Saturday 10 August 2019

शाम से आँख में नमी सी है

रात से आँख खुली सी है
सहर जाने क्यों मुंदी सी है

दफ़्न हूँ बाँस के खेत में
कब्र फिर भी बेसुरी सी है

वक़्त बैठा है यहीं टिककर
दिल में एक घड़ी चुभी सी है

हजार रिश्ते हैं जगमगाते से
बस दुआ सलाम बुझी सी है

~तुषार सिंह #तुषारापात®