Friday 4 August 2017

इंद्रधनुष

पथ से मुझे रपटा कर
हो रहा तू अति प्रसन्न!
देवताओं के राजा!
अपना धनुष दिखा कर
मत कर शक्ति प्रदर्शन!

वर्षा वृष्टि द्वारा
कर तू मार्ग जलमगन
नौका का निर्माण कर
करूँगा मैं पथगमन

मेघों की गर्जना से
काँपते नहीं 'सिंह' के पैर
देवेंद्र होकर रखता तू
एक मानव मात्र से बैर

स्वर्गों की नहीं
चाह मुझे न कामना
मेरा लक्ष्य तुझे
तेरा राज्य लाँघना

मैंने बैर लिया है
संसार के स्वामी से
मेरे अंतर की पीड़ा
न पढ़ने वाले अंतरयामी से

मैं एक हूँ और वो है एक
फिर क्यों मैं तुच्छ वो है श्रेष्ठ
पिता है वो तो मैं हूँ उसीका पुत्र
तेरा क्या तू है मात्र सेवक ज्येष्ठ

मत बन अवरोधक
मत भूल अरे दुष्ट!
मेरे यज्ञ की भिक्षा से
होता आया तू पुष्ट!

दे दिया था दान तुझे
पहले ही अपना आसन
बैठता गर्वित हो तू जिसपर
कहलाता वो आज भी 'सिंहासन'

बंद कर अपना यह जलाघात
मत दिखा मुझे यह इंद्रधनुष
खंडित होगा निमिष मात्र में
प्रचंड 'तुषारापात' है यह मनुष!
प्रचंड 'तुषारापात' है यह मनुष!

-तुषारापात®