Friday 10 August 2018

आर ए सी (रंग और कलर)

"माफ कीजियेगा..भाईजान...क्या आप इस तरफ बैठ जाएंगे..वो क्या है जिस तरफ ट्रेन चलती है उस ओर पीठ करके बैठने से मुझे चक्कर से आते हैं..अगर आपको तकलीफ न हो तो गुजारिश...." दाढ़ी वाले ने अपने आर.ए.सी. सहयात्री से प्रार्थना की।

"अरे तकलीफ कैसी भइया..ये लो आ गए इधर हम..आप आराम से बैठो यहाँ.. वैसे कहाँ तक चलेंगें..." चोटी वाले ने जगह बदली के बाद उससे पूछा और अपने हाथ में पकड़े मोबाइल को देखने लगा।

दाढ़ीवाला अपना सामान सीट के नीचे सेट करके,सीट पर बैठ गया और अपने गले में पड़े गमछे से पसीना पोछते हुए बोला "दिल्ली...जरा सी देर हो जाती तो ट्रेन निकल जाती आज तो..वैसे लखनऊ मेल हमेशा दस-पंद्रह मिनट बाद ही छूटती थी पर आज न जाने क्यों..राइट टाइम..."

"मतलब एक ही मंजिल है अपनी..बढ़िया..वैसे भी आर ए सी सीट पर नींद तो आने से रही...पहले नेता नगरी लोग इससे जाते थे तो लेट होती थी अब नेता मंडली रात साढ़े ग्यारह वाली ए.सी. एक्सप्रेस से जाने लगे हैं तो भइया ये हो गई है तबसे राइट टाइम.." चोटी वाले ने मोबाइल से सोशल मीडिया के किसी मठाधीस की एक पोस्ट पर हो रहे घमासान के बीच एक हरे झंडे वाली आई डी की टिप्पणी के उत्तर में अपनी तीखी टिप्पणी  'तुम लोग तो हो ही ऐसे..तुम लोगों को तो दिल्ली में घुसने भी नहीं देना चाहिए.. जरा सी जगह दे दो तो सर पर सवार होने में देर नहीं करते..साले एहसान फरामोश..' पोस्ट करते हुए उससे कहा।

दाढ़ीवाला भी अपना मोबाइल निकालकर फेकबुक देखने लगा और नोटिफिकेशन में पाया कि किसी फहरती पताका वाली आई डी से उसके कमेंट पर कोई रिप्लाई दिया गया है वो जवाब टाइप कर रहा होता है कि एक चाय वाला आता है वो उससे चाय देने का इशारा कर चोटीवाले से पूछता है "आप चाय लेंगे?"

"चाय ..हाँ..हाँ.. दे दो भाई एक और" चोटीवाला चाय वाले को इशारा करता है और "भाईसाहब..बारिश के मौसम में चाय का आनंद ही कुछ और है.." दाढ़ीवाले से यह कहकर जेब से पैसे निकालने को होता ही है कि दाढ़ीवाला चायवाले को दोनो के पैसे देकर दफा कर देता है "आपने सीट बदल ली..अब एक चाय तो हमारी ओर से बनती है.." काफी न नुकुर के बाद चोटीवाला मान जाता है और दोनों अपने अपने मोबाइल में लग जाते हैं

दाढ़ीवाले ने अपने कमेंट पर आए कमेंट के जवाब में दहकता हुआ कमेंट लिखा 'तुम कौन होते हो हमें दिल्ली में न घुसने देने वाले...हमारे पुरखों ने यहाँ राज किया है...अगर हम चाह लें तो एक बूँद पानी भी तुम लोगों को नहीं मिलेगा..हुकूमत बदली है तो ज्यादा इतराओ नहीं..हुकूमत फिर बदलेगी तब अच्छे से तुम्हारा चायपानी कराएंगे' थोड़ी देर में पताका वाली आई डी से उत्तर आता है 'तुम कमीनो के हाथ का पानी पीना भी कौन चाहता है....तुम्हारी नजर भी अगर हम पर पड़ जाती है तो स्नान करना पड़ता है..इतनी नीच और गंदी कौम है तुम्हारी..सत्ता के बल पर गीदड़ भौंकते हैं हम शेर हैं..और शेर जहाँ खड़े हो जाएं वहीं उनकी सत्ता हो जाती है..'

चूँकि चलती ट्रेन में नेटवर्क उतना अच्छा नही रहता तो टिप्पणी पोस्ट कर चोटीवाला मोबाइल जेब के हवाले कर देता है कि जब जवाब आएगा तो मुँह तोड़ जवाब दिया जाएगा, सामने बैठा दाढ़ीवाला उसे खाली देखकर पूछता है "आप दिल्ली ही रहते हैं या यहाँ लखनऊ से हैं"

"नहीं नहीं हम बनारस के हैं दिल्ली तो एक काम से जा रहे हैं...आप दिल्ली के हैं?" चोटीवाले ने उससे पूछा "अरे नहीं..हम तो लखनऊ से ही हैं एक मुशायरे में भाग लेने जा रहे हैं दिल्ली"

"अरे वाह हमें भी शेर और शायरी का बहुत शौक है..कोई शेर सुनाइये अपना शायर साहब...वैसे ग़ालिब के तो हम भक्त हैं वो क्या शेर था उनका कि.. अरे.. उनके देखे से आ जाती है जो चेहरे पे रौनक.."

"वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है" दाढ़ीवाले ने शेर पूरा किया और दोनों हँसने लगते हैं और शेरो शायरी का दौर चल पड़ता है थोड़ी देर में दाढ़ीवाले के मोबाइल पे नोटिफिकेशन की ट्यून बजती है और वो कमेंट का रिप्लाई देने लगता है 'हाँ.. जानते हैं कितने बड़े शेर हो तुम चूहे लोग.. अगर इतने ही बड़े शेर हो तो बताओ.. अपना पता..जिस शहर के हो वहीं से उठवा लेंगे तुम्हें..पता चल जाएगा कौन गीदड़ है और कौन शेर..कौन गलीच है और किसका जलवा अभी तक ग़ालिब है'

मोबाइल जेब में डाल वो कहता है "ये टी टी टिकेट चेक करने नहीं आया अभी तक...अब तो बरेली भी निकल गया..पहले शाहजहाँपुर आते आते सबका टिकट चेक हो जाया करता था"

"लखनऊ मेल है साहब..इसके टी टी भी नवाब हैं..स्लीपर के टी टी भी एसी में सोते हैं..जरा वो मेरी पानी की बोतल पकड़ा देंगे" चोटीवाले ने हँसते हुए कहा और जेब से बजते हुए मोबाइल को निकाल आए हुए कमेंट के गोले के बदले अपनी तोप दागी ' बाप धोवें सड़क और बेटा शाहेजहाँ.. तुझमें अगर हिम्मत है तो अपना पता दे..फिर देख कौन किसको क्या करवाता है इतने जूते पड़ेंगे कि साले आगरा का जूता बाजार खुल जायेगा तेरी चाँद पर"

कमेंट करने के बाद धीरे से वो पसरने लगा, दाढ़ीवाला पहले ही आधा पसर चुका था, हल्की हल्की नींद दोनो की आँखों में सुरमा लगा रही थी..रात के तीन से पाँच के बीच का समय ही ऐसा होता है कि अच्छे से अच्छा निशाचर भी ऊँघने लगता है और जैसा कि ट्रेन में अक्सर होता है लोग एक दूसरे का नाम शायद ही कभी पूछें पर आपस में बातें दोनो जहान की कर डालते हैं वैसे ही वे दोनों भी बनारसी कपड़े,खाने से लेकर लखनऊ और दिल्ली के रहन सहन खान पान , राजनीति मौसम आदि पर चर्चा करते जा रहे थे और धीरे धीरे आधे से पूरे पसरते जा रहे थे

दाढ़ीवाले के मोबाइल पे फिर नोटिफिकेशन आया उसने उनींदी आँखों से मोबाइल देखा और अनमने मन से रिप्लाई देने लगा 'बेटा.. जूते तो तुम्हें पड़ेंगे.. वो भी ऐसी जगह की बैठने से पहले जूता पहनना पड़ेगा' टाइप कर के उसने मोबाइल बंद कर दिया और पूरा पसर गया उधर चोटीवाला भी नोटिफिकेशन की ट्यून को अनसुना कर  तिरछा होकर पूरा पसर गया।

सोशल मीडिया का कलर और वास्तविकता का रंग अलग अलग दिखाई दे रहा था। एक दूसरे को जूते मारने की चाहत रखने वाले,एक सीट पर ऐसे सो रहे थे जैसे किसी डिब्बे में जूते फिट रहते हैं।

~तुषारापात®