Tuesday 20 October 2015

"एक थाली दो प्लेट और पाँच गिलास"

बाबू विश्वनाथ तखत पे बैठे बैठे अपनी छड़ी से कच्ची जमीन को कुरेदे जा रहे थे और उनका मन यादों की सुरंग के भीतर और भीतर कहीं चला जा रहा था••••••••••••••••••••

•••आह..कितनी भव्य हुआ करती थी ये शारदीय नवरात्र की महाष्टमी पूजा, अष्टमी की पूजा क्या..कुलदेवी की पूजा, सारे इसे बस 'पूजा' कहते थे
पूरा खानदान इस दिन यहाँ,पुरखों के इस घर में,इकठ्ठा होता था..
मेरे सातों सगे भाई,भाइयों के बीवी बच्चे,सारे चाचा ताऊ और उनके पुत्र और उनके पुत्रों के बच्चे भी कानपूर लखनऊ और अन्य जगहों से पूजा में जरूर आते थे ऐसा लगता था मानो कोई विवाह जैसा बड़ा आयोजन हो रहा हो पूरे कस्बे में लोग चर्चा करते कि परिवार में एकता हो तो विश्वनाथ ठाकुर के परिवार जैसी•••••
खानदान में सबसे बड़े होने के नाते इस पूजा का उत्तरदायित्व विश्वनाथ बाबू को ही प्राप्त था घर का सबसे बड़ा बेटा या सबसे छोटा पुत्र ही इस पूजा के लिए भवानी माँ का सेवक हो सकता था और पुरे खानदान के सिर्फ लड़के ही इस पूजा में शामिल हो सकते थे घर की लड़कियों के लिए ये पूजा देखना तक वर्जित था, हाँ घर की बहुएँ वगैरह पूजा के कार्यों जैसे प्रसाद बनाना और भोजन बनाना आदि कार्य करती थीं क्योंकि पूजा में हवन के तुरंत बाद ही भोजन ग्रहण करने की परम्परा थी घर के पुरुष हवन स्थान से थोड़ा दूर पंगत में बैठते थे और घर की औरतें भोजन से सजी थालियां लगाती थीं
विश्वनाथ बाबू के पिताजी अपने कुल में सबसे बड़े पुत्र थे उनके बाद उनके सारे चाचा ताऊ के परिवार में विश्वनाथ बाबू ही सबसे बड़े थे सो उन्हीं को अपने घर में नौ दिनों के लिए जगदम्बा को कलश में थामने का सौभाग्य मिला था
पर धीरे धीरे समय बदलता गया और उनके भाइयों में कुछ रहे कुछ चल बसे,भाइयों और चाचा ताऊ के बाद उनके पुत्रों का आना पहले तो कम हुआ और फिर न के बराबर हो गया फिर भी विश्वनाथ बाबू अपने पुत्रों के साथ इसका आयोजन करते रहे हाँ अब इसका वो विशाल स्वरूप न रहा था
आज भी महाष्टमी है पर अब विश्वनाथ बाबू पचहत्तर वर्ष के हो चुके हैं उनके अपने पाँचों पुत्र अब उनकी रत्ती भर नहीं सुनते उनका सबसे बड़ा लड़का सोमनाथ घर का पहला पुत्र होने के नाते बहुत लाड़ प्यार से पला था फलतः वो निरंकुश हो शराब आदि दुर्व्यसन में लिप्त रहने लगा, आज भी वो नशे में पड़ा हुआ है एक अरसा हुआ विश्वनाथ बाबू उससे कोई आशा रखना छोड़ चुके हैं , चूँकि मझले बेटों को पूजा का दायित्व दिया नहीं जा सकता था तो छोटे बेटे ओमनाथ के गले में ये घंटी उन्होंने बाँधी
उनके सारे पुत्रों के बीच मुग़ल बादशाह शाहजहाँ के पुत्रों की तरह जबरदस्त झगड़ा फसाद हुआ करता है कोई दूसरे को फूटी आँख न सुहाता है घर में ही पाँच भोजनालय खुल गए हैं (सबके चूल्हे अलग हो गए हैं)
घर की ये दुर्दशा देखकर विश्वनाथ बाबू को काफी पहले की एक बात रह रह कर याद आती रहती है जब उनके भाई की पाँच साल की पोती ने बड़े भोलेपन से उनसे पुछा था-" दादाजी..दादाजी..ये बताइये हम ये पूजा क्यों नहीं देख सकते?"
हालाँकि विश्वनाथ बाबू इस रसम को पसंद नहीं करते थे पर खानदान के रिवाज में बंधे थे सो उन्होंने उससे कहा था-"वो इसलिए मेरी रानी बेटी क्योंकि ये कुल देवी की पूजा है और इसे सिर्फ लड़के करते हैं लड़कियाँ तो दूसरे घर की होती हैं न"
तब वो बच्ची तपाक से बोली थी-" पर दादाजी..हम लड़कियाँ ही तो देवियाँ हैं और आप हमको ही हमारी पूजा से दूर रखते हैं तो क्या आपकी पूजा पूरी होगी ?" विश्वनाथ बाबू को आज भी यही लगता है कि उस दिन माँ जगदम्बा ही उनसे ये कह गईं थीं और उन्होंने उनका कहना नहीं माना इसलिए माँ का श्राप उनके कुल पे लग गया जो इतने बड़े परिवार की आज ये दशा है
खैर ओमनाथ ने पूजा आयोजित की,बड़े भाई को छोड़ के उसके सारे भाई अपने पुत्रों समेत शामिल हुए क्योंकि अभी विश्वनाथ बाबू ने वसीयत जो नहीं की थी हाँ ओमनाथ का एक चचेरा भाई भी पूजा में आया है,
हवन हो चुका है सब प्रसाद चख चुके हैं आज किसी भी लड़के के यहाँ भोजन नहीं बना है सब खाने की आस में बैठे हैं
पर ओमनाथ मन ही हिसाब लगा रहा है..एक पिताजी की, एक चचेरे भाई रामनाथ की, मैं और मेरे दोनों लड़के तो पम्परा के अनुसार एक ही में हो जायेंगे और जोर से चिल्लाके अपनी पत्नी को आवाज लगाता है-"पार्वती..एक थाली..दो प्लेट..और पाँच गिलास लगाओ"

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Wednesday 14 October 2015

फलाहारी चिकन तंदूरी

व्रत की पकोड़ी, व्रत के चिप्स,पापड़,और तो और फलाहारी पूरी थाली बाजार में अब उपलब्ध हैं
थोड़े दिन और रुकिए सेंधा नमक से बने चिकन तंदूरी और व्रती मटन कोरमा भी मार्केट में जल्दी मिलेंगे।

नवरात्रि स्पेशल फलाहारी -'तुषारापात'®™

Sunday 11 October 2015

कार्बन का पर्दा

कलम और ऐतबार ?
वो लिखता है एक कागज पे,दो पे छपता है
कलम दो कागजों के बीच कार्बन का पर्दा रखता है

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Saturday 10 October 2015

दाँतों के निशान

तारीफ में कह जाते हो तुम जिसे वाह बड़ा 'गहरा' लिखा है
कागज के सफ़ेद गालों पे कलम के दाँतों के नीले निशान हैं वो

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सलवटें

तुम्हें दिखती हैं जो इबारतें
कलम की अंगड़ाइयों से बनी
कागज की सलवटें हैं वो

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Wednesday 7 October 2015

कुछ मीठा हो जाए


आप लोगों ने वो कहानी तो सुनी/पढ़ी ही होगी जिसमे सारस और लोमड़ी एक दुसरे को दावत पर बुलाते हैं सारस लोमड़ी को दावत देता है तो खाना परोसता है सुराही में (सुराही अपनी जगह fix रही होगी ) अब सारस तो अपनी चोंच से खाना खा जाता है पर लोमड़ी बेचारी सुराही में कैसे खाती खैर फिर लोमड़ी ने दावत दी सारस को और खाना परोसा थाली में अबकी सारस बाबु भूखे रह जाते हैं,बचपन में सबने सुनी होगी ये कहानी
अब आते हैं असली कहानी पे

भई मेरी और पत्नी ट्विंकल की खाने पीने की पसंद और आदतें बहुत अलग अलग हैं उन्हें हद से ज्यादा रसीली सब्जी पसंद है (शायद वो प्रयाग से हैं जहाँ तीन तीन नदियों का संगम है इसलिए ऐसा हो ;) ) और मुझे पसंद है सूखी सब्जी खूब भुनी हुयी (हमारे यहाँ की गोमती नदी की भी हालत आजकल ऐसी ही है) तो एक दिन मेरी पसंद का खाना बनता है तो दूसरे दिन पत्नी जी की पसंद का (ये नहीं बताऊंगा की बनाता कौन है शादीशुदा सब समझदार हैं समझ ही लेंगे) तो जिस दिन जिसके मन का खाना नहीं बनता तो वो उस दिन थोड़ा कम खाना खाता है और उसकी भरपाई के लिए kitchen में कुछ मीठा ढूंढता है मिठाई हो या बिस्किट वैगरह वैगरह।

कल रात परवल आलू की रसीली सब्जी बनी,यकीन मानिये इतनी रसदार कि कटोरी में गंगा माँ साक्षात् थीं खैर हम चुपचाप हर हर गंगे कर लिए और कुछ मिठाई ढूंढी वो भी न मिली (badluck बड़ा अच्छा है हमारा)
अब भाई आज बनी सूखी सब्जी वो भी सोया-मेथी आलू की और साथ में पराठे अब अपने राम तो फटाफट मन से पूरा खाना खा गए अब बारी ट्विंकल जी की थी जो बेचारी बड़ी मुश्किल से एक एक कौर निगल रहीं थी फिर बड़ी मासूमियत से बोलीं (इसी बात से ये पोस्ट लिखने का विचार इस नाचीज को आया) कि "सोन पापड़ी घर में रखी जा सकती है वो जल्दी ख़राब भी नहीं होती", इतना सुनना था की हम दोनों पूरी बात समझते हुए खिलखिला के हँसते हँसते खाने की मेज पे लोटपोट हो गए ,
इन्ही खट्टे मीठे लम्हों से गृहस्थी का सुख है।
फिर मन में विचार आया की यही हम जिंदगी के साथ करते हैं जो मन का होता जाये वो तो ख़ुशी ख़ुशी स्वीकार करते हैं और जो मन का नहीं उससे भागते हैं और दुःख का रोना रोते हैं और मिठाई वाले (किसी ज्योतिषी/ताबीज वाले बाबा) के पास जाते हैं। मिठाई भोजन का छोटा सा विकल्प हो सकती है परन्तु सम्पूर्ण भोजन नहीं बन सकती । तो ज्यादा मीठा खाओगे तो डाईबीटीज हो जाएगी भईया फिर न कहना की बोले नहीं थे।
तो इसी बात पे कुछ मीठा हो जाए ;)

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Monday 5 October 2015

चाँद की रिश्वत

कहना चाहा स्याह रात ने जब उजले दिन का सच
ख़ुदा ने उसके होंठो पे चमकीला चाँद रखा और खामोश कर दिया

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Sunday 4 October 2015

अपमान के काँटे और सफलता के फूल

कदम कदम पे अपमान के काँटे चुभोने वालों से मैं खूब बदला लेता हूँ
मैं उन्हें अपनी हर सफलता के फूल भेज देता हूँ।

-तुषारापात®™