Thursday 16 July 2015

काफिर :ईद मुबारक

निकलता हूँ घर से रोज मैं
पाँचो टाइम की नमाज को
मस्जिद वाली गली में देखता हूँ
मजलूम औरतों/ बिलखते बच्चों/ बुजर्गो को
को हाथ फैलाते हुए
पाई पाई पे ललचाते हुए
मुट्ठी भर भूख के लिए पैरों पे पड़ते हुए,
चीथड़ों से झांकती उनके बदन की आयतों पे
पाक कुरान की चादर चढ़ा के
ठण्ड से कांपते उन हाथों में
अपनी जेब का सबकुछ लुटा के
मस्जिद बिना जाये वापस आ जाता हूँ
इमाम ने देख लिया एक रोज मुझे लौटते हुए
सुना है क़ाज़ी ने फतवा ज़ारी किया है
मुझ 'काफ़िर' पे
ज़कात जमा न करने के लिए
नमाज़ अदा न करने के लिए

-तुषारापात®™

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