Saturday 8 August 2015

वर्णमाला

"अरे सन्दर्भ बेटा...एक छोटा सा काम था तुमसे..अगर हो सके तो..इस बार भी...हमारी कुछ मदद कर दो..बेटा" शब्दकोष ने सकुचाते हुए कहा

"अंकल..मैं जरा जल्दी में हूँ..ऑफिस के लिए निकल रहा हूँ...ऐसा करिये आप ...व्याख्या से बात कर लीजिये" सन्दर्भ समझ गया कि हमेशा की तरह ये रुपैये मांगने आये होंगे इसलिए वो उन्हें टाल कर चलता बना

"ओह्ह..अब बहु से मैं क्या बात करूँ..ऐसा है..मैं...मैं तुम्हारी आंटी को भेज देता हूँ" हताश होकर उन्होंने कहा और भारी क़दमों से वापस हो लिए
टिंग..टॉन्ग..टिन्न्न टॉन्ग.ग...ग
थोड़ी देर में सन्दर्भ के फ्लैट की घंटी बजती है व्याख्या दरवाजा खोलती है
"अरे वर्णमाला ऑन्टी आप...आइये...अंदर आइये..."

वर्णमाला अंदर आ जाती है व्याख्या दरवाजा बंद करके कहती है "बैठिये आंटी..बताइये कैसे आना हुआ.."

"अब क्या बताऊँ बेटी..तुम तो जानती ही हो..तुम्हारे अंकल की तनख्वाह कितनी है....और ऊपर से इतना बड़ा हमारा परिवार..कुछ न कुछ लगा ही रहता है..अभी तेरे अंकल नीचे सन्दर्भ से मिले थे..पर शायद वो जल्दी में था..तो तुमसे बात करने को बोल गया....बड़ी बेटी मात्रा की गोद में व्यंजन को बिठा के बड़ी आस से तेरे पास आई हूँ" वर्णमाला किसी तरह भूमिका बाँधते हुए बोली
"अ..बेटी..कुछ पैसों की जरुरत थी..स्वर और व्यंजन दोनों को कई दिनों से बहुत तेज बुखार है..डॉक्टर ने कई टेस्ट कराने को लिखा है..पर घर में एक पाई भी नहीं है..उनके इलाज के लिए तुम्हारे आगे हाथ फैला रही हूँ" वर्णमाला शर्मिन्दिगी से रुआँसी आवाज में आँख झुका के बोली

"आंटी..एक बात कहूँ..प्लीज.बुरा मत मानियेगा...इस महंगाई के दौर मे..ं सत्रह सत्रह बच्चे पैदा करना...कहाँ की समझदारी है..यहाँ तो..दो बच्चों को पालना मुश्किल है" व्याख्या ने तीखी बात थोड़ी मीठे लहजे में कही

"अ..बेटी..स्वर और व्यंजन से पहले सारी लड़कियां ही हुई..उनके बाद स्वर फिर व्यंजन हुआ...अब वंश चलाने के लिए लड़का तो चाहिए था..इसीलिए इतने बच्चे होते गए..और बेटी..ये तो सब भगवान के हाथ में है"वर्णमाला जमीन में गड़ी जा रही थी

" आंटी..वंश फांके करके तो नहीं चलता न..और क्या एक लड़की अपने पिता..अपने वंश का नाम नहीं रौशन करती..आप जैसी सोच के लोग ही..लड़के की चाहत में या तो बच्चे पैदा किये जाते हैं..या फिर लड़कियों को कोख ही में मार देते हैं" व्याख्या ने महसूस किया कि उसकी आवाज में अजीब सी घृणा भरती जा रही है
"खैर..इस बार तो मैं आपकी मदद करे दे रही हूँ..पर आगे से आंटी..आप भी समझती ही हैं..कि आजकल घर चलाना कितना मुश्किल है..और वैसे भी शब्दकोष अंकल को सन्दर्भ ने पहले भी कितनी बार पैसे दिए हैं" कहकर उसने 2000 रुपैये वर्णमाला को दिए,वर्णमाला लज्जित थी पर मजबूर थी पैसे ली और आर्शीवाद देते हुए चली गई
शाम को जब सन्दर्भ आया तो व्याख्या ने उसे पूरी बात बताई

"यार कितनी बार पैसे देंगे हम..अब शब्दकोष अंकल और वर्णमाला आंटी तो लगता है पूरे अड़तालिस करके ही मानेंगे... अक्षरों(लड़कों) के चक्कर में मात्राओं(लड़कियों) को पैदा करते गए....अब उनके बच्चे क्या हम पालेंगे....... सन्दर्भ झुंझला के बोला

" क्या बताऊँ..ये पढ़े लिखे लोग भी इतनी बेवकूफियाँ करते हैं..चाहे जितना भी हम तरक्की कर जाएँ..पर सन्दर्भ...ये लड़के लड़की का भेद कभी मिट पायेगा क्या?" व्याख्या का सवाल पता नहीं किससे था ।

'ब्रिटिश साम्राज्य की उत्तराधिकारी क्वीन भी होती है जिसके नाम से पूरा शाषन चलता है'

-तुषारपात®™
बेशक तुम कलम का सर कलम कर दो
स्याही बिखर के फिर भी तेरा जुर्म लिखेगी
गला काटकर चाकुओं से गोद गोदकर मारे गए कई धर्म निरपेक्ष ब्लॉगर
क्या धर्म निरपेक्षता या सेकलुरिस्म की वजह से मारे गए ? या धार्मिक कट्टरता के विरोध के लिए ? या शायद कट्टरों को उनका मानव धर्म याद दिलाने की सजा है ये? मानवता इंसानियत मर चुकी है धर्म विलुप्त हो चूका है बाकी रह गए हैं सिर्फ धर्मान्ध और अंधों को कुछ नहीं दिखता । तलवार और कलम की ये जंग जारी है आप किस तरफ हैं ? :(

-तुषारपात®™