"बापू अबकी जो फसल हुइहए..तो हमका लाल चूड़ी दिलाय देहउ..के बापू..दखिन देविन के मेला महियां..अब कित्ते दिन बाकी हईं...हमऊ मेला सेरे अम्मा जइसि लालह चूड़ीयाँ लीबो" कुन्नो ने अपनी मासूमियत से भरी आवाज में खिलावन से कहा
"बिटिया..अबहिं ढेर दिन हईं..मेला महियां..बस भोलेनाथ सेरे या प्रार्थना करउ...अबकी पानी टाइम सेरे गिर गिर जावइ..तो तुम्हरे लिए चूड़ी का..लाल फिराकउ आई जहिहई" खिलावन हाथ धोते हुए बोला और अपनी 11 साल की बेटी कुन्नो के पास आकर खाने की पोटली खोलने लगा
जितने दिन वो खेत में काम करता था कुन्नो आज ही की तरह रोज दोपहर में उसके लिए खाना लाती थी खिलावन की बीवी सुरमई घर से रोटी साग इत्यादि की एक पोटली बना के कुन्नो के हाथ भेज देती थी और कुन्नो पूरे गाँव का चक्कर लगाती उछलती खेलती खेत पहुँच जाया करती थी
खिलावन ने खाना खाकर दूर खेलती कुन्नो को बुलाया "बिटिया...ओ.. बिटिया.. लेव..बर्तन लइके घर चली जाव.." कुन्नो दौड़ के उसके पास आ जाती है और अपने दोनों हाथों में जमा किये हुए पत्थर फेंकती है और खिलावन से पोटली ले लेती है खिलावन उसके सर पे प्यार से हाथ फेरता है और बनावटी गुस्से में कहता है "अपनी अम्मा से कहेउ...थोड़ो नमक कम झोंकईं साग महिया.."
शाम होते ही खिलावन घर पहुँचता है सुरमई उसके हाथ पैर धुलवाती है और धुला हुआ साफ गमझा उसे देकर चाय बनाने लगती है
"सुमइ..या सारी चाह चूल्हो पहियां बनन पर बड़ो टाइम लेत हई.. भोलेनाथ केरी क्रिपा हुई गई यइ बार..तो गेस लाइ दिबो.." चारपाई पे बैठ बीड़ी सुलगाते हुए उसने सुरमई से कहा
चाय छानते हुए सुरमई बोली "यउ सब हवाई बात छोड़उ..कल तहसील जाइकेरे बेंक सेरे कुछ पइसा निकाल लाउ...एक पाई नाइ हई.. हमाये पास.."उसने चाय का गिलास खिलावन की ओर बढ़ाया
"बेंक महियां तुम्हरे बाप पइसा भेजत हईं का..कित्ती बार कहो..चाह पियत टाइम..दुखड़ा न रोवउ करइ" खिलावन बैंक में बचे बहुत कम रुपैयों का ध्यान करते हुए झल्लाके बोला और चाय का गिलास लेकर चारपाई के पाये के पास रख देता है और एक और बीड़ी सुलगाता है
ऐसे ही एक के बाद एक दिन गुजरते जाते हैं आषाढ़ सावन भादों सब महीनो में नाम की भी बारिश नहीं होती है पूरे प्रदेश में सूखा पड़ा है मगर खिलावन के बैंक का जमा सारा धन नदी की तरह बहता जाता है ,भुखमरी से बचने के लिए गाय बैल समेत जो भी कुछ बेचा जा सकता था बेच दिया जाता है और कुन्नो भी बीमार पड़ जाती है उसकी दवा-दारू तक भी नहीं हो पाती है
"कहाँ जाइ रहि हउ..इहाँ बिटिया भूखी हई..और तुम उहाँ महाटीला पर दूध बहाये जाइ रहि हउ.. बैठउ..चुपचाप" सुरमई को एक छोटे सी गिलसिया में दूध लेकर शिव मंदिर जाते देख बिलबिलाते हुए खिलावन ने कहा
"पंडित जी कहिन हईं.. अकाल केरो दोष हई.. कोई कुँआरी कन्या केरी बलि लइके ही जहिहई..कहीं कुन्नो.....यहि लिये जाइ रहेन.. हमाओ कलेजो पत्थर केरो नाइ हई..जो बिटिया कहियां भूखो रखके..दूध बहान चलि जइबो" सुरमई कुन्नो के पास आकर बैठ गई और रोते रोते बोली
"अरे..पूरो सावन..गिलास भर भर दूध भोलेनाथ डकार गए..गंगा जी केरी एक बूँद नाइ खोलिन अपने बालन सेरे ..खुद तो पत्थर केरे बने बइठे हईं.. अउर हमइ कलेजा दई दीन माँ बाप केरो" खिलावन ने जैसे अपने सीने की चीत्कार खोल दी, गरीब आदमी अपना गुस्सा या तो अपनी पत्नी पे दिखा पाता है या भगवान को कोस कोस के निकालता है
कुन्नो भूख और बीमारी के कारण पीली पड़ गई है बीच बीच में बेहोश सी हो जाती है जब होश आता है तो कभी कभी बड़बड़ाती है पर वो 11 साल की लड़की समझदारी का स्वांग भी करती दिखती है और अपनी अम्मा बापू को परेशान देखकर इधर उधर की बात करके उन्हें बहलाने की कोशिश करती है "बापू तुमका तो सब अन्नदाता काहत हईं फिर भगवान तो तुमसे छोटो हुओ न"
"बिटिया..यही विडम्बना हई..इहाँ जो अन्न उपजात हई वो किसान हई ..अउर जो भूख उपजात हई वउ भगवान हई" अपनी आँखों में आये पानी को वो रोक न सका और कुन्नो का हाथ पकड़ कर बैठ गया एक बेबस पिता अपने सामने अपनी मासूम बेटी को मरता देख रहा था
अचानक से कुन्नो की तबियत बिगड़ने लगती है वो बड़बड़ाने लगती है.."अम्मा..अम्मा...बापू..पू...लाल चूड़ी...छन छन...छन छन ..लाल..चू.."और उसके प्राण चूड़ी पूरा बोले बगैर ही निकल जाते हैं
"आअह्ह...आआह्ह.. हाय हमरे महादेव...यउ.. का कर दिउ.. हाय हमरी बिटिया...कुन्नोSSSSSS............................................" एक माँ की छाती फट जाती है अपनी बच्ची को मिटटी होते देख उसका रूदन शिव के तांडव से भी विकराल है खिलावन सन्न रह जाता है उसकी लाल आँखें नम हैं पर वो धारा नहीं बहा रहीं हैं
करीबन आधे घंटे बैठा वो एक टक मृत कुन्नो को देखता रहता है और सुरमई का आकाशीय बिजली सा रूदन सुनता रहता है फिर अचानक से उठता है एक फटी पुरानी सी चादर में घर के टेढ़े मेढ़े सारे धातु के बर्तन बांधता है और घर से निकल जाता है सुरमई को होश नहीं था पर इतना समझ रही थी कि शायद वो अंतिम संस्कार की लकड़ी के लिए बर्तन बेचने गया है
काफी देर के बाद हाथ में फावड़ा लिए खिलावन आता है और कुन्नो के मृत शरीर को सुरमई के हाथों से छीन कर अपने काँधे पे रखकर बाहर जाने लगता है सुरमई रोते चीखते हाय दइया हमरी बिटिया कहते कहते उसके पीछे दौड़ती है
खिलावन अपने खेत में पहुँचता है और वहाँ पहले से खोदे हुए एक विशाल गढ्ढे में कुन्नो के मृत शरीर को लिटाता है और अपने कुर्ते की जेब से एक पैकेट निकालता है उसमे बर्तन बेच कर लाइ हुईं....बाजार की सबसे महंगी लाल चूड़ियाँ थीं...वह फफक फफक के रोते रोते अपनी बच्ची कुन्नो के दोनों हाथों में चूड़ियाँ पहना देता है....पास खड़ी सुरमई चीख चीख के विलाप कर रही है अपने हाथ पैर पटक रही है पर खिलावन एक मशीनी व्यक्ति की तरह फावड़े से मिटटी डाल डाल के उस गढ्ढे को भरता जाता है
गड्ढे को भर के वो फावड़ा आसमान की ओर करके जोर जोर से चिल्लाता है "अब तउ तुम्हरे कलेजा महियां ठंडक पड़ गई हुइए...दूध के साथ हमाइ बिटिया कहिहउँ हजम कर गेउ तुम..अबहूँ शिराप पूरो नाइ हुओ का तुम्हारो...हाँ कइसे हुइए..किसान केरे इहाँ कबहुँ सुखो नाइ पड़त..काहे सेरे किसान केरी आँखे हमेशा गीली राहत हईं...."
आसमान भगवान् के इंसाफ की तरह ही पूरा साफ है एक भी बादल का कोई नामोनिशान तक नहीं......दूर कहीं से दखिन देवी के मन्दिर से कुछ स्त्रियों के भजन की आवाज आ रही है "लाली लाली लाल चुनरिया....... कैसे न माँ को भावे...................................................."
-तुषारापात®™
"बिटिया..अबहिं ढेर दिन हईं..मेला महियां..बस भोलेनाथ सेरे या प्रार्थना करउ...अबकी पानी टाइम सेरे गिर गिर जावइ..तो तुम्हरे लिए चूड़ी का..लाल फिराकउ आई जहिहई" खिलावन हाथ धोते हुए बोला और अपनी 11 साल की बेटी कुन्नो के पास आकर खाने की पोटली खोलने लगा
जितने दिन वो खेत में काम करता था कुन्नो आज ही की तरह रोज दोपहर में उसके लिए खाना लाती थी खिलावन की बीवी सुरमई घर से रोटी साग इत्यादि की एक पोटली बना के कुन्नो के हाथ भेज देती थी और कुन्नो पूरे गाँव का चक्कर लगाती उछलती खेलती खेत पहुँच जाया करती थी
खिलावन ने खाना खाकर दूर खेलती कुन्नो को बुलाया "बिटिया...ओ.. बिटिया.. लेव..बर्तन लइके घर चली जाव.." कुन्नो दौड़ के उसके पास आ जाती है और अपने दोनों हाथों में जमा किये हुए पत्थर फेंकती है और खिलावन से पोटली ले लेती है खिलावन उसके सर पे प्यार से हाथ फेरता है और बनावटी गुस्से में कहता है "अपनी अम्मा से कहेउ...थोड़ो नमक कम झोंकईं साग महिया.."
शाम होते ही खिलावन घर पहुँचता है सुरमई उसके हाथ पैर धुलवाती है और धुला हुआ साफ गमझा उसे देकर चाय बनाने लगती है
"सुमइ..या सारी चाह चूल्हो पहियां बनन पर बड़ो टाइम लेत हई.. भोलेनाथ केरी क्रिपा हुई गई यइ बार..तो गेस लाइ दिबो.." चारपाई पे बैठ बीड़ी सुलगाते हुए उसने सुरमई से कहा
चाय छानते हुए सुरमई बोली "यउ सब हवाई बात छोड़उ..कल तहसील जाइकेरे बेंक सेरे कुछ पइसा निकाल लाउ...एक पाई नाइ हई.. हमाये पास.."उसने चाय का गिलास खिलावन की ओर बढ़ाया
"बेंक महियां तुम्हरे बाप पइसा भेजत हईं का..कित्ती बार कहो..चाह पियत टाइम..दुखड़ा न रोवउ करइ" खिलावन बैंक में बचे बहुत कम रुपैयों का ध्यान करते हुए झल्लाके बोला और चाय का गिलास लेकर चारपाई के पाये के पास रख देता है और एक और बीड़ी सुलगाता है
ऐसे ही एक के बाद एक दिन गुजरते जाते हैं आषाढ़ सावन भादों सब महीनो में नाम की भी बारिश नहीं होती है पूरे प्रदेश में सूखा पड़ा है मगर खिलावन के बैंक का जमा सारा धन नदी की तरह बहता जाता है ,भुखमरी से बचने के लिए गाय बैल समेत जो भी कुछ बेचा जा सकता था बेच दिया जाता है और कुन्नो भी बीमार पड़ जाती है उसकी दवा-दारू तक भी नहीं हो पाती है
"कहाँ जाइ रहि हउ..इहाँ बिटिया भूखी हई..और तुम उहाँ महाटीला पर दूध बहाये जाइ रहि हउ.. बैठउ..चुपचाप" सुरमई को एक छोटे सी गिलसिया में दूध लेकर शिव मंदिर जाते देख बिलबिलाते हुए खिलावन ने कहा
"पंडित जी कहिन हईं.. अकाल केरो दोष हई.. कोई कुँआरी कन्या केरी बलि लइके ही जहिहई..कहीं कुन्नो.....यहि लिये जाइ रहेन.. हमाओ कलेजो पत्थर केरो नाइ हई..जो बिटिया कहियां भूखो रखके..दूध बहान चलि जइबो" सुरमई कुन्नो के पास आकर बैठ गई और रोते रोते बोली
"अरे..पूरो सावन..गिलास भर भर दूध भोलेनाथ डकार गए..गंगा जी केरी एक बूँद नाइ खोलिन अपने बालन सेरे ..खुद तो पत्थर केरे बने बइठे हईं.. अउर हमइ कलेजा दई दीन माँ बाप केरो" खिलावन ने जैसे अपने सीने की चीत्कार खोल दी, गरीब आदमी अपना गुस्सा या तो अपनी पत्नी पे दिखा पाता है या भगवान को कोस कोस के निकालता है
कुन्नो भूख और बीमारी के कारण पीली पड़ गई है बीच बीच में बेहोश सी हो जाती है जब होश आता है तो कभी कभी बड़बड़ाती है पर वो 11 साल की लड़की समझदारी का स्वांग भी करती दिखती है और अपनी अम्मा बापू को परेशान देखकर इधर उधर की बात करके उन्हें बहलाने की कोशिश करती है "बापू तुमका तो सब अन्नदाता काहत हईं फिर भगवान तो तुमसे छोटो हुओ न"
"बिटिया..यही विडम्बना हई..इहाँ जो अन्न उपजात हई वो किसान हई ..अउर जो भूख उपजात हई वउ भगवान हई" अपनी आँखों में आये पानी को वो रोक न सका और कुन्नो का हाथ पकड़ कर बैठ गया एक बेबस पिता अपने सामने अपनी मासूम बेटी को मरता देख रहा था
अचानक से कुन्नो की तबियत बिगड़ने लगती है वो बड़बड़ाने लगती है.."अम्मा..अम्मा...बापू..पू...लाल चूड़ी...छन छन...छन छन ..लाल..चू.."और उसके प्राण चूड़ी पूरा बोले बगैर ही निकल जाते हैं
"आअह्ह...आआह्ह.. हाय हमरे महादेव...यउ.. का कर दिउ.. हाय हमरी बिटिया...कुन्नोSSSSSS............................................" एक माँ की छाती फट जाती है अपनी बच्ची को मिटटी होते देख उसका रूदन शिव के तांडव से भी विकराल है खिलावन सन्न रह जाता है उसकी लाल आँखें नम हैं पर वो धारा नहीं बहा रहीं हैं
करीबन आधे घंटे बैठा वो एक टक मृत कुन्नो को देखता रहता है और सुरमई का आकाशीय बिजली सा रूदन सुनता रहता है फिर अचानक से उठता है एक फटी पुरानी सी चादर में घर के टेढ़े मेढ़े सारे धातु के बर्तन बांधता है और घर से निकल जाता है सुरमई को होश नहीं था पर इतना समझ रही थी कि शायद वो अंतिम संस्कार की लकड़ी के लिए बर्तन बेचने गया है
काफी देर के बाद हाथ में फावड़ा लिए खिलावन आता है और कुन्नो के मृत शरीर को सुरमई के हाथों से छीन कर अपने काँधे पे रखकर बाहर जाने लगता है सुरमई रोते चीखते हाय दइया हमरी बिटिया कहते कहते उसके पीछे दौड़ती है
खिलावन अपने खेत में पहुँचता है और वहाँ पहले से खोदे हुए एक विशाल गढ्ढे में कुन्नो के मृत शरीर को लिटाता है और अपने कुर्ते की जेब से एक पैकेट निकालता है उसमे बर्तन बेच कर लाइ हुईं....बाजार की सबसे महंगी लाल चूड़ियाँ थीं...वह फफक फफक के रोते रोते अपनी बच्ची कुन्नो के दोनों हाथों में चूड़ियाँ पहना देता है....पास खड़ी सुरमई चीख चीख के विलाप कर रही है अपने हाथ पैर पटक रही है पर खिलावन एक मशीनी व्यक्ति की तरह फावड़े से मिटटी डाल डाल के उस गढ्ढे को भरता जाता है
गड्ढे को भर के वो फावड़ा आसमान की ओर करके जोर जोर से चिल्लाता है "अब तउ तुम्हरे कलेजा महियां ठंडक पड़ गई हुइए...दूध के साथ हमाइ बिटिया कहिहउँ हजम कर गेउ तुम..अबहूँ शिराप पूरो नाइ हुओ का तुम्हारो...हाँ कइसे हुइए..किसान केरे इहाँ कबहुँ सुखो नाइ पड़त..काहे सेरे किसान केरी आँखे हमेशा गीली राहत हईं...."
आसमान भगवान् के इंसाफ की तरह ही पूरा साफ है एक भी बादल का कोई नामोनिशान तक नहीं......दूर कहीं से दखिन देवी के मन्दिर से कुछ स्त्रियों के भजन की आवाज आ रही है "लाली लाली लाल चुनरिया....... कैसे न माँ को भावे...................................................."
-तुषारापात®™