कुँए के साथ
यही होता है
प्यासा आता है
प्यास बुझाता है
चला जाता है
कुँआ
बाल्टी की चोट से उठी
उथल पुथल संभालता
कराहता ये सुनता रह जाता है
घमंडी कुँए तू
प्यासे के पास नहीं जाता है।
~तुषारापात®
तुषार सिंह 'तुषारापात' हिंदी के एक उभरते हुए लेखक हैं जो सोशल मीडिया के अनेक मंचों पे बहुत लोकप्रिय हैं इनके लिखे कई लेख, कहानियाँ, कवितायें और कटाक्ष सभी प्रमुख हिंदी अख़बारों में प्रकाशित होते रहते हैं तथा रेडियो fm पर भी कई कार्यक्रमो के लिए आपने लिखा है। कुछ हिंदी फिल्मों के लिए आप स्क्रिप्ट भी लिख रहे हैं। आप इन्हें यहाँ भी पढ़ सकते हैं: https://www.facebook.com/tusharapaat?ref=hl
कुँए के साथ
यही होता है
प्यासा आता है
प्यास बुझाता है
चला जाता है
कुँआ
बाल्टी की चोट से उठी
उथल पुथल संभालता
कराहता ये सुनता रह जाता है
घमंडी कुँए तू
प्यासे के पास नहीं जाता है।
~तुषारापात®
"आपके यहाँ तो समोसा भी साहित्यिक बनता होगा..मतलब जब पति-पत्नी दोनो ही इतना अच्छा लिखने वाले हों तो..हर बात साहित्यिक रूप में ही होती होगी"
"मेरे एक जानने वाले दंपति हैं..पति पत्नी दोनो स्थापित गायक हैं..एक बार जब मैं उनसे मिलने..उनके घर गया तो दरवाज़े से ही उन लोगों के झगड़े की बहुत तेज आवाज़ें आ रहीं थीं...आपकी इस बात से आज मुझे ज्ञात हुआ कि शायद उस दिन वो लोग सुर में झगड़ रहे थे"
"हाहाहा...इंटरव्यू मैं ले रहा हूँ..और खिंचाई आप कर रहे हैं..वैसे ये कहा जाता है कि चोटी पर एक ही जगह होती है..क्या कभी अभिमान फिल्म के जैसा कुछ..."
"हम्म एक ताजी घटना सुनिए..अभी कुछ दिनों पहले मेरी पत्नी ने अंग्रेजी में लिखा-
You fall in love
with a person's unique edition
at a unique moment
Edition is revised every year
but you expect the same version still...
Your fault.
मैंने उनकी इन पंक्तियों की तारीफ की और कहा कि इसका तो हिंदी अनुवाद होना चाहिए..तो उन्होंने कहा कि इसका हिंदी अनुवाद संभव ही नहीं"
"लीजिये वही बात आ गई यही तो मैं भी कह रहा था..ये अभिमान की बात हुई न..अपने लेखन की श्रेष्ठता और ईर्ष्या दोनो दिखीं"
"श्रेष्ठता और ईर्ष्या नहीं..बात प्रतिस्पर्धा की है..और प्रतिस्पर्धा कलात्मकता को निखारती है जिससे पाठक की जिज्ञासा बढ़ती है और साहित्य का उत्कर्ष होता है...मेरा मानना है कि अभिमान के पहाड़ होते हैं जिनकी चोटियाँ नुकीली होतीं हैं..सफलता का मैदान होता है...विशाल मैदान...आप इस मैदान पे जितना भी चलो..प्यास बुझाने को एक नदी का होना आवश्यक है..समय समय पर हम एक दूसरे को उकसा के अभिमान के पहाड़ पिघलाते रहते हैं..जिससे ये नदी बनी रहे..जिससे हम दोनों तृप्त होते रहें..और पाठकों को तृप्त करते रहें"
"मतलब आप दोनों एक दूसरे के वैद्य हैं...नुस्खों को खुद पे आजमाते हैं फिर पढ़ने वालों का साहित्यिक इलाज करते हैं..अब तो जिज्ञासा बहुत बढ़ गई..उनकी पंक्तियों का आपके द्वारा किया गया अनुवाद जानने की..चलते चलते सुना दीजिये..हम भी तो जानें कि आपका अनुवाद श्रेष्ठ था या उनकी पंक्तियाँ"
"श्रेष्ठ तो भाव ही होता है और सदैव रहेगा..अनुवादक उस भाव को अपने पाठकों की भाषा के परिधान में प्रस्तुत करने वाला माध्यम मात्र है..आपकी रिपोर्टरी फितरत की शांति के लिए..अनुवाद ये रहा-
वय का विशिष्ट क्षण
प्रियतम का अद्वितीय संस्करण
बढ़ा हृदय त्वरण,प्रेम में
कराता,हृदय का अवरोहण
हो जाता वह विशिष्ट संस्करण
ओढ़कर प्रतिवर्ष नव-आवरण
ढूँढते,हम वही प्रथम संस्करण
भूलकर क्यों,काल का आरोहण।"
~तुषारापात®
अनलाइक करके अपना अँगूठा वापस ले जाने वाले एकलव्य,ड्रोन बनकर पेज पर भ्रमण करते हैं।
#तुषारापात®
रहिमन वे नर तर गए जो 'सुंदरअभिव्यक्ति' कह जाईं
उनसे पहले वे तरे जिनके मुखसे कछु निकसत नाहीं
#तुषारापात®