Friday 2 September 2016

हारजीत

"बट सर फर्स्ट पेपर में मेरे इतने कम नम्बर कैसे आ सकते हैं...मैंने सारे क्वेश्चन्स के आंसर सही सही लिखे थे...और सर ये तो सिद्धांत ज्योतिष (गणित) का पेपर था जिसमे मार्किंग भी पूरी पूरी होती है" अपने सेकंड सेमेस्टर के रिजल्ट से नाखुश राघवेंद्र फोन पे अपने टीचर से बात कर रहा था

"आई एम ऑल्सो शॉक्ड राघवेंद्र...ओके यू मस्ट गो फॉर स्क्रूटनी" कहकर उन्होंने फोन डिसकनेक्ट कर दिया राघवेंद्र मायूस होकर अपना फोन देखता रह जाता है,उसके साथ ही बैठा उसका बैचमेट अभय सब कुछ समझते हुए बोला

"क्या बोला प्रोफेसर..स्क्रूटनी न...कुछ नहीं आएगा उसमें...कॉपियाँ यहीं जाँची जाती हैं...राघवेंद्र..तेरे साथ ये लोग ये सब जान के कर रहे हैं...पिछले सेमेस्टर में भी तेरे साथ ऐसा ही हुआ था...ये उस पवन उपाध्याय को आगे कर रहे हैं...वाइवा और प्रैक्टिकल में भी उसे सबसे ज्यादा नम्बर दिए गए हैं...जबकि पूरे क्लास को पता है उसे कितना आता है और तुझे कितना....ये हेड ऑफ डिपार्टमेंट का ब्राह्मणवाद है"

अगले दिन क्लास में वास्तु पढ़ाने वाली मैडम जिनका अधिक स्नेह था राघवेंद्र पर,कम नंबरों के बारे में उससे पूछती हैं तो वो बुझे मन से कहता है "मैम..आखिर कब तक हम बारहवीं शताब्दी तक के ज्ञान के आधार पे ज्योतिष पढ़ते रहेंगे..कोई उस ज्ञान को अपनी रिसर्च कर आगे क्यों नहीं बढ़ाता... आखिर तबसे अबतक मानव के रहन सहन जीवन यापन के साधन और उसकी सोच में जमीन आसमान का चेंज आ चुका है..आज भी जो लोग इसे आगे ले जाना चाहते हैं उन्हें ही पीछे किया जा रहा है...मैम.... ज्योतिष के लिए बस इतना ही कहना चाहूँगा कि..सुनहरे अतीत ने अपने को लोहे के निकम्मे वर्तमान को सौंपा था...भविष्य में जंग तो लगनी ही थी.."वास्तु वाली मैडम उसकी बात में छुपे दर्द को समझती हैं पर कुछ न कहकर क्लास को पढ़ाने लगती हैं

क्लास खत्म होने के बाद पवन राघवेंद्र से कहता है "तू खुद को क्या आर्यभट्ट या भाष्कराचार्य समझता है...देखना मैं यहाँ से पी०एच०डी० कर यहाँ ही प्रोफेसर हो जाऊँगा और साथ ही फलित की प्रक्टिस कर नोटों की खूब छपाई भी करूँगा...तू मुझे कभी हरा नहीं पायेगा.."राघवेंद्र उसकी बात सुन आगे बढ़ जाता है

इसी तरह तीसरे और चौथे सेमेस्टर का हाल रहता है राघवेंद्र सभी विषयों में तेज होने के बावजूद एम०ए० ज्योतिर्विज्ञान में दूसरे स्थान पे आता है, उससे काफी कम ज्ञान रखने वाला पवन प्रथम स्थान प्राप्त करता है।

उसके बाद दोनों नेट की परीक्षा पास कर पी०एच०डी० के लिए अपने अपने शोध प्रस्ताव ज्योतिर्विज्ञान विभाग को भेजते हैं पर सिद्धान्त में एक ही सीट होने के कारण सिर्फ पवन का प्रस्ताव ज्योतिर्विज्ञान कमेटी द्वारा स्वीकार किया जाता है राघवेंद्र पक्षपात के आगे बेबस रह जाता है

समय के अणु अत्यन्त गतिशील होते हैं राघवेंद्र की कोई भी खबर किसी के पास नहीं थी कोई कहता कि वो विदेश चला गया तो कोई कहता कि उसने मायूस होकर ज्योतिष की पढाई ही छोड़ दी,वहीं दूसरी ओर पवन अब डॉक्टर पवन हो चुका था वो यूनिवर्सिटी में लेक्चरर भी है और शहर का जाना माना ज्योतिषी भी है ज्योतिर्विज्ञान के हेड रिटायर हो गए थे और अब वास्तु वाली मैडम हेड ऑफ़ डिपार्टमेंट हैं

अगस्त के महीने का आखिरी सप्ताह चल रहा है ज्योतिर्विज्ञान के बी०ए० और एम०ए० का नया सत्र आरम्भ हो चुका है पवन को हेड मैडम बताती हैं "इस बार सिद्धान्त ज्योतिष के पाठ्यक्रम में कुछ नई किताबें भी पढाई जाएंगी अब चूँकि सिद्धान्त तुम ही पढ़ाते हो तो बेहतर है तुम इन किताबों से रुबरु हो लो"

"ओहो मतलब कुछ नई खोज भी हुईं हैं इधर..देखूं तो किसकी किताबें हैं.." कहकर पवन ने सामने रखी किताबों से पहली किताब उठाई जिस पर लिखा था 'भारतीय ज्योतिष: आधुनिक सिद्धान्त' वो पहला पन्ना खोलता है जिसपर लेखक की सिर्फ दो पंक्तियाँ लिखी थीं "मेरे उस सहपाठी को समर्पित जो कहीं किसी विश्वविद्यालय में अब आजीवन इस पुस्तक को प्रतिदिन पढ़ायेगा" पवन जल्दी से नीचे लिखे लेखक का नाम देखता है और बुदबुदाता है "राघवेंद्र सिंह..जर्मनी"

-तुषारापात®™