पुरानी किताब के मुड़े पन्ने जब खुलते हैं
'तुषार' सूखे हुए फूल काँटों से चुभते हैं
#तुषारापात®
तुषार सिंह 'तुषारापात' हिंदी के एक उभरते हुए लेखक हैं जो सोशल मीडिया के अनेक मंचों पे बहुत लोकप्रिय हैं इनके लिखे कई लेख, कहानियाँ, कवितायें और कटाक्ष सभी प्रमुख हिंदी अख़बारों में प्रकाशित होते रहते हैं तथा रेडियो fm पर भी कई कार्यक्रमो के लिए आपने लिखा है। कुछ हिंदी फिल्मों के लिए आप स्क्रिप्ट भी लिख रहे हैं। आप इन्हें यहाँ भी पढ़ सकते हैं: https://www.facebook.com/tusharapaat?ref=hl
पुरानी किताब के मुड़े पन्ने जब खुलते हैं
'तुषार' सूखे हुए फूल काँटों से चुभते हैं
#तुषारापात®
रोमन राज्य में एक बूढ़ा लोहार क्लाइडस अपने किशोर पोते जोविस के साथ रहता था, एक दिन क्लाइडस को एक ही तरह के कई बर्तन बनाते देख जोविस ने उससे पूछा "दादा जी...हम ये इतने सारे बर्तन क्यों बना रहें हैं"
"क्योंकि अगले हफ्ते दलाइजेनियस उत्सव आने वाला है..नगर के लोग उस दिन इस विशेष बर्तन को खरीदते हैं और एक बार इसमें थोड़ा सा जल भरते हैं और फिर उस जल को फेंककर इस खाली बर्तन का पूजन करते हैं.. उनकी मान्यता है कि इस दिन इस बर्तन को पूजने वाले को एक वर्ष के भीतर ढेर सारा धन प्राप्त होता है" क्लाइडस ने हाथ में पकड़े बर्तन में थोड़ा सा पानी भरते हुए कहा
जोविस उसे बर्तन में पानी भर के निरीक्षण करते और पानी फेंकते देखता है, थोड़ी देर कुछ सोचता और फिर क्लाइडस से कहता है "तब तो.. आपके पास तो..अ..बहुत सारा धन होना चाहिए था..हमारे पास तो इतने सारे बर्तन हैं..हम फिर भी गरीब क्यों हैं"
क्लाइडस किशोर मन की उड़ान देख मुस्कुरा दिया और बोला "क्योंकि बर्तन से अधिक मूल्यवान पदार्थ बर्तन के भीतर हुआ करता था जिसे हमने हजारों साल पहले फेंक दिया था.. इसलिये हम गरीब हैं..पुत्र"
जोविस की उत्सुकता अब चरम पर पहुँच गई "अरे..बर्तन से अधिक मूल्य का पदार्थ अगर बर्तन में था तो उसे फेंक क्यों दिया.. तब तो इस उत्सव को मनाने का कोई मतलब ही नहीं रहा..दादा जी..मुझे इस उत्सव के पीछे की कहानी सुनाइये न..क्या था उस बर्तन में..उसे किसने फेंका और क्यों?"
"बचपन में अपने दादा से मैंने ये कथा सुनी थी..अब ठीक ठीक तो याद नहीं है फिर भी जितनी याद है सुनो" क्लाइडस अपने माथे पे हाथ लगाते हुए बोला और कहानी सुनाने लगा, जोविस झट से उसके और पास आकर बैठ गया और कहानी सुनने लगा।
बहुत पहले रोमन देवताओं और दैत्यों के मध्य पो नदी से निकले एक स्वर्णपात्र के स्वामित्व के लिए भीषण युद्ध छिड़ा हुआ था देवता और दैत्य युद्ध में इतने अधिक मगन थे कि नदी किनारे रखे हीरे-पन्ने और न जाने कितने रत्न जड़े उस स्वर्णपात्र पर उनमें से किसी की भी नज़र न थी..इसी का फायदा उठा के राजा ज़ेलेंडर जो कि हमारे राज्य रोमन का सम्राट और हमारे परदादा के परदादा का भी प्रथम परपरदादा भी था,ने उस स्वर्णपात्र को नदी के किनारे से चुरा लिया और वह तेजी से भागने लगा..वह शीघ्र अति शीघ्र देव-दैत्य युद्धभूमि से दूर अपनी राजधानी पहुँच जाना चाहता था पर वह स्वर्णपात्र बहुत अधिक भारी था इसलिए वह तेजी से भाग नहीं पा रहा था..तो.. जब वो.. भागते.. भागते... युद्धभूमि से थोड़ी दूर..पहुँच गया तो तो उसने यह किया..यह किया...क्या किया था उसने...." क्लाइडस कहानी कहते कहते अटक गया और माथा पकड़ के सोचने लगा
रोमांचक कहानी के इतने रोचक मोड़ पर कहानी रुकने पर भी जोविस ने अपना सब्र नहीं खोया वह अपनी जगह से उठा और क्लाइडस के बनाये उस विशेष बर्तन में पानी भर के ले आया और अपने दादाजी को पीने को दिया, पानी पीते ही क्लाइडस को याद आ गया और वह आगे की कहानी कहने लगा "तो जब स्वर्णपात्र के भार के कारण हमारा राजा ज़ेलेंडर थोड़ी दूर आकर रुका था तो उसने सोचा देखूँ तो इसमें क्या है जो देवता तक इसके लिए युद्ध कर रहे हैं.. वह पात्र को खोलकर देखता है और उसमें उसे कोई रत्न इत्यादि नहीं दिखता उसमें तो मटमैला पानी दिखता है.. वह सोचता है चूंकि पात्र सोने का है और इतने सारे बहुमूल्य रत्नों से जड़ा है तो संभवतः देवता इसी पात्र के लिए युद्ध कर रहे होंगे यह सोचकर वह पात्र में भरा मटमैला पानी फेंक देता है जिससे कि पात्र का भार कुछ कम हो जाये और वह तेज़ी से भाग सके.. फिर वह किसी तरह अपनी राजधानी पहुँचता है और बाद में उसके राजदरबार के कवि यह किस्सा उसकी शान में बढ़ाचढ़ा कर पेश करते हैं। चूँकि वह राजा था..नहीं राजा से भी बड़ा..वह तो सम्राट था तो उसके पास धन दौलत की कोई कमी पहले से ही नहीं थी पर न जाने कैसे उसका यह किस्सा फैलते ही लोगों ने राजा की धन संपदा का कारण उस स्वर्ण पात्र से जोड़ दिया और जिस दिन वह राजा अपनी राजधानी पहुँचा था उस दिन से यह उत्सव मनाने की परंपरा आरम्भ हो गयी" क्लाइडस कहानी कहकर चुप हो गया।
जोविस ने कहा "लेकिन हो सकता है उस स्वर्णपात्र के कारण ही राजा की धन संपदा में वृद्धि हुई हो और उसने अक्लमंदी का काम किया जो पात्र में भरा नदी का मटमैला जल फेंक दिया..क्योंकि भार कम होनेके कारण ही वह तेजी से भाग सका था"
क्लाइडस मुस्कुराया और ठंडी साँस छोड़ते हुए बोला "वह मटमैला पानी अमृत था.. देवता स्वर्ण और रत्नों के लिए कब युद्ध करते हैं..वह अगर अमृत पी लेता तो उसे भागने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती फिर तो देवता भी उसे मार नहीं पाते"
"हे ईश्वर... तब तो हमारे पहले दादा राजा ज़ेलेंडर बिल्कुल बुद्धू थे...उन्हें यह सोचना चाहिए था कि देवता तक जिस चीज के लिए युद्ध कर रहे थे वह कोई बहुत अनमोल चीज ही होगी.. लेकिन देवताओं और दैत्यों ने पात्र की चोरी के बाद राजा को पकड़ा नहीं..पात्र वापस देने के लिए?" जोविस की वाणी में गुस्सा..और आश्चर्य दोनो था
क्लाइडस जोविस के पानी लाये बर्तन को उठाते हुए धीरे से बोला "देवताओं को कहाँ फुरसत जो मनुष्यों की ओर देखें...वे तो आज तक दैत्यों से युद्ध कर रहे हैं..."
"तो दादा जी आप यह कहानी रोमन के सभी नागरिकों को क्यों नहीं बताते.. उन्हें सच की जानकारी होनी चाहिए"
श..श.. यह बात कभी भी..किसी से भी.. मत कहना.. वरना हमारे बनाये यह बर्तन कौन खरीदेगा" कहकर उसने पानी से भरे उस विशेष बर्तन को जोविस की ओर बढ़ा दिया और दादा पोते दोनो हँसने लगे।
~तुषार सिंह #तुषारापात®
दो महिलाएं किसी तीसरी महिला की भरपूर निंदा करने के बाद अपनी भेंटवार्ता के अंत में उसी तीसरी महिला की प्रशंसा करतीं ठीक वैसे ही सुनाई देतीं हैं जैसे पुजारी लोग पूजा करने के बाद पूजा में हुई किसी भूल-चूक के लिए क्षमा याचना करतें हैं।
~तुषारापात®
न चरखा कातती बुढ़िया दिखेगी
न दिखेंगें गड्ढे किसी पहेली की तरह
चौथ का चाँद दिखाई देगा आज
बस,हिना लगी तेरी हथेली की तरह
#तुषारापात®