Wednesday 23 January 2019

हक़

उन्हें किसी बंदोबस्त पे उँगली उठाने का हक़ नहीं
जिनकी उंगलियों पे इंतिखाबी सियाही का वरक नहीं

-तुषारापात®

प्रथम हायकू

भीष्म का अंत
खंडित दृढ़ दंत
जिह्वा शिखण्डी।

#तुषारापात #प्रथम_हायकू

हायकू,लेखन की एक ऐसी जापानी विधा है जो तीन पंक्तियों या पदों में लिखी जाती है इस काव्य विधा में प्रथम पंक्ति में पाँच अक्षर,द्वितीय में सात और तृतीय पंक्ति में पाँच अक्षर होते हैं। कुल सत्रह अक्षरों की सीमा में आपको काव्य का आविष्कार करना होता है। हलंत अर्थात आधे अक्षरों और मात्राओं तथा बिंदुओं आदि को इसमें नहीं गिना जाता है जैसे कि यदि शब्द है 'आरम्भ' तो इसमें बड़े आ की मात्रा और आधे म को छोड़ते हुए इस शब्द के तीन अक्षर ही गिने जायेंगे।संयुक्त अक्षरों जैसे कि 'युद्ध' में 'द्ध' को एक ही अक्षर गिना जाता है।

हायकू में पहली पंक्ति में शब्दों द्वारा एक चित्र खींचा जाता है और दूसरी पंक्ति में प्रथम पंक्ति से सर्वथा भिन्न या पूर्ण विपरीत एक अन्य चित्र प्रस्तुत किया जाता है और फिर तीसरी पंक्ति में बात को एक घुमाव (ट्विस्ट) के साथ दोनों पंक्तियों से जोड़ के एक सार्थक काव्य रचना पूर्ण की जाती है। ये सब पाँच-सात-पाँच अक्षरों के क्रमशः प्रथम द्वितीय व तृतीय पदों की सीमा के भीतर ही किया जाता है।

कुछ विद्वान कहते हैं कि हायकू की प्रथम पंक्ति में ऋतू सूचक शब्द होना चाहिए तथा तीसरी पंक्ति द्वारा प्रथम पंक्ति की बात पूर्ण होनी चाहिए और इसीप्रकार तीसरी पंक्ति द्वारा दूसरी पंक्ति की भी स्वतन्त्र रूप से एक बात पूर्ण होनी चाहिए एक और सामान्य (अनिवार्य नहीं) नियम ये है कि प्रथम व तृतीय पंक्तियों के तुक (काफिया) मिलना चाहिए या प्रथम व द्वितीय पंक्तियों में तुक होना चाहिए। परन्तु प्रायः व्यवहार में ये नियम देखने को कम ही मिलते हैं।

अंत में एक विशेष बात-सत्रह अक्षरों के एक वाक्य को तोड़कर तीन पदों में प्रस्तुत कर देना हायकू नहीं है इसकी प्रायः आलोचना ही की जाती है यद्यपि सम्भव है वह बात बहुत ही प्रभावी हो पर ऐसी रचना इस विधा के नियमों के विपरीत है।

अब वो अवांछित कार्य जो मुझे करना कतई अच्छा नहीं लगता, ऊपर लिखे मेरे हायकू की व्याख्या करना-
भीष्म का अंत
खंडित दृढ़ दंत
जिह्वा शिखण्डी।

प्रथम पंक्ति में गंगापुत्र भीष्म के अंत का दृश्य बताया गया है और दूसरी पंक्ति में अचानक से एक भिन्न दृश्य टूटे और गिरे हुए दाँतो का कहा गया है परंतु ध्यान से पढ़ने पर स्पष्ट होता है कि भीष्म की दृढ़ता जिससे सब परिचित हैं को दाँत जो कि कठोर होते हैं उनसे मिलान किया गया है परंतु सर्वथा भिन्न बात कहकर। प्रथम और द्वितीय पंक्ति में अंत और दंत का तुक भी स्पष्ट ही है।
अब आते हैं तीसरी और सबसे महत्वपूर्ण पंक्ति यहाँ दो शब्द है जिह्वा और शिखण्डी, महाभारत से आप सभी परिचित ही होंगे और ये भी जानते होंगे कि भीष्म का वध शिखण्डी को आगे करके अर्जुन ने किया था।
जिह्वा के दो अर्थ होते हैं एक है जीभ और दूसरा है अग्नि की लपट
अब प्रथम और अंतिम पंक्ति को एक साथ रख के पढिये -

भीष्म का अंत
जिह्वा शिखण्डी

यहाँ जिह्वा का अर्थ आग की लपटों लिया गया है और शिखण्डी रूपी ज्वाला से भीष्म का अंत दिखाया गया अर्थात प्रथम और तृतीय पंक्ति से एक पूर्ण बात हुई।
दूसरी और तीसरी पंक्ति को एक साथ रखने पर

खंडित दृढ़ दंत
जिह्वा शिखण्डी

यहाँ कहा गया है कि कठोर दाँत खंडित होकर गिर जाते हैं परंतु जीभ कोमल होने के कारण बनी रहती है । जीभ की कोमलता और चपलता के के लिए शिखण्डी शब्द का प्रयोग हुआ है क्योंकि शिखण्डी में नारी तुल्य कोमलता और चपलता थी।

तीनो पंक्तियों से क्या अर्थ निकलता है ये आप पर छोड़ता हूँ क्योंकि कुछ काम बुद्धिमान पाठकों पर भी छोड़ना चाहिए अगर कवि ही अपनी रचना की व्याख्या प्रस्तुत करे तो काव्य की आत्मा ही समाप्त हो जाती है।
आशा है आपको मेरा यह प्रथम हायकू पसन्द आया होगा।

-तुषारापात®