Sunday 26 July 2015

निराला से निराले तक

"जो बिकता है वो लिखिए
बेवजह कानून मत छौंकिए"

आज अगर महाकवि 'निराला' भी होते तो उन्हें भी अपनी कविता
'वो तोड़ती पत्थर
देखा उसे मैंने इलाहाबाद के पथ पर'
(जिन्होंने पढ़ी होगी वो जानते होंगे इस कविता का मोल, जिसने न पढ़ी हो तो पढ़ लीजिये मातृभाषा हिंदी पे थोडा अहसान तो कर ही सकते हैं न ) लिखते तो उन्हें भी कुछ यूँ लिखना पड़ता :

'वो भेजती sms टाइपकर
 देखा उसे मैंने एंड्राइड मोबाइल पर
 वो भेजती sms टाइपकर
 कई हैं whatsapp यार
 जिनके msg हैं उसे स्वीकार
 white white कलाइयां
 touch screen पे चलती उंगलिया
 नाखुनो से झटाझट प्रहार
 गर्मियों के दिन
 चढ़ रही थी धूप
 Make-up से दिव्य रूप
 प्यास बुझाती pepsi गटगटाकर
 उठी झुलसाती हुई लू
 Cotton के जैसे जलती हुई भू
 हनी सिंह का गाना बजाती
 मंगाने को boyfriend की AC कार
 वो भेजती sms टाइपकर ।

-तुषारापात®™

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