Thursday 19 October 2017

रंगोली

"दीप..दीप..सुनो जरा...प्लीज मेरे लिए रंगोली के कलर्स ला दो न..प्लीज जल्दी से...मेरी सारी फ्रेंड्स रंगोली बना चुकीं हैं..देखो अगर फिसड्डी रहने वाली तमिषा ने भी रंगोली बना के पिक पोस्ट कर दी. तो मैं ग्रुप में सबसे पीछे रह जाऊंगी..मुझे जल्दी से अपनी रंगोली पोस्ट करनी है "अवलि ने उतावलेपन से उसे अपना मोबाइल दिखाते हुए कहा

"अरे पर कलर्स तो तुम खुद लाने वालीं थीं..क्यों नहीं गईं.." दीप ने टीवी का चैनल बदलते हुए कहा

अवलि थोड़ा सा झुंझुला के बोली "जाने वाली थी न..नहीं गई..घर की साफ सफाई में उलझी रह गई..आज तो लख्मी भी नहीं आई..जाओ न जल्दी से कलर्स ला दो..कहीं दुकानों से मेरे फेवरिट कलर्स खत्म न हो जाएं"

दीप रंग लेने चला जाता है और अवलि लख्मी के मोबाइल पे कॉल लगाती है पर बार बार लगाने के बाद भी जब कॉल नहीं लगती तो वो मोबाइल रखकर,पूजा घर की सफाई में लग जाती है तभी डोर बेल की आवाज आती है वो दरवाजा खोलती है तो लख्मी के चौदह-पंद्रह वर्षीय लड़के धन्नू को सामने खड़ा पाती है वो उसे बताता की लक्ष्मी को उसके पति कमल ने शराब के नशे में बहुत पीटा है इसलिए वो आज काम पे नहीं आएगी

"ओह्ह..ठीक है" धन्नू से कहकर अवलि ने दरवाजा बंद कर लिया और फिर से पूजा वाले कमरे की सफाई करने लगी, पर न जाने क्यों अब उसका मन नहीं लग रहा था वो काफी देर उहापोह में रही किसी तरह पूजा घर साफ करने के बाद,घर लॉक कर वो एक्टिवा से लक्ष्मी की खोली पहुँच गई

"दीदी..खूब नशा करके आए..और हमको पीट के सारा पैसे छीन के ले गए..हमरा मोबाइल भी..." लख्मी उससे ये कहकर रोने लगी अवलि ने उसे किसी तरह चुप कराया तभी लख्मी की पाँच साल की बेटी रंगोली बाहर से खेल कूद के धूल में रंगी हुई अंदर आई और लख्मी से बोली "अम्मा हम नई फिराक कब पहनेंगे..तुम लाके कहाँ रखी हो..और और.." कहते कहते अचानक से उसकी नजर अवलि पे पड़ी तो वो चुप हो गई, लख्मी उसे गले लगा के अवलि से कहने लगी "हम जरा सा आलस कर गये..नहीं तो कल ही इसके लिए फिराक ले आए होते तो कम से कम उतना पैसा तो उनसे बच जाता..और इसका मन रह जाता"

अवलि ने उसको प्यार से अपने पास बुलाया, घर मे काम करने आनेपर कई बार लख्मी उसे अवलि के घर साथ लिए आती थी इसलिए वो अवलि के पास थोड़ी हिचक के बाद आ गई अवलि ने उसे गोद मे बिठा लिया और कहा "कौन से कलर की फ्रॉक तुम्हें अच्छी लगती है.."

"लाल और..और..जीमें खूब सारा सितारा हों.." रंगोली ने मासूमियत से अपनी पसंद बताई

ठीक है आप मेरे साथ चलोगे..मेरे पास खूब अच्छी लाल फ्रॉक है..और लाल लाल चूड़ियाँ भी हैं..आप पहनोगे." उसने रंगोली से कहा और लख्मी को इशारा किया कि वो इसे साथ ले जा रही है और शाम को आकर प्रसाद ले जाने के लिए कहा  ,लख्मी ने कृतज्ञता से हाँ में सर हिलाया

अवलि ने रंगोली को स्कूटर पे बिठाया और उसे लेकर पास की दुकान से उसकी पसंद की फ्रॉक,बिंदी,चूड़ी, कुछ खिलौनें दिलाये और उसकी जरूरत के कुछ और कपड़े खरीद के उसे साथ ले अपने घर आ गई

"कमाल हो यार..जब तुम्हें ही जाना था..मुझे क्यों दौड़ाया..फोन भी नहीं उठा रही..वो तो अच्छा था कि घर की एक चाभी मेरी बाइक की चाभी के गुच्छे...अरे ये लख्मी की बेटी है न..ये तुम्हारे साथ?" दीप ने आश्चर्य से पूछा, अवलि ने उसे सारी बात बताई तो उसने कहा "ठीक है..अच्छा हाँ वो तुम्हारे कलर्स वहाँ डाइनिंग टेबल पे रखे हैं.."

"अच्छा..ठीक है." कहकर वो रंगोली को नहलाने के लिए ले गई उसे अच्छे से नहलाया-धुलाया फिर उसे फ्रॉक पहनाई चूड़ियाँ पहनाई बिंदी आदि लगाई और थोड़ी से परफ्यूम भी लगाई..वो एक एक काम करती जाए और मासूम रंगोली की छोटी छोटी खुशियाँ देख देख के दोगुने उत्साह से उसका अगला श्रृंगार करती जाए,दीप बीच बीच मे उसे लाए हुए रंगों की याद भी कई बार दिला गया  पर अवलि हर बार हूँ हूँ कर देती थी, उसे तैयार कर के उसने उसे खाना खिलाया और देखा अब वो बहुत खुश थी और सुंदर भी बहुत लग रही थी

इस सब में काफी समय बीत गया था अवलि थोड़ा थक भी गई थी पर अभी शाम के पूजन की तैयारी भी उसे करनी थी और रात का खाना भी बनाना था,लाये हुए रंग अभी भी टेबल पर रखे थे, सारे काम करते करते शाम हो गई और रंगोली बनाने का उसे टाइम ही नहीं मिला अब वो तैयार होके दीप के साथ पूजा कर रही थी, पूजा के बाद कुछ मेहमान भी घर आने वाले थे, बाहर आतिशबाजी की धूम धड़ाम और रोशनियाँ होना शुरू हो गईं थीं।

घर मे हर जगह दीपक लगा के वो अभी बैठी ही थी कि उसके मोबाइल पे उसकी सहेली तमिषा का फोन आता है " अरे कहाँ है तू..हम सबमें सबसे बड़ी और सबसे पहली रंगोली बनाने वाली मैडम आज दिवाली पे कहाँ गायब है..अपनी बनाई रंगोली पोस्ट कर न..या मुझसे डर गई इस बार"

अवलि उसकी बात सुनके कहती है "रुक जरा अभी पोस्ट करती हूँ.." वो दूर खेलती रंगोली को अपने पास बुलाती हैं और अपने फोन से उसकी कई सारी अच्छी अच्छी तस्वीरें खींचती है और पोस्ट करने जा ही रही होती है कि दीप उसे रोक देता है "अवलि मुर्दा संसार में जीती जागती रंगोलियाँ नहीँ भेजी जातीं...कुछ रंगोलियाँ सिर्फ अपने लिए ही होती हैं" अवलि उसकी बात समझ जाती है और अपनी सहेली तमिषा को फोन कर कहती है "यार इस बार मैं रंगोली नहीं बना पाई..तू जीत गई" वो फोन एक तरफ फेंक कर जीती जागती सजी धजी उस मासूम रंगोली को खेलते देख के अपनी हार का उत्सव मनाने लगी।

दीप-अवलि के घर के हर कोने में सजी हुई रंगोली घूम रही है और दरवाजे पे लख्मी हाथ जोड़े खड़ी है।

-तुषार सिंह 'तुषारापात'