Wednesday 27 September 2017

छोड़ो ग़ज़ल की बहर रखना

तेरे जाने के बाद सूनी राह पर यूँ मेरा नजर रखना
कि मुसाफ़िर है रुका और मंजिल का सफर करना

वो किसी और मुल्क का बाशिंदा था चल दिया
तो अपने दिल में क्यूँ उसका पूरा शहर रखना

चले जाते हैं जिन्हें सुनाते हो हाले दिल बेबाकी से
इस बार बात रखना तो थोड़ा अगर मगर रखना

पिछली दफा कहा था उसने कि बड़े नासमझ हो
इस बार उनकी अंगड़ाइयों पर मत सबर रखना

के जिसके फेंके टुकड़ों पे बस्तियाँ बस जाती हैं
उसे ठुकराया है तुमने तो अच्छे से बसर करना

ये धड़कनो का हिसाब एक सा कब रहा 'तुषार'
दिल की बात कहो छोड़ो ग़ज़ल की बहर रखना

-तुषारापात®