Saturday 25 July 2020

चुभन का निशान

"क्या इस बार भी सच हार जाएगा..झूठ की जीत आखिर कब तक यूँ ही होती रहेगी...क्या कोई भी सच के साथ नहीं है?"

"कोशिश करके देख लो..सच को लेकर आगे बढ़ो..देखो कौन साथ आता है तुम्हारे..लोग झूठ के विरोध में तो कभी आते ही नहीं.. और.. न ही सच के साथ चलते हैं..बस सच बोलने वाले के साथ थोड़ी दूर यूँ टहल आते हैं.. मानो दिल बहलाने को सिनेमा देख आए हों"

"पर लोग सिनेमा में भी तो सच की जीत की कहानियों पे ताली बजाते हैं फिर क्यों नहीं आएंगे साथ"

"सिनेमा किन्नरों के स्वांग जैसा है जो क्षणिक दबाव बनाता है..सच के लिए ताली बजाने वाले हाथ झूठ के लिए कभी अपनी मुठ्ठियाँ नहीं कसते..."

"मुठ्ठियाँ न भी कसें..हाथ भी न उठाएं..मगर धीमी ही सही..मेरी आवाज में अपनी आवाज़ तो मिला सकते हैं..मैं सबसे आगे चलने को तैयार हूँ...मैं सच के लिए मरने के लिए भी तैयार हूँ"

"अपने आगे चलने की तुम्हारी तमन्ना ये जरूर पूरी कर देंगे.. तुम्हारे मरने के बाद ये सब आएंगे तुम्हारे जनाज़े के पीछे..ये कहते कहते कि राम नाम सत्य है...."

"तो क्या करूँ मैं..बचपन से मुझे सिखाया गया कि सच ही सबकुछ है..एक सच सौ झूठ पे भारी है..क्या किताबों में लिखा वो सब सच, झूठ था..इस सच के लिए लड़ते लड़ते हर जगह से निष्काषित हूँ मैं..और जिन लोगों ने मुझे निष्काषित किया वो मुझे ही भगौड़ा कहते हैं.."

"सच कहूँ तो इस झूठ और सच की लड़ाई की बात ही बेमानी है..झूठ के सैनिक बहुत निर्दयी हैं..और सच..सच की कोई सेना ही नहीं है..बस एक पैदल है जो सच का झंडा उठाए दिखता है मानो कोई बहुत बड़ी सेना उसके पीछे आ रही हो..नियति ने उस पैदल के रूप में तुम्हें चुन लिया है..तुम मरोगे तो कोई और इस झंडे को पकड़ लेगा..पर.. उसके भी पीछे कोई सेना नहीं होगी..मेरी मानो झूठ में घुलमिल जाओ फिर देखो इस झंडे को कितना बढ़िया रथ मिल जाएगा.. झूठ चारो ओर ऐसे फैला हुआ है जैसे बसन्त में सरसों, और रही बात सच के किताबों में होने की..हाँ..सच किताबों में मिलता है..मगर सूखे फूलों की तरह.."

"जानता हूँ..सरसों के पीले फूल देखकर लोग हर्षाते हैं मगर उसके तेल को कड़वा कहते हैं.. औषधि मीठी नहीं होती.. झूठ के फूल गुदगुदी करते हैं मगर सच का एक सूखा फूल काँटे की तरह चुभता है....और ये सूखा फूल ..टूट जाएगा.. बिखर जाएगा..लेकिन.. चुभन का गहरा निशान बना जाएगा... फिर भले ही ये झूठे..झूठे न कहे जायें..लेकिन चुभन का निशान लगे लोग सच्चे नहीं हैं.. .. सब जान तो जाएंगें।"

#चुभन_का_निशान
~#तुषारापात

Thursday 23 July 2020

हिंदुस्तान

कोई उसे सरदार तो कोई मुसलमान कहता है
वो आदमी खुद को मगर हिन्दुस्तान कहता है 

~#तुषारापात 
(आज़ाद पर कार्यक्रम करते हुए)

Wednesday 22 July 2020

आज़ाद

जो चाहता है के बस्ती में उसकी कोई सवेरा लाये
वो अपनी आँख के तारे को सूरज की तरह तपाये

~तुषारापात

Wednesday 15 July 2020

औघड़

#औघड़

शिव ढूँढते हैं
 
शक्ति को

पाके अपने को निर्बल।

गृहस्थी की गली से

प्रेम के बंधक यान को 

छुड़ाने के लिए 

पुरुष मल लेता है 

शरीर पे भस्म 

'शव' को 

'शिव' बनाने को।

~#तुषारापात

Monday 13 July 2020

रंगभेद: काली भूख सफेद रोटी

रोटी 
सन सत्तर का 
टेलीविजन है 
ब्लैक एंड व्हाइट, मगर
सबकी पहुँच में नहीं 

मैलखोरु 
कम्बल की तरह 
भूख का काला रंग 
पसरकर, सफेद टाइल्स के 
फुटपाथ पे धब्बा लगाता है 

गोरी चिट्टी रोटी
काली नज़र से 
बचने को, बेझिझक
सजा लेती है, मगर 
खुद पे काली चित्तियाँ 

गेहुएँ रंग के तानों से
तंग आकर, गेहूँ 
डाल देता है 
अपना सर चक्की में
बन निकलता, उजला आटा 

गोरा होते ही 
उजली हो जाती है
उसकी कीमत
माँगता है उजला आटा 
ए सी का उथला पसीना 

गहरा पसीना 
बहाने वाला 
होता है, हमेशा 
काला आदमी ही 

रोटी, उसे
फेयर एंड लवली 
लगाने नहीं देती

सन सत्तर के 
इस टेलीविजन में 
गोरा बनाने वाला
कोई विज्ञापन नहीं।

~#तुषारापात







Thursday 9 July 2020

उम्र के इस मोड़ पर

उम्र के इस मोड़ पर 
जो पीछे है, मुझे 
अपने से आगे मानता है
जो आगे है, मैं
पिछड़ा हूँ ये जानता है

उम्र के इस मोड़ पर 
पुराना ज़माना 
साथ आना चाहता है 
नया ज़माना 
पास नहीं बिठाता है 

उम्र के इस मोड़ पर
मुझसे बड़ा मुझे आप
छोटा तुम कहके बुलाता है।

~तुषारापात



Wednesday 8 July 2020

सोशल मीडिया: लटका दरवाज़ा

बाथरूम का 
एक पल्ले वाला दरवाज़ा
थोड़ा सा लटक गया

सिटकनी लगाने में 
होने लगी मुश्किल थोड़ी
चारों पंजों पे ज़ोर देना
दरवाज़ा दबाना, ऊपर उठना 
इतनी मेहनत कौन करे

परिवार के आलसी सदस्यों ने
सिटकनी लगाना छोड़ दिया 
धीरे धीरे दरवाज़ा भी 
अपनी जगह बैठना भूल गया

अब जब भी कोई जाता है 
बाथरूम तो, चिल्लाता है 
ये दरवाज़ा क्या कभी 
कोई ठीक कराएगा भी 

खुलने और बंद होने के बीच 
झुके दरवाज़े की कराहट
रिटायर हुए पिता की तरह 
इस चिल्लाहट में दब जाती है

सब अपने हिस्से का 
चिल्लाना जानते हैं 
मैं अपने हिस्से का चिल्ला चुका
अब तुम्हारी बारी है।

#सोशल_मीडिया
~तुषारापात





Monday 6 July 2020

चालीस का होना

चालीस का होना 
बढ़े हुए पेट के उस 
उच्चतम बिंदु पर होने जैसा है
जहाँ आकर 
कड़क क्रीज वाली 
आपकी पसंदीदा पतलून 
नखरीली साली की तरह 
आपको हद में रहने की 
चेतावनी देने लगती है 
और मुड़ी तुड़ी क्रीज वाली 
ढीली पतलून सी 
आपकी सीधी साधी पत्नी भी
थोड़े थोड़े ताने सुनाने लगती है 
आप नारे से कमर कसके 
पायजामे से यारी करने लगते हैं

चालीस का होना
आपके माथे का सर के 
उच्चतम बिंदु तक पहुँचने जैसा है
जहाँ आकर 
प्रॉपर्टी डीलर्स की नज़र 
सबसे पहले पड़ती है
वे आपके गंजेपन को 
आपके बड़े बंगले के बाहर लहराते 
पाम के पेड़ों से ढकने के सपने 
आपको बेच चुके होते हैं
आप किस्तों में जीना
सीखना शुरू कर देते हैं  

चालीस का होना 
आपकी नज़र के 
उस उच्चतम बिंदु के पकड़े जाने जैसा है
जहाँ पर 
किसी नवयौवना की नज़र टकराते ही
कड़क फुसफुसाहट में बताती है कि 
अब पलकों की चक्की से 
हुस्न पीसने की बजाय 
गरम मसाले की महँगी चीजों को 
चोरी होने से बचायें
और चक्की वाले पे अपनी नज़रें गड़ायें
आप अपनी नजरें 
नीची करना सीख रहे होते हैं

चालीस का होना 
आधुनिकता के 
उस उच्चतम बिंदु से फिसलने जैसा है
जहाँ आप नॉन स्टिक बर्तनों को
बाँधकर रसोई की टांड़ पर डाल देते हैं 
और पुरानी तरह के
लोहे की कढ़ाई और तवे में 
पत्नी को खाना बनाने को कहते हैं 
आप माँ के हाथ के स्वाद को 
थोड़ा सा ही सही ढूँढ लेते हैं

चालीस का होना 
पिता के जूते के
उच्चतम बिंदु को छूने जैसा है
जहाँ आकर 
आप वे आदतें खुद में पाते हैं 
जिनके लिए आप अपने पिता पे
खीजा करते थे 
आप अपने पैरों को 
पिता के जूतों में ढाल रहे होते हैं

चालीस का होना 
धनुष के घुमाव के
उस उच्चतम बिंदु पर होने जैसा है 
जहाँ तीर टिकाके 
छोड़ा जा चुका होता है
आप
या तो निशाने पे लग चुके होते हैं 
या निशाना चूक चुके होते हैं। 

~तुषारापात

Sunday 5 July 2020

सवाल जवाब

मैं:
बनाये हैं तुमने ज़िंदगी के नक्शे 
इसलिये नक्शेबाजी जबर रहे हो 

ख़ुदा:
तुम अपनी तलाश के सफ़र में हो
और तलाश एक हमसफ़र रहे हो 

~#तुषारापात

Friday 3 July 2020

शक्तिहीन ज्ञानी: मछली बिन पानी

कद पद तन मन धन में से न एकउ बली होय 
तो कलजुग में ज्ञानी ज्यूँ बिन पानी मछली होय

~#तुषारापात

Thursday 2 July 2020

हो गए कलंदर निकले जब घर से

वक़्त का अच्छा पता चलता है ग़ज़र से 
कटता है बुरा वक्त दुआओं के असर से 

बेटों ने सिखाया के परिंदे छोड़ जाते हैं 
आख़िरी पत्ता जब ख़र्च हो जाये शजर से 

खट्टा हो जाता है मन गाँव के गन्नों का 
टॉफियाँ लाते हो जब भर भर के शहर से 

आँगन में बन गये उसके चार गुसलख़ाने 
ज़िंदगी कट रही है उसकी अच्छी बसर से 

पहुँच जाता है जब नई मंज़िलों पे कोई
तो नाता तोड़ लेता है पुरानी हर डगर से 

पूरे कहाँ हुये अभी उसके नौ सौ चूहे 
उसे अभी क्या मतलब हज के सफ़र से 

सीने से लिपटा के थे सोये किताब 'तुषार'
हरजाई लिखे जाओगे क़लम की नज़र से

~#तुषारापात

Wednesday 1 July 2020

गिरा आदमी

झुक के उठाने की जो उसे कोशिश करोगे 
क़द जताने आये हो कहेगा वो गिरा आदमी

~#तुषारापात