शाम होते ही,तुम
अपना एक
सोने का सिक्का
धरती की गुल्लक में
डाल जाते हो
रातभर, मुझसे
अपनी चाँदी की चिल्लर
खूब गिनवाते हो,
कहते हो इसी से,तुम
मेरी किस्मत बनाते हो
और सुबह होते ही
चिल्लर समेट के,तुम
बड़ी चालाकी से
सिक्का भी निकालके
भाग जाते हो
न मजूरी मिलती है
न ब्याज़ देते हो
उल्टे, वही सिक्का
आसमान में दिखा-नचा के, दिनभर
मुझे उसके पीछे भगाते हो।
~तुषार सिंह #तुषारापात®