Wednesday 7 October 2015

कुछ मीठा हो जाए


आप लोगों ने वो कहानी तो सुनी/पढ़ी ही होगी जिसमे सारस और लोमड़ी एक दुसरे को दावत पर बुलाते हैं सारस लोमड़ी को दावत देता है तो खाना परोसता है सुराही में (सुराही अपनी जगह fix रही होगी ) अब सारस तो अपनी चोंच से खाना खा जाता है पर लोमड़ी बेचारी सुराही में कैसे खाती खैर फिर लोमड़ी ने दावत दी सारस को और खाना परोसा थाली में अबकी सारस बाबु भूखे रह जाते हैं,बचपन में सबने सुनी होगी ये कहानी
अब आते हैं असली कहानी पे

भई मेरी और पत्नी ट्विंकल की खाने पीने की पसंद और आदतें बहुत अलग अलग हैं उन्हें हद से ज्यादा रसीली सब्जी पसंद है (शायद वो प्रयाग से हैं जहाँ तीन तीन नदियों का संगम है इसलिए ऐसा हो ;) ) और मुझे पसंद है सूखी सब्जी खूब भुनी हुयी (हमारे यहाँ की गोमती नदी की भी हालत आजकल ऐसी ही है) तो एक दिन मेरी पसंद का खाना बनता है तो दूसरे दिन पत्नी जी की पसंद का (ये नहीं बताऊंगा की बनाता कौन है शादीशुदा सब समझदार हैं समझ ही लेंगे) तो जिस दिन जिसके मन का खाना नहीं बनता तो वो उस दिन थोड़ा कम खाना खाता है और उसकी भरपाई के लिए kitchen में कुछ मीठा ढूंढता है मिठाई हो या बिस्किट वैगरह वैगरह।

कल रात परवल आलू की रसीली सब्जी बनी,यकीन मानिये इतनी रसदार कि कटोरी में गंगा माँ साक्षात् थीं खैर हम चुपचाप हर हर गंगे कर लिए और कुछ मिठाई ढूंढी वो भी न मिली (badluck बड़ा अच्छा है हमारा)
अब भाई आज बनी सूखी सब्जी वो भी सोया-मेथी आलू की और साथ में पराठे अब अपने राम तो फटाफट मन से पूरा खाना खा गए अब बारी ट्विंकल जी की थी जो बेचारी बड़ी मुश्किल से एक एक कौर निगल रहीं थी फिर बड़ी मासूमियत से बोलीं (इसी बात से ये पोस्ट लिखने का विचार इस नाचीज को आया) कि "सोन पापड़ी घर में रखी जा सकती है वो जल्दी ख़राब भी नहीं होती", इतना सुनना था की हम दोनों पूरी बात समझते हुए खिलखिला के हँसते हँसते खाने की मेज पे लोटपोट हो गए ,
इन्ही खट्टे मीठे लम्हों से गृहस्थी का सुख है।
फिर मन में विचार आया की यही हम जिंदगी के साथ करते हैं जो मन का होता जाये वो तो ख़ुशी ख़ुशी स्वीकार करते हैं और जो मन का नहीं उससे भागते हैं और दुःख का रोना रोते हैं और मिठाई वाले (किसी ज्योतिषी/ताबीज वाले बाबा) के पास जाते हैं। मिठाई भोजन का छोटा सा विकल्प हो सकती है परन्तु सम्पूर्ण भोजन नहीं बन सकती । तो ज्यादा मीठा खाओगे तो डाईबीटीज हो जाएगी भईया फिर न कहना की बोले नहीं थे।
तो इसी बात पे कुछ मीठा हो जाए ;)

-तुषारापात®™ (repost)
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