Thursday 27 July 2017

मेरा कुछ सामान (मेल वर्जन)

मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है
जेठ की तपती दोपहरियां हैं कुछ
पानी की बोतलों पे चिपके होंठ पड़े हैं
वो निशान मिटा दो मेरा वो सामान लौटा दो

बहारें हैं कुछ,देखो,हैं न
पेड़ों के नीचे कुचले वो पीले फूल पड़े हैं
मेहंदी से पहले जिनसे हथेलियां पीली की थीं
वो रंग छुटा दो,मेरा वो सामान लौटा दो

एक सौ सत्रह बरसातें,एक तुम्हारी तौलिये पे बिंदी
सौंधी सौंधी ज़ुल्फ़ की खुशबू,नींबू वाली चाय की चुस्की
जलते स्टोव की आँच में मेरे कुछ अरमान पके थे
वो अरमान दबा दो,मेरा वो सामान लौटा दो

एक अकेली चादर में जब आधे आधे जाग रहे थे
आँखें मूँदें,लब चूमें,आधी आधी बाहों में थे पूरे पूरे
सर्दियों की उस रात जो पी लीं थीं तुमने
मेरी वो साँसे कम पड़ गईं हैं
वो भिजवा दो,मेरा वो सामान लौटा दो

एक इज़ाजत दी थी तुमको
वो वापस भिजवा दो
या मुझको भी साथ दफ़ना लो।

-तुषारापात®