पहाड़ पे आबे ज़मज़म देखा
उसके तकिये को नम देखा
*आब-ए-जमजम = मक्का के कुएं का पानी
~तुषारापात®
तुषार सिंह 'तुषारापात' हिंदी के एक उभरते हुए लेखक हैं जो सोशल मीडिया के अनेक मंचों पे बहुत लोकप्रिय हैं इनके लिखे कई लेख, कहानियाँ, कवितायें और कटाक्ष सभी प्रमुख हिंदी अख़बारों में प्रकाशित होते रहते हैं तथा रेडियो fm पर भी कई कार्यक्रमो के लिए आपने लिखा है। कुछ हिंदी फिल्मों के लिए आप स्क्रिप्ट भी लिख रहे हैं। आप इन्हें यहाँ भी पढ़ सकते हैं: https://www.facebook.com/tusharapaat?ref=hl
पहाड़ पे आबे ज़मज़म देखा
उसके तकिये को नम देखा
*आब-ए-जमजम = मक्का के कुएं का पानी
~तुषारापात®
हज़ार अफ़साने हैं तुझ हज़ारदास्ताँ के
अव्वल तू वो सुना जहाँ से शामिल मैं हूँ
~तुषारापात®
रोशनी देने वाले टांग दिए जाते हैं खम्बों पे
स्ट्रीट लाइट दिखतीं हैं मुझे ईसा की तरह
~तुषारापात®
देवताओं के लिए स्वाहा और राइटरों के लिए वाह वाह बहुत जरूरी है।
~तुषारापात®
लबों के पानदान से इश्क का बीड़ा चखाते हैं
वो अपनी कत्थई आँखों से खूब चूना लगाते हैं
~तुषारापात®
मुहब्बत में नहीं है काम अमित शाह होने से
उसी को अक्लमंद कहते रहेंगें भले राहुल गाँधी सनम निकले
-तुषारापात®
ख़्वाब अटके हैं रात की स्क्रीन पे
चाँद की डी वी डी पे स्क्रैच बहुत हैं
~तुषारापात®
उधार की रोशनी पे है चमकता
चाँद के जरूर सितारे खराब हैं
#तुषारापात®
वो शायर है नहीं मानेगा कि उसपर कंगाली है
जेब मे कलम लगा के कहेगा कि कहाँ खाली है
#तुषारापात®
जेब,तेरी ज़िन्दगी की तरह,पहले से ही खाली थी
और 'तुषार',ऊपर से तूने इसमें,कलम और लगा ली
#तुषारापात®
खाक के तेल से रौशन कंदील
मेरे चाँद से आज मुकाबिल है
जो जलता है आसमाँ के सीने में
वो सूरज नहीं हमारा दिल है
#तुषारापात®
लगा रहें हैं पोछा घर का फर्नीचर उठा उठा के
इतरा रहा है इतवार इश्क का शनिश्चर चढ़ा के
~तुषारापात®
तुम्हें
हराने की कोशिश
खामख्वाह न थी
ये
साजिश थी
तुम्हें जिताने की
तुम्हें
हार पहना के
तो लाए हैं
मगर
ये जीत है
ऐसी हमारी
तुम्हारे
नाम के 'पीछे'
अपना नाम लगाने की
~तुषारापात®
मेरी शख़्सियत को चुराने में जिन्हें ज़माने लगे
वो अक्स मेरे अब मुझे ही आईना दिखाने लगे
#तुषारापात®
मुझसे बड़ी अपनी शख़्सियत बताने लगे
अक्स मेरे मुझे ही आईना दिखाने लगे
#तुषारापात®