Sunday 27 September 2015

पितृदोष

पितृपक्ष शुरू हो गया है मैंने कई लोगों को पितृदोष के उपाय पूछते देखा है और उसके लिए तरह तरह के उपाय करते भी देखा है लेकिन बगैर इसे जाने हुए कि ये है क्या ? क्या ये वाकई कोई दोष है ? या ये महज एक भ्रम मात्र है ?
पितृदोष का स्वरुप वैसा नहीं है जैसा कि आपकी कुंडली देख के कोई बता देता है और आप लग जाते हैं पूजा पाठ में या कौओं को खाना खिलाने में या किसी अमावस्या को पानी में कुछ बहाने में
हम अपनी मान्यताएं और मूल विचार भूलते जा रहे हैं और इसी मूल से हमारे विचलन का नाम है पितृदोष और ये व्यक्तिगत न होकर सामूहिक है मैं तो कहूँगा कि ये दोष पूरे भारत को लगा हुआ है हम अपनी परम्पराओं और विचारों को अपनाना छोड़ते गए और पराजित होते गए अब यहाँ ये समझना आवश्यक है कि प्राचीन ज्ञान को उसकी उसी अवस्था में छोड़ देना उस ज्ञान को विकसित न करना ही अपनी परम्परा छोड़ना है अब आप में से कई कहेंगे कि पुरानी और सड़ी गली मान्यताओं को ढोना कहाँ की समझदारी है तो मैं ये कहूँगा उन्हें विकसित करने की जिम्मेदारी हम सब की ही थी क्या कोई बाहर से आकर उन्हें विकसित करेगा ? पुरानी मान्यता थी कि सूर्य पृथ्वी की परिक्रमा करता था और इसी मान्यता को जब और अधिक विकसित किया गया तब पाया गया कि नहीं पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है इसलिए हर मान्यता हर विचार का महत्व है जरुरत है उसे विकसित करने की अगर आप ऐसा नहीं करते तो आप पर दोष लगेगा ही आप इससे बच नहीं सकते
हमारी संस्कृति और धर्म जो कि पूर्णतया वैज्ञानिक है हमें यही सिखाती है कि आपने इस संसार के जितने संसाधन प्रयोग किये या कहूँ भोगे तो उनके बदले में आप भी कुछ कीजिये उन संसाधनों का संरक्षण और विकास भी कीजिये (इसी लिए नदियों को देवी और सूर्य आदि को भगवान का स्थान दिया गया) अगर आप ऐसा नहीं करते तो आप दोषी हैं
अगर आप पितृदोष से मुक्त होना चाहते हैं तो इसका बहुत साधारण सा उपाय है कि अपने आने वाली पीढ़ी में पुरानी पीढ़ियों के विचारों का बीजारोपण कीजिये और उन्हें उनमे सुधार लाने और उन विचारों को विकसित करने की दिशा दिखाइए हर एक व्यक्ति को ये करना होगा और एक दूसरे को जागरूक करना होगा तभी ये दोष राष्ट्र से हटेगा और खुशहाली आएगी वरना व्यक्तिगत कष्ट भी दूर नहीं होगा आप चाहे जितना उपाय कर लें
अपने बच्चों को उचित संस्कार देकर सही वैज्ञानिक सोच देकर ही आप अपने पुरखों को तृप्त कर सकते हैं क्यूंकि उनके द्वारा उत्पन्न विचार और उन विचारों के आविष्कार व्यर्थ जा रहे हैं वो अतृप्त हैं और यही आप पर दोष है और इसका यही एक मात्र उपाय है जो ऊपर बताया गया है वरना चाहे करोड़ों कौओं को आप खाना खिलाते रहें और पेड़ काटते रहें ये दोष नहीं हट सकता और इसका भुगतान पूरे राष्ट्र को करना पड़ेगा।

-तुषारापात®™
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