Saturday 28 May 2016

विराटजातक अनुष्कछेद श्लोक ६३ एवं ३६

चुम्बन एक आश्चर्य: किसी अभिनेत्री द्वारा अपनी किसी फिल्म में किसी अभिनेता को देय अथवा प्राप्त किया हुआ सार्वजनिक चुंबन अभिनेत्री के प्रेमी के लिए सामान्य होता है परन्तु यदि उस चुम्बन का आदान प्रदान एकांत में हुआ हो तो अभिनेत्री के प्रेमी के लिए वह चुम्बन अत्यंत कष्टकारी होता है।

-तुषारापात™

Thursday 26 May 2016

तनिष्किया‬

"नहीं नहीं...रहने दीजिये...मेरे बजट से ओवर है..रोज पहनने के हिसाब से काफी महंगी हैं" उसने अपने मन को मारते हुए तनिष्क की सेल्स गर्ल से कहा
उसकी आँखों में उन चूड़ियों के लिए चमक थी पर बटुए में उतनी खनक नहीं थी,एक फोन कॉल निपटा के कॉउंटर की तरफ वापस आते हुए मैंने ये सुना,देखा और सब समझ गया
"अरे क्या हुआ..तुम्हें तो इतनी ज्यादा पसंद आई थीं..ये चूड़ियाँ..कितने की हैं ? मैंने आधी बात उससे की और आधी सेल्स गर्ल से दोनों चूड़ियाँ लगभग छीनते हुए कही, सेल्स गर्ल कुछ कहती इससे पहले ही वो बोल उठी
"रहने दो..न..अपने बजट से और 36 हजार महंगी है..इतना महंगा लेकर क्या करना" उसकी बात में यथार्थ सपनों को दबा रहा था, मैंने कुछ नहीं कहा बस वो चूड़ियाँ उसकी कलाइयों में पहना दी
"अरे मगर..सुनो तो...हमारे पास चूड़ियों पे खर्च करने के लिए बस 50 हजार का ही बजट है..हमने तय किया था न.." दुविधा में पड़ी वो सकुचाहट से बोली
"कोई नहीं... नया टैबलेट लेने के आईडिया को थोड़ा आगे शिफ्ट कर देते हैं..उसका बजट इसमें मिला देते हैं" मैंने उससे कहा और सेल्स गर्ल को चूड़ियों पे लगा टैग देते हुये बिलिंग के लिए कह दिया
"पर..तुम पिछले तीन साल से वही पुराना टैबलेट चला रहे हो..हैंग भी तो कितना होता है..." उसने मेरा पुराना टैबलेट मेरे हाथ से लेकर दिखाते हुए कहा
"पिछले दो साल से..तुम्हारी कलाइयाँ भी..बगैर सोने के सूनी देखी हैं मैंने...बेंटेक्स की चूड़ियों पे तुम्हें सहेलियों के सामने झिझकते देखा है" थोड़ी भावुकता आ गई थी मेरी आवाज में
"तो अब तुम्हारे ऑफिस के काम..इम्पॉर्टेंड इमेल्स..और फेसबुक व्हाट्सऐप कैसे चलेंगे..." ऐसा लगा अगर तनिष्क का शोरूम न होता तो वो ख़ुशी से चूम लेती मुझे
"ईमेल और फेसबुक के...हजारो नोटिफिकेशन्स की टिंग से...कहीं ज्यादा ख़ुशी...तुम्हारी कलाइयों में पड़ी इन दो चूड़ियों की खनक देगी मुझे"


-तुषारापात®™ 

Friday 20 May 2016

फिर तेरी कहानी याद आई

"वाह क़तील शिफ़ाई...क़त्ल कर दिया तुमने..." म्यूजिक प्लेयर पे रिपीट मोड पे चल रहे गाने 'तेरे दर पे सनम चले आये..तू न आया तो हम चले आये..'को सुनते सुनते मेरे मुंह से अपने आप ये शब्द निकल गए ,किसी राइटर के लिखे की तारीफ वही खुल के करता है जिसके दिल की छुपी बात को राइटर अपने कलाम में बयां कर दे और ये गाना...ये गाना..तो मेरे दिल जिगर की पुकार है..मेरा सपना है...मेरी तमन्ना...काश कभी आयत कहीं से आ जाये..और..और ये गाना बज उठे

तकरीबन रोज की तरह ही अवध की शाम मनाता मैं आज भी लाउड वॉल्यूम पे ये गाना सुनता हाथ में जाम लिए उसके ख्यालों में खोया हुआ था...हाँ आयत..'फिर तेरी कहानी याद आई'...न जाने कितनी बार बजने के बाद कुमार शानू ने अभी मुखड़े को पूरा ही किया था कि मुझे डोरबेल सुनाई दी कोई दरवाजा भी पीट रहा था,मैंने म्यूजिक प्लेयर पॉज किया और उठकर दरवाजे को खोला और मुझे अपनी आँखों पे भरोसा नहीं हुआ मेरे हाथ से ग्लास छूट गया

"वापस जाने वाली थी...बहुत देर हो गई घंटी बजाते.." उसने मुझसे आँख चुराते चुराते कहा, मैंने देखा उसकी आँखें आषाढ़ से पहले भटक आई बदली लिए हुयें थीं जो जेठ में बरसना भी नहीं चाहती थी और टिकना भी नहीं चाहती थीं मैंने उसे अंदर बुलाया और सोफे पे बैठने को कहा वो इधर उधर देख रही थी सकुचाहट भी थी...और कुछ सुकून की तलाश भी थी उसे शायद.. और यहाँ आने का..लोगों को पता लगने का डर भी साफ़ दिख रहा था उसके चेहरे से

"दिल को धड़का लगा था पल पल का..शोर सुन ले न कोई पायल का" मैंने उसकी ओर देखते हुए मन में गुनगुनाया और उसे पानी का ग्लास दिया उसने एक साँस में पानी खत्म किया और ग्लास टेबल पे रख के चुप बैठी रही मैं समझ रहा था कुछ बात है लेकिन क्या इसके लिए पूछना तो पड़ेगा
"क्या हुआ...अचानक ..यूँ...फोन कर दिया होता..सब ठीक तो है..बहुत परेशान दिख रही हो..क्या बात है"

"कुछ नहीं" उसने कहा,अच्छी तरह उसकी आदत जानता हूँ एक बार में तो कभी बता ही नहीं सकती कि क्या हुआ मैंने कई बार अलग अलग तरीके से पुछा तो कुछ देर बाद हमेशा की तरह पहले उसकी आँखों ने बोला फिर उसके लब हिले

"वो..वो..हदीस..हदीस चाहता है कि मैं उसके साथ सीनियर्स की पार्टी में जाया करूँ..कुछ ओपन ड्रेसेज एंड ओपन फ्रेंडली एट्टीट्यूड में.." उसने बहुत धीमे से कहा मैं अंदर ही अंदर सुलग के रह गया पर चुप रहा उसने आगे कहा "इसी बात पे आज फिर बहुत झगड़ा हुआ ..और मैं थोड़ी देर के लिए बाहर निकल आई..फिर...पता नहीं कैसे तुम्हारे घर तक आ गई"

और उसके बाद जितनी देर तक वो हदीस की बातें कर सकती थी करती गई..साथ साथ रोती गई...बिलखती गई..गुस्सा दिखाती गई...अपने दिल का पूरा गुबार निकाल के शान्त हुई..और आखिर में बोली.."वेद..तुम चुप क्यों हो..क्या मैंने यहाँ आके गलती की"

"नहीं..मैं चुप इसलिए हूँ.. अ..हदीस की बात गलत है..पर ये तुम मियां बीवी का मामला है..मैं बोल भी क्या सकता हूँ..और किस हक़ से...मैं उसकी आँखों में गहरे देखते हुए बोला उसने मेरी बात समझते हुए कहा "हाँ तुम तो उलटे खुश ही होंगे..जिसके लिए मैंने तुम्हें छोड़ा..आज उसके साथ मेरी न बनते देख..लेकिन एक बात बताओ क्या एक दोस्त के काँधे पे दूसरा दोस्त रो नहीं सकता"

"पता है आयत... इस दिन की मैंने बरसों से तमन्ना की है..मगर तुम्हारे इस तरह आने की..नहीं..जहाँ तुम आओ अपना गम हल्का करो..और चली जाओ..जिस काँधे की तुम बात कर रही हो..उस काँधे के एक बालिश्त नीचे एक दिल भी है..उसे कभी महसूस किया तुमने..आयत मैं सिर्फ एक काँधा नहीं हूँ...तुम्हें पता है मैं तुम्हारे ही ख्यालों में खोया हुआ था..लेकिन वो मेरी आयत थी..और यहाँ जो आई है...हदीस की आयत है..उसकी पत्नी है..और तुम्हीं ने कहा था "आयतें कभी वेद की नहीं हुआ करतीं"

मैं नशे में था और मेरा पूरा दर्द उभर आया था पता नहीं वो दर्द किस बात का था...अपनी परेशानी का..या उसे परेशान देख के..या शायद हाँ हदीस की ये हरकत मुझे गहरे तक चुभी है..और मैं अपना गुस्सा उसपर नहीं निकाल सकता..काश तुम मेरी होतीं आयत तो मैं ऐसा कहने वाले का मुँह तोड़ देता...ओह्ह आयत मैं तुमको भी दुःख नहीं पहुँचाना चाहता पर..मैं सिर्फ काँधा बन के भी नहीं रहना चाहता

"रात ज्यादा हो रही है..मुझे लगता है अब तुम्हें जाना चाहिए.." मेरी शुष्कता देख वो उठी और एक झटके में निकल गई मैंने दरवाजा बंद किया एक पैग बनाया सोफे पे वहीं बैठ गया जहाँ वो बैठी हुई थी उसकी खुश्बू से लिपट के रोने लगा और अपनी आवाज छुपाने को म्यूजिक प्लेयर का प्ले बटन पुश कर दिया गाना आगे बजने लगा....

"बिन तेरे कोई आस भी न रही...इतने तरसे की प्यास ही न रही"

-तुषारापात®™

Wednesday 18 May 2016

परिधि बराबर व्यास गुणे बाइस बटा सात

"तुम्हारे पास अब टाइम ही कहाँ है मेरे लिए... या तो तुम घर के काम में उलझी रहोगी.. या फिर काम से होने वाली अपनी थकावट का रोना रोती रहोगी.. ऐसे में अगर मैं अपने दोस्तों के साथ समय न बिताऊँ तो क्या करूँ... रोज बारह बारह घंटे मर खप के काम करने के बाद...क्या मुझे हक नहीं है जरा सा खुश होने का.." व्यास ने चिल्लाते हुए कहा

"तुम तो बारह घंटे काम के बाद फ्री हो जाते हो...पर मेरा क्या...बोलो.. मुझे तो हफ्ते के 'सातों रोज बाइस घंटे' गृहस्थी में खटना पड़ता है... 'पाई' 'पाई' बचाने में मेरी मति लगी रहती है...मेरी खुशी के लिए कौन सोचता है यहाँ... मैं क्या कोई बंधुवा मजदूर हूँ.." परिधि ने गुस्से में अपना पल्लू खोंसा और बिलखते हुए तेज आवाज में आगे बोली

"इतना सब करने के बाद..प्यार के दो मीठे बोल तक को तरसती हूँ मैं ...बाकी तो जाने ही दो..केंद्र के होने के बाद तो फिर भी कभी कभार.. बिस्तर पे ही सही तुम्हें मेरी याद आ जाती थी...मगर त्रिज्या के होने के बाद..तो तुम भूल ही गए हो कि तुम्हारी एक बीवी भी है.... उसे भी तुम्हारे साथ प्यार के दो पल चाहिए हो सकते हैं.. मैं क्या समझती नहीं आजकल उस निगोड़ी बिंदु के घर के चक्कर क्यों लगाये जाते हैं..दोस्तों के घर जाने के नाम पे.."

व्यास इस हमले से थोड़ा घबड़ाया पर सम्भलते हुए कॉउंटर अटैक पर आया "तो क्या करूँ.. कैसे प्यार करूँ तुमको.. जब देखो बिखरे बाल लिए.. मुड़ी तुड़ी साड़ी पहने एक गृहस्थन ऑन्टी बनी दिखती हो... कभी केंद्र को लेकर सो जाती हो तो कभी त्रिज्या को पढ़ाती रहती हो...घर का माहौल साला इतना नीरस है.. कि दो पैग के बाद भी रोमांस नहीं जगता.. तुम्हारी इस शकल के आगे शिलाजीत भी फेल है"

"हाँ हाँ..मैं तो हूँ ही गृहस्थन.. तुम तो बड़े यंग हैंडसम दिखते हो इस मोटे तोंद और अपने 30 सेकंड के पुरुषत्व के साथ...और...और किसने कहा था दो दो बच्चे पैदा करने को.." वो गुस्से में तमतमाई आगे और कुछ बोलने जा रही थी कि अपने कमरे से उनकी आवाजें सुनकर बच्चे आ जाते हैं वो चुप हो जाती है और बच्चों से कहती है

"केंद्र..त्रिज्या.. फटाफट हैंडवाश कर लो..मैं खाना लगा देती हूँ खा कर चुपचाप सो जाओ..नो टीवी शीवी टुडे" बच्चे हैडवाश करके आते हैं वो उन्हें खाना खिला के उनके कमरे में सुला आती है और बिना खाना खाये सुबकते हुए अपने बिस्तर पे लेट जाती है और उधर व्यास पहले ही गुस्से में पैर पटकते हुए घर से बाहर निकल चुका होता है और अपनी उम्र से कुछ ही बड़े लेकिन रिश्ते के अंकल के पास जाकर सारा किस्सा सुनाता है अंकल बाहर बरामदे में उसके साथ बोतल लेकर बैठते हैं और कहते हैं

"देखो..ये सिर्फ तुम्हारी ही नहीं..आज गृहस्थी के बोझ से दबे हर मध्य वर्गीय परिवार की यही कहानी है... सबसे पहले एक लड़का छुट्टा होता है व्यास के जैसे जिसकी कोई सीमा नहीं कोई बंधन नहीं.. वो कहीं भी आ जा सकता है..पर शादी के बाद एक परिधि आकर उसको एक निश्चित दायरे में बंद कर देती है..जिसे गृहस्थी का वृत्त कहते हैं..अब वो जहाँ जहाँ जाता है उसकी परिधि भी साथ जाती है.." कहते कहते अंकल ने एक पैग बना के उसकी ओर ग्लास बढ़ाया और आगे कहा

उसके बाद जब बच्चा होता है तो..इस वृत्त में एक नया केंद्र बनता है... परिधि इस नए केंद्र की हो के रह जाती है...और इस प्रकार गृहस्थी का वृत्त..वृत्त न रहकर..एक दो केंद्र वाला दीर्घवृत्त बन जाता है और व्यास का वजूद लगभग खत्म सा हो जाता..उधर दीर्घवृत्त के दो केंद्र होने के कारण परिधि भी अब अपना सुंदर सा गोल आकार..कायम नहीं रख पाती.. जिससे आकर्षण का अभाव उत्पन्न होता है" अंकल ने कहकर एक साँस में ग्लास खत्म किया और नमकीन चखने लगे

"ओह्ह आपने तो बहुत गूढ़ बात बता दी..आप और आंटी में के बीच तो कभी ऐसी कोई समस्या आई ही नहीं होगी आखिर आप इतने समझदार जो हैं..अब इसका उपाय भी बता दीजिये" व्यास ने अचंभित होते हुए उनकी प्रशंसा की और उनसे यह पुछा ही था कि अंदर से आंटी की आवाज आई

"अरे और कितनी देर तक पीते रहोगे...वाइफ के लिए तो तुम्हारे पास जरा सा टाइम नहीं है..बस जब देखो तब..यार बाजी करते रहते हो..आओ जल्दी नहीं तो दरवाजा बंद कर लूंगी.. रात भर बाहर रहना फिर.."

ये सुनना था कि बाहर बैठे दोनो चाचा भतीजे ठहाका मार के हँस पड़े।

-तुषारापात®™

Tuesday 17 May 2016

जागो

आसमान की माँग में सूरज का सिन्दूर भर दिया
नए सवेरे ने बदचलन रात को सुहागन कर दिया

#सुप्रभात
-तुषारापात®™

Monday 16 May 2016

मासनामा

'जेठ' की दुपहरी
की सूनी सड़क सी मेरी जिंदगी
और 'आषाढ़' की बारिश सी तुम्हारी यादें
जब मुझपर बरसती हैं तो
'सावन' में शिवलिंग पे चढ़े
दूध सा पवित्र हो जाता हूँ
'भादों' तक बरसती
तुम्हारी यादों को सोख लेता हूँ खुदमें
इनमें से कुछ 'आश्विन' में
मेरे दुखों का श्राद्ध कर जाती हैं
तो 'कार्तिक' में
कुछ के साथ दिवाली मन जाती है
'मार्गशीर्ष' में उनमें से कुछ को
गुल्लक में रखकर बचाता हूँ
और 'पौष' के चाँद के साथ
ख़ुशी ख़ुशी ठुरठुराता हूँ
फिर वो गुल्लक फोड़ता हूँ 'माघ' में और
तुम्हारी यादों की डुबकियों से
संगम का पुण्य कमाता हूँ
'फाल्गुन' भर तुम्हारे ही
रंगों में ही रंगा नजर आता हूँ मगर
रंग के साथ साथ
उतर जाती हैं तुम्हारी यादें सारी
तो 'चैत्र' में चित्त अपना
फिर से अशांत पाता हूँ
आते आते 'बैशाख'
पूरी तरह कंगाल होकर
जेठ की दुपहरी के
सूने रस्ते पे फिर से आ जाता हूँ

-तुषारापात®™

Saturday 14 May 2016

लड़की की शादी

"उस शिल्पी का तो चक्कर चल रहा होगा किसी से...कुछ ठहर गया होगा पेट में...इसीलिए उसकी इतनी गुपचुप और फटाफट शादी कर दी शर्मा लोगों ने... न किसी को बताया...न किसी को बुलाया...ऐसा कहीं होता है क्या" मिसेज दत्ता अपनी काम वाली मालती से अपने मोहल्ले के शर्मा जी के घर की टोह ले रहीं थीं
"मेम साब 'वन्डर' तो हमें भी लगा...पर शर्माइन कहिन कि आर्यसमाजी लोग हैं वो...तो शिल्पी बिटिया की शादी बड़ी सादगी से करिन..सिर्फ उनके घर के लोग और लड़के के घर के लोग इकठ्ठा हुए और चट मँगनी ते पट व्याह" मालती ने बात कुछ यूँ कही जैसे उसे खुद इस बात पे विश्वास न हो फिर आगे अपने मतलब की बात पे आते हुई बोली "मेमसाब लड़की की शादी तो हमको भी करनी है...आपसे कुछ पैसों की मदद हो जाती तो..एक दस हजार रुपैये"
"दस हजाSSSर...बड़ी महंगी शादी कर रही है क्या?" मिसेज दत्ता ने आँखें गोल करते हुए कहा
"अरे मेमसाब लड़के को हीरो हौंडा देना है और कुछ नगद भी...और फिर नाते रिश्तेदारों का न्यौता वगैरह....आप ही नहीं सबसे थोड़ा थोड़ा माँग रहे हैं" मालती ने ऐसे कहा जैसे इतना दहेज़ देना तो ईश्वरीय विधान के तहत आता है
"ठीक है...देखूँगी... देखूँगी..इनसे बात करुँगी" मिसेज दत्ता ने अपना पीछा उससे छुड़ाया और मोहल्ले की अन्य और औरतों से शिल्पी की शादी की 'सत्संगी' चर्चा करने को फोन उठा लिया
उधर शर्मा जी के यहाँ उनकी बेटी शिल्पी की शादी के बाद बड़ी बुआ आई हुई हैं शर्मा जी उनकी पत्नी और उनका बेटा संजय बड़ी बुआ की जली कटी बातें सुन रहे हैं "कुछ लोक लाज बाकी है तुममें शंभुनाथ..कि नहीं... पूरे खानदान में थू थू मची है.. ऐसे कहीं शादी ब्याह होता है..और तुम विमला तुम्हारे मायके की तरफ भी सब लोग हँस रहे हैं..और..ऐ संजय...ए तुम्हारे फूफा ने तो सुनाई सुनाई के जीनो हराम कर दियो" बुआ जी खड़ी बोली से अपने आंचलिक टोन में आते हुए बोलीं
और जैसे प्रेशर कूकर में कड़े आलू उबल के नरम पड़ जाते हैं वैसे ही बुआ जी की साढ़े तीन घंटे की अनवरत 'वंश और खानदान की वीरगाथा' सुनने के बाद शंभुनाथ शर्मा और विमला भी विचलित हो जाते हैं और निर्णय लेते हैं कि एक दिन निश्चित करके शिल्पी और शैलेन्द्र (दामाद) को बुलाकर एक 'आफ्टर मैरिज पार्टी' कर देते हैं वरना लोग क्या कहेंगे हालाँकि संजय को ये प्रस्ताव पसंद नहीं था पर उसकी किसी ने नहीं सुनी हाँ पापा को कुछ समझाते हुए उसने पूरे आयोजन की जिम्मेदारी चतुराई से अपने हाथ में ले ली और एक निश्चित दिन का सभी 'असंतुष्ट' रिश्तेदारों और कॉलोनी वालों को फोन से शाम के 8 बजे का न्यौता दे दिया गया
कार्यक्रम स्थल संजय के एक जिगरी दोस्त के घर की विशाल छत है संजय ने अपना म्यूजिक सिस्टम वहाँ लगा रखा है संगीत तेज है दिवाली पे घर पे लगने वाली झालर से दोस्त के घर को थोड़ा सजा दिया है साढ़े आठ बज रहा है लोग आना शुरू हो जाते हैं और साढ़े नौ तक अधिकतर लोग आ जाते हैं उनकी चाय नमकीन से सेवा करने के बाद संजय माइक लेकर बोलता है
"यहाँ पार्टी में आये वो लोग हैं जो शिल्पी की सादी शादी से बड़ी तकलीफ में हैं...जैसे हमारे प्रिय जीजाजी को तकलीफ है कि वो महँगी शराब पीकर अपनी सालियों के साथ 'कृष्णा नाच' नहीं कर पाये पाये...हमारे आदरणीय बड़े फूफा जी...जो बेचारे अपने और छोटे फूफा के टीके के बराबर पैसे को लेकर उत्पात नहीं कर सके..और हमारी जयपुर वाली पिंकी आंटी जो अपनी ढाई लाख की साड़ी किसी को नहीं दिखा पाईं और हमारे कॉलोनी की प्यारी सारी आंटीयाँ जिनको ये बताने का मौका नहीं मिला कि शिल्पी का रंग दूल्हे से थोड़ा दबा हुआ है" वो सबके बने हुए मुँह देखता है और आगे कहता है
"हमने शादी को दिखावा बना रखा है...अपने स्टेट्स को दिखाने का एक माध्यम...दहेज़ की रकम से पता करते हैं कि दुल्हन और दूल्हे के परिवार का क्या क्लास है..क्या रुतबा है...समाज की इसी मानसिकता के कारण लड़की का पिता...चाहे वो मालती के पति जैसा एक गरीब हो..या दत्ता अंकल जैसा अमीर...अपनी अपनी लड़की की शादी को लेकर इतना दबाव में रहता है कि उसे अपनी लड़की एक बोझ लगने लगती है...कोई मोटरसाइकिल देने के लिए परेशान है तो कोई मर्सिडीज देने के लिए... दहेज़ देना भी आज एक फैशन हो गया है नहीं दिया और कम दिया तो लोग हमें कमजोर न समझ लें..लो स्टैण्डर्ड का न समझ लें वाह हैं न कमाल की बात....और जो आदमी इस वाहियात परम्परा को तोड़ रहा है..उसकी बेटी चरित्रहीन है...या वो कंजूस है...या गरीब है...या उसकी लड़की ने भाग के शादी की है .." कहकर संजय ने अपनी उत्तेजना को गहरी साँस लेकर दबाया और आगे बहुत शांत और मीठे स्वर में बोला
"अभी वेबकैम पे शिल्पी और शैलेन्द्र वीडियो चैट पे होंगे आप लोग अपना अपना आशीर्वाद उन्हें दें...और जाते समय बूँदी के लड्डू का एक एक पैकेट जरूर से लेते जाइयेगा...और हाँ खाना अपने अपने घर जाके खाइयेगा"
इतना सुनते ही शंभुनाथ खिलखिला के हँस दिए..आश्चर्यजनक हैं न लड़की का पिता खुल के हँस रहा था।
-तुषारापात®™

Sunday 8 May 2016

"हैप्पी मदर्स डे.....ऑन्टी" 

"अ..जी...वो खाना..मिलेगा क्या" मैंने सकुचाते हुए उनसे पूछा

"नए आये हो न?...ढाबे में खाना नहीं मिलेगा तो और क्या मिलेगा" उनकी अनुभवी आँखों ने मेरी सकुचाहट को पढ़ लिया "क्या लगाऊँ ?" उन्होंने मुझसे पूछा

"जी..अ..बस ये लोग जो खा रहे हैं..मतलब दाल रोटी..अ कितने की होगी ये ?" एक दो लोग और थे जो वहाँ खाना खा रहे थे उनकी थाली में दाल रोटी सब्जी चावल देख के मैंने वही खाने को उनसे कह दिया

"20 रुपैये की थाली है...चार रोटी दाल सब्जी और चावल..आराम से बैठो बेटा...लगाती हूँ" उन्होंने बड़ी ममता से कहा और रसोई में चली गईं

"ओह्ह..जी पर एक बात है...मेरे पास सिर्फ...सिर्फ..उन्नीस रूपैये हैं.." मैं बड़ी शर्मिन्दिगी से बोल पाया

"कोई नहीं..बाद में दे देना..अब खाना खाने तो रोज ही आओगे न यहाँ" उन्होंने जाते जाते मुड़के मुस्कुराते हुए वात्सल्य प्रेम में डूबी आवाज में मुझसे कहा

"जी..जी..ठीक है" मैं चैन की साँस लेते हुए बोला उसके बाद मैंने खाना खाया और पैसे देकर अपने कमरे पे आ गया

बिसवाँ के एक गरीब माँ बाप का होनहार मगर बहुत शर्मीला बेटा मैं यहाँ लखनऊ में आगे पढ़ने आया हूँ सेक्टर क्यू के पास बेलिगारद में एक सस्ता कमरा लेकर रह रहा हूँ आज मेरा पहला दिन है, बेलिगारद चौराहे ,वैसे ये है तो तिराहा पर इसे चौराहा क्यों कहते हैं मुझे नहीं पता,पे ही ये आंटी का ढाबा है ढाबा क्या सड़क पे बने एक छोटे से मकान के निचले हिस्से में एक महिला जिन्हें सब ऑन्टी कहते हैं मीनू में सिर्फ दो आइटम वाला ये ढाबा चलाती हैं ढाबे में मेरे जैसे मजबूर लोग ही खाना खाने आते हैं जो सस्ता खाना ढूँढते हैं इसलिए ढाबे की हालत और उसकी कमाई में से कौन ज्यादा खस्ताहाल है ये कहना जरा मुश्किल है

अगले दिन मैं फिर जाता हूँ ढाबे में आंटी मुझे देखकर मुस्कुराती हैं मैं भी हल्का मुस्कुराता हूँ कल के बाद से थोड़ा सा आत्मविश्वास मुझमे आया है "आंटी..खाना लगा दीजिये...पर आपसे एक विनती है..आप थाली से एक रोटी..कम कर दीजिये..क्योंकि मेरे पास उन्नीस रुपैये से ज्यादा खाने पे खर्च करने को नहीं हैं"मैंने सोचा खाने से पहले ही साफ़ साफ़ बता दूँ

हालाँकि मेरा बजट बीस रुपैये का था पर एक रुपैया रोज बचा के जब छुट्टियों में घर जाऊँगा तो अपनी माँ के लिए कुछ उपहार ले जाऊँगा ये सोच के मैंने ये नीति बनाई है

"ठीक है..बैठ जाओ..अभी लगाती हूँ..." कहकर वो रसोई में चली गईं
एक तरफ की दीवार से लगीं मेज कुर्सियां पड़ी थीं और दूसरी ओर एक दीवार पे जमीन से करीबन ढाई फुट ऊँचा एक प्लेटफॉर्म बना था जिसपे चूल्हा बर्तन इत्यादि रखे थे बस वही रसोई थी
मैंने देखा कि आंटी का कद बहुत छोटा है जिसकी वजह से रसोई का प्लेटफॉर्म उनसे थोड़ी ज्यादा ऊँचाई पे पड़ता है और उन्हें खाना बनाने के काम में काफी कठिनाई आ रही है पर मैं चुप रहा थोड़ी देर बाद वो खाने की थाली ले आईं

"अरे...आपतो इसमें चार रोटी ले आईं.. मैंने आपसे कहा..." मैं आगे कुछ कहता कि वो बोल पड़ीं " देखो बेटा.. मैं एक बूढ़ी अकेली औरत बस इसलिए ढाबा चलाती हूँ..कि तुम लोगों के साथ... मेरी भी दो रोटी का इंतजाम हो जाए... अब एक रुपैये के लिए क्या तेरा पेट काटूँगी" कहकर मेरे सर पे हाथ फेरकर वो चली गईं

ऐसे ही रोज ये क्रम चलता रहा रोज मैं ऑन्टी को ऊँचे प्लेटफॉर्म पे बड़ी मुश्किल से काम करते देखता,घुटनो में तकलीफ के कारण बैठ के कोई काम उनसे हो नहीं पाता था,खाना खाता ,उन्नीस रुपये देता कुछ हल्की फुल्की बातें उनसे होती बस ऐसे ही कुछ महीने बीत गए और फिर आज के दिन मैं फिर ढाबे पे आया हूँ

"अरे..आज बड़ी देर कर दी तूने...सब ठीक तो है..बैठ मैं खाना लगाती हूँ" ऑन्टी की आँखों में चिंता थी, मैंने कहा "सब ठीक है और हाँ खाना तो खाऊंगा ही..पर पहले आप रसोई में आओ मेरे साथ..."

उनका हाथ पकड़ के मैं रसोई वाले हिस्से में उन्हें ले आया और उन्हें रसोई के प्लेटफॉर्म की ओर खड़ा किया और फिर उनके पैरों के नीचे पूजापाठ वाली दुकान से खरीदी लकड़ी की एक मजबूत चौकी रखने लगा तो वो आश्चर्य से भर गईं,उसपे खड़ी हुईं और उनकी आँखों ने न जाने कितने वर्षों के बंधे बाँध खोल दिए..

मैंने उनके पैर छुए और कहा "हैप्पी मदर्स डे.....ऑन्टी"

-तुषारापात®™

Saturday 7 May 2016

चोर

लेखक वो चोर है जो आपके रोज के क्रियाकलापों में से कुछ चुराता है,उसे अपने शब्दों की थैली में बांधकर वापस आपके पास ही बेच जाता है,यही व्यापार उसकी कला है।

-तुषारापात®™

Thursday 5 May 2016

क्योंकि हर चैनल कुछ कहता है

Aaj Tak की HISTORY को ZOOM करके देखने से यह DISCOVERY निकली है कि किसी BINDAAS SONY कुड़ी की MASTII का प्रतिदिन DOORDARSHAN करने वाला कोई PUNJABI etc मुंडा उस लड़की की MAHUA सी महक के BIG MAGIC में फँसके जब एक दिन हिम्मत करके HOME SHOP 18 से खरीदे चश्में को अपनी नाक पे चढ़ा के 9x JALWA मारता हुआ अपने ZEE की बात उससे बड़ी NAAPTOL से कहता है कि मेरी सूनी ZINDAGI को अगर तुम्हारा SAHARA मिल जाए तो मेरी LIFE OK हो जायेगी और इसमें COLORS भर जाएंगे तो लड़की पहले तो अचानक आये इस RISHTEY को लेकर अपनी AASTHA और SANSKAR का नाटक दिखाते हुए HUNGAMA करती है पर बाद में उस लड़के का प्यार LIVING FOODS ,FAMILY और MONEY आदि SAB कुछ देखकर अकेले से V बनने को राजी होकर अपने साथ उसके STAR PLUS करके,कई EPIC पे SANGEET BHOJPURI बजाती है & DEN ENJOY करके उससे शादी करके अपना CARTOON NETWORK बनाती है ।

-तुषारापात®™

Tuesday 3 May 2016

बिंगो और प्रकृति दर्शन

आज एक बहुत अनोखी चीज देखी,जितनी चमत्कारिक उतनी ही आसान ,एक ऐसी दैनिक घटना,जो रोज होती है पर जिसे मैं बहुत कम ही देख पाता हूँ,बहुत दिनों के बाद आज मैंने सूर्य को उगते देखा और ये अनोखी घटना तब हुई जब रात भर लिखते रहने के कारण मैं सुबह तक जाग रहा था कि तभी साढ़े पाँच के बजे के आसपास मेरा कुत्ता बिंगो,कमरे में दरवाजे को धकेलते हुए दाखिल हुआ और खुदको लघुशंका दीर्घशंका निपटारे के लिए बाहर ले चलने का मुझे आदेश देने लगा वैसे ये काम रोज पत्नी जी का रहता है पर आज वो थोड़ा देर से जागीं तो बिंगो साहब ने स्त्री पुरुष का भेद न करते हुए मुझे अपने इस काम के लिए चुना।

बिंगो को पट्टा पहना कर चेन लगाई और गेट खोलकर बाहर सड़क पे जैसे ही आया तो मंद मंद बहती शीतल पवन फूलों की कमर को सहलाती हुई कस्तूरी सी महक लिए मेरे रोम रोम में समा गई ऐसा लगा कि जैसे वायु ने मुझमे व्याप्त प्राण को बढ़ा दिया, सड़क पे दूर बाएं हाथ पे बने मकानों के बीच सृष्टि के साक्षात देवता भगवान भास्कर मुझ रात्रिचर को भैरव जी की सवारी लिए विचित्र नजरो से देखते हुए अपना आकार बढ़ा रहे थे पेड़ पौधे झूम रहे थे चिड़ियाँ मानो उनके स्वागत में मंगल गान कर रहीं थीं पूरी प्रकृति प्रसन्नता की मंद धूप में नहा रही थी और पृथ्वी का दैनिक जीवन गति लेने लग गया था।

तभी से सोच रहा हूँ कि विकास के नाम पे हम प्रकृति से कितना कट गए हैं हमने रात्रि को तो जीत लिया बिजली का आविष्कार करके मगर अपने लिए रोग और उलटी दिनचर्या का शत्रु भी प्रबल कर दिया और एक तरफ ये बिंगो है जो अपनी दिनचर्या नियमित रखता है फेसबुक टीवी विडियोगेम इत्यादि का कोई चस्का नहीं और उठने के लिए कोई अलार्म भी नहीं लगाता फिर भी रोज चार बजे उठ जाता है एक पशु होकर वो कितना अनुशाषित है और मैं एक बुद्धिजीवी मनुष्य होकर भी प्राकृतिक अनुशाषन का रत्ती भर पालन नहीं करता । शायद यही कारण है कि श्वान शास्त्रों में वर्णित अपनी पूर्ण औसत आयु 12 वर्ष से दो चार वर्ष अधिक ही जीता है और हम मनुष्य अपनी 120 वर्ष की आयु का 80 वाँ वर्ष भी मुश्किल से देख पाते हैं।

इस विषय पे बहुत अधिक लिख सकता हूँ पर मुझे पूरी उम्मीद है कि मेरे शब्दों से आप मूल भाव को समझ लेंगे और ये सिर्फ मेरी नहीं हममें से बहुतों की कहानी है अभी गर्मी की छुटियों में हममें से बहुत लोग किसी हिल स्टेशन पे जाकर पहाड़ बर्फ नदी का लुत्फ़ ऐसे उठाएंगे जैसे ये सारी चीजें धरती पे अभी अभी प्रकट हुईं हों और किसी अन्य दुनिया की हों जबकि सच ये है कि इनके बीच हम उत्पन्न और विकसित हुए और बाद में इनसे ही दूर हो गए दूर होने का मतलब इनसे विमुख होने से है।

हमने नदी को पानी की बोतल में तो कैद कर लिया पर नदी के बहते जल की कल कल ध्वनि जिससे हमारी आत्मा की प्यास मिटती है उससे खुद को वंचित कर लिया। पता नहीं कैसे हम सब इस विकास की अनिवार्य सी प्रक्रिया में फंस गए हैं शायद ईश्वर का ये ही तरीका है हमें वापस अपने पास बुलाने का ।

और हाँ बिंगो को अपनी नियमित दिनचर्या और प्रकृति से जुड़ाव का एक फायदा और भी है वो ये कि उसे खाने में अगर कोई चीज पसंद नहीं आती तो वो पूरे आत्मविश्वास से न करके छोड़ सकता है पर ये कारनामा डाइनिंग टेबल पे बैठककर शायद ही कभी मैं कर पाऊँ ।

-तुषारापात®™