Tuesday 29 November 2016

आलपिनों की मूठें

आओ बैठें साथ जरा देर
किस्सों के आँगन में
अल्फ़ाज़ों से बुनी चटाई पे
धूप का हुक्का पीते हैं
फिर शाम उतर आएगी
रात की बाहें थामे हुए
ओस की नन्हीं बूँदों से
इन दोनों आँखों में
इक इक माला बन जायेगी
चाँद के हवन कुंड में
सूरज जब आएगा
उनचास फेरों के बाद
फिर पग फेरे को
तुम अपने घर चली जाना
हर दफे टूटता ये ख्वाब
हर बार एक सितारा बढ़ता है
ऊपरवाले के ब्लैकबोर्ड पे
फिर नई अर्जी टँकती है
जो दिखती सितारों की पट्टी
वो आसमान के सीने पे
चमकती आलपिनों की मूठें हैं।

#तुषारापात®™

Monday 28 November 2016

समय सारणी

"छी.. कितना गन्दा है...कभी साफ भी कर लिया करो..तुम्हारे रूम में कोई एक चीज है जो अपनी जगह पे हो...ये क्या है... यक.. सिगरेट के इतने सारे फिल्टर ग्लास में बची हुई चाय में तैर रहे हैं..." सारणी को उसके रूम में आए दो मिनट बीते थे और वो चार बातों पे उसकी क्लास ले चुकी थी

"मैडम...बैचलर्स के रूम ऐसे ही होते हैं...जब हमारी कोई गर्लफ्रेंड न हो तो लड़कियों के पीछे पीछे भागने में और अगर हो जाए तो उसे घुमाने शॉपिंग कराने में ही सारा टाइम निकल जाता है...अब लड़के लड़की सेट करें या रूम" समय ने उसकी कमर पे चुटकी काटने की कोशिश की पर वो एक तरफ हट गई

"तो क्या...हम लड़कियाँ भी तो उतने टाइम बाहर रहती हैं..फिर भी कॉलेज और बॉयफ्रेंड दोनों को मैनेज करने के साथ रूम भी सेट रखती हैं" कहकर सारणी ने सिगरेट फिल्टर्स को बाहर फेंका और ग्लास को धो के रख दिया उसके बाद बेड पे पड़े उसके कपड़े तह करके अलमारी में रखे इधर उधर पड़े न्यूज पेपर्स समेट दिए और कमरे को जितना भी सुधारा जा सकता था उतना सुधार दिया

"लड़कों को और भी कई टंटे होते हैं जो सेटल करने होते हैं..कोई मुंहबोली बहन को छेड़ रहा हो तो उसे अच्छे से समझाना या आएदिन किसी न किसी भाई का दिल टूटता रहता है तो हमें उसके लिए बीयर की बोतलों का काँधा भी अरेंज करना होता है..और पूरी पूरी रात बैठ कर साले की बकवास से भरी पूरी प्रेम कहानी बार बार सुननी होती है...तुम क्या जानो तुम लड़कियों ने हमारा जीवन कितना अस्त व्यस्त कर रखा है...लेकिन फिर भी चूँ तक नहीं करते...और मेरे केस में तो तुमने वो बात तो सुनी ही होगी कि समय बड़ा बलवान होता है" समय ने डायलॉग मारा और सिगरेट मुँह से लगाकर सुलगाने को माचिस ढूंढने लगा

सारणी अपने होंठ उसके होंठों के पास ले आई समय ने सोचा कि शायद आज उसकी किस्मत खुल गई है और उसने अपने होंठ खोल दिए सिगरेट नीचे गिर गई और सारणी ने झट से सिगरेट उठाकर तोड़ के फेंक दी और उससे दूर होते हुए बोली "समय बलवान होता है पर अगर सारणी से बंधा न हो तो इधर उधर यूँ ही बेकार में खर्च हो जाता है"

समय ने उसका हाथ पकड़कर उसे अपने पास बैठा लिया और धीरे से उसके नजदीक जाकर बोला "रूम में सफाई के अलावा कुछ और..काम..भी किये जा सकते हैं" सारणी ने उसे जोर का धक्का देते हुए कहा "हाँ रूम में कुछ खाने को बनाया जा सकता है"

"लग रहा है मैं अपनी गर्लफ़्रेंड को नहीं...माँ को ले आया हूँ.... बनाओगी क्या..सिर्फ मैगी और चाय बनाने का जुगाड़ है अपने पास" उसने एक कोने में पड़े मैगी के पैकेट की ओर इशारा करते हुए कहा सारणी ने दो पैकेट उठाए और एकमुखी चूल्हे पर जो सिलेंडर से ही जुड़ा रहता है उसपर पानी गर्म होने को पैन चढ़ा दिया

"मैगी ही खाना था तो बाहर ही खा लेते...रूम में आकर कोई गर्लफ्रेंड खाना बनाती है क्या" समय ने बनावटी गुस्से वाली शक्ल बनाते हुए कहा

"खाना खाना बनाएंगे तभी तो हमारी 'समय-सारणी' बन पायेगी" सारणी ने उसे बाँहों में लेते हुए कहा

मैगी बनने में दो मिनट लगते हैं इन दो मिनट में समय सारणीबद्ध हो रहा था।

#समय_सारणी
#तुषारापात®™

Monday 21 November 2016

चाँद पर लिखना छोड़ दो

"सुनो...कोई फिर से चाँद खुरच रहा है.." बारह बजे रात मेरे कान में फुसफुसाती है,मैं लिखना छोड़ के ऐसी कोई आवाज सुनने की कोशिश करता हूँ काफी देर चाँद की ओर कान लगाए रहने के बाद भी जब कुछ नहीं सुनाई दिया तो उसको डाँटते हुए कहता हूँ "रात!..तेरे इन सारे हतकंडो से वाकिफ हूँ मैं...देख...काम करने दे मुझे... तंग मत कर"

वो सहम के चुपचाप घड़ी की सुई पे जाकर बैठ गई मैं फिर से लिखने लगा अभी आधी ही लाइन लिखी थी कि वो फिर से बोली
"ये देखो...चाँद चीख रहा है...आह!...कितनी जोर जोर से...सुनो तो...सुनो..जरा" मैं लिखता रहा मेरे लिए ये रोज की बात है रात हमेशा मुझे लिखने से रोकने को कुछ न कुछ करती रहती है

"सच कह रही हूँ...जरा सुन तो...बस एक बार उसकी दर्द में डूबी आवाज सुनने की कोशिश तो कर...उफ़ इसकी ये चीखें मुझे सोने नहीं देती....ओ कलम घिसने वाले...सुन...चाँद की चीखें रात को सोने नहीं देती...नहीं सोने देती..."उसकी आवाज ऐसी थी जैसे किसी अपने के दुःख में डूबा और भीगा कोई कई सदियों से सोया न हो,लिखना छोड़ कर पता नहीं क्यों मैं इस बार बहुत ही धीमी आवाज में उससे बोला "पर ऐसी कोई चीख मुझे क्यों नहीं सुनाई देती..."

मेरे लहजे में आई नरमी से उसकी हिम्मत बढ़ी "तुम चलोगे उसके पास...देखना चाहोगे...चाँद को चीखते हुए"

"ह..हाँ..पर कैसे?" मैंने हड़बड़ाते हुए पूछा

वो बड़ी वाली सुई से उतर के पेंडुलम पे आके बैठ गई और मुझे अपना हाथ देते हुए बोली "बस तुम इस घड़ी के पेंडुलम पर नजर जमाये रखना...मैं इसपर तुम्हें बिठाके चाँद के पास ले चलूँगी"

और अगले ही पल हम चाँद पे थे,मैंने देखा चाँद की पीठ पे बहुत सारे जख्म थे जैसे किसी आदमी की पीठ पे चाकू छुरी तलवार वगैरह से सैकड़ों वार किए गए हों उसके कुछ जख्म पपड़ी बनकर सूख चुके थे कुछ गहरे थे तो कुछ हल्के हल्के से थे एक बिल्कुल ताजा घाव था जिससे चाँदनी रिस रही थी चाँद कराह रहा था

मुझे देखते ही वो रुआँसा हो कहने लगा "तुम्हारी और मेरी एक जैसी है मैं अपनी पीठ पे धूप झेलता हूँ और चाँदनी देता हूँ और तुम अपने सीने में जख्म रखते हो और कहानी कहते हो...दुनिया हमारे मुस्कुराते चेहरे देखती है..पर भीतर के जख्म नहीं...पर मेरे भाई तुमको तो मेरी चीखें सुननी चाहिए थीं..."

अपने हमजख्म से ये बात सुन मैं थोड़ा शर्मिंदा हुआ पर उसके जख्मों का क्या राज है इस जिज्ञासा में ज्यादा था उससे पूछा "पर तुम्हें ये इतने सारे जख्म किसने दिए?आखिर..ये माजरा क्या है?"

"तुम अभी क्या कर रहे थे....?" उसने मेरे सवाल के जवाब में सवाल किया, एक पल को मैं चौंक गया और अगले ही पल राज जान गया बस पक्का करने को उससे एक बात पूछी "ये जो जख्मों के बीच ...थोड़ी थोड़ी...मरहम पट्टी दिख रही है..वो..गुलजार ने की है?"

उसने कोई जवाब नहीं दिया पर उसके लबों पे आई दर्द के साथ हलकी सी मुस्कुराहट ने मुझे गहराई से सब समझा दिया,रात मुझे वापस मेरे कमरे में ले आई,मेज पर रखी अपनी डायरी के जिस पन्ने को लिखते लिखते अधूरा छोड़ गया था डायरी से उसे नोचा और उसके टुकड़े टुकड़े करके डस्टबिन में फेंक दिए...चाँद की चीखें बंद हो चुकी थीं...रात अब चैन से सो रही है।

#चाँद_पर_कलम_नश्तर_की_तरह_चलते_हैं
#चाँद_पर_लिखना_छोड़_दो
#तुषारापात®™

Tuesday 15 November 2016

उस्ताद-ए-फन-ए-रेख़्ता

हम मस्जिद से क्या जुदा हो गए
इबादती सारे खुद खुदा हो गए

लड़खड़ातें हैं जो एक जाम में
उनके अपने मयकदा हो गए

तुम्हारी बातों में लगता है दिमाग कहकर
वो किसी कमअक्ल पे फिदा हो गए

खींचते हैं कागज पे तिरछी लकीरें
और उस्ताद-ए-फन-ए-रेख़्ता हो गए

लिखने वालों की इक भीड़ सी लगी है
'तुषार' तुझे पढ़ने वाले लापता हो गए

#तुषारापात®™


Sunday 13 November 2016

विचार और तुषार संवाद

आए हो तुम तो तुम्हारा क्या करूँ
कथा का निर्माण या कविता रचूँ

करतल ध्वनि सुनने आते हो तुम
प्रशंसाओं पे झूमते इतराते हो तुम
अभिनंदन हो तुम्हारा चहुँ ओर
नाम भर के लिए मैं माला धरूँ

कि जैसे क्रीड़ा पश्चात धूल-धूसरित
कोई बालक माँ के समक्ष उपस्थित
ठूँठ से मेरे सामने आ बैठे हो तुम
कब तक श्रृंगार तुम्हारा करता रहूँ

काल के चक्र से परे होते हो यूँ
कालजयी होने को आते हो क्यूँ
किलकारियाँ तुम्हारी गूँजे जग में
और मैं तुम्हारे जनन की पीड़ा सहूँ

जिसके मुख से तुम हुए हो उत्पन्न
जाओ जाकर उससे कहना ये कथन
तुम महत्वपूर्ण हो अगर मैं नगण्य
क्यूँ ऋचाओं से मैं वेद रचता रहूँ

आए हो तुम तो तुम्हारा क्या करूँ
कथा का निर्माण या कविता रचूँ......

#विचार_और_तुषार_संवाद #क्रमशः
#तुषारापात®™

Thursday 10 November 2016

श्याम धन पायो


"सुनो! सुनो! सुनोSSSS....महाराज के आदेश से! आज मध्यरात्रि से! वर्तमान में प्रचलित सभी मुद्राएं! अमान्य कर दी गई हैं! सभी नागरिकों को यह आदेश दिया जाता है...कि आगामी भोर...और देव प्रबोधिनी एकादशी संध्याकाल तक की मध्यावधि में अपनी समस्त मुद्राओं के नवीनीकरण हेतु राजकोषागर से संपर्क करेंSSS....सुनो! सुनोSSSS......." इस नगर ढिंढोरे से सभी नागरिकों,छोटे बड़े समस्त व्यापारियों में हलचल मच गई..सम्पूर्ण प्रजा सकते में आ गई पग पग पर व्यक्तियों के समूह आकस्मिक हुई इस राजाज्ञा का अर्थ समझने का प्रयास करने लगे कुछ फक्कड़ मलंग व्यक्ति कोरी प्रसन्नता में धनीकों का उपहास करते भी दिख रहे थे कुल मिलाकर चहुँओर कोलाहल था भय व कौतूहलता सभी के मुख मंडल पर छाई थी।

अगले दिवस राज्यसभा लगी समस्त मंत्रीगण और राज्य के प्रतिष्ठित वैश्य वर्ग के प्रतिनिधि वहाँ विराजमान थे विमुद्रिकरण की इस राजाज्ञा से अचंभित सभी मझले व लघु उद्योग व्यापारी भी राजसभा में उपस्थित थे संभवतः नगर के समस्त नागरिक भी राजा के वचनों को सुनने आये थे राजा ने उच्च स्वर में औपचारिक सूचना आरम्भ की "राज्य में..अवैध मुद्रा का प्रचलन अधिक होता गया है जिसके परिणाम स्वरूप महंगाई में वृद्धि, आवश्यक वस्तुओं की उपलब्धता का संकट गहराता जा रहा है.. तथा धनिकों के पास बिना कर भुगतान की बहुत सारी चल संपति संग्रहित होती जा रही है...अतः इस संकट से अर्थव्यवस्था को उबारने हेतु ये कठोर निर्णय राज्य पर आरोपित हुआ है" सबने सुना अधिकतर सहमत हुए जो नहीं भी सहमत थे वो राजाज्ञा के सामने विवश थे सभी साधारण-विशिष्ट व्यक्ति मुद्रा नवीनीकरण नीति को समझने लगे जिसका विस्तृत वर्णन राजा की आज्ञा प्राप्त होते ही कोषागार मंत्री महोदय सभा को कर रहे थे।

मंत्री की नीति सुनकर समस्त प्रजा को पूर्ण विश्वास हो गया कि अब काला धन और अवैध मुद्रा का अस्तित्व न रहेगा परन्तु पट के पार्श्व में भी कई क्रीड़ाएं होती हैं जो दर्शकों को दृश्य नहीं होतीं।

उसी राज्य में एक अत्यन्त प्रभावशाली बहुत ही धनी और चतुर व्यापारी था उसके अधिकार में राज्य की एक मात्र नदी आती थी जिसके जल का वह व्यापार करता था और इस व्यापार के कर का भुगतान समय से राजकोष में कर देता था। यद्यपि उस विशाल राज्य में कई ताल और नम भूमि क्षेत्र थे जिसमें जल उपलब्ध रहता था तथा उनपर कई अन्य छोटे व्यापारियों का अधिकार था परंतु वह ताल पोखर इत्यादि का जल दूषित होता था ,उस राज्य में यही परम्परा थी वहाँ जल का विपणन उच्च मूल्य पर होता था उसपर नदी के जल का मूल्य सर्वाधिक हुआ करता था।

इस मुद्रा के अप्रचलन की घोषणा के लगभग तीन मास पहले चतुर व्यापारी ने अपने अधिकार में आने वाली नदी से सभी नागरिकों को किसी भी मात्रा में जल वो भी बिना किसी मूल्य किसी शुल्क के ले जाने की अत्यंत कल्याण कारी योजना का आरम्भ किया परन्तु उसकी अवधि योजना आरम्भ की तिथि से मात्र तीन मास तक ही थी उसके उपरांत प्रत्येक नागरिक व्यापारी को मूल्य चुकाकर ही जल प्राप्त कर सकेगा इस नियम का उल्लेख भी उसके द्वारा किया गया।

जल ले जाने के लिए प्रत्येक नागरिक को उस व्यापारी द्वारा विशाल कुम्भ भी नि:शुल्क वितरित किये गए यहाँ तक की अगर कुंभ फूट जाता (जो कि प्रायः होता ही था क्योंकि मृदापात्र थे) तो नि:शुल्क नया पात्र उस नागरिक को व्यापारी द्वारा प्रदान किया जाता था चहुँओर उस देवता स्वरूप व्यापारी का गुणगान हो रहा था।

अब तीन मास पूर्ण हो चुके थे उस व्यापारी की नि:शुल्क जल योजना का समापन आज हो चुका था और गत दिवस से मुद्रा का नवीनीकरण भी किया जा चुका था अब नगर वासियों को नवीन मुद्रा द्वारा व्यापारी के द्वारा तय किये गए उच्च मूल्य पर जल क्रय करना होता था साथ ही व्यापारी की नीति ये भी थी कि उसके यहाँ से लिये पात्र में ही जल का विक्रय होगा उस पात्र का मूल्य भी वही निर्धारित करता था जो कि सामान्य से बहुत अधिक था राज्य के निवासी जल जैसे जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक पदार्थ को पहले से बहुत अधिक मूल्य पर उस व्यापारी से क्रय करने को विवश हो गए।

उस व्यापारी का समस्त श्याम धन अब श्वेत हो रहा था क्योंकि उसने अपनी समस्त पुरानी मुद्रा को योजना लागू करने में समाप्त कर दिया था और अब उसे नवीन मुद्रा की प्राप्ति हो रही थी जिसपर वो कर भी चुका रहा था। उधर सामान्य नागरिक,श्रमिक वर्ग, कृषक आदि मुद्रा नवीनीकरण के जटिल नियमों तले दबे हुए थे खुदरा व्यापार ठप होने से लघु व्यापारियों के हस्त से समस्त व्यापार निकलता जा रहा था समस्त लघु-वृहद व्यापार क्षेत्र पर बड़े व्यापारियों का अतिक्रमण हो रहा था।

राजा ने जो नवीन मुद्रा का प्रचलन आरम्भ करवाया था वह पिछली मौद्रिक इकाई से अधिक इकाई की थी इससे अवैध मुद्रा बनाने वालों को भी पहले से अधिक लाभ होने लगा यद्यपि राजा के विश्वासपात्र कर्मचारियों ने प्रजा में यह डर बिठाया था कि नवीन मुद्रा के प्रत्येक सिक्के पर राजा के आदेश से राजपुरोहित ने एक राक्षसी को सूक्ष्म रूप में अभिमंत्रित कर दिया है जो सिक्कों के अवैध प्रतिरूप बनाने वालों को खा जायेगी परन्तु इसके बाद भी अवैध सिक्के बनते रहे।

आर्श्चयजनक रूप से राज्य के सभी मंत्री व प्रमुख धनिकों के द्वारा प्राचीन मुद्रा बहुत कम मात्रा में प्रदर्शित की गई परंतु उनके पास राज्य की अथाह भूमि और स्वर्ण धातु के भंडार थे जो वो अब विक्रय कर नवीन मुद्रा से अपने अपने कोष पुष्ट कर रहे थे और कर का भुगतान भी कर रहे थे।

राजा बढे हुए कर से प्रसन्न था,राज्य के मंत्री तथा प्रमुख व्यापारी भी अत्यन्त प्रसन्न थे उनके पास अब लेशमात्र भी काला धन नहीं था,राज्य से काला धन व अवैध मुद्रा दूर करने की ये महत्वाकांक्षी योजना राजा के अनुसार सफल रही थी।

देव जाग चुके थे परंतु उनकी योगनिद्रा का लाभ उठा कर लक्ष्मी जी के सिक्कों का रूपांतरण हो चुका था।

-तुषारापात®™

Wednesday 2 November 2016

हैण्डपम्प

"अब मैं तुम्हें अच्छी नहीं लगती है न" ये थोड़े से शब्द उसने अपने पति के कानों में डाले और फिर बहुत देर तक उससे अपनी तारीफ सुनती रही।

-तुषारापात®™

Tuesday 1 November 2016

खंजर/छुरी

"बताओ न..कैसी लग रही हूँ..लाल साड़ी में"

"कत्ल के बाद के खंजर जैसी"

"पर जनाब खंजर तो मेल होता है"

"ह्म्म्म..तो क़त्ल के बाद की छुरी जैसी"


#तुषारापात®™

बेवजह

"कभी बेवजह ही सही मिलने आ जाया करो"

"क्यों"

"मिलके जब जाते हो..लिखने की वजह बन जाते हो"
#तुषारापात