Thursday 21 April 2016

लिवर ट्रांसप्लांट

पचपन साल की विनीता गुर्दे की एक गंभीर बीमारी से लड़ रही थी और उसके साथ लखनऊ के मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर भी इस लड़ाई में अपनी पूरी ताकत से लगे थे,विनीता का इलाज बहुत लंबा चला जिसके दौरान उसने बहुत कष्ट उठाये पर कल वो जिंदगी और मौत के इस खेल में मौत के पाले में चली गई,डॉक्टरों ने उसे ब्रेन डेड घोषित कर दिया ।

विनीता के भाई जो खुद एक डॉक्टर हैं उन्होंने विनीता के अंगदान का निर्णय लिया उन्होंने सोचा कि उनकी बहन ने तो बहुत कष्ट उठाये पर उसके मृत शरीर के कई अंग अभी जिन्दा हैं जो किसी और तड़पते मरीज की जान बचा सकते हैं पता चला कि दिल्ली में एक मरीज की जान बचाने के लिए लिवर ट्रांसप्लांट की जरूरत है तो डॉक्टर्स ने विनीता का लिवर निकाल कर उसे दिल्ली भिजवाने के लिए लखनऊ एअरपोर्ट भेजा ।

चूँकि निकाले गए लिवर को सिर्फ 6 घंटे तक ही सुरक्षित रखा जा सकता है तो इसको जल्दी से जल्दी दिल्ली पहुँचाने के लिए मेडिकल कॉलेज के एक अस्पताल से लखनऊ एयरपोर्ट तक के 28 किलोमीटर के अति व्यस्त ट्रैफिक वाले रूट पर 'ग्रीन कॉरिडोर' बना कर मात्र 24 मिनट में भेजा गया जो अपने आप में बहुत बड़ी बात है

ग्रीन कॉरिडोर मानव अंग को एक निश्चित समय के भीतर एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजने के लिए बनाया जाता है। पुलिस एम्बुलेंस के रूट को खाली करवाती है एम्बुलेंस के आगे आगे पुलिस वाहन चलते हैं जिससे स्पीड में ब्रेक न लगे, इसी प्रक्रिया को 'ग्रीन कॉरिडोर' कहा जाता है ।
यह सुविधा दिल्ली,मुम्बई,चेन्नई,कोच्ची और बेंगलुरु में उपलब्ध है और लखनऊ में यह चौथी बार कल किया गया। आज के पेपर में ये खबर बड़ी हेडिंग के साथ है 'लिविर बचाने को 24 मिनट ठहर गया लखनऊ'।

मैं विनीता की आत्मा की शांति की प्रार्थना करता हूँ उनके डॉक्टर भाई के इस निर्णय से लोगों में अंगदान की जागरूकता बढ़ेगी और कष्ट में डूबे मरीजों को बीमारी से छुटकारा मिल सकेगा उनकी इस सोच के लिए सलाम करता हूँ साथ ही डॉक्टर्स की टीम जिन्होंने अंग प्रत्यारोपण में अपनी महारत बनाई की जितनी तारीफ की जाय उतनी कम है और साथ ही साथ लखनऊ पुलिस और प्रशाशन और यहाँ के नागरिकों को साधुवाद!

पर एक बात मुझे बार बार खटक रही है कि इस पूरी प्रक्रिया में क्या हेलीकॉप्टर का प्रयोग नहीं किया जा सकता था? 24 मिनट तक लगने वाले जाम से शहर की ट्रैफिक व्यवस्था अस्त व्यस्त हुई आखिर सड़क पे भी न जाने कितने लोग अपने कितने ही जरूरी काम से कहीं जा रहे होंगे मान लो उस भीड़ में ही कोई गंभीर बीमार अस्पताल जाने को भाग रहा हो और ये होने से जाम में फंस के रह गया हो और अपने जीवन को खो बैठा हो तो?

नेताओं के फर्जी दौरों उनकी मीटिंग,रैलियों के लिए चुटकियों पे हेलीकॉप्टर उपलब्ध रहते हैं परन्तु आम जनता के ऐसे केस के लिए भी क्या एक हेलिकॉप्टर उपलब्ध नहीं कराया जा सकता था? मेडिकल कॉलेज को ऐसे समय के लिए अपने लिए हेलिकॉप्टर आदि की व्यवस्था की माँग करनी चाहिए
बड़े बड़े मुद्दों के बीच ऐसे ही कितने छोटे पर बहुत अहम मुद्दे हम सा छोड़े रहते हैं जिनका कहीं जिक्र नहीं होता जिनपे कोई प्रश्न नहीं उठाता पर मैं आदत से मजबूर हूँ कुछ उल्टी बात ढूंढ ही लेता हूँ हर सीधी बात में ।

-तुषारापात®™