कभी थोड़ा ज्यादा मुखर दिखाई देता है।

हम सबको ये बात स्पष्ट रूप से समझना चाहिए कि स्वतंत्रता दिवस ये भी याद दिलाता है कि हम कभी पराधीन थे हम पराधीन क्यों हुए उन कारणों को जानना समझना और उन्हें फिर कभी न दोहराना ही सच्चा स्वंतत्रता दिवस मनाना है सिर्फ कोरी एक दिनी भावनाओं के वो भी देखा देखी में किये प्रदर्शन से आपकी आजादी तो दिखती है पर हमारी आजादी टिकती कितनी है ये नहीं कहा जा सकता।

अतः सिर्फ राष्ट्रगान के लिए ही नहीं राष्ट्र के लिए भी खड़े होइए वो भी सबको साथ लेकर और अगर खड़े नहीं हो सकते तो चुप बैठिये कम से कम वैमनस्य को बढ़ावा मत दीजिये।

और हाँ अपने DP में तिरंगा लगाइये न लगाइये पर ऊपर जो चित्र छपा है उसे अपने दिल में उतार लीजिये जिसमें एक सैनिक जो देश के लिए शहीद हो गया उसका बुत बना है और उस जवान के दोनों बच्चे अपने पापा के पुतले से पूछ रहे हैं पापा आप कुछ बोलते क्यों नहीं।

-तुषारापात®™