Monday 31 August 2015

आरक्षण

स्वर्ण में पीतल और ताँबे का शुद्ध मिश्रण हो गया
'सोने की चिड़िया' का 'हार्दिक' आरक्षण हो गया

-तुषारापात®™

Sunday 30 August 2015

कब्ज

उड़द की कचौड़ियाँ खाये जाने के बाद भी आपका साथ दो दिन तक नहीं छोड़तीं, ऐसा साथ और कहाँ

-तुषारापात®™

Friday 28 August 2015

अनुवाद: रक्षा बंधन

"हाँ..कब आ रहा है तू...पता है तेरे लिए मैंने बहुत बढ़िया राखी ली है..और..और.तेरी मनपसंद बादाम गिरी वाली खीर....क्क्या...अरे..मगर कब..क्या यार..अब राखी पे भी तुझे तेरी कंपनी..चल फिर...रखती हूँ..." जितनी खुशी से चहकते हुए व्याख्या ने अनुवाद का नंबर देख कर अपना मोबाइल उठाया था उससे कहीं ज्यादा ही बुझे मन से उसने अपना मोबाइल पलंग पे पटक दिया

"क्या हुआ..मेरा प्यारा प्यारा लेक्चर..सुबह सुबह उदास क्यूँ है" सन्दर्भ ने व्याख्या के पीछे से आकर उसे अपनी बाहों में भर लिया और उसकी एक लहराती लट को उसके कान के पीछे कर अपना गाल उसके गाल से सटा कर बोला

व्याख्या ने अपना सर उसके कंधे पे टिका दिया और अपना पूरा भार सन्दर्भ पे छोड़ते हुए बोली "अनुवाद कल राखी पे नहीं आ पायेगा..... उसकी कंपनी किसी अर्जेंट काम से उसे..ऑस्ट्रेलिया भेज रही है"

"हाँ भई..अब ऑस्ट्रेलिया की ट्रिप के आगे..कहाँ दीदी की याद रहेगी उस साSSS..ले..को" सन्दर्भ ने उसकी कमर पे एक छोटी सी चिकोटी काटी

"आह..आउच..अच्छा ये लो फिर.." व्याख्या ने उसके पेट पे अपनी कोहनी मारी सन्दर्भ की पकड़ ढीली हो गई दोनों पलंग पे गिर गए

"ऐसा नहीं है..अनुवाद को वाकई जरुरी काम होगा..और राईटर बाबू तुम भूल सकते हो मैं नहीं..कि हमारी शादी होने में अनुवाद और समीक्षा की कितनी हेल्प थी..खास तौर पे अनुवाद की..उसने ही पापा मम्मी को मनाया...जो बातें मैं तुम्हारे बारे में जानती थीं..मतलब तुम्हारे पॉजिटिव पॉइंट्स..पर उनसे नहीं कह पा रही थी अनुवाद ने वो सारे पॉइंट्स बहुत अच्छे तरीके से उन्हें समझाए..उसी ने पापा से कहा था कि पैसा बहुत जरुरी है..और वो दोनों मतलब भर का कमा भी लेंगे..पर अगर पैसा होते हुए भी..दीदी खुश नहीं रही तो किसी और से उसकी शादी कराने से क्या आपलोग खुश होंगे?" व्याख्या ने सन्दर्भ का हाथ अपनी हथेली में भरते हुए कहा

"हाँ भाई जानता हूँ..साला मेरा बहुत ही खुरापाती है..वैसे अगर ये आई टी इंडस्ट्री में नहीं जाता तो पक्का नेता होता..वैसे मजाक अपनी जगह..वो एक बहुत अच्छा भाई है और तुम्हें बहुत मानता है...हाँ.. थोड़ा बहुत मुझे भी...अच्छा अब ये बताओ ये जो...चाँदी की राखी लाइ हो इसका क्या करोगी" सन्दर्भ ने उसके दोनों हाथ जकड़ते हुए कहा

"वापस तो हो नहीं सकती...तुम्हें बाँध दूँगी..मेरी रक्षा करना...अपनी दुष्ट हरकतों से..ही ही ही ही.."व्याख्या ने थोड़ी मादकता शब्दों में घोली

"अच्छा बेटा...कल की तो कल देखेंगे...आज तुम्हारी मुझसे कौन रक्षा करेगा.." कहकर सन्दर्भ व्याख्या में विस्तार लेने लगा।

'एक भाषा से दूसरी भाषा के बीच का 'बंधन' है अनुवाद और एक अच्छा अनुवाद एक भाषा में उत्पन्न विचारों की दूसरी कई भाषाओं में 'रक्षा' करता है'

-तुषारापात®™

Thursday 27 August 2015

टूटी चारपाई

टूटी चारपाई सी वो टिकी रहती है दीवार से
बूढ़ी अम्मा अब सहम जाती है नमस्कार से

-तुषारापात®™

Wednesday 26 August 2015

कम्पट



"अचानक क्यूँ मैं धार्मिक हो गया
तुम सोचते तो होगे
तुम्हे लगता है कि तुमने परेशानियां दे कर
भौतिक जीवन मेरा भंग कर
मुझे अपने पाले में कर लिया है तो ये सही नहीं
ही तुमने कोई रामकृष्ण दिया
जो इस नरेन्द्र को 'स्वामी' बना देता, तो फिर ?
चलो बता देता हूँ कि क्यूँ मैं तुम्हारा कार्य कर रहा हूँ
एक गोल पत्थर के ऊपर एक मटकी बंधी रहती थी
और उससे गिरती जल की बूंदे अजब लगती थी
लोग वहां आते, जाने क्या क्या चढ़ाते, क्या क्या बहाते
माँ से पूछा तो उसने बता दिया कि वहाँ तुम रहते हो
सोमवार को महिलाएं तुम पर दस,बीस पैसे के सिक्के फेंक जाती थी
बस उन्ही उठाये गए एलुमिनियम के सिक्को से
खाए गए कम्पटों का कर्जा उतार रहा हूँ"
-तुषारापात®™
Bottom of Form
*कम्पट= टॉफी

Tuesday 25 August 2015

स्क्रैच

लड़कपन के मेरे प्यार,क्या बतायें कि तुम कितने नेक हो
बस यूँ समझ लो नई नवेली गाड़ी का पहला पहला स्क्रैच हो

-तुषारापात®™

Monday 24 August 2015

बेशरम सूरज

यूँ रात के काले शीशे न उतारा करो मेरे खुदा
बेशरम सूरज सारे जहाँ को आवारा बना देता है

-तुषारापात®™

Sunday 23 August 2015

माँझी

पहाड़ों पे देवता रहते हैं अक्सर सुनता आया हूँ ये बात पर जब कोई पहाड़ों को काट के रास्ता बना दे तो खुद देवता हो जाता है आज फ़िल्म मांझी देखकर अभिभूत हो गया कहानी तो सच्ची है पर रजत पटल पे उसके प्रस्तुतिकरण के लिए केतन मेहता की जितनी तारीफ करूँ कम है साथ ही नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी की अपने चरित्र में रच बस जाने की कला का लोहा मानना ही पड़ेगा उन्हें इस वर्ष का राष्ट्रिय पुरूस्कार मिले तो मुझे कतई अचरज न होगा।
दशरथ माँझी मुझे पता है तुम इतिहास में अमर नहीं हो सकोगे क्यूँकि तुम्हारा खून शाही नहीं है यहाँ तो जनता के पैसे से संगमरमर के सफ़ेद पत्थरों का ताजमहल बनाने वाले ही इतिहास में जगह बनाते हैं पर यकीन मानो तुमने इतिहास नहीं भविष्य का रास्ता बनाया है मैं अब जीवन में जब भी कभी हताश या निराश होऊँगा तुम्हें ही याद करूँगा सच में तुमने इस कहावत को बौना  साबित कर दिया कि पहाड़ तोड़ने से भी मुश्किल कोई काम है कोई नहीं
फ़िल्म देखते देखते स्वामी विवेकानंद जी की बात याद आ गई कि किसी नए कार्य को पहले जगहंसाई फिर विरोध और उसके बाद समर्थन मिलता है यहाँ भी यही हुआ कल्पना कीजिये आज से 50 60 साल पहले के भारत की तस्वीर की देश आजाद हुए अभी कुछ ही वर्ष हुए थे और छुआछूत,भेदभाव गरीबों का शोषण जैसी कुरीतियाँ समाज में अपने पैर जमाये बैठी थीं अजीब दोहरी मानसिकता थी एक तरफ तो कुछ लोगों को अछूत कहकर उन्हें छुआ भी नहीं जाता था दूसरी तरफ उन्हीं की बहु बेटियों से बलात्कार करने से कोई परहेज नहीं था मांझी जो काट रहा था वो ऐसी ही कुरीतियों का पहाड़ था चालीस किलोमीटर से चार किलोमीटर का रास्ता निकालने में सरकार को 50 साल से ज्यादा लग गए वो भी जब एक व्यक्ति 22 साल पहाड़ काटता रहा सरकार और भगवान् के सहारे बैठने से अच्छा है खुद ही तस्वीर बदलने की कोशिश की जाय..चलिए उठाइये अपने अपने छेनी हथौड़े और कीजिये एक जोरदार प्रहार भ्रस्टाचार के पहाड़ पे हाँ समय लगेगा पहले कुछ लोग हँसेंगे भी लेकिन एक दिन ये पहाड़ भरभराकर गिर जरूर जायेगा
किसी ने मुझसे पूछा था आखिर ये प्रेम है क्या जो शाहजहाँ ने ताजमहल बनवा दिया और माँझी ने पहाड़ काट दिया उनसे मैं कहना चाहता हूँ प्रेम एक शक्ति है ताकत है जो जिगर वालों के पास होती है और प्रेम करना उसे निभाना सनकियों का काम है एक सनकी ने अभी अभी आपको अपनी कलम से कोंचा है अगर आप में भी सनक है तो आप भी दूसरों को अपनी तरह से कोंचिये शायद पहाड़ खोदने से एक चूहा ही निकले पर कम से कम इतिहास में आप तो चूहे की तरह जीवन जीने वाले नहीं कहलायेंगे ।

-तुषारपात®™
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Saturday 22 August 2015

सेल्फ सर्विस

समाजसेवा: एक ऐसा स्टॉल जहाँ 'सेल्फ सर्विस' का बोर्ड स्टॉल लगाने वालों के लिए होता है।

-तुषारपात®™

Friday 21 August 2015

सामूहिक ?

हम इतने 'अकेले' हो चुके हैं कि अब 'सामूहिक' शब्द भी बलात्कार के साथ ही सुनाई देता है ।

-तुषारापात®™
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चार आदमी

चार आदमी मिलकर सिर्फ लूडो खेल सकते हैं -नेताजी

-तुषारापात®™

Thursday 20 August 2015

चलन

एक हिन्दू- मेरे धर्म में कई अन्धविश्वास हैं जो दूर होने चाहियें
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(साले, धर्मद्रोही नपुंसक कहीं के धर्म को बदनाम करता है etc etc)

एक मुस्लिम- मेरे धर्म में कई अन्धविश्वास हैं जो दूर होने चाहियें
440 likes 40 comments
( वाह भाई क्या बात कही है तुम्ही सच्चे मुसलमान हो और देशभक्त भी etc etc )
फेसबुक पे ये चलन खूब देखने को मिलता है पर सोचने वाली बात ये है कि कहीं ये भी एक प्रकार का मुस्लिम तुष्टिकरण तो नहीं? मुझे पता है इसमें अभी कई तरीके की दलीलें आ जाएँगी कि मुस्लिमों में कट्टरता बहुत अधिक है वो अपनी कमियाँ स्वीकार नहीं करते इसलिए जब कोई ऐसा करता है तो हम उसे सर आँखों पे उठा लेते हैं, उठाइये जरूर उठाइये मैं कब मना करता हूँ पर कम से कम अपनी कमियों पे भी उतनी तत्परता से कदम उठाइये।
वैसे मेरा ये मुद्दा उठाने का मकसद कुछ अलग है मेरी चिंता उन लेखकों के लिए है जो मुस्लिम हैं और लेखन क्षेत्र में अपनी पहचान बनाना चाहते हैं उनके लिए ये रास्ता सस्ती लोकप्रियता प्राप्त करने का हो सकता है (वैसे ये बात सब पर लागू होती है )पर इससे उनकी मौलिकता समाप्त होने का खतरा बढ़ जाता है ये likes और comments आपको बस एक ही तरफ सोचने और एक ही जैसा लिखने को बाध्य करने लगते हैं आप जाने अनजाने खुद को एक जाल में फंसा लेते हैं और आपको जब पता लगता है तब तक आप कुछ लोगों के हाथ की कठपुतली बन चुके होते हैं हर कोई इतना समझदार नहीं होता जो इससे बच सके हाँ एक दो हैं जिन्हें मैं जानता हूँ जो इस बहाव में भी अपनी सोच के साथ जमे रहे ,इसलिए अगर खुद को एक अच्छा लेखक और विचारक बनाना है तो हर प्रकार के लेख कवितायें कहानियाँ लिखिए जिससे आपके अंदर का लिखने वाला भी सांस ले सके और हम जैसा पढ़ने वाला भी ।
-तुषारापात®™

Tuesday 18 August 2015

भीष्म कहाँ से लाऊँ

प्रयत्न करूँ मैं
जो सत्य की स्थापना का
तो कहते हैं वो
ये कार्य 'तुम्हारा' है
मुझको किसने दिया
धर्म का ध्वज
ये तो 'तुम्हारे' दसवें अवतार को फहराना है
गीता वाणी 'तुम्हारी'
मानते सभी पर कहते
अधर्म के विरुद्ध रण का शंख तो 'तुम्हे' ही बजाना है
देर न करो उत्तर दो शीघ्र
इस कुरुक्षेत्र-धर्मक्षेत्र में क्या
'तुम्हे' युधिष्ठिर को धृतराष्ट्र की ओर से लड़ाना है
नहीं अगर तो धर्म स्थापना कैसे हो
अब 'तुम्हारी' आज्ञा मानने वाला अर्जुन किसे बनाऊँ
हे कृष्ण!'तुमसे' शस्त्र उठवाने को भीष्म कहाँ से लाऊँ

-तुषारापात®™

हरा पत्ता

कुछ पीले पत्तों के
कहने में आकर
दरख्त ने अपने ही
एक हरे पत्ते को शाख से गिरा दिया
हरा पत्ता उसके पैरों में पड़ा
रोता रहा गिड़गिड़ाता रहा
पर शाख जिसकी न हो उसकी सुनता कौन है
हरे पत्ते ने भी ठान लिया
तपस्या की
खुद को गला कर
खाद बनकर मिट्टी के रस्ते दरख्त में जा मिला
और
फूल बनकर उस दरख्त की कारगुजारी को महका दिया
-तुषारापात®™

Sunday 16 August 2015

हिन्दी की सहायिकाएं

"सिक्योरिटी.... सिक्योरिटी" प्रेक्षागृह के मुख्य द्वार पे एक अत्याधुनिक महिला अपने जाते यौवन को किसी तरह अपनी साड़ी से कसकर बाँधे हुए बड़े गुस्से से सिक्योरिटी गॉर्ड को आवाज लगा रहीं थीं, अंग्रेजसिंह दौड़ते हुए जल्दी से आया

"जी मैडम..यस मैडम जी" इससे ज्यादा अंग्रेजसिंह कुछ बोल नहीं पाया वो महिला उसपे दहाड़ना शुरू कर चुकी थीं

"तुम ये गेट छोड़ के कहाँ गायब हो..कैसे कैसे लोग अंदर घुसे जा रहे हैं... चलो इन्हें बाहर का रास्ता दिखाओ..बाकी तुम्हें तो मैं..बाद में बताती हूँ" महिला दाँत पीसती हुईं विदा हुई, अंग्रेज सिंह ग्रामीण परिवेश के एक दम्पति और उनके दो बच्चों को बाहर की तरफ हटाने लगा

"भइया अंग्रेज सिंह...ई मैडम कहियां तो समझाई समझाई केरे हार गेन....पर पता नाइ अंग्रेजी महियां का गिटर पिटर करत रही.. पर भइया तुम तो सुन लेव हमरी बात.. हम हैं दोहा और ई हैं हमरी पत्नी चौपाई"अपने साथ वाली महिला की तरफ इशारा करते हुए दोहा ने अंग्रेजसिंह से कहा और अपने दोनों बच्चों के सर पे हाथ रखते हुए आगे कहा

"अउर ई दुइनो हैं हमरे लरका..छन्द और सोरठा.." दोहा अभी ये कह ही पाया था की वहाँ से गुजरते कुछ एलीट क्लास के लोग उन्हें देखकर आपस में बात कर रहेे
"ओह गॉड..हू आर दे..लुक एट दीज जोकर्स..व्हाट ही इज वेअरिंग.. लुंगी ..लोल्ज..मस्ट बी बिहारी ऑर ब्लडी भोजपूरीज...दोहा की धोती को देखते और उसपे हँसते वो लोग प्रेक्षागृह के अंदर चले गए

दोहा अंग्रेजी नहीं समझता था पर अपमान की भाषा बहुत अच्छे से समझता था फिर भी शांत हो कर उसने अंग्रेजसिंह से कहा "भइया बस एक विनती राहय तुमसे कि......."

प्रेक्षागृह के ग्रीन रूम में बैठा सन्दर्भ आज बहुत खुश था पर साथ ही थोड़ा मायूस भी था आज पंद्रह अगस्त को उसे हिन्दी का 'ज्वलंत दीपक' पुरस्कार मिलने जा रहा था पर व्याख्या आज उसके साथ नहीं थी उसके कॉलेज में स्वतंत्रता दिवसोत्सव था,वो उससे बात करना चाह रहा था पर यहाँ प्रेक्षागृह में मोबाइल में नेटवर्क नहीं आता था और अपने ही सम्मान के कार्यक्रम से उठकर वो बाहर जा नहीं सकता था, तभी अंग्रेज सिंह ने उसके कान में आकर कुछ कहा सुनते ही वो बाहर की तरफ लगभग दौड़ते हुए मुख्य द्वार पे आया

"अरे चाचा जी...चाची जी प्रणाम" बड़ा बढ़िया नजारा था हिंदी का उभरता साहित्यकार दोहा और चौपाई के पैर छु रहा था "मुझे अंग्रेजसिंह ने सब बता दिया है...आप मेरे साथ अंदर चलिए ...अभी अभी मैंने अपने फ़ोन पे व्याख्या का मैसेज भी पढ़ लिया...उसने आप लोगों के आने के बारे में बताने को कई बार मेरा फ़ोन मिलाया..पर नेटवर्क....खैर वो सब छोड़िये आप सब अंदर चलिए"

"अच्छो हुवो संदू..जो तुम मिल गेव..नाइ इहाँ तो सब....लुल्ल बक्सियां हई" दोहा ने राहत की सांस ली, सन्दर्भ ने उन्हें सबसे आगे सोफे पे अपने पास बिठा लिया उसका मूड काफी खराब हो चूका था,उदघोषिका ने उसका नाम लेकर उसे सम्मान के लिए मंच पे आमंत्रित किया समारोह के रस्मो रिवाज के अनुसार सबका अभिवादन कर उसने कहना आरम्भ किया
"एक प्रश्न है मेरा आप सबसे...क्या आप अपनी मौसी का अपमान करके...अपनी माँ का सम्मान करते हैं ? हिन्दी हमारी मातृभाषा है पर क्या आंचलिक या...क्षेत्रीय भाषाओं के बिना इसका प्रसार संभव है?....यहाँ वातानुकूलित प्रेक्षागृहों में बैठकर..अंग्रेजी भाषा के गुलाम होकर और अपने ही देश के हमसे रहन सहन में भिन्न लोगों का अपमान कर ...और...कॉटन की कलफ़ लगी करारी साड़ी पहनकर....माथे पे अठन्नी से बड़ी बिंदी लगाकर..क्या.हिन्दी की रक्षा हो सकेगी..मुझे इसमें संदेह है..मैं पूरी विनम्रता के साथ...ये पुरस्कार...अस्वीकार करता हूँ" कहकर सन्दर्भ,दोहा चौपाई,छन्द और सोरठा को लेकर प्रेक्षागृह से बाहर निकल आया।

'अगर सहायक नदियाँ न हो तो जीवनदायनी गंगा भी एक छोटे से भूभाग तक ही सीमित रह जाती'

-तुषारापात®™

Saturday 15 August 2015

स्वतंत्रता दिवस

स्वतंत्रता दिवस ये भी याद दिलाता है कि हम कभी पराधीन थे हम पराधीन क्यों हुए उन कारणों को जानना समझना और उन्हें फिर कभी न दोहराना ही सच्चा स्वंतत्रता दिवस मनाना है सिर्फ राष्ट्रगान के लिए ही नहीं राष्ट्र के लिए भी खड़े होइए ।
वो राष्ट्र कितना भाग्यशाली है जो कभी किसी के अधीन ही नहीं हुआ और उसे स्वंतत्रता दिवस मनाने की आवश्यक्ता ही नहीं पड़ती मैं तो जानता हूँ वो राष्ट्र कौन सा है क्या आप जानते हैं ? पता लगाइये
इसी के साथ स्वतंत्रता दिवस की अनेको शुभकामनाएं ।
जय हिन्द !जय भारती !
-तुषारापात®™

Thursday 13 August 2015

इश्क की घड़ी

घड़ी देखनी आती हो तो ही पढियेगा :-

इश्क का अलार्म बज उठा था तब
दिसंबर की एक सुबह देखा था जब
दस बजके दस मिनट की तरह तुम्हें
अलसाई सी अंगड़ाई लेते हुए

खड़े रहते थे एक झलक को
छह बजे की तरह सीधे साधे से
दिन बिताये सेकंड की सुई की तरह
पीछे पीछे चक्कर लगाते हुए

गर्म दिल का लहू सर्द पड़ गया
अचानक रुककर जब पूछा था
कितना बजा है तुम्हारी घडी में
तुमने आँख मिलाकर मुस्कुराते हुए

घड़ियाँ मिल चुकी थी अपनी अब
वक्त बन रहा था देखा तुम्हें जब
सवा नौ बजे की तरह बाहें फैला के
अपने आगोश में मुझे बुलाते हुए

तीन परों की उड़नतश्तरी सी
बनायीं थी इश्क की घड़ी भी
बारह बजे की तरह तुमने
मुझको अपने गले लगाते हुए

फिर अचानक कुछ हुआ बेशक
सर्दी में जम गया दौड़ता इशक
जनवरी की एक शाम देखा तुम्हे
एक नयी घड़ी में चाबी भरते हुए

किसी और को नया वक्त बताके
मुझे सात बजके बीस मिनट बनाके
कहाँ चले गए तुम ?आओ जरा देखो तो,
अपाहिज वक्त को मेरे
घड़ी की सुइयों की बैसाखियों पे लंगड़ाते हुए।

-तुषारपात®™
© tusharapaat.blogspot.com

Wednesday 12 August 2015

लोकतंत्र

लोकतंत्र: जहाँ 'अंगूठे के निशान' के नीचे कई 'हस्ताक्षर' दबे रहते है

-तुषारापात®™

Tuesday 11 August 2015

कुल्टा रात

रात
जब बुढ़ा जाती है
शिशु सवेरे को
जन्म देकर मर जाती है/
जवाँ सवेरा
नन्ही दोपहरी के
इधर उधर
मुंह मारता फिरता है/
अधेड़ दिन
कच्ची शाम के साथ
मौका मिलते ही सो जाता है
और रात जवाँ हो जाती है /
रात
इस प्रश्न का
उत्तर देते देते थक जाती है
कुल्टा बता तू
कहाँ अपना मुँह काला करवाती है/

-तुषारपात®™

हिन्दू प्याज

ऐ मोमिनो! देखो! तुम प्याज बिलकुल मत खाना, ये हिन्दू है ये शंख के जैसा है

-तुषारापाती®™फतवा 

Sunday 9 August 2015

अक्स

अक्स जिनका नजर आता था मुझमें
उन्हीं के लिए हम 'आइना' हो गए

-तुषारपात®™


प्रेम साधना

आप दिल्ली मेट्रो में सफ़र कर रहें हों
अपनी सीट पे बैठे बैठे कुछ गुनगुनाते हुए
आते जाते लोगों को देखते हुए अपने में गुम हों कि तभी आपके डिब्बे में आती हुई भीड़ में एक बहुत ही आकर्षक युवा महिला मेट्रो में दाखिल होती है सबकी लोहे सी निगाहें उनके चुम्बकत्व के दायरे में सिमट के रह जाती हैं पर ये क्या अचानक आपका चोर दिल बड़ी तेज़ी से धड़कने लगता है जब आप उसे देखते हैं की वो आपकी ओर ही देखे जा रही है और तेज़ी से आपकी तरफ आ रही है और डब्बे के सारे लोग उसे और आपको देखने लगते हैं एक रहस्मयी मुस्कान सबके चेहरे पे देख के आप थोड़ा आश्चर्य में होते हैं और थोड़े क्या बहुत ज्यादा गर्व में होते हैं और वो आपके बिलकुल नजदीक आकर बड़े प्यार से अपनी ज़ुल्फ़ें झटक के,मुस्कुरा के अपने गुलाबी होठों को थिरका के थोड़ा कड़क अंदाज़ में आपसे कहती है "excuse me you are on ladies seat"
और यूँ आपकी छोटी सी प्रेम साधना पे हो जाता है 'तुषारापात'!

-तुषारापात®™

Saturday 8 August 2015

वर्णमाला

"अरे सन्दर्भ बेटा...एक छोटा सा काम था तुमसे..अगर हो सके तो..इस बार भी...हमारी कुछ मदद कर दो..बेटा" शब्दकोष ने सकुचाते हुए कहा

"अंकल..मैं जरा जल्दी में हूँ..ऑफिस के लिए निकल रहा हूँ...ऐसा करिये आप ...व्याख्या से बात कर लीजिये" सन्दर्भ समझ गया कि हमेशा की तरह ये रुपैये मांगने आये होंगे इसलिए वो उन्हें टाल कर चलता बना

"ओह्ह..अब बहु से मैं क्या बात करूँ..ऐसा है..मैं...मैं तुम्हारी आंटी को भेज देता हूँ" हताश होकर उन्होंने कहा और भारी क़दमों से वापस हो लिए
टिंग..टॉन्ग..टिन्न्न टॉन्ग.ग...ग
थोड़ी देर में सन्दर्भ के फ्लैट की घंटी बजती है व्याख्या दरवाजा खोलती है
"अरे वर्णमाला ऑन्टी आप...आइये...अंदर आइये..."

वर्णमाला अंदर आ जाती है व्याख्या दरवाजा बंद करके कहती है "बैठिये आंटी..बताइये कैसे आना हुआ.."

"अब क्या बताऊँ बेटी..तुम तो जानती ही हो..तुम्हारे अंकल की तनख्वाह कितनी है....और ऊपर से इतना बड़ा हमारा परिवार..कुछ न कुछ लगा ही रहता है..अभी तेरे अंकल नीचे सन्दर्भ से मिले थे..पर शायद वो जल्दी में था..तो तुमसे बात करने को बोल गया....बड़ी बेटी मात्रा की गोद में व्यंजन को बिठा के बड़ी आस से तेरे पास आई हूँ" वर्णमाला किसी तरह भूमिका बाँधते हुए बोली
"अ..बेटी..कुछ पैसों की जरुरत थी..स्वर और व्यंजन दोनों को कई दिनों से बहुत तेज बुखार है..डॉक्टर ने कई टेस्ट कराने को लिखा है..पर घर में एक पाई भी नहीं है..उनके इलाज के लिए तुम्हारे आगे हाथ फैला रही हूँ" वर्णमाला शर्मिन्दिगी से रुआँसी आवाज में आँख झुका के बोली

"आंटी..एक बात कहूँ..प्लीज.बुरा मत मानियेगा...इस महंगाई के दौर मे..ं सत्रह सत्रह बच्चे पैदा करना...कहाँ की समझदारी है..यहाँ तो..दो बच्चों को पालना मुश्किल है" व्याख्या ने तीखी बात थोड़ी मीठे लहजे में कही

"अ..बेटी..स्वर और व्यंजन से पहले सारी लड़कियां ही हुई..उनके बाद स्वर फिर व्यंजन हुआ...अब वंश चलाने के लिए लड़का तो चाहिए था..इसीलिए इतने बच्चे होते गए..और बेटी..ये तो सब भगवान के हाथ में है"वर्णमाला जमीन में गड़ी जा रही थी

" आंटी..वंश फांके करके तो नहीं चलता न..और क्या एक लड़की अपने पिता..अपने वंश का नाम नहीं रौशन करती..आप जैसी सोच के लोग ही..लड़के की चाहत में या तो बच्चे पैदा किये जाते हैं..या फिर लड़कियों को कोख ही में मार देते हैं" व्याख्या ने महसूस किया कि उसकी आवाज में अजीब सी घृणा भरती जा रही है
"खैर..इस बार तो मैं आपकी मदद करे दे रही हूँ..पर आगे से आंटी..आप भी समझती ही हैं..कि आजकल घर चलाना कितना मुश्किल है..और वैसे भी शब्दकोष अंकल को सन्दर्भ ने पहले भी कितनी बार पैसे दिए हैं" कहकर उसने 2000 रुपैये वर्णमाला को दिए,वर्णमाला लज्जित थी पर मजबूर थी पैसे ली और आर्शीवाद देते हुए चली गई
शाम को जब सन्दर्भ आया तो व्याख्या ने उसे पूरी बात बताई

"यार कितनी बार पैसे देंगे हम..अब शब्दकोष अंकल और वर्णमाला आंटी तो लगता है पूरे अड़तालिस करके ही मानेंगे... अक्षरों(लड़कों) के चक्कर में मात्राओं(लड़कियों) को पैदा करते गए....अब उनके बच्चे क्या हम पालेंगे....... सन्दर्भ झुंझला के बोला

" क्या बताऊँ..ये पढ़े लिखे लोग भी इतनी बेवकूफियाँ करते हैं..चाहे जितना भी हम तरक्की कर जाएँ..पर सन्दर्भ...ये लड़के लड़की का भेद कभी मिट पायेगा क्या?" व्याख्या का सवाल पता नहीं किससे था ।

'ब्रिटिश साम्राज्य की उत्तराधिकारी क्वीन भी होती है जिसके नाम से पूरा शाषन चलता है'

-तुषारपात®™
बेशक तुम कलम का सर कलम कर दो
स्याही बिखर के फिर भी तेरा जुर्म लिखेगी
गला काटकर चाकुओं से गोद गोदकर मारे गए कई धर्म निरपेक्ष ब्लॉगर
क्या धर्म निरपेक्षता या सेकलुरिस्म की वजह से मारे गए ? या धार्मिक कट्टरता के विरोध के लिए ? या शायद कट्टरों को उनका मानव धर्म याद दिलाने की सजा है ये? मानवता इंसानियत मर चुकी है धर्म विलुप्त हो चूका है बाकी रह गए हैं सिर्फ धर्मान्ध और अंधों को कुछ नहीं दिखता । तलवार और कलम की ये जंग जारी है आप किस तरफ हैं ? :(

-तुषारपात®™

Friday 7 August 2015

तुम इश्क और तुम्हारा शहर

तुम्हारे साथ साथ
तुम्हारे शहर से भी इश्क किया है मैंने
वो फाफामऊ पुल की तरह
मेरे दिल की थरथराहट
प्रयाग स्टेशन पे रुकी
ट्रेन पे घंटों की झुंझलाहट
आउटर से देखना
काली प्रसाद इंटर कॉलेज का मैदान
वो पंद्रह मिनट की
स्टेशन की दूरी में गिनना सारे मकान
प्लेटफार्म नंबर दस से
एक तक की वो लंबवत दूरी
लम्बे लम्बे कदमों से भी
कमबख्त होती नहीं थी पूरी
वो भारद्वाज आश्रम की मखमली घास
सरस्वती घाट पे तुमसे मिलने की आस
आनंद भवन की
चटकीली धूप और नक्षत्रशाला की छाँव
संगम में दूर तक
नैनी पुल तक जाती हंस वाली हमारी नाँव
वो लोकनाथ का डोसा
कटरे पे नेतराम की कचौड़ी
मयोहाल से
यूनिवर्सिटी तक की भागा दौड़ी
मेडिकल पे
टमाटर की वो चाट चटोरी
सिविल लाइन्स की
सोफ़िया लॉरेंस की गिलौरी
झूंसी और सोराँव की
तुम्हारी सारी सखी सहेलियाँ
खुल्दाबाद से मुड़ती
लूकरगंज की सारी गलियाँ
गंगा ने
गोमती से मिला लिया था हाथ
इन सबसे
इश्क है मुझे प्रिये तुम्हारे साथ ।

-तुषारापात®™

Thursday 6 August 2015

आयत

उतरती तो मुझपे भी हैं खूब आसमानी इबारतें
सब उन्हें शेर कहते हैं आयत कोई नहीं कहता

-तुषारापात®™

राधे माँ भी कभी बहु थी

हिन्दुओं क्या हो गया है तुम्हें ? अपनी 5000 साल परम्परा और महान संस्कृति की बागडौर किसे सौंप रहे हो तुम? कभी राधे माँ जैसी (जो माँ शब्द का बलात्कार कर रही है) तो कभी कोई शराब व्यवसायी जो आध्यात्म और धर्म से कोसों दूर हैं महामंडलेश्वर बनते जा रहे हैं
क्या अब ऐसे लोग हिंदुत्व को आगे लेकर जाएंगे ?
धर्म की पताका धन से खरीदी जा रही है और बड़े बड़े शंकराचार्य इसपे मौन हैं उनकी चुप्पी मैं समझ सकता हूँ क्योंकि उन्हें अपनी सत्ता और प्रभाव के लिए ऐसे लोगों की आवश्यकता है वो क्यों कर इसका विरोध करेंगे कहीं न कहीं ढके छुपे इनका समर्थन ही हैं उनके लिए पर तुम्हें क्या हो गया है तुम इतने सोये हुए कैसे हो सकते हो?
कभी किसी कथा वाचने वाले ढोंगी को तुम संत बना देते हो तो कभी किसी संसारी माया के लोभी को बड़े बड़े आश्रम बनवा देते हो क्या तुम्हारे वेद पुराण पिछले 5000 सालों में तुममें इतनी भी बुद्धि नहीं दे सके कि तुम ढोंगियों और संत में अंतर कर पाओ नहीं इसका कारण है कि तुमने खुद अपने धर्म को अपने भीतर सुप्त कर दिया है तुम खुद माया के लोभी होकर अपनी छोटी छोटी संसारी इच्छाओं की पूर्ती के लिए इन सबका समर्थन करते आ रहे हो और तुम्हारी यही क्षुद्र कामनाएं तुम्हारा पतन कर रहीं हैं धर्म के नाम पे बस तुम्हारे पास धर्मग्रंथो की घिसी पिटी पंक्तियाँ हैं जो तुम एक दूसरे को सुना सुना कर खुश हो रहे हो पर अपने आचरण से धर्म को विलुप्त करते जा रहे हो
सनातन धर्म को खतरा किसी बाहरी कारक से नहीं बल्कि ऐसे ही अधार्मिक और कलंकित रंगे सियारों से है जो तुम्हारे अघोषित नेता बनते जा रहे हैं संसार में चारों ओर जग हंसाई हो रही है हमारे महान धर्म को ढोंग और पाखण्ड कहा जा रहा है और हमारे छवि एक लोभी अंधविश्वासी की बनती जा रही है अगर समय रहते नहीं चेते तो ये धर्म की गंगा बहुत जल्दी एक बदबूदार नाले में बदल जायेगी और इसके उत्तरदायी तुम्हारी ये चुप्पी होगी।
जितने कट्टर हिन्दू शेर/लोमड़ी/चीते हैं अक्सर देखता हूँ कि दूसरे मजहब को आतंक से बहुत जोर शोर से जोड़ते हैं और उनकी कड़ी निंदा करते हैं पर हिंदुत्व में घुस आये इन आतंकवादियों को लेकर चुप्पी क्यों है हाँ ये राधे माँ आशाराम जैसे लोग हिंदुत्व के आतंकवादी हैं इन्हें कुचल दो वरना बहुत देर हो जायेगी और इन्हें कुचलने के लिए कोई हथियार उठाने की जरूरत नहीं है बस अपने आचरण में धर्म को स्थापित करो और इन जैसे पाखण्डियों से धर्म का झंडा लेकर स्वयं फहराओ।
जाग जाओ इससे पहले की ये तुम्हारा धर्म भी बेच दें और तुम किसी और मजहब के शरणार्थी बन के रह जाओ।

-तुषारापात®™

Wednesday 5 August 2015

उपाय

प्रमुख सिंह बड़े परेशान थे अपने जीवन के छत्तीस बसन्त देख चुकने के बाद भी अभी तक विवाह रूपी सावन की बौछारें उनपे नहीं पड़ी थीं, किसी मित्र ने सलाह दी कि किसी अच्छे ज्योतिषी को अपनी कुंडली दिखाओ आखिर दिक्कत कहाँ है ये तो पता चले तो वो एक बहुत ही प्रसिद्द ज्योतिषी के पास पहुँच गए और उसके चरणों में दंडवत प्रणाम कर बोले

" महाराज! मेरे यौवन का मानसून जाने को है....क्या कोई..एक भी हरी भरी डाली नहीं..जिसपे...मेरा मन अपना झूला डाल सके? कुछ कीजिये .....कुछ उपाय बताइये....महाराज किसी तरह ....बस मेरा विवाह करा दो"

ज्योतिषी ने उनकी कुंडली को तीन सौ साठ अंश से जांच परख के देखने के बाद कहा" बेटा, तुम्हारी कुंडली के सातवें भाव में...केतु विराजमान है और राहु मंगल की सीधी दृष्टि....तुम्हारे घर ये मंगल कार्य होने से रोक रही है... ऐसा करो ये सवा सात रत्ती का मूँगा धारण करो, सब अच्छा होगा"

प्रमुख सिंह ख़ुशी ख़ुशी मूँगा लेकर घर आये और इंतज़ार करने लगे कि किसी नवयौवना के पिता अपनी सुपुत्री का हाथ इन्हें सौंपने बस आते ही होंगे पर दो महीने बीत जाने पर जब कुछ नहीं हुआ तो फिर से ज्योतिषी के पास पहुंचे
" महाराज आपने कहा था...कि विवाह हो जायेगा ..पर कुछ नहीं हुआ"

" तुम्हें मैंने मूँगा दिया था उसका क्या किया" ज्योतिषी ने प्रमुख सिंह की सारी उँगलियाँ खाली देख कर आश्चर्य से पूछा

"अरे वो..वो तो मैंने उसी शाम खा लिया था...जिस दिन आपने दिया था...हाँ थोडा पेट में दर्द हुआ था..फिर ठीक हो गया था" प्रमुख सिंह के मुखमंडल पे पूरे जहान की मासूमियत चमक रही थी

" अरे मूर्ख !.. वो तुझे पहनने को दिया था..खाने को नहीं...खैर ऐसा कर ...अब तुझे एक बहुत ही सरल पर बिलकुल अचूक उपाय बता रहा हूँ ..ध्यान से करना..तेरी मनोकामना पूरी हो जायेगी..ऐसा कर 43 दिनों तक तीन कुत्तों को तीन रोटी प्रतिदिन खिलाना है तुझे..बस अब ये उपाय सही से करना.."

प्रमुख सिंह इस बार बहुत ही प्रसन्न हुए कि अब तो शहनाई बज ही जायेगी वापस आते समय राह में जब भी कोई कुत्ता दिखता तो उन्हें उसमे अपनी बारात में बैंड बजाने वाला दिखने लगता, खैर साहब तैंतालीस दिन उपाय के बीत गए,उसके भी एक महीने बाद कुछ नहीं हुआ श्री हरी भगवान भी सोने चले गए शादी विवाह के मुहर्त भी नहीं रह गए वो फिर से पहुंचे महाराज जी के पास

" क्या हुआ प्रमुख सिंह..अब भी कुछ नहीं हुआ क्या?" प्रमुख सिंह की चाल ढाल से इस बार ज्योतिषी ने पहले ही समझ लिया

" हाँ महाराज कुछ नहीं हुआ...मुझे लगता है आप बस हमको लॉलीपॉप थमा रहे हो..ऐसा करो महाराज...हमारा पैसा वापस कर दो..नहीं तो ..अच्छा नहीं होगा...हाँ नहीं तो" प्रमुख सिंह का क्षत्रिय जाग रहा था

" उपाय किया था...पूरा?" ज्योतिषी ने शांत भाव से पूछा

" हाँ.. पूरा किया..तैंतालीस दिन तक..जैसा आप बताये थे..पर कुछ नहीं हुआ..साले कुत्तों को...पुचकार पुचकार के खुद...कुत्ते बन गए हम"

"अच्छा क्या किया ये बता" ज्योतिषी ने पूछा

" अरे अब क्या बताएं..आपको...एक तो ऐसा कठिन उपाय बताया आपने
..साले लखनऊ के कुत्ते भी कम रंगबाज नहीं हैं.....सूखी रोटी देखे के ऐसे मुंह बनाते हैं...जैसे किसी नवाब को....कबाब की जगह घास फूंस परोस दी हो..तीन तो छोड़ो..एक कुत्ता हमारी रोटी नहीं खाता था..लेकिन फिर हमने भी दिमाग लगाया और सालों को सुधार दिया"

"अच्छा क्या किया तुमने" ज्योतिषी अब अपनी उत्सुकता रोक नहीं सका

"अरे करना क्या था..साले तीन कुत्तों को..रोज बाँध के ....डंडा मार मार के रोटी खिलाता था..जब तक रोटी खत्म न करें..तब तक...दे दनादन डंडा मारता रहता था...रोज नए कुत्ते लाने पड़ते थे..कम से कम..अ..चालीस पच्चास कुत्तों को... ऐसे ही रोटी खिलाई"

ज्योतिषी ने अपना माथा पीट लिया और प्रमुख सिंह के पैसे वापस कर दिए।

'उपाय तभी कर पाओगे जब ग्रह सही होंगे तभी उपाय अपना फल देगा..जब समय सही होने वाला होगा तो उपाय किसी न किसी रूप में खुद तुम्हारे सामने पहुँच जायेगा'

-तुषारापात®™

Tuesday 4 August 2015

porn ban

पॉर्न बैन से हाथ देख कर भविष्य बताने वाले ज्योतिषियों को बहुत आराम हुआ है वरना नौजवानों के हाथों की रेखाएं मिटती जा रहीं थीं और देश का भविष्य खतरे में था।

-बाबा तुषारपात®™

पिन बोर्ड

जो रूह नहीं तो क्या है आदमी
पिन बोर्ड पे टांक दो
दिल जिगर और एक जोड़ी गुर्दा
लो बन गया आदमी

-तुषारापात®™

Monday 3 August 2015

मानसिक हलन्त

" तेरी हिम्मत कैसे हुई...मेरे बेटे को गलत कहने की...खेल खेल में चोट वोट तो लग ही जाती है...इसमें क्या बड़ी बात है...बड़ी आईं हैं मेरे बेटे की शिकायत लेकर." विभक्ति चिल्ला चिल्ला कर बोल रही थी

" अरे विभक्ति जी..कैसे बात कर रहीं हैं आप...मैंने खुद अपनी आँखों से देखा है..कारक ने जानबूझकर हलन्त को धक्का दिया है...वो झूले से गिरते गिरते बचा है..उसे काफी चोट आ सकती थी...आप अपने बेटे कारक को समझा के रखिये...वो कुछ ज्यादा ही शैतानी करने लगा है" संधि ने भी ऊँची लेकिन मर्यादित भाषा में अपनी बात रखी

" हुँ..मेरे बेटे को शैतान कहती है तू...तेरा बेटा तो बड़ा दूध का धुला है...अगर इतनी ही फिकर है..तुझे अपने बेटे की....तो....तो..उस लंगड़े को इन बच्चों के साथ खेलने भेजती क्यूँ है तू...अब स्वस्थ बच्चों के साथ लंगड़ा खेलेगा तो गिरेगा पड़ेगा ही" विभक्ति ने कारक का हाथ पकड़ते हुए हलन्त की तरफ बुरा सा मुंह बनाते हुए कहा

संधि का दिल अंदर तक छिल गया..अपमान से उसकी आँखे भीग गई कांपती आवाज में वो बोली
"आप अपनी हद में रहिये..मेरे बच्चे को..बच्चे को..उसके सामने ही ..ऐसा कहने में शर्म नहीं आती..अपना घटियापन दिखा दिया आपने.."

व्याख्या निष्कर्ष और टिप्पणी को लेकर सोसायटी के प्लेइंग ग्राउंड में आई हुई थी अपनी सोसाइटी की इन दोनों पड़ोसनों को वहाँ यूँ लड़ते देख वो संधि के पास गई और उसे अपने साथ ले आई

" व्याख्या ....पता नहीं भगवान् ने मेरे साथ ही ऐसा क्यूँ किया.. हलन्त हैंडीकैप है इसमें उस बेचारे की क्या गलती..ये कारक अक्सर उससे मारपीट करता रहता है..और ये विभक्ति से कहने जाओ तो..कैसे बिहैव करती है..वो तो तुमने देखा ही है..जरा सा भी रहम तो आना दूर...ऊपर से मेरे बच्चे का मजाक बनाती है....मैं हैंडीकैप्ड कैंप जा जा कर दूसरे लोगों की कितनी सेवा करती हूँ...फिर भी भगवान् मुझे ही दुःख देते हैं " संधि रुआँसी हो गई

" देखो संधि ...इस दुनिया में दो तरीके के लोग होते हैं...एक जो लोगों को जोड़ते हैं ....उनके दुखों को समझते हैं ...उनको हौसला देते हैं जैसे कि तुम हो ...और ...दूसरी तरफ विभक्ति जैसे हैं ...जो किसी को अपने आगे कुछ नहीं समझते...दूसरों का मजाक उड़ाते हैं ...और लोगों में अपने को बड़ा बना के ...दिखावा करते हैं...ऐसे लोग समाज को बांटते है.." व्याख्या ने उसे समझाया और आगे कहा

" और ये कहाँ अच्छा लगता है कि..बच्चों की लड़ाई में बड़े इस तरह तू तू मैं मैं करें..अच्छा ये बता ..अगर हलन्त ऐसा नहीं होता तो क्या... तुम्हे हलन्त जैसे और बच्चों से इतनी हमदर्दी होती?..नहीं न..शायद भगवान ने तुम्हारे साथ ऐसा करके..ऐसे और बच्चों के लिए तुम्हारे मन में उनके लिए सम्मान और ममता जगाई है..जिससे उन्हें भी एक सहारा मिल सके..चल अब परेशान मत हो..जाने दे..आगे से हलन्त को निष्कर्ष और टिप्पणी के साथ खेलने भेज दिया करना" व्याख्या ने उसे हिम्मत दी..संधि हलन्त को लेकर चली गई

"मम्मा..हलन्त बैया ने..वो..वो..अमी..ताब..बरतन..के दो बूँड ..जिनडगी वाले पो.लि..यो.. ड्रा..फ नई पिया था...टिप्पणी ने अपनी तुतलाती आवाज में व्याख्या से पूछा

" हाँ बेटा..शायद नहीं पिया.." उसने टिप्पणी को प्यार से चूमते हुए कहा और मन ही मन बुदबुदाई "शायद विभक्ति को ज्यादा जरूरत थी उन ड्रॉप्स की..पर क्या मानसिक विकलाँगता के लिए कोई ड्रॉप्स आता है ?"।

'सक्षम व्यक्ति के जीवन में भगवान् की उत्पत्ति देर से होती है'

-तुषारापात®™