Sunday 21 May 2017

एयर कंडिशन्ड लड़का

चलते चलते कार का ए सी अचानक खराब हो गया,दोपहर का टाइम था तो धूप भी बहुत तेज थी,थोड़ी ही देर में विमल के सर से पसीना बहने लगा,वो बड़बड़ाने लगा "ये साले सर्विसिंग वाले भी...अच्छा खासा तैयार होके निकला था..पसीने ने सारे कपड़े खराब कर दिए"

सीतापुर में उसकी बिजिनेस मीटिंग है,अभी वो हाइवे पे पचीस तीस ही किलोमीटर चला था कि ए सी ने काम करना बंद कर दिया था वो पसीने से लथपथ था पर फिर भी कार के शीशे नीचे नहीं कर रहा था हाइवे पे उड़ती धूल और गाड़ियों के शोर से उसे बहुत कोफ्त होती थी।

"धत्त तेरे की..." अचानक लहराती कार को उसने किसी तरह संभाला  कार थोड़ी दूर जाकर ही सड़क के किनारे लग पाई,वो दरवाजा खोल के टायर पे लात मारता है कार का अगला टायर पंचर था गुस्से से तमतमाया वो इधर उधर देखता है कि पता करे पंचर वाले कि दुकान कहाँ है हालांकि उसकी कार में स्टेपनी है पर उसे टायर बदलने का काम बहुत ही खराब लगता है और इस समय तो वो अपने साफ कपड़े बिल्कुल ही खराब नहीं करना चाहता था,वो देखता है जिधर वो जा रहा था उसी ओर थोड़ी दूर पे खप्पर पड़ी कोई चाय वाय की दुकान है,वो उस ओर भारी कदमों से चल देता है तेज धूप में चलते हुए जब वो दुकान पे पहुँचता है तो पसीने से पूरा भीगा होता है प्यास से उसका गला सूखने लगा था वो दुकान के पास पड़े सायकिल के एक टायर को देखते हुए उस चायवाले से पूछता है "क्यों..यहाँ आसपास कोई पंचर बनाने वाला है क्या..कार का पंचर..."

"इहाँ तो नाई..पर 'सर' इहाँ सेरे तकरीबन पन्द्रा किलोमीटर आगे पेटोल पंप परिहां  हई" चाय वाले का जवाब सुनकर विमल का दिमाग और खराब हो गया उसने कहा "अच्छा पानी है?" उसके कहते ही चायवाले के यहाँ खड़ा एक 10-11 साल का लड़का झट से दौड़ के पास लगे हैण्डपम्प से पानी भरके के प्लास्टिक का मग उसके सामने रख देता है

"अरे बोतल वाला है?" विमल मग को दूर खिसकाते हुए चाय वाले से खीजते हुए पूछता है चायवाला उस लड़के को डाँटता है "तुम ससुरे के एक तउ इहाँ बेफालतू महियां खड़े राहत हो अऊर ग्राहकी कहियां अलग परेशान करत हउ" कहकर वो प्लास्टिक के नीले बक्से से बर्फ में दबी पानी की ब्रांडेड बोतल विमल के हाथ मे देता है विमल जल्दी से गटागट करके आधी बोतल खींच के पी जाता है और उस लड़के से कहता है "जरा चलके मेरे साथ टायर बदलवा देगा..पैसे दूँगा" लड़का तुरंत तैयार हो जाता है और दुकान पे अपने साथ लुढ़का के लाये उस सायकिल के टायर को उठा के कहता है "चलऊ"

विमल एक और पानी की बोतल खरीदता है और दोनों बोतल पकड़े हुए विमल और वो लड़का सायकिल का टायर पकड़े पकड़े कार की ओर चलने लगते हैं,कार के पास पहुँच के विमल हाथ मे पकड़ी पानी की बोतलें कार की सीट पे रख,डिग्गी खोल के स्टेपनी और जैक वगैरह निकाल के बाहर रखता है और अनमने मन से पंचर टायर के नट खोलना शुरू कर देता है बीच बीच में वो अपनी पैंट भी बचाने की कोशिश करता जाता है पास खड़ा लड़का उसे देखता है तो एक झटके में अपनी बुशर्ट उतार के सायकिल के टायर पे डालता है और नट खोलने वाले पाने की रॉड पे खड़े हो होकर नट खोलने लगता है किसी तरह दोनों मिलके टायर बदल लेते हैं,जैक वगैरह कार की पिछली सीट पे फेंकने के बाद पसीने से लथपथ विमल पानी की बोतल उठाता है और लड़के की तरफ देखता है लड़का भी पसीने से भीगा हुआ था वो बड़े मजे से अपनी बुशर्ट से अपना बदन पोछ रहा होता है विमल उससे पूछता है "पानी लोगे" और उसकी ओर पूरी भरी वाली बोतल और बीस का नोट बढ़ाता है

लड़का पसीने से भीगी शर्ट पहन चुका होता है उसे प्यास लगी थी वो बोतल और नोट झट से पकड़ता है नोट अपनी निक्कर में डाल वो बोतल झुका कर अपने हाथ से चुल्लु बना पानी पीना शुरू करता है और तुरंत ही रुक जाता है "उरे...यउ पानी तो बिल्कुलई बेस्वाद हई..यउ तउ अब अपने कहियां ए सी बनहिए" यह कहकर वो बोतल में बचा पानी अपने सर के ऊपर डाल लेता है और खाली बोतल से साइकिल के टायर को लुढ़काते हुए पानी से भीगी शर्ट और भीगे बाल उड़ाता चाय की दुकान की ओर दौड़ जाता है

विमल कुछ देर केलिए उसे बस देखता ही रह जाता है,पानी पीता है और अपनी शर्ट का ऊपरवाला एक बटन खोलता है,दोनों आस्तीनों के बटन खोल के ऊपर मोड़कर,कार में बैठता है और कार स्टार्ट कर, आगे बढ़ा देता है,थोड़ा सा चलने पर वो लड़के के पास पहुँच जाता है,लड़का लुढ़कते टायर पर बोतल मार के चहकते हुए हॉर्न की आवाज की नकल करता है "पों..पो.."

विमल उसे देख के मुस्कुराता है उसकी कार उस एयर कंडिशन्ड लड़के के एक चक्रीय वाहन को  क्रॉस करके आगे बढ़ने लगती है इस बार उसकी कार के शीशे उतरे हुए हैं और पसीने से भीगे होने के कारण बाहर की गरम हवा उसे ठंडक पहुँचा रही है।

-तुषारापात®

Friday 19 May 2017

गुलाबी

वो इतने हैं गुलाबी
के कैलेंडर ज़रा छू लें
तो हर तारीख़ इतवार हो जाए

और जिस कागज़ पे
वो अपने कर दें दस्तख़त
वही नोट -ए- दोहज़ार हो जाए

-तुषारापात®

Tuesday 16 May 2017

तू मुझमें

कई बार
ये होता है
तू मुझमें
छुपा होता है
आईने में होती है
जो सूरत
उसकी आँखों में
तू दिखाई देता है

लबों के
हिलने से
अपना
लेने से
एक कान को तेरा
एक को मेरा
नाम
सुनाई देता है

कई बार
चौंक चौंक जाता हूँ
जब अपने चेहरे पे
हाथ फिराता हूँ
समझ में नहीं आता
तू मुझको
या मैं तुझे
छुआई देता हूँ

होता है
यूँ अपने भी साथ
कई बार
होता हूँ खाली हाथ
लहू बेच के
मगर तेरी तस्वीर पे
चढ़ा फूलों की
कमाई देता हूँ।

-तुषारापात®

Thursday 11 May 2017

सिद्ध साधना

"ऑटोग्राफ प्लीज" बुक फेयर में मेरी लिखी एक पुरानी नावेल लिए एक हाथ मेरी ओर बढ़ता है...नावेल पकड़ी उन उंगलियों को मैं तुरंत पहचान लेती हूँ...मेरी जुल्फों में इन पोरों के प्रिंट आज तक मौजूद हैं.. "त.तुम..." अपने आसपास मौजूद प्रशंसकों को अपनी नई नावेल पे ऑटोग्राफ देते हुए मैं बस इतना ही बोल पाई उसे बैठने का इशारा किया और कुछ फैन्स को फटाफट नावेल साइन करके थोड़ा सा वक्त माँग एक ब्रेक लिया

"आज न्यूज़ में पता चला कि अपनी नई नावेल के लिए तुम दिल्ली आई हो तो चला आया...तुम्हारी सबसे पहली नावेल का ये पहला पहला प्रिंट आज तक तुम्हारे हस्ताक्षर को तरस रहा है..सोचा शायद आज बत्तीस साल के बाद..."पूरी बात कह उसने आखिरी सेन्टेन्स अधूरा छोड़ दिया

मैंने उसके हाथ से नॉवेल अपने हाथ मे ली और उसपे हाथ फिराया "अधूरी साधना..ये जब लिखी थी तो नहीं जानती थी कि कभी मैं ही पूरी नहीं हो पाऊँगी.. क्या करोगे मेरे हस्ताक्षर लेकर..'दी साधना मजूमदार फ्रॉम लंदन' मैं लिखना नहीं चाहती और वक्त ने तुम्हारी साधना लिखने नहीं दिया" मैंने आंखों में आई नमी को मुस्कुराहट की मिट्टी से सुखाते हुए कहा

"एक टाइम रुकी हुई घड़ी..दोबारा से भी चल सकती है..वक्त सुइयों की बाहें फैलाएं फिर से खड़ा है..साधना..कुछ भी तो नहीं बदला..तुम भी वही हो और मैं भी..हाँ..तुम्हारी कमर थामने वाले ये हाथ अब कमजोर हो चुके हैं पर इतने नहीं कि...तुम्हारे हाथ न थाम सके" उसने अपने हाथों को आगे बढ़ाते हुए कहा

"सिद्ध..जानते हो पिछले बत्तीस सालों में अपने अड़तालीस नावेल मैं कैसे लिख सकी..शायद मेरी बेरंग जिंदगी ही कागजों को रंगीन करती गई...आज इस मुकाम पे हूँ..तो तुम्हारी वजह से.. तुमने मुझे न ठुकराया होता..." मैंने जैसे ही ये कहा तो वो दर्द से कराह उठा "दर दर की ठोकर खाने वाला किसी को क्या ठुकरा सकता है..सधी..कितने बरस मैं स्ट्रगल करता रहा..खुद को बनाने में..और उसके बाद न जाने कितने साल तुम्हें खोजने में..पर तुम तो अपनी मम्मी के साथ लंदन....पर क्या आज दो अधूरे टुकड़े उन बीते लम्हों के गोंद से नहीं जुड़ सकते..कितने खुश थे हम उन लम्हों में..."

फैन्स की भीड़ बढ़ने से मेरी टीम मुझे आने का इशारा करती है देखकर भी उन्हें अनदेखा करते हुए उससे कहती हूँ "वही लम्हें मेरी साँसे हैं.. सिद्ध..मैं उन्हें अब तुम्हारे साथ भी शेयर नहीं कर सकती..कम से कम उनका भरम तो बना हुआ है..और वैसे भी अब इस चेहरे पे झुर्रियाँ आ रहीं हैं..मेरे हर एक उपन्यास के साथ एक नई सलवट चेहरे पे बढ़ जाती है..यही मेरा ईनाम है..और इस ईनाम पे मैं लाल बिंदी का फुलस्टॉप नहीं लगाना चाहती" कहकर मैं जल्दी जल्दी उसकी लाई हुई नॉवेल के पहले पन्ने पे कुछ लिख के उसे वापस देती हूँ और यह कहकर वापस अपनी टीम के पास आ जाती हूँ "लम्हों की स्त्री उल्टी चलाने से वक्त की सलवटें नहीं मिटा करतीं।"

मेरी नजरें उसपे ही थीं नॉवेल पे मेरा लिखा पढ़ते हुए वो वापस जा रहा था "कुछ साधनाएं अधूरी ही रह जाती हैं उन्हें कोई सिद्ध नहीं कर सकता"

#तुषारापात®

Thursday 4 May 2017

गुलाबी

जाने क्यों उस दिन आसमान गुलाबी था?...हवा-ए-इश्क जिस्म की पाँचों खिड़कियों से गुज़र के तुम्हें हवामहल बनाये थी...लाज के पत्ते अपनी शाख छोड़ रहे थे...नारंगी सूरज आँखों में डूब सुरूर के लाल डोरे तैरा रहा था..आदमी जब इश्क में  जयपुर बना हो तो...कानपुर का काला आसमान भी उसे गुलाबी दिखाई देता है।

-तुषारापात®

Wednesday 3 May 2017

आँख

आँख में सबके है कुछ न कुछ जुरूर
आँसू,जादू,नींद,सपने,माशूक,गुरूर,सुरूर

#तुषारापात®

सिक्सटी वर्ड्स स्टोरी

वो स्लम एरिया में जाता है पूरी बस्ती में घूम घूम कर ,वहाँ रहने वालों की जिंदगी की रेसिपी नोट करता है और रात को वापस लौट के अगले दिन का मेन्यू बनाने में लग जाता है,भूखे पेटों के किस्सों को चटपटा मसाला लगा के,भरे पेट वालों के सामने परोसने वाला वो कोई रसोइया नहीं,एक कहानीकार है।

-तुषारापात®

Monday 1 May 2017

नींव के पत्थर

"सर...कुछ फिनिशिंग वर्क बाकी है..पर आप निश्चिन्त रहें 28 अप्रैल तक हमारा मल्टीप्लेक्स पब्लिक के लिए बिल्कुल तैयार हो चुका होगा..और सर..29 को फ्राइडे है तो नई फिल्म्स के शो भी हमें मिल जाएंगे...एवरीथिंग इज अंडर कंट्रोल..सर ..वी विल लॉन्च इट विथ अ ब्लास्ट" प्रोजेक्ट हेड माथुर ने चहकते हुए कहा

सिंघानिया साहब ने पूरी बात सुनी और धीरे से बस इतना ही बोले "हम्म" उनके हम्म से भी माथुर का उत्साह कम नहीं हुआ और वो बॉस को इंप्रेस करने के लिए आगे बोला "सर..पाँच स्क्रीन वाला अपना ये मल्टीप्लेक्स शहर का इकलौता और अनोखा मल्टीप्लेक्स होगा...ओपेनिंग डे के शो के लिए शहर के सभी बड़े हॉट शॉट्स को जल्द ही इनविटेशन भेज दिया जायेगा और सर मुंबई से कुछ स्टार भी....."

"माथुर...छोटे लेवल के सभी लेबर्स के आखिरी दो दिनों की पेमेंट रोक लेना..कहना कि पेमेंट ओपनिंग के दिन मिलेगी"सिंघानिया ने माथुर की चहकती बात को काटते हुए गंभीर स्वर में कहा और पाइप से धुआँ उगलते हुए आगे कहा "और हाँ..माथुर ओपनिंग 29 को नहीं 1 को होगी"

"ओह्ह लगता है महाराज जी ने 1 तारीख का मुहूर्त दिया है.. नो..नो प्रॉब्लम सर..एक को कर लेते हैं..लेकिन सर इन छोटे लोगों की पेमेंट अगर रोक दी तो परेशानी..ओके..ओके.. सर..आई गॉट इट सर...उस दिन अगर कोई छोटा मोटा काम निकल आया तो इन्हें फिर से बुलाना आसान नहीं होता..बट जब..पेमेंट फँसी होगी तो बुलाने से झट से आ जायेंगे..ब्रिलियंट सर.. इन नालायकों को ऐसे ही कंट्रोल में रखना चाहिए..सुपर्ब आईडिया" माथुर ने हाँ के अंदाज में बार बार सर हिलाते हुए कहा

1 मई को बड़ी धूमधाम से सिंघानिया मल्टीप्लेक्स की ओपनिंग होती है शहर के राजनीतिज्ञ,माननीय सांसद महोदय,मंत्री,बड़े व्यापारी,अफसर, मीडिया,बुद्धिजीवियों आदि के साथ शहर के उच्च तथा उच्च मध्य वर्ग के निमंत्रित लोग मुंबई से आए अभिनेता-अभिनेत्रियों के साथ जश्न का आनंद ले रहे हैं अलग अलग स्क्रीन जिन्हें ऑडी एक,ऑडी दो का नाम दिया गया है उनमें नई रिलीज हुई फिल्मों का शो 15-15 मिनट के अंतर पे रखा गया है

"द सिंघानियां ग्रुप आए हुए सभी गेस्ट्स का वेलकम करता है और शुक्रिया अदा करता है..फ्रेंड्स थोड़ी ही देर में फिल्म के शो शुरू होने वाले हैं आप सब इन फिल्मस का लुत्फ़ जरूर उठाइयेगा..
सबसे पहले ऑडी वन में शो शुरू होगा..आप सब ऑडी टू और ऑडीज थ्री..फोर..एंड फाइव में रेस्पेक्ट फुल्ली इनवाइट किए जाएंगे... पर सबसे पहले मैं ऑडी-वन के शो के लिए बहुत ही खास लोगों को आमंत्रित करना चाहता हूँ..आप सब उनका तालियों के साथ स्वागत कीजिये" कहकर सिंघानिया ने हॉल के दरवाजे की ओर इशारा किया सबने उधर देखा इस मल्टीप्लेक्स को बनाने वाले सभी मजदूर हाथों में चार दिनों की पेमेंट के लिफाफे पकड़े ऑडी एक में प्रवेश कर रहे थे।

नींव के पत्थरों पर न प्लास्टर होता है और न हीं रंग रोगन पर पूरी इमारत का बोझा ढोने वाले नींव के पत्थरों का पूजन अवश्य होना चाहिए।

-तुषारापात®