Sunday 31 December 2017

नाबालिग सदी

नाबालिग है अभी भी चाहे उन्नीस बीस से ही हो
अठारहवाँ लगा है साल अभी इक्कीसवीं सदी को

-तुषार सिंह #तुषारापात®

Thursday 28 December 2017

किस्मत की चवन्नी

जिन्हें किस्मत की चवन्नी नहीं मिलती,जीवन की दौड़ में उनकी मेहनत के सोलह आने,बारह आने बन लंगड़ाते हैं।

-तुषारापात®

Sunday 24 December 2017

बड़ा दिन

कैलेंडर रंगभेद करता है,लाल और काले में यहाँ
दिन भी होता है बड़ा और छोटा,आदमी की तरह

-तुषारापात®

बड़ा दिन

मकर संक्रांति तो हम पिछड़े लोगों की बातें हैं
दिन बड़ा होने का जश्न वो लंबी रातों में मनाते हैं

-तुषारापात®

Tuesday 19 December 2017

जीवन

इस वन में बसन्त कभी,कभी पतझड़ा होता है
पर सावन में गिरे पत्तों का दर्द पौष में हरा होता है

-तुषारापात®

दिसम्बर की चोट

सर्द मौसम में उभर आते हैं जून के हल्के दर्द भी
और ये चोट तो दिसम्बर की है न जाने कितना पिराएगी

-तुषारापात®

Monday 18 December 2017

ख़तों की राख से इश्क़ दफ़ना दिया है मैंने

मैं था बेवफा सबसे ये कहला दिया है मैंने
तुम्हारे हक़ में काम ये पहला किया है मैंने

नाम अब भी आता है तुम्हारा लबों पे मगर
दीवार के कानों को अब समझा दिया है मैंने

कि तुम्हारा कोई भी नामोनिशां न बाकी रहे
ख़तों की राख से इश्क़ दफ़ना दिया है मैंने

जाने तुम मनाओ न मनाओ मौत के बाद की रस्में
जीते जी अपना तेरहवीं दसवाँ करवा दिया है मैंने

ऐसा भी नहीं कि हाथ अपना सीने तक न पहुँचे
जरा सी बात थी दिल को बहला दिया है मैंने

धड़कने जब जब तेरे नाम पे तेज हुईं हैं 'तुषार'
काँधे के एक बालिश्त नीचे सहला दिया है मैंने

-तुषारापात®

Friday 15 December 2017

टूटन

कुछ टूटा हुआ जब भी मुझमें खनकता है
कलम कागज़ पे हर्फ़ हर्फ़ जोड़ने लगता है

-तुषारापात®

Thursday 14 December 2017

कॉपी पेस्ट

"हा.ई..लो मैं भी हॉफ डे लीव लेकर आ गया.."राहुल कमरे में घुसते ही चहकते हुए बोला पर टिया को रजाई लपेटे सोते देख उसके पास जाकर पूछता है "क्या हुआ..ऑफिस से अभी आई हो क्या...ऐसे क्यों लेटी हो.."

टिया ने आँखें मलते हुए कहा "ऑफिस से तो लीव लेकर जल्दी ही आ गई थी..पर..तबियत कुछ ठीक नहीं लग रही.."

राहुल ने उसका माथा छुआ और लॉबी में जाकर मेडिसिन बॉक्स से थर्मोमीटर निकाल के लाया और उसे लगाने को बोला,एक मिनट के बाद थर्मोमीटर चेक करके वो कहता है "हम्म..थोड़ा सा फीवर है..ठंड लग गई शायद तुम्हें.."

"कितना है" टिया ने राहुल के हाथ से थर्मोमीटर छीनने की नाकाम कोशिश करते हुए पूछा

"अरे..अरे..ज्यादा नहीं है..कोई मेडिसिन ली..नहीं न..रुको मैं क्रोसिन देता हूँ.." राहुल उसके हाथ से थर्मोमीटर बचाता है और झटक के थर्मोमीटर के केस में रख देता है

टिया ने उदास सी शक्ल बनाते हुए कहा "यार आज तुम्हारा बर्थडे है..और मैं अपनी तबियत खराब करके बैठ गई..सोचा था तुम्हारी पसंद की डिशेस बनाऊँगी और एक छोटी से पार्टी थ्रो करूँगी..सब गुड़ गोबर हो गया" तभी डोरबेल बजती है तो वो आगे कहती है "शिट यार..देखो कोई तुम्हें विश करने न आया हो..ओह..गॉड.कहीं भैया-भाभी तो नहीं आ गए..यार मैने तो कुछ भी नहीं बनाया..नमकीन भी थोड़ी सी है..तुमसे कहा था कि नाश्ता लाना है..पर तुम सुनते ही नहीं..."

"रिलैक्स..रिलैक्स..मैं देखता हूँ..अगर भैया भाभी भी होंगे तो क्या हुआ..मैं मार्केट से कुछ ले आऊँगा न..बर्थ डे के दिन तो मत डाँटो.." राहुल हँसते हुए ये कहता है और जाकर दरवाजा खोलता है सामने पड़ोस की पम्मी आँटी थीं उसके कुछ कहने से पहले ही वो बोल पड़ीं
"ओये शेर पुत्तर..बर्थडे बॉय..हैप्पी बर्थडे..टिया कहाँ है..ये देख तुम दोनों के लिए इडली सांभर बना के लाईं हूँ"

"थैंक्स आँटी..आइये अंदर आइये" राहुल उन्हें टिया की तबियत के बारे में बताता है और अंदर बुलाता है पम्मी आँटी टिया का हाल चाल पूछतीं हैं और थोड़ी देर में ढेर सारी इडलीयाँ देकर चलीं जाती हैं

"ये लो बर्थडे मेरा और तुम्हारे पसन्द की चीज लोग दे जा रहे हैं..इंडिया भी कमाल है..यहाँ एक पंजाबी आँटी साउथ इंडियन डिश बनाती हैं और पड़ोस में दे भी जातीं हैं" राहुल टिया के मुँह में इडली का एक टुकड़ा डालते हुए कहता है

"कुछ भी कहो..पम्मी आँटी हैं तो पंजाबन पर साउथ इंडियन कमाल का बनातीं हैं..उनके हाथ की इडली तो पूरी कॉलोनी में फेमस है..पर यार मुझे कोई टेस्ट नहीं लग रहा..बुखार कितनी देर में ठीक होगा..मैं बोर हो गईं हूँ.." टिया ने इडली के टुकड़े को किसी तरह निगलते हुए कहा

राहुल कुछ कहता कि तभी डोरबेल फिर से बजती है वो जाकर दरवाजा खोलता है तो पाता है उसके भैया-भाभी आए हुए हैं वो दोनों के पैर छूता है और ड्राइंग रूम में उन्हें बिठा टिया को आवाज देता है कि भैया भाभी आए हैं टिया भी जेठ जेठानी के सम्मान में उठकर बैठक में आ जाती है

जन्मदिन की शुभकामनाओं,आशीर्वाद और चाय के एक दौर के बाद टिया उन्हें इडली सांभर ऑफर करती है जिसे थोड़ी न नुकुर के बाद वो स्वीकार कर लेते हैं

एक एक इडली और थोड़ा थोड़ा सांभर सबके लेने के बाद राहुल के भैया भाभी अबकी दो दो इडलियाँ और ढेर सारा सांभर लेते हैं और उसकी भाभी टिया से पूछतीं हैं "वाओ..टिया..इडली तो बहुत ही बढ़िया बनी है..और सांभर भी प्योर साउथ इंडियन मसाले से बना लग रहा है..बहुत ही यमी..सो टेस्टी..रेसिपी तो बता..कैसे बनाया..."

टिया राहुल को देख के मुस्कुराती है मानो पूछ रही हो क्या कहूँ "अरे भाभी ये तो बस ऐसे ही..वही चावल और सूजी मिक्स..और..अरे आप और लीजिये न..भैया आप भी लीजिये न.." कहकर वो एक एक इडली और उनकी प्लेट में रख देती है

"टू टेस्टी..." भैया इडली खाते खाते कहते हैं और भाभी भी सांभर का सिप लेकर इडली के टुकड़े को जुबान पे चुभलाते हुए कहती हैं "इडली का कोई पेस्ट लिया है क्या..किस कम्पनी का है..कहीं वो मदर्स वाला ब्रांड तो नहीं..नहीं..नहीं..वो इतना बढ़िया नहीं होता..कौन सा है?"

टिया झेंपते हुए कहती है "भाभी कोई ब्रांडेड नहीं था..अबकी लाऊँगी तो आपके लिए भी एक ले आऊँगी" कहकर उसने किसी तरह पीछा छुड़ाया थोड़ी देर में वो लोग राहुल को फिर से बर्थडे विश करते हैं और चले जाते हैं

"अच्छा बेटा..पम्मी आँटी की इडलियों पे मेला लूटा जा रहा था" भैया भाभी के जाने के बाद राहुल टिया को चिढ़ाते हुए कहता है "आने दो अबकी भाभी को..बताऊँगा उन्हें..ये पेस्ट नहीं..कॉपी पेस्ट था"

"जब तबियत ठीक न हो तो इतना कॉपी पेस्ट तो चलता है और ये कोई चोरी थोड़ी है जानू..पम्मी आँटी भगवान का अवतार हैं..उनके चरण छुआ करूँगी अब" टिया पैर छूने की नौटंकी करते हुए कहती है और दोनों हँसते हँसते सोफे पे गिर जाते हैं।

-तुषारापात®

Friday 8 December 2017

कनक का अनमोल रजत

"तुम्हें लिखना नहीं छोड़ना चाहिए था...कॉलेज के दिनों की तुम्हारी कविताएं.. आज तक जहन में घूमती हैं... खास तौर पे वो तुम्हारी गोल्डन कश वाली कविताएं... रजत.. आज भी जब पढ़ती हूँ तो ऐसा लगता है मानो सुलगते हुए लफ़्ज़ों पे... एहसासों की ओस का छींटा पड़ रहा हो और छुन्न की आवाज पूरा गुजरा वक्त भीतर खनखना जाती हो... अगर तुम लिखते रहते तो इलाहाबाद तुम्हारे नाम से जाना जाता" आनंद भवन के लॉन में बैठी घास के एक तिनके को उखाड़ते हुए कनक ने कहा

रजत ने उसके हाथ से उखड़ा हुआ तिनका लिया और उसे मिट्टी में फिर लगाने की कोशिश करते हुए बोला "अब वो छुन्न की आवाज मैं रोज सुनता हूँ होटल के किचेन में..जब डिश बनाने के बाद..बेसिन में पॉट डुबो देता हूँ..कनक पेट की आग..कलम की क्रांति की मशाल से बड़ी होती है..बहुत बड़ी..शौहरत से दिमाग की भूख शांत होती है पेट की नहीं..और लिखता रहता तो क्या..बस दो चार सम्मान की शॉल मिल गईं होतीं..फटा कुर्ता छुपाने को"

कनक ने तिनके के चारों ओर मिट्टी को दबाते हुए कहा "और दिल की भूख?...अब तो सब ठीक है अब फिर से राइटिंग स्टार्ट कर दो..शेफ रजत केसरवानी साहब"

"एक बार उखड़ा हुआ पौधा तो फिर से मिट्टी में जम सकता है पर पेड़ नहीं" रजत ने तिनके को जमाते हुए कहा

"आह..क्या पंच लाइन मारी है..टाइमिंग है अभी भी तुममें..राइटर जिंदा है कहीं" कनक उसकी कही पंक्ति पे निहाल होने की ओवर एक्टिंग करते हुए आगे बोली "शादी के पहले तो बहुत लिखते थे.. शादी के बाद क्या हो गया..या मुझसे शादी नहीं होती तो लिखते.. कोई गम कोई दर्दे दिल का बहाना नहीं रहा...क्यों रॉकस्टार?"

रजत रॉकस्टार फिल्म याद करते हुए हँसते हुए बोला "हाँ शादी के बाद तुम्हारे माथे की लाल बिंदी ने सारी कल्पनाओं पे फुल स्टॉप जो लगा दिया"

"हाऊ..क्या वाकई में...क्या तुम्हारे राइटिंग छोड़ने की वजह सच में..मैं हूँ.." कनक ने घास पे अपनी मुठ्ठी कसते हुए कहा

रजत ने घास को उससे छुड़ाया और उसका हाथ अपने हाथ मे लेकर मुस्कुराते हुए बोला "लगता है अब मेरे जोक्स में धार नहीं रही.."

"रहने दो..अब मैं तुमसे बात तभी करूँगी जब तुम राइटिंग छोड़ने का कारण बताओगे.." कनक ने हाथ छुड़ाया और दूसरी ओर घूम के बैठ गई

रजत घास पे पसरते हुए बोला "कनक..तुम्हारे पापा से जब मैं तुम्हारा हाथ माँगने गया था तो उन्होंने पूछा था कि मैं करता क्या हूँ और मेरे राइटर कहने पे उन्होंने कहा था कि हाँ हाँ ठीक है लिखते हो..पर काम क्या करते हो.. तो मैं कुछ जवाब नहीं दे पाया था..अपनी सबसे फेमस कविता भी उन्हें सुनाई थी..सुनकर उन्होंने बस ये कहा था कि बच्चन नाम से अमिताभ जाना जाता है हरिवंश नहीं..और उठकर चले गए थे"

"तो क्या हुआ..मैंने तो तुम्हारा साथ दिया..शादी की न..उनकी मर्जी के बगैर...और देखो सबकुछ अच्छा ही रहा..वो भी आज कितने खुश हैं हम दोनों को खुश देख के..ये बात तो मैं जानती ही थी..इसमें नया क्या बताया" कनक ने मुँह फेरे हुए ही कहा

"उन्होंने ये भी कहा था..कनक बहुत ऐशो आराम से पली बढ़ी है.. रजत और कनक के मोल का अंतर तो तुम्हें पता होगा ही" रजत उठकर अपना स्वेटर उतारते हुए बोला

कनक उसकी ओर घूमी और उसके हाथ से स्वेटर ले कर अपने सिर को ढकते हुए बोली "हम्म..तुमने ये बात आजतक क्यों छुपाई..खैर अब तो लिख सकते हो..फिर से शुरू करो..सरस्वती का वरदान सबको नहीं मिलता"

"तुम्हें याद है..शादी के बाद घर में सब एक साल तक गंगा में जाने को मना कर रहे थे..." रजत इतना ही कह पाया था कि कनक उसकी बात काटते हुए बोली "हाँ..तुम फिर भी..मुझे नाव से संगम ले चले थे..कितनी बढ़िया शाम थी..गंगा यमुना की तरह हम भी एक हो गए थे.."

रजत ने उसका हाथ थामते हुए कहा "हाँ..और गंगा जमुना के उस मिलन में..सरस्वती कहीं लुप्त थी..नाव में बैठा मैं..दूसरी ओर तुम्हें देख रहा था..फीका नारंगी सूरज .. तुम्हारी सुर्ख लाल बिंदी को देख सकुचाते हुए पानी में गड़ा जा रहा था..बस मैंने तभी डिसाइड कर लिया था कि..तुम्हारी माँग के सिंदूर को तुम्हारे पापा के आगे फीका नहीं पड़ने दूँगा..सरस्वती से मुख पे तेज आता है पर चेहरे पे चमक लक्ष्मी आती है..और..तब..चुपके से..तुम्हारी नज़र बचा के अपना फेवरिट पेन जिससे लिखना मुझे बहुत पसंद था..वहीं जल में छोड़ आया था...शायद त्रिवेणी पूरी करने को संगम में सरस्वती घोल आया था।"

कनक मुद्राओं की चमक के आगे नाचते संसार को रजत हँस मटमैला दिखता है।

#कनक_का_अनमोल_रजत
#तुषारापात®

Wednesday 29 November 2017

चाउमीन

"जिंदगी उलझी है चाउमीन सी..तो क्या...चटपटी भी तो है
घड़ी की प्लेट में परोसिए...दोनों काँटो से खाइए..चटकारा लगाइए।"

#तुषारापात®

Thursday 23 November 2017

आशिक vs शायर

इश्क़ को आशिक़ों ने नहीं शायरों ने ज़िन्दा रखा है।

#तुषारापात®

Wednesday 22 November 2017

खरीदार सर्दियाँ

पलकों के शटर पे है रंगीन विज्ञापन छतरियों का
आँखों की दुकान के भीतर काली बदलियाँ छाईं हैं

कह दो की दुकान बंद हुई,रात के बारह बजे क्यों
पुराने दिनों की गर्मी खरीदने ये सर्दियाँ आईं हैं

#तुषारापात®

Saturday 18 November 2017

दिल का डॉक्टर, राइटर

दिल को डॉक्टरों ने नहीं राइटरों ने संभाल रखा है
-तुषारापात®

Wednesday 15 November 2017

चाँद की हसिया से रात नहीं कटती है

चाँद की हसिया से रात नहीं कटती है
काम कल्पना से विरह कहीं मिटती है

एक हाथ के अंतर पे था मुखड़ा
एक हाथ के समांतर था अंतरा
दोनों हाथ बाँधे असहाय रह गया मैं
बेसुरी मर्यादा बड़ा बेसुरा गीत रचती है
चाँद की हसिया से रात नहीं कटती है...

एक फूँक में उड़ाता मैं तुम्हारी लाज
एक फूँक से भर देतीं तुम मुझमें आग
दो फूँकों से संसार की,फुँक गया ये स्वप्न
साँसों की धौंकनी से अब राख उड़ती है
चाँद की हसिया से रात नहीं कटती है...

एक आस बसन्त बनके तुम महकोगी
एक आस सावन बनके तुम बरसोगी
दो आसें ओस सी जेठ में वाष्पित हुईं अब
पूस की हवा इस बरस बहुत चुभती है
चाँद की हसिया से रात नहीं कटती है...

एक चुंबन में मुंदती आँखें चंद्रमा सी
एक चुंबन से काँपती नाभि मध्यमा की
दो चुम्बन नियति के क्रूर,सुखा गये होंठ
बार बार जिह्वा अब इनपे फिरती है
चाँद की हसिया से रात नहीं कटती है...

एक कविता में लिखता तुम्हारा यौवन
एक कविता से पढ़ता तुम्हारा अन्तर्मन
दो कविताओं में था रचा किंतु अपना दुर्भाग्य
तेरी और मेरी हथेली प्रतिदिन कहती है
चाँद की हसिया से रात नहीं कटती है...

-तुषारापात®

चाँद की हसिया से रात नहीं कटती है

चाँद की हसिया से रात नहीं कटती है
काम कल्पना से विरह कहीं मिटती है

एक हाथ के अंतर पे था मुखड़ा
एक हाथ के समांतर था अंतरा
दोनों हाथ बाँधे असहाय रह गया मैं
बेसुरी मर्यादा बड़ा बेसुरा गीत रचती है
चाँद की हसिया से रात नहीं कटती है...

एक फूँक में उड़ाता मैं तुम्हारी लाज
एक फूँक से भर देतीं तुम मुझमें आग
दो फूँकों से संसार की,फुँक गया ये स्वप्न
साँसों की धौंकनी से अब राख उड़ती है
चाँद की हसिया से रात नहीं कटती है...

एक आस बसन्त बनके तुम महकतीं
एक आस सावन बनके तुम बरसतीं
दो आसें ओस सी जेठ में वाष्पित हुईं अब
पूस की हवा इस बरस बहुत चुभती है
चाँद की हसिया से रात नहीं कटती है...

एक चुंबन में मुंदती आँखें चंद्रमा सी
एक चुंबन से काँपती नाभि मध्यमा की
दो चुम्बन नियति के क्रूर,सुखा गये होंठ
बार बार जिह्वा अब इनपे फिरती है
चाँद की हसिया से रात नहीं कटती है...

एक कविता में लिखता तुम्हारा यौवन
एक कविता से पढ़ता तुम्हारा अन्तर्मन
दो कविताओं में था रचा किंतु अपना दुर्भाग्य
तेरी और मेरी हथेली प्रतिदिन पढ़ती है
चाँद की हसिया से रात नहीं कटती है...

-तुषार सिंह #तुषारापात
©tusharapaat.blogspot.com

Monday 13 November 2017

दो और दो हजार

कहाँ था मालूम कि दो और दो हजार होता है
दो उसने कही थी और दो ही हमने कही थी
फिर तमाम बातों से भरा क्यों अखबार होता है

#तुषारापात®

शो मस्ट गो ऑन

"भई वाह..सुधाकर जी..आज तो आपने कमाल कर दिया..क्या गज़ब के..डूब के भजन गाए आपने...पूरी पब्लिक भावों के समंदर में बह गई.. आज का आपका ये प्रोग्राम 'बच्चों के लिए भजन संध्या' तो सुपरहिट रहा.. सुपरहिट" चिल्ड्रेन्स डे की पूर्व संध्या पर आयोजित कार्यक्रम में जैसे ही सुप्रसिद्ध भजन गायक सुधाकर मिश्रा अपना अंतिम भजन गाकर बैक स्टेज आए उनसे मिलने को वहाँ पहले से तैयार खड़े मेयर चकोर सिधवानी उन्हें पकड़ के उनकी तारीफों के पुल बाँधने लगे, सुधाकर मिश्रा गुनगुना पानी जल्दी जल्दी पीते हुए उनका फरमाइशी अभिवादन कर कहते हैं "बहुत..बहुत..धन्यवाद मेयर साहब" और अपनी कार की ओर लगभग दौड़ के जाने लगते हैं

मेयर साहब उन्हें पीछे से रोकते हैं "अरे रुकिए तो..ये हमारी साली साहिबा आपकी बहुत बड़ी फैन हैं..खास आपके प्रोग्राम के लिए जबलपुर से यहाँ आई हैं..जरा एक दो तस्वीर..."

चकोर सिधवानी आगे कुछ और कहते कि सुधाकर ने उनकी साली साहिबा को नमस्कार किया और तेजी से उनसे आगे बढ़ते हुए कहा "मेयर साहब...माफ कीजियेगा अभी जरा जल्दी में हूँ..मेरा अपने शहर पहुँचना बेहद जरूरी है..तस्वीर फिर कभी....." कहकर वो मोबाईल कान से सटा,कार में बैठकर निकल गए

मेयर तिलमिला के रह गये, एक तो शहर के मेयर होने का नशा और दूसरे साली साहिबा और अपने अर्दली के सामने हुए अपने अपमान से वो भड़क गए "ये अपने को समझता क्या है..गवर्नर है क्या ये..साले की तारीफ पे तारीफ की..और मेयर होने के नाते इसका अपने शहर में इतना आदर सत्कार किया..इतने सारे स्कूलों से गरीब बच्चों को बुलवाया...और ये सीधे मुँह बात भी नहीं करके गया...जाओ जरा सुरेंद्र और विश्वास को तो लेकर आओ यहाँ" उन्होंने आयोजकों को बुलाने को अर्दली को लगभग डाँटने वाले अंदाज में भेजा, उसके बाद काफी देर तक मेयर साहब का 'कीर्तन' वहाँ चलता रहा।

भजन संध्या कार्यक्रम शुरू होने के पाँच मिनट पहले का दृश्य: (फ्लैशबैक)

"सर..सारे गेस्ट आ चुके हैं..हॉल पूरा खचाखच भरा है..सारे बच्चों को आपके कहने के अनुसार सबसे आगे बिठा दिया है..बस अब आपका इंतजार है...एंकर बस थोड़ी देर में आपको स्टेज पे इनवाइट करेगा.." सुरेंद्र ने सुधाकर के कमरे में आकर कहा

"ठीक है..मैं भी तैयार ही हूँ..वो हारमोनियम वगैरह वाले सबने अपनी जगह ले ली न" सुधाकर ने बस पूछने को पूछ दिया

"हाँ..सर..सब कुछ रेडी है बस आप आ जाइयेगा जब आपका नाम पुकारा जाए" कहकर सुरेंद्र स्टेज के काम संभालने चला गया

π...ऐसी लागी लगन मीरा हो गई मगन..π..सुधाकर मिश्रा कार्यक्रम के लिए तैयार थे कि तभी उनके मोबाइल की ये ट्यून बजती है वो झट से फोन उठाते हैं क्योंकि ये ट्यून उन्होंने घर के नंबर पे सेट की होती है... "हेलो..हेलो..हाँ..हाँ पिताजी बोलिये...पता नहीं फोन में नेटवर्क नहीं था बहुत देर से...नहीं नहीं अभी प्रोग्राम शुरू नहीं हुआ..अरे हुआ क्या बोलिये भी..इतना घबराए हुए क्यों लग रहे हैं" सुधाकर सांस रोक के दूसरी ओर से आवाज आने की प्रतीक्षा करने लगे

थोड़ी देर बाद उनके पिताजी की धीमी धीमी और रुआँसी आवाज़ मोबाइल में सुनाई देती है "बेटा..वो..बहू...बहू..की तबियत अचानक बिगड़ गई थी...वो..वो..उसे ब्लीडिंग...ब्लीड..बहुत ज्यादा खून आया...तो..डॉक्टर वसुंधरा के नर्सिंग होम में ले आए थे... तो..तो..वहाँ....डॉक्टरों ने बताया..कि...कि... बच्चा..मतलब... मिसकैरिज....हो गया है...बहू...बहू...पूरी तरह ठीक हैं पर बेहोश हैं...बेटे....डॉक्टर..ने..बहू को तो बचा लिया...पर बच्चा........................................................"

सुधाकर के हाथ से मोबाइल छूट गया, वो धम्म से सोफे पे बैठ गए तभी मंच से उन्हें तीसरी बार आवाज़ दी गई सुरेंद्र दौड़के उन्हें बुलाने आया और मन भर भारी पाँव उठाते वो मंच पे किसी तरह पहुँचे

मंच पे स्वागत आदि क्या क्या हुआ उन्हें कुछ याद नहीं था बस वो अपने आसन पे बैठे और सामने बैठे तमाम स्कूल के बच्चों को देखते हुए पहला भजन तुरंत गाने लगे "भए प्रगट कृपाला... दीन दयाला.... कौशल्या हितकारी....हरषित महतारी..." भजन की इस पंक्ति के साथ ही उनकी पलकों के बाँध से आँसूओं की नदी रिसने लगी।

चकोर चमकते सुधाकर को देख पाता है पर उसके पीछे की काली रात उसे दिखाई नहीं देती।

-तुषारापात®

Saturday 11 November 2017

झूठा सच

झूठ है दिखता बसंतों में उगे सरसों की तरह
सच है मिलता किताबों में सूखे फूलों की तरह

#तुषारापात®

राम नाम सत्य है


"क्या इस बार भी सच हार जाएगा..झूठ की जीत आखिर कब तक यूँ ही होती रहेगी...क्या कोई भी सच के साथ नहीं है?"

"कोशिश करके देख लो..सच को लेकर आगे बढ़ो..देखो कौन साथ आता है तुम्हारे..लोग झूठ के विरोध में तो कभी आते ही नहीं.. और.. न ही सच के साथ चलते हैं..बस सच बोलने वाले के साथ थोड़ी दूर यूँ टहल आते हैं.. मानो दिल बहलाने को सिनेमा देख आए हों"

"पर लोग सिनेमा में भी तो सच की जीत की कहानियों पे ताली बजाते हैं फिर क्यों नहीं आएंगे सच के साथ"

"सिनेमा किन्नरों के स्वांग जैसा है जो क्षणिक दबाव बनाता है..सच के लिए ताली बजाने वाले हाथ झूठ के लिए कभी अपनी मुठ्ठियाँ नहीं कसते..."

"मुठ्ठियाँ न भी कसें..हाथ भी न उठाएं..मगर धीमी ही सही..मेरी आवाज में अपनी आवाज़ तो मिला सकते हैं..मैं सबसे आगे चलने को तैयार हूँ...मैं सच के लिए मरने के लिए भी तैयार हूँ"

"अपने आगे चलने की तुम्हारी तमन्ना ये जरूर पूरी कर देंगे.. तुम्हारे मरने के बाद ये सब आएंगे तुम्हारे जनाज़े के पीछे..ये कहते कहते कि राम नाम सत्य है...."

"तो क्या करूँ मैं..बचपन से मुझे सिखाया गया कि सच ही सबकुछ है..एक सच सौ झूठ पे भारी है..क्या किताबों में लिखा वो सब सच, झूठ था..इस सच के लिए लड़ते लड़ते हर जगह से निष्काषित हूँ मैं..और जिन लोगों ने मुझे निष्काषित किया वो मुझे ही भगौड़ा कहते हैं.."

"सच कहूँ तो इस झूठ और सच की लड़ाई की बात ही बेमानी है..झूठ के सैनिक बहुत निर्दयी हैं..और सच..सच की कोई सेना ही नहीं है..बस एक पैदल है जो सच का झंडा उठाए दिखता है मानो कोई बहुत बड़ी सेना उसके पीछे आ रही हो..नियति ने उस पैदल के रूप में तुम्हें चुन लिया है..तुम मरोगे तो कोई और इस झंडे को पकड़ लेगा..पर.. उसके भी पीछे कोई सेना नहीं होगी..मेरी मानो झूठ में घुलमिल जाओ फिर देखो इस झंडे को कितना बढ़िया रथ मिल जाएगा..झूठ चारो ओर ऐसे फैला हुआ है जैसे बसन्त में सरसों ही सरसों हो और रही बात सच के किताबों में होने की..हाँ..सच किताबों में मिलता है..मगर सूखे फूलों की तरह.."

-तुषारापात®

Sunday 5 November 2017

त्रिशूल

तीर होता तो निशाने पे लगता जाकर
मैं वहीं का वहीं रह गया जमीं के त्रिशूल की तरह

-तुषारापात®

शनिश्चरी इतवार

उलझे हैं अंतरे में मुखड़ा उदास बैठा है
आशिक महबूबा के बच्चे के साथ बैठा है

-तुषारापात®

Wednesday 1 November 2017

अनलकी सेवेन

"लेकिन सर...ये देखिए इसमें..इस क्वेश्चन में भी मुझे सिर्फ सात नम्बर दिए गए हैं ..आश्चर्य की बात है कि सवाल को पूरा सही सॉल्व करने के बाद भी मुझे बीस में सात नंबर दिए गए जबकि..मैथ्स में तो..एक्यूशन सॉल्व करने के पूरे पूरे नंबर मिलते हैं" ज्ञान ने आर.टी.आई के तहत अपनी सिद्धान्त ज्योतिष के पहले पेपर की कॉपी निकलवाई थी और जानबूझकर दिए गए कम नंबरों पर वह अपने कोर्स कॉर्डिनेटर और सीनियर टीचर प्रोफेसर मिश्रा से इसी पर बहस कर रहा था

कोर्स कॉर्डिनेटर प्रोफेसर मिश्रा ने पान की पीक को ऐसे निगला मानो उसने खून का घूँट पिया हो पर बहुत ही डिप्लोमेटिक अंदाज में मुस्कुराते हुए उससे बोला "बेटा ज्ञान प्रताप ... देखो ये ज्योतिष का विषय है और तुम तो जानते हो कि ज्योतिष आर्ट्स सब्जेक्ट के अंडर आता है..अब आर्ट्स में कहीं किसी को पूरे पूरे नम्बर मिलते हैं"

"सही कहते हैं सर ट्रिग्नोमेट्री..ज्योतिष के अंडर आके गणित नहीं रहती बल्कि कला हो जाती है" ज्ञान अपने साथ हुए पक्षपात को बहुत अच्छी तरह समझ चुका था अभी उसे यहीं आगे और पढ़ना भी था तो वो व्यंग्यात्मक टोन में ये कहकर कॉर्डिनेटर के रूम से बाहर निकल आता है

उसके साथ पढ़ने वाला उसका दोस्त शरद उसे बाहर खड़ा मिलता है "क्या हुआ ज्ञानप्रताप सिंह..कुछ नहीं हुआ न..अबे तुम शिक्षा पांडे नहीं हो जो तुम्हें ये पूरे पूरे नंबर देंगे...पिछले सेमेस्टर तुमने आर टी आई दाखिल की थी तो तबसे और चिढ़ गया है ये प्रोफेसर"

"यार..थ्योरी में नंबर काटते तो अलग बात होती..पर यहाँ तो इन्होंने चापजात्य त्रिकोणमिति की पाँचवी प्रतिज्ञा पे नम्बर कम दिए हैं..जो मैंने उत्पत्ति सहित पूरी सही हल की थी ..हर सेमेस्टर की तरह इस सेमेस्टर भी मेरे साथ ये किया गया..और अब ये लोग कुछ मानने को भी तैयार नहीं..ये साला सात का नंबर ही मेरे लिए हमेशा अनलकी रहा है..इस क्वेश्चन का सीरियल नम्बर भी सातवाँ था..ज्ञान ने मायूस हो खीजते हुए कहा

"छोड़ बे..जानते हो ही तुम यहाँ का हाल.. ये सब सिद्धांत ज्योतिष की पी एच डी की सीट पे शिक्षा को सेट करने के लिए गोलमाल किया जा रहा है..वैसे भी तुम्हें आगे फलित में प्रैक्टिस करनी है..डिग्री लो और आगे बढ़ो..ये चापीय त्रिकोणमिति घंटा काम आएगी फलित में...जाने दो एक दिन जब तुम बड़े ज्योतिषी बन चुके होगे..तो ये सब भूल भी चुके होगे.." शरद ने उसे हिम्मत देते हुए कहा

हुआ भी यूँ ही..डिग्री लेने के सात साल बाद ज्ञान आज एक बड़ा ज्योतिषी है और शहर में अपना एक अच्छा नाम रखता है एक दिन वो रात को टीवी देख रहा था कि कौन बनेगा करोड़पति के रिपीट शो में उसे उसके साथ पढ़ने वाली वही शिक्षा पांडे हॉट सीट पे दिखाई दी और कुछ ही देर में गणितीय ज्योतिष के एक आसान सवाल का जवाब न दे पाने के कारण छह लाख चालीस हजार पे क्विट करते भी दिखती है

ज्ञान के मन मे पुरानी प्रतिस्पर्धा जागने लगती है और वो कौन बनेगा करोड़पति में जाने के लिए रोज बार बार मैसेज, एस एम एस आदि करने लगता है पर वो चुना नहीं जाता और कौन बनेगा करोड़पति का वो सीजन भी खत्म हो जाता है पर इस बीच ज्ञान जनरल स्टडीज ,सामान्य ज्ञान इत्यादि की तैयारी करता रहता है

समय का चक्र ढुलकते ढुलकते ही चलता हो पर चलता ही जाता है और बीतते बीतते कौन बनेगा करोड़पति का नया सीजन शुरू होने के विज्ञापन आने लगते हैं इसबार न सिर्फ ज्ञान चुन लिया जाता है बल्कि वो हॉट सीट पे भी पहुँच जाता है

"देवियों और सज्जनों..मेरे सामने हॉट सीट पे बैठे हैं लखनऊ से आये ज्ञान प्रताप सिंह जो कि बहुत बहुत अच्छा खेल रहे हैं और एक करोड़ की भारी भरकम रकम जीत चुके हैं जोर दार तालियों से हम इनका अभिनंदन करते हैं और खेल को कल छोड़े गये बिंदु से आगे बढ़ाते हैं" अमिताभ बच्चन की आवाज से स्टूडियो गूँज रहा था ज्ञान उनके सामने बैठा था

"खेल के इस पड़ाव पे मैं आपको बता दूँ कि सोलहवाँ प्रश्न जो कि सात करोड़ के लिए है उसमें आप अपनी बची हुई कोई भी लाइफ लाइन प्रयोग नहीं कर पाएंगे और अगर आपने गलत उत्तर दिया तो आप सीधे तीन लाख बीस हजार पे जाकर नीचे गिरेंगे..इसलिये भाईसाहब..बहुत सोच समझ के.." अमिताभ ने अपने अंदाज में कहा

सर सोलह के अंकों का जोड़ सात होता है और सात करोड़ के लिए ये प्रश्न भी है..और सात के अंक से मेरी अच्छी यादें नहीं हैं..पर अब यहाँ तक आकर..देखते हैं क्या होता है" ज्ञान ने धड़कते दिल के साथ चेहरे पे आत्मविश्वासी मुस्कान लाते हुए कहा

"ज्ञान प्रताप जी...जिओ जैकपॉट..सात करोड़ के लिए..ये रहा अंतिम प्रश्न..आपके कंप्यूटर स्क्रीन पे..." कहकर अमिताभ बच्चन ने सोलहवाँ प्रश्न पढ़ना शुरू किया "चापीय त्रिकोणमिति के चापजात्य अध्याय के पाँचवे साध्य के उत्पत्ति श्लोक में इनमें से कौन सा शब्द ..नहीं..है..और ये रहे आपके ऑप्शन.."

"एक मिनट सर.. आपके ऑप्शन देने से पहले आपसे एक रिक्वेस्ट है.." ज्ञान ने उन्हें रोका

यूँ ऑप्शन देने से पहले ही रोक देने पे और ज्ञान के चेहरे की मुस्कान की विशालता और आँखों की नमीं को देख आश्चर्य में डूबे अमिताभ बोल पड़े "जी..जी..बिल्कुल कहिए..क्या बात है...ज्ञान"

ज्ञान नौ साल पुरानी अपनी प्रतिज्ञा पूरी करते हुए कहता है "सर मैं चाहता हूँ कि आप मेरी ओर से एक घोषणा कर दें कि प्रोफेसर बालमुकुंद मिश्रा आपका शिष्य 'ज्ञान' आपकी दी हुई 'शिक्षा' से छह करोड़ तिरानबे लाख साठ हजार रुपये अधिक जीत चुका है"

-तुषार सिंह 'तुषारापात'