नाबालिग है अभी भी चाहे उन्नीस बीस से ही हो
अठारहवाँ लगा है साल अभी इक्कीसवीं सदी को
-तुषार सिंह #तुषारापात®
तुषार सिंह 'तुषारापात' हिंदी के एक उभरते हुए लेखक हैं जो सोशल मीडिया के अनेक मंचों पे बहुत लोकप्रिय हैं इनके लिखे कई लेख, कहानियाँ, कवितायें और कटाक्ष सभी प्रमुख हिंदी अख़बारों में प्रकाशित होते रहते हैं तथा रेडियो fm पर भी कई कार्यक्रमो के लिए आपने लिखा है। कुछ हिंदी फिल्मों के लिए आप स्क्रिप्ट भी लिख रहे हैं। आप इन्हें यहाँ भी पढ़ सकते हैं: https://www.facebook.com/tusharapaat?ref=hl
नाबालिग है अभी भी चाहे उन्नीस बीस से ही हो
अठारहवाँ लगा है साल अभी इक्कीसवीं सदी को
-तुषार सिंह #तुषारापात®
जिन्हें किस्मत की चवन्नी नहीं मिलती,जीवन की दौड़ में उनकी मेहनत के सोलह आने,बारह आने बन लंगड़ाते हैं।
-तुषारापात®
कैलेंडर रंगभेद करता है,लाल और काले में यहाँ
दिन भी होता है बड़ा और छोटा,आदमी की तरह
-तुषारापात®
मकर संक्रांति तो हम पिछड़े लोगों की बातें हैं
दिन बड़ा होने का जश्न वो लंबी रातों में मनाते हैं
-तुषारापात®
इस वन में बसन्त कभी,कभी पतझड़ा होता है
पर सावन में गिरे पत्तों का दर्द पौष में हरा होता है
-तुषारापात®
सर्द मौसम में उभर आते हैं जून के हल्के दर्द भी
और ये चोट तो दिसम्बर की है न जाने कितना पिराएगी
-तुषारापात®
मैं था बेवफा सबसे ये कहला दिया है मैंने
तुम्हारे हक़ में काम ये पहला किया है मैंने
नाम अब भी आता है तुम्हारा लबों पे मगर
दीवार के कानों को अब समझा दिया है मैंने
कि तुम्हारा कोई भी नामोनिशां न बाकी रहे
ख़तों की राख से इश्क़ दफ़ना दिया है मैंने
जाने तुम मनाओ न मनाओ मौत के बाद की रस्में
जीते जी अपना तेरहवीं दसवाँ करवा दिया है मैंने
ऐसा भी नहीं कि हाथ अपना सीने तक न पहुँचे
जरा सी बात थी दिल को बहला दिया है मैंने
धड़कने जब जब तेरे नाम पे तेज हुईं हैं 'तुषार'
काँधे के एक बालिश्त नीचे सहला दिया है मैंने
-तुषारापात®
कुछ टूटा हुआ जब भी मुझमें खनकता है
कलम कागज़ पे हर्फ़ हर्फ़ जोड़ने लगता है
-तुषारापात®
"हा.ई..लो मैं भी हॉफ डे लीव लेकर आ गया.."राहुल कमरे में घुसते ही चहकते हुए बोला पर टिया को रजाई लपेटे सोते देख उसके पास जाकर पूछता है "क्या हुआ..ऑफिस से अभी आई हो क्या...ऐसे क्यों लेटी हो.."
टिया ने आँखें मलते हुए कहा "ऑफिस से तो लीव लेकर जल्दी ही आ गई थी..पर..तबियत कुछ ठीक नहीं लग रही.."
राहुल ने उसका माथा छुआ और लॉबी में जाकर मेडिसिन बॉक्स से थर्मोमीटर निकाल के लाया और उसे लगाने को बोला,एक मिनट के बाद थर्मोमीटर चेक करके वो कहता है "हम्म..थोड़ा सा फीवर है..ठंड लग गई शायद तुम्हें.."
"कितना है" टिया ने राहुल के हाथ से थर्मोमीटर छीनने की नाकाम कोशिश करते हुए पूछा
"अरे..अरे..ज्यादा नहीं है..कोई मेडिसिन ली..नहीं न..रुको मैं क्रोसिन देता हूँ.." राहुल उसके हाथ से थर्मोमीटर बचाता है और झटक के थर्मोमीटर के केस में रख देता है
टिया ने उदास सी शक्ल बनाते हुए कहा "यार आज तुम्हारा बर्थडे है..और मैं अपनी तबियत खराब करके बैठ गई..सोचा था तुम्हारी पसंद की डिशेस बनाऊँगी और एक छोटी से पार्टी थ्रो करूँगी..सब गुड़ गोबर हो गया" तभी डोरबेल बजती है तो वो आगे कहती है "शिट यार..देखो कोई तुम्हें विश करने न आया हो..ओह..गॉड.कहीं भैया-भाभी तो नहीं आ गए..यार मैने तो कुछ भी नहीं बनाया..नमकीन भी थोड़ी सी है..तुमसे कहा था कि नाश्ता लाना है..पर तुम सुनते ही नहीं..."
"रिलैक्स..रिलैक्स..मैं देखता हूँ..अगर भैया भाभी भी होंगे तो क्या हुआ..मैं मार्केट से कुछ ले आऊँगा न..बर्थ डे के दिन तो मत डाँटो.." राहुल हँसते हुए ये कहता है और जाकर दरवाजा खोलता है सामने पड़ोस की पम्मी आँटी थीं उसके कुछ कहने से पहले ही वो बोल पड़ीं
"ओये शेर पुत्तर..बर्थडे बॉय..हैप्पी बर्थडे..टिया कहाँ है..ये देख तुम दोनों के लिए इडली सांभर बना के लाईं हूँ"
"थैंक्स आँटी..आइये अंदर आइये" राहुल उन्हें टिया की तबियत के बारे में बताता है और अंदर बुलाता है पम्मी आँटी टिया का हाल चाल पूछतीं हैं और थोड़ी देर में ढेर सारी इडलीयाँ देकर चलीं जाती हैं
"ये लो बर्थडे मेरा और तुम्हारे पसन्द की चीज लोग दे जा रहे हैं..इंडिया भी कमाल है..यहाँ एक पंजाबी आँटी साउथ इंडियन डिश बनाती हैं और पड़ोस में दे भी जातीं हैं" राहुल टिया के मुँह में इडली का एक टुकड़ा डालते हुए कहता है
"कुछ भी कहो..पम्मी आँटी हैं तो पंजाबन पर साउथ इंडियन कमाल का बनातीं हैं..उनके हाथ की इडली तो पूरी कॉलोनी में फेमस है..पर यार मुझे कोई टेस्ट नहीं लग रहा..बुखार कितनी देर में ठीक होगा..मैं बोर हो गईं हूँ.." टिया ने इडली के टुकड़े को किसी तरह निगलते हुए कहा
राहुल कुछ कहता कि तभी डोरबेल फिर से बजती है वो जाकर दरवाजा खोलता है तो पाता है उसके भैया-भाभी आए हुए हैं वो दोनों के पैर छूता है और ड्राइंग रूम में उन्हें बिठा टिया को आवाज देता है कि भैया भाभी आए हैं टिया भी जेठ जेठानी के सम्मान में उठकर बैठक में आ जाती है
जन्मदिन की शुभकामनाओं,आशीर्वाद और चाय के एक दौर के बाद टिया उन्हें इडली सांभर ऑफर करती है जिसे थोड़ी न नुकुर के बाद वो स्वीकार कर लेते हैं
एक एक इडली और थोड़ा थोड़ा सांभर सबके लेने के बाद राहुल के भैया भाभी अबकी दो दो इडलियाँ और ढेर सारा सांभर लेते हैं और उसकी भाभी टिया से पूछतीं हैं "वाओ..टिया..इडली तो बहुत ही बढ़िया बनी है..और सांभर भी प्योर साउथ इंडियन मसाले से बना लग रहा है..बहुत ही यमी..सो टेस्टी..रेसिपी तो बता..कैसे बनाया..."
टिया राहुल को देख के मुस्कुराती है मानो पूछ रही हो क्या कहूँ "अरे भाभी ये तो बस ऐसे ही..वही चावल और सूजी मिक्स..और..अरे आप और लीजिये न..भैया आप भी लीजिये न.." कहकर वो एक एक इडली और उनकी प्लेट में रख देती है
"टू टेस्टी..." भैया इडली खाते खाते कहते हैं और भाभी भी सांभर का सिप लेकर इडली के टुकड़े को जुबान पे चुभलाते हुए कहती हैं "इडली का कोई पेस्ट लिया है क्या..किस कम्पनी का है..कहीं वो मदर्स वाला ब्रांड तो नहीं..नहीं..नहीं..वो इतना बढ़िया नहीं होता..कौन सा है?"
टिया झेंपते हुए कहती है "भाभी कोई ब्रांडेड नहीं था..अबकी लाऊँगी तो आपके लिए भी एक ले आऊँगी" कहकर उसने किसी तरह पीछा छुड़ाया थोड़ी देर में वो लोग राहुल को फिर से बर्थडे विश करते हैं और चले जाते हैं
"अच्छा बेटा..पम्मी आँटी की इडलियों पे मेला लूटा जा रहा था" भैया भाभी के जाने के बाद राहुल टिया को चिढ़ाते हुए कहता है "आने दो अबकी भाभी को..बताऊँगा उन्हें..ये पेस्ट नहीं..कॉपी पेस्ट था"
"जब तबियत ठीक न हो तो इतना कॉपी पेस्ट तो चलता है और ये कोई चोरी थोड़ी है जानू..पम्मी आँटी भगवान का अवतार हैं..उनके चरण छुआ करूँगी अब" टिया पैर छूने की नौटंकी करते हुए कहती है और दोनों हँसते हँसते सोफे पे गिर जाते हैं।
-तुषारापात®
"तुम्हें लिखना नहीं छोड़ना चाहिए था...कॉलेज के दिनों की तुम्हारी कविताएं.. आज तक जहन में घूमती हैं... खास तौर पे वो तुम्हारी गोल्डन कश वाली कविताएं... रजत.. आज भी जब पढ़ती हूँ तो ऐसा लगता है मानो सुलगते हुए लफ़्ज़ों पे... एहसासों की ओस का छींटा पड़ रहा हो और छुन्न की आवाज पूरा गुजरा वक्त भीतर खनखना जाती हो... अगर तुम लिखते रहते तो इलाहाबाद तुम्हारे नाम से जाना जाता" आनंद भवन के लॉन में बैठी घास के एक तिनके को उखाड़ते हुए कनक ने कहा
रजत ने उसके हाथ से उखड़ा हुआ तिनका लिया और उसे मिट्टी में फिर लगाने की कोशिश करते हुए बोला "अब वो छुन्न की आवाज मैं रोज सुनता हूँ होटल के किचेन में..जब डिश बनाने के बाद..बेसिन में पॉट डुबो देता हूँ..कनक पेट की आग..कलम की क्रांति की मशाल से बड़ी होती है..बहुत बड़ी..शौहरत से दिमाग की भूख शांत होती है पेट की नहीं..और लिखता रहता तो क्या..बस दो चार सम्मान की शॉल मिल गईं होतीं..फटा कुर्ता छुपाने को"
कनक ने तिनके के चारों ओर मिट्टी को दबाते हुए कहा "और दिल की भूख?...अब तो सब ठीक है अब फिर से राइटिंग स्टार्ट कर दो..शेफ रजत केसरवानी साहब"
"एक बार उखड़ा हुआ पौधा तो फिर से मिट्टी में जम सकता है पर पेड़ नहीं" रजत ने तिनके को जमाते हुए कहा
"आह..क्या पंच लाइन मारी है..टाइमिंग है अभी भी तुममें..राइटर जिंदा है कहीं" कनक उसकी कही पंक्ति पे निहाल होने की ओवर एक्टिंग करते हुए आगे बोली "शादी के पहले तो बहुत लिखते थे.. शादी के बाद क्या हो गया..या मुझसे शादी नहीं होती तो लिखते.. कोई गम कोई दर्दे दिल का बहाना नहीं रहा...क्यों रॉकस्टार?"
रजत रॉकस्टार फिल्म याद करते हुए हँसते हुए बोला "हाँ शादी के बाद तुम्हारे माथे की लाल बिंदी ने सारी कल्पनाओं पे फुल स्टॉप जो लगा दिया"
"हाऊ..क्या वाकई में...क्या तुम्हारे राइटिंग छोड़ने की वजह सच में..मैं हूँ.." कनक ने घास पे अपनी मुठ्ठी कसते हुए कहा
रजत ने घास को उससे छुड़ाया और उसका हाथ अपने हाथ मे लेकर मुस्कुराते हुए बोला "लगता है अब मेरे जोक्स में धार नहीं रही.."
"रहने दो..अब मैं तुमसे बात तभी करूँगी जब तुम राइटिंग छोड़ने का कारण बताओगे.." कनक ने हाथ छुड़ाया और दूसरी ओर घूम के बैठ गई
रजत घास पे पसरते हुए बोला "कनक..तुम्हारे पापा से जब मैं तुम्हारा हाथ माँगने गया था तो उन्होंने पूछा था कि मैं करता क्या हूँ और मेरे राइटर कहने पे उन्होंने कहा था कि हाँ हाँ ठीक है लिखते हो..पर काम क्या करते हो.. तो मैं कुछ जवाब नहीं दे पाया था..अपनी सबसे फेमस कविता भी उन्हें सुनाई थी..सुनकर उन्होंने बस ये कहा था कि बच्चन नाम से अमिताभ जाना जाता है हरिवंश नहीं..और उठकर चले गए थे"
"तो क्या हुआ..मैंने तो तुम्हारा साथ दिया..शादी की न..उनकी मर्जी के बगैर...और देखो सबकुछ अच्छा ही रहा..वो भी आज कितने खुश हैं हम दोनों को खुश देख के..ये बात तो मैं जानती ही थी..इसमें नया क्या बताया" कनक ने मुँह फेरे हुए ही कहा
"उन्होंने ये भी कहा था..कनक बहुत ऐशो आराम से पली बढ़ी है.. रजत और कनक के मोल का अंतर तो तुम्हें पता होगा ही" रजत उठकर अपना स्वेटर उतारते हुए बोला
कनक उसकी ओर घूमी और उसके हाथ से स्वेटर ले कर अपने सिर को ढकते हुए बोली "हम्म..तुमने ये बात आजतक क्यों छुपाई..खैर अब तो लिख सकते हो..फिर से शुरू करो..सरस्वती का वरदान सबको नहीं मिलता"
"तुम्हें याद है..शादी के बाद घर में सब एक साल तक गंगा में जाने को मना कर रहे थे..." रजत इतना ही कह पाया था कि कनक उसकी बात काटते हुए बोली "हाँ..तुम फिर भी..मुझे नाव से संगम ले चले थे..कितनी बढ़िया शाम थी..गंगा यमुना की तरह हम भी एक हो गए थे.."
रजत ने उसका हाथ थामते हुए कहा "हाँ..और गंगा जमुना के उस मिलन में..सरस्वती कहीं लुप्त थी..नाव में बैठा मैं..दूसरी ओर तुम्हें देख रहा था..फीका नारंगी सूरज .. तुम्हारी सुर्ख लाल बिंदी को देख सकुचाते हुए पानी में गड़ा जा रहा था..बस मैंने तभी डिसाइड कर लिया था कि..तुम्हारी माँग के सिंदूर को तुम्हारे पापा के आगे फीका नहीं पड़ने दूँगा..सरस्वती से मुख पे तेज आता है पर चेहरे पे चमक लक्ष्मी आती है..और..तब..चुपके से..तुम्हारी नज़र बचा के अपना फेवरिट पेन जिससे लिखना मुझे बहुत पसंद था..वहीं जल में छोड़ आया था...शायद त्रिवेणी पूरी करने को संगम में सरस्वती घोल आया था।"
कनक मुद्राओं की चमक के आगे नाचते संसार को रजत हँस मटमैला दिखता है।
#कनक_का_अनमोल_रजत
#तुषारापात®
"जिंदगी उलझी है चाउमीन सी..तो क्या...चटपटी भी तो है
घड़ी की प्लेट में परोसिए...दोनों काँटो से खाइए..चटकारा लगाइए।"
#तुषारापात®
इश्क़ को आशिक़ों ने नहीं शायरों ने ज़िन्दा रखा है।
#तुषारापात®
पलकों के शटर पे है रंगीन विज्ञापन छतरियों का
आँखों की दुकान के भीतर काली बदलियाँ छाईं हैं
कह दो की दुकान बंद हुई,रात के बारह बजे क्यों
पुराने दिनों की गर्मी खरीदने ये सर्दियाँ आईं हैं
#तुषारापात®
दिल को डॉक्टरों ने नहीं राइटरों ने संभाल रखा है
-तुषारापात®
चाँद की हसिया से रात नहीं कटती है
काम कल्पना से विरह कहीं मिटती है
एक हाथ के अंतर पे था मुखड़ा
एक हाथ के समांतर था अंतरा
दोनों हाथ बाँधे असहाय रह गया मैं
बेसुरी मर्यादा बड़ा बेसुरा गीत रचती है
चाँद की हसिया से रात नहीं कटती है...
एक फूँक में उड़ाता मैं तुम्हारी लाज
एक फूँक से भर देतीं तुम मुझमें आग
दो फूँकों से संसार की,फुँक गया ये स्वप्न
साँसों की धौंकनी से अब राख उड़ती है
चाँद की हसिया से रात नहीं कटती है...
एक आस बसन्त बनके तुम महकोगी
एक आस सावन बनके तुम बरसोगी
दो आसें ओस सी जेठ में वाष्पित हुईं अब
पूस की हवा इस बरस बहुत चुभती है
चाँद की हसिया से रात नहीं कटती है...
एक चुंबन में मुंदती आँखें चंद्रमा सी
एक चुंबन से काँपती नाभि मध्यमा की
दो चुम्बन नियति के क्रूर,सुखा गये होंठ
बार बार जिह्वा अब इनपे फिरती है
चाँद की हसिया से रात नहीं कटती है...
एक कविता में लिखता तुम्हारा यौवन
एक कविता से पढ़ता तुम्हारा अन्तर्मन
दो कविताओं में था रचा किंतु अपना दुर्भाग्य
तेरी और मेरी हथेली प्रतिदिन कहती है
चाँद की हसिया से रात नहीं कटती है...
-तुषारापात®
चाँद की हसिया से रात नहीं कटती है
काम कल्पना से विरह कहीं मिटती है
एक हाथ के अंतर पे था मुखड़ा
एक हाथ के समांतर था अंतरा
दोनों हाथ बाँधे असहाय रह गया मैं
बेसुरी मर्यादा बड़ा बेसुरा गीत रचती है
चाँद की हसिया से रात नहीं कटती है...
एक फूँक में उड़ाता मैं तुम्हारी लाज
एक फूँक से भर देतीं तुम मुझमें आग
दो फूँकों से संसार की,फुँक गया ये स्वप्न
साँसों की धौंकनी से अब राख उड़ती है
चाँद की हसिया से रात नहीं कटती है...
एक आस बसन्त बनके तुम महकतीं
एक आस सावन बनके तुम बरसतीं
दो आसें ओस सी जेठ में वाष्पित हुईं अब
पूस की हवा इस बरस बहुत चुभती है
चाँद की हसिया से रात नहीं कटती है...
एक चुंबन में मुंदती आँखें चंद्रमा सी
एक चुंबन से काँपती नाभि मध्यमा की
दो चुम्बन नियति के क्रूर,सुखा गये होंठ
बार बार जिह्वा अब इनपे फिरती है
चाँद की हसिया से रात नहीं कटती है...
एक कविता में लिखता तुम्हारा यौवन
एक कविता से पढ़ता तुम्हारा अन्तर्मन
दो कविताओं में था रचा किंतु अपना दुर्भाग्य
तेरी और मेरी हथेली प्रतिदिन पढ़ती है
चाँद की हसिया से रात नहीं कटती है...
-तुषार सिंह #तुषारापात
©tusharapaat.blogspot.com
कहाँ था मालूम कि दो और दो हजार होता है
दो उसने कही थी और दो ही हमने कही थी
फिर तमाम बातों से भरा क्यों अखबार होता है
#तुषारापात®
"भई वाह..सुधाकर जी..आज तो आपने कमाल कर दिया..क्या गज़ब के..डूब के भजन गाए आपने...पूरी पब्लिक भावों के समंदर में बह गई.. आज का आपका ये प्रोग्राम 'बच्चों के लिए भजन संध्या' तो सुपरहिट रहा.. सुपरहिट" चिल्ड्रेन्स डे की पूर्व संध्या पर आयोजित कार्यक्रम में जैसे ही सुप्रसिद्ध भजन गायक सुधाकर मिश्रा अपना अंतिम भजन गाकर बैक स्टेज आए उनसे मिलने को वहाँ पहले से तैयार खड़े मेयर चकोर सिधवानी उन्हें पकड़ के उनकी तारीफों के पुल बाँधने लगे, सुधाकर मिश्रा गुनगुना पानी जल्दी जल्दी पीते हुए उनका फरमाइशी अभिवादन कर कहते हैं "बहुत..बहुत..धन्यवाद मेयर साहब" और अपनी कार की ओर लगभग दौड़ के जाने लगते हैं
मेयर साहब उन्हें पीछे से रोकते हैं "अरे रुकिए तो..ये हमारी साली साहिबा आपकी बहुत बड़ी फैन हैं..खास आपके प्रोग्राम के लिए जबलपुर से यहाँ आई हैं..जरा एक दो तस्वीर..."
चकोर सिधवानी आगे कुछ और कहते कि सुधाकर ने उनकी साली साहिबा को नमस्कार किया और तेजी से उनसे आगे बढ़ते हुए कहा "मेयर साहब...माफ कीजियेगा अभी जरा जल्दी में हूँ..मेरा अपने शहर पहुँचना बेहद जरूरी है..तस्वीर फिर कभी....." कहकर वो मोबाईल कान से सटा,कार में बैठकर निकल गए
मेयर तिलमिला के रह गये, एक तो शहर के मेयर होने का नशा और दूसरे साली साहिबा और अपने अर्दली के सामने हुए अपने अपमान से वो भड़क गए "ये अपने को समझता क्या है..गवर्नर है क्या ये..साले की तारीफ पे तारीफ की..और मेयर होने के नाते इसका अपने शहर में इतना आदर सत्कार किया..इतने सारे स्कूलों से गरीब बच्चों को बुलवाया...और ये सीधे मुँह बात भी नहीं करके गया...जाओ जरा सुरेंद्र और विश्वास को तो लेकर आओ यहाँ" उन्होंने आयोजकों को बुलाने को अर्दली को लगभग डाँटने वाले अंदाज में भेजा, उसके बाद काफी देर तक मेयर साहब का 'कीर्तन' वहाँ चलता रहा।
भजन संध्या कार्यक्रम शुरू होने के पाँच मिनट पहले का दृश्य: (फ्लैशबैक)
"सर..सारे गेस्ट आ चुके हैं..हॉल पूरा खचाखच भरा है..सारे बच्चों को आपके कहने के अनुसार सबसे आगे बिठा दिया है..बस अब आपका इंतजार है...एंकर बस थोड़ी देर में आपको स्टेज पे इनवाइट करेगा.." सुरेंद्र ने सुधाकर के कमरे में आकर कहा
"ठीक है..मैं भी तैयार ही हूँ..वो हारमोनियम वगैरह वाले सबने अपनी जगह ले ली न" सुधाकर ने बस पूछने को पूछ दिया
"हाँ..सर..सब कुछ रेडी है बस आप आ जाइयेगा जब आपका नाम पुकारा जाए" कहकर सुरेंद्र स्टेज के काम संभालने चला गया
π...ऐसी लागी लगन मीरा हो गई मगन..π..सुधाकर मिश्रा कार्यक्रम के लिए तैयार थे कि तभी उनके मोबाइल की ये ट्यून बजती है वो झट से फोन उठाते हैं क्योंकि ये ट्यून उन्होंने घर के नंबर पे सेट की होती है... "हेलो..हेलो..हाँ..हाँ पिताजी बोलिये...पता नहीं फोन में नेटवर्क नहीं था बहुत देर से...नहीं नहीं अभी प्रोग्राम शुरू नहीं हुआ..अरे हुआ क्या बोलिये भी..इतना घबराए हुए क्यों लग रहे हैं" सुधाकर सांस रोक के दूसरी ओर से आवाज आने की प्रतीक्षा करने लगे
थोड़ी देर बाद उनके पिताजी की धीमी धीमी और रुआँसी आवाज़ मोबाइल में सुनाई देती है "बेटा..वो..बहू...बहू..की तबियत अचानक बिगड़ गई थी...वो..वो..उसे ब्लीडिंग...ब्लीड..बहुत ज्यादा खून आया...तो..डॉक्टर वसुंधरा के नर्सिंग होम में ले आए थे... तो..तो..वहाँ....डॉक्टरों ने बताया..कि...कि... बच्चा..मतलब... मिसकैरिज....हो गया है...बहू...बहू...पूरी तरह ठीक हैं पर बेहोश हैं...बेटे....डॉक्टर..ने..बहू को तो बचा लिया...पर बच्चा........................................................"
सुधाकर के हाथ से मोबाइल छूट गया, वो धम्म से सोफे पे बैठ गए तभी मंच से उन्हें तीसरी बार आवाज़ दी गई सुरेंद्र दौड़के उन्हें बुलाने आया और मन भर भारी पाँव उठाते वो मंच पे किसी तरह पहुँचे
मंच पे स्वागत आदि क्या क्या हुआ उन्हें कुछ याद नहीं था बस वो अपने आसन पे बैठे और सामने बैठे तमाम स्कूल के बच्चों को देखते हुए पहला भजन तुरंत गाने लगे "भए प्रगट कृपाला... दीन दयाला.... कौशल्या हितकारी....हरषित महतारी..." भजन की इस पंक्ति के साथ ही उनकी पलकों के बाँध से आँसूओं की नदी रिसने लगी।
चकोर चमकते सुधाकर को देख पाता है पर उसके पीछे की काली रात उसे दिखाई नहीं देती।
-तुषारापात®
झूठ है दिखता बसंतों में उगे सरसों की तरह
सच है मिलता किताबों में सूखे फूलों की तरह
#तुषारापात®
"क्या इस बार भी सच हार जाएगा..झूठ की जीत आखिर कब तक यूँ ही होती रहेगी...क्या कोई भी सच के साथ नहीं है?"
"कोशिश करके देख लो..सच को लेकर आगे बढ़ो..देखो कौन साथ आता है तुम्हारे..लोग झूठ के विरोध में तो कभी आते ही नहीं.. और.. न ही सच के साथ चलते हैं..बस सच बोलने वाले के साथ थोड़ी दूर यूँ टहल आते हैं.. मानो दिल बहलाने को सिनेमा देख आए हों"
"पर लोग सिनेमा में भी तो सच की जीत की कहानियों पे ताली बजाते हैं फिर क्यों नहीं आएंगे सच के साथ"
"सिनेमा किन्नरों के स्वांग जैसा है जो क्षणिक दबाव बनाता है..सच के लिए ताली बजाने वाले हाथ झूठ के लिए कभी अपनी मुठ्ठियाँ नहीं कसते..."
"मुठ्ठियाँ न भी कसें..हाथ भी न उठाएं..मगर धीमी ही सही..मेरी आवाज में अपनी आवाज़ तो मिला सकते हैं..मैं सबसे आगे चलने को तैयार हूँ...मैं सच के लिए मरने के लिए भी तैयार हूँ"
"अपने आगे चलने की तुम्हारी तमन्ना ये जरूर पूरी कर देंगे.. तुम्हारे मरने के बाद ये सब आएंगे तुम्हारे जनाज़े के पीछे..ये कहते कहते कि राम नाम सत्य है...."
"तो क्या करूँ मैं..बचपन से मुझे सिखाया गया कि सच ही सबकुछ है..एक सच सौ झूठ पे भारी है..क्या किताबों में लिखा वो सब सच, झूठ था..इस सच के लिए लड़ते लड़ते हर जगह से निष्काषित हूँ मैं..और जिन लोगों ने मुझे निष्काषित किया वो मुझे ही भगौड़ा कहते हैं.."
"सच कहूँ तो इस झूठ और सच की लड़ाई की बात ही बेमानी है..झूठ के सैनिक बहुत निर्दयी हैं..और सच..सच की कोई सेना ही नहीं है..बस एक पैदल है जो सच का झंडा उठाए दिखता है मानो कोई बहुत बड़ी सेना उसके पीछे आ रही हो..नियति ने उस पैदल के रूप में तुम्हें चुन लिया है..तुम मरोगे तो कोई और इस झंडे को पकड़ लेगा..पर.. उसके भी पीछे कोई सेना नहीं होगी..मेरी मानो झूठ में घुलमिल जाओ फिर देखो इस झंडे को कितना बढ़िया रथ मिल जाएगा..झूठ चारो ओर ऐसे फैला हुआ है जैसे बसन्त में सरसों ही सरसों हो और रही बात सच के किताबों में होने की..हाँ..सच किताबों में मिलता है..मगर सूखे फूलों की तरह.."
-तुषारापात®
तीर होता तो निशाने पे लगता जाकर
मैं वहीं का वहीं रह गया जमीं के त्रिशूल की तरह
-तुषारापात®
उलझे हैं अंतरे में मुखड़ा उदास बैठा है
आशिक महबूबा के बच्चे के साथ बैठा है
-तुषारापात®