Friday 6 November 2015

दिवाली की सफाई

दिवाली आने वाली है,बचपन में तो त्यौहार का मतलब नए नए कपड़े, मिठाई और पटाखों का मिलना भर होता था,10 दिन पहले से रोज माँ से पूछना कब है दिवाली,कब है दिवाली ?
ताऊ जी और दादी को देखता था तो उनके लिए दिवाली का त्यौहार मतलब पूजन,लक्ष्मी पूजा की तैयारी वो बड़ी जोर शोर से किया करते थे।
खैर मैं अब न उतना छोटा रहा और न ही ताऊ जी के जितना बड़ा हो पाया हूँ तो उम्र के इस मुकाम पे मेरे लिए दिवाली का मतलब है घर की सफाई, हाँ भाई दिवाली पे सबसे ज्यादा मजा आता है पूरे घर को साफ़ करने में और वो भी पत्नी जी के special comments and guidelines के साथ,
तो साहब सबसे पहले बारी आती है उस जरुरी सामान की जिसे हर बार की सफाई के बाद सहेज के इसलिए रख लिया जाता है की वो कभी आगे काम आएगा ( जो शायद ही कभी काम आता है ) और हाँ अभी उसे हम कबाड़ नहीं कह सकते क्यूंकि अभी वो भविष्य में कभी काम आ सकने वाले सामान की स्थिति में है ,हर बार की तरह इस बार भी हम उसमे से कुछ सामान छाँट के निकाल देते हैं मतलब उसे कबाड़ घोषित कर कबाड़ी की राह देखते हैं और बाकी सामान को बड़ी अच्छी तरह झाड़ पोछ के अगली बार की दिवाली की सफाई में फेंकने के लिए रख देते हैं ।
भई हमारी आदत है हम कोई नयी चीज़ इसलिए इस्तमाल नहीं करते कि इस्तमाल करने से वो पुरानी हो जाएगी इसलिए उसे रखे रहते हैं फिर जब रखे रखे वो पुरानी हो जाती है तो उसे कबाड़ के रूप में कभी आँगन तो कभी दुछत्ती पे डाल देते हैं कि 5 साल तो काम आई नहीं पर आगे शायद कभी काम आये, फिर उसके साथ वही होता है जो ऊपर लिखा है ।
हम सोफा हो या साईकिल की गद्दी पहले तो मनपसंद रंग की बड़ा सर खपा के पसंद करते हैं फिर एक गन्दा सा कवर लाकर उसे ढके रहते हैं और तब तक ढके रहते हैं जब तक की अन्दर वाली गद्दी फट नहीं जाती मजाल है कि कभी अन्दर की गद्दी का असली रूप रंग कोई देख पाए।
हमारे आपके सबके घरों में ऐसे सामान भरे पड़े हैं जो कभी कोई काम नहीं आते पर हम मोह नहीं छोड़ पाते और उसे रखे रहते हैं
अरे भई हटाइए ऐसे सामान को ,बहुतों के वो बहुत काम आ सकता है उन्हें दे दीजिये और उस सामान की अच्छी हालत में दीजिये नाकि घर में रखे रखेे जब ख़राब हो जाये तब आप उसे किसी को दें और वो किसी के काम न आ सके,उसे कबाड़ न बनने दें ऐसा करके आप किसी की दिवाली खुशियों से भर सकते हैं
एक बात कहूँ दिवाली न धन की पूजा है,न पटाखों का शोर ,न रौशनी की सजावट और न ही मिठाइयों की लज्जत,दिवाली तो है सफाई का त्यौहार
मन की सफाई का और विचारों की सफाई का और ज्ञान रूपी लक्ष्मी का स्वागत करने का
तो इस दिवाली जलन,कुढ़न,लालच आदि के पटाखे फोड़तें हैं और कुत्सित विचारों को जलाकर खुद की सफाई करते हैं और सदविचारों के दियों की रौशनी में दिवाली मनाते हैं देखिये फिर कितना आनंद मिलता है।
(पिछले वर्ष fm रेनबो पर मेरा ये लेख RJ aparajita द्वारा प्रसारित हुआ था हमेशा की तरह डेट मुझे याद नहीं है पर पिछली दिवाली के कुछ दिन पहले की बात है )

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