Monday 1 August 2016

ताजमहल

"आह..इट्स ब्यूटीफुल..चाँदनी में नहाया हुआ ताज कितना सुन्दर लगता है..है न वेद" यमुना की तरफ वाली एक मीनार के नीचे खड़े थे हम वहीं से ताज को निहारते हुए उसने मुझसे कहा

"हम्म..बहुत..." मैंने धीरे से कहा और एक नजर ताज पे डाल पहले की तरह फिर उसे देखने लगा काली साड़ी में लिपटी वो खुद ताजमहल लग रही थी,गोरा चेहरा रात के अंधेरे और पूर्णमासी की चाँदनी की मिलावट से स्लेटी लग रहा था,हलकी सर्द हवा उसकी खुली जुल्फों को बार बार उड़ा रही थी ऐसा लग रहा था कि इस काले ताजमहल की कई मीनारें उसके चारों ओर झूल रही हैं शाहजहाँ अगर तुम जिन्दा होते तो आज फिर मर जाते तुम्हारा काले ताजमहल का अधूरा सपना जीता जागता यहाँ खड़ा है

सर्द हवा से बचने को उसने साड़ी के पल्लू को अपने चारों ओर लपेट लिया और बोली "पूरनमासी को...चाँद के लोग ताजमहल का दीदार कर कहते होंगे..वो देखो..आज चाँद निकला है...आज तो दो दो चाँद हैं एक आसमान में और एक यहाँ आगरे में..."

"तीन.." मैंने कहा और उसने ताजमहल को देखना छोड़ के मेरी ओर देखा और मुझे खुद को देखते हुए पाया उसने अपने निचले होंठ को हल्का सा चुभलाया और चेहरे पे उड़ आई ज़ुल्फ को कान के पीछे करते हुए बात बदलती हुई बोली "ये हदीस भी न..कितना घुमायेगा उन लोगों को...तुम्हारी कंपनी को भी..तुम दोनों ही मिले थे..फॉरेन डेलीगेट्स को ताज की सैर कराने को...और कितना टाइम लगेगा"

"आयत...खुर्रम को मुमताज महल मिली थी और वो बादशाह हो गया..या ...वो शाहे जहाँ था इसलिए मुमताज उसकी थी.." मैंने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया बल्कि अपना वही पुराना सवाल उससे कर दिया

"वेद...पता नहीं...मुमताज को जीते जी तो बहुत सौत रहीं थीं..हाँ मरने के बाद उसे ये हसीं ताजमहल मिला... बादशाहों के प्यार की कीमत मुमताजों की मौत होती है" मुझसे नजरें हटा वो फिर से ताज देखने लगी उसकी आँखों में उतर आयी यमुना में दो ताजमहल साफ चमकते मुझे दिखे

"किसी मुमताज को आजतक ताज बनवाते देखा नहीं...ये तो हम ही पागल होते हैं जो ताज बनवाते हैं..." मैंने एक मीनार सी उसके सीने में चुभो दी

"हाँ शायद इसीलिए तुम दूसरा ताज नहीं बनवा पाए...क्योंकि ये मुमताज तुम्हारे लिए मरी जो नहीं..."उसने जैसे कोई पुरानी कब्र खोल दी

"मैं तो नहीं बनवा सका..पर तुमने खुद को ताजमहल जरूर बना दिया... अपने सीने में मेरा प्यार दफना के...मेरा मकबरा हो तुम..आयत..मैं दफ्न हूँ तुममें... और मेरी भटकती रूह रोज देखती है अपने इस ताज को किसी और चाँद की रौशनी में नहाते हुए" कहकर मैं उसके पति और अपने कुलीग हदीस की ओर बढ़ चला,विदेशी मेहमान ताज देख चुके थे।

-तुषारापात®™