Thursday 31 March 2016

धुआँ

धुआँ उठता है
तो हम डर जाते हैं
सभी अवगत जो हैं
उस कहावत से कि
बगैर आग के धुआँ नहीं होता
पर कहीं ये धुआँ
खुशियाँ भी लाता है
खुशहाली और धुआँ ?
अकाल पड़े किसी गाँव के
एक आँगन से उठता धुआँ
भूखे चेहरों को खुश कर जाता है ।

-तुषारापात®™

Tuesday 22 March 2016

शगुन फागुन का

तोरी नजर पिचकारी से हाय बलम मैं लाल भई
ढीली पड़ी मोरी करधनी ऊपर ऊपर सांस चढ़ी

भंग में डूबी तोरी अँखिया इन अखियन संग खूब लड़ीं
अंग अंग हरियाये गवा जइसे सिल पे पिसी भंग गई

छेड़ें सखियाँ पूछें कलमुँही चुनरी तोरी कहाँ गई
तीर के जैसे देखे देवर हाय देह मोरी कमान भई

मैदा जइसी गोरी चिट्टी तुम्हरी नजर मा भूनी गई
तोरी मीठी बातन के खोओ से गुझिया जैसी भरी

भीजत भीजत ताप चढ़ो लावो ठंडाई थोड़ी पीई
तोरे रंग में रंग के सजन जी मैं भी अब रंगीन भई

रास में तोरे रास बिहारी लोक लाज सब भुलाई दई
अंग लगी यों तुझसे जइसे सागर द्वारका समाई गई
-तुषारापात®™

Sunday 20 March 2016

जन गण मन

कल कुछ पुराने दोस्तों के साथ यहाँ के एक मशहूर लॉउन्ज में भारत पाकिस्तान टी 20 मैच देखने का प्रोग्राम बना हम लोगों को थोड़ी देर हो गई थी पर कोलकाता में बारिश होने के कारण मैच शुरू नहीं हुआ था इसलिये देर से पहुँचने पर भी मैच की एक भी एक्टिविटी हमने मिस नहीं की

लॉउन्ज के अंदर गया तो देखा कि न जाने कितने टीवी और प्रोजेक्टर स्क्रीन्स लगे हुए हैं और उनपे एशिया कप के भारत पाकिस्तान मुकाबले की हाइलाइट्स चल रही हैं कमेंट्री की आवाज फुल वाल्यूम पे थी लॉउन्ज अपने आप में एक स्टेडियम बना हुआ था जबरदस्त भीड़ थी पर हमारी बुकिंग थी तो हमें अपनी जगह मिल गई थी

मैच स्टार्ट होने से पहले के घटनाक्रम पे बाद में आऊँगा तो मैच शुरू होता है धोनी टॉस जीतते हैं पहले फील्डिंग का चुनाव करते हैं तो पाकिस्तान की बैटिंग शुरू होती है और पहली बॉल से लॉउन्ज में जो शोर शुरू हुआ वो मैच की आखिरी गेंद तक बढ़ता ही गया पाकिस्तान के एक एक विकेट गिरने पे तालियों और सीटियों की आवाज आपके कान को विकलांग बना सकती थी अश्विन की घूमती गेंदों पे यहाँ लॉउन्ज के लोग झूम उठते थे किसी तरह पाकिस्तान ने 118 रन बनाये और भारत को 119 का टारगेट दिया

और जब भारत की बल्लेबाजी शुरू हुई तब तक लॉउन्ज पूरा पैक हो चूका था विराट ने अपने नाम को चरितार्थ करते हुए भारत को जीत दिलाई उनकी एक एक शॉट इतनी परफेक्ट थी इतना सधा हुआ हाथ जैसे कोई बेहतरिन कारीगर चिकन की कढ़ाई कर रहा हो और उनका अपने पचासे पे सचिन तेंदुलकर को प्रणाम करना दिल को छु गया और ये सन्देश दे गया कि आप चाहे जितने सफल हों शिखर पे हों अपने से बड़ों का सम्मान नहीं छोड़ना चाहिए हमेशा की तरह धोनी के बल्ले से जीत का रन निकला और क्रिकेट के भगवान ने तिरंगा लेकर फहराना शुरू किया पर उनके बाजू में खड़े वृद्ध लेकिन युवाओं से भी अधिक सक्रीय हम सबके प्रिय अभिनेता अमिताभ बच्चन जी को जोश में तिरंगा फहराते देख मन गर्व से भर उठा दाँत पीस पीस कर जिस तरह उन्होंने अपनी खुशी जाहिर की वो टीम इंडिया को मैच की जीत पे मिला सबसे बड़ा तोहफा था

एक बहुत अच्छा और अनोखा अनुभव रहा ये मेरे लिए ऐसा लगा मैं भी स्टेडियम में ही हूँ खैर अब आते हैं उस बात पे जिसके लिए इतनी लंबी कहानी कही तो कल जब मैच शुरू होने जा रहा था तो आपको पता ही है दोनों देशों के राष्ट्रगान गाये जाते हैं पहले पाकिस्तान का राष्ट्रगान गया गया स्टेडियम में सन्नाटा हो चूका था और अब सदी के महानायक द्वारा अपना राष्ट्रगान गाया जाना था जैसे ही धुन बजी मैं अपनी सीट से खड़ा हो गया मेरे साथ मेरे सारे दोस्त खड़े हो गए लॉउन्ज का स्टाफ और लॉउन्ज में आये ज्यादातर लोग खड़े हो गए वहाँ सिर्फ अमिताभ बच्चन की आवाज सुनाई दे रही थी और राष्ट्रगान की एक एक पंक्ति एक एक रोम में जोश और गर्व भर रही थी उस समय की अनुभूति मैं बयाँ नहीं कर सकता

राष्ट्रगान खत्म होता है और फिर से हो हल्ला शुरू हो जाता है राष्ट्रगान के दौरान जो लोग खड़े नहीं हुए थे वे मोटी खाल के अधेड़ उम्र के पढ़े लिखे लोग थे जो अपने सोफे पे पसरे रहे और हम लोगों को देखकर खींसे निपोरते रहे उनके अलावा लॉउन्ज में ज्यादातर युवा ही थे हाँ वही युवा पीढ़ी जिसपे आरोप लगता रहता है वो नशे में डूबी नालायक नश्ल है वही लोग कल राष्ट्रगान के समय सबसे पहले खड़े हुए और उनसे एक पीढ़ी पहले के लोग बैठे दाँत दिखाते रहे उन्हें आखिर में शर्म जरूर आई होगी जब उन्होंने इतनी उम्र होने के बावजूद अमिताभ बच्चन को एक बच्चे की तरह जोश में तिरंगा फहराते देखा होगा

नई पीढ़ी बिंदास है बेबाक है बेफिक्र है पर जिम्मेदार है उन्हें कोसना छोड़ कर और अपने प्रवचनो के बजाय अपने आचरण से उन्हें दिशा निर्देश दें तभी कोई बात बनेगी वरना इंडिया इंडिया का नारा लगाते सब दिखेंगे पर इंडिया बनाता कोई नहीं दिखेगा ।

वैसे आपमें से कौन कौन कल टीवी पे राष्ट्रगान सुनकर खड़ा हुआ था ? उत्तर मुझे नहीं खुद को दीजियेगा ।

-तुषारापात®™

Friday 11 March 2016

गुल्लक की कैद

आज फिर एक पार्टी में उससे मुलाकात हो गई..हमेशा की तरह हदीस कंपनी के हॉट शॉट्स के साथ अपने कॉन्टैक्टस बनाने के लिए उनके आगे पीछे घूम रहा था..और वो एक फिरोजी रंग की साड़ी में अपनी खूबसूरती छुपाने की नाकाम कोशिश करते हुए बॉस की मैम के साथ इधर उधर की बातें कर रही थी..उसके चेहरे से साफ था..कि वो बोर हो रही थी..तभी मैम किसी दूसरे गेस्ट का वेलकम करने चली गईं..एक सॉफ्ट ड्रिंक का गिलास ले मैं उसकी तरफ बढ़ा

"आज तो कोई आसमान लपेट के जमीं पे उतरा है..पर चाँद से चेहरे पे ये ग्रहण क्यों" मैंने उसे ग्लास देते हुए कहा

उसने मेरे हाथ से ग्लास लिया एक सिप लगाया और बोली "हम्म... शायरी... लगता है ये सितारा शराब में डूब के आया है..वैसे थैंक्स मेरी नहीं..मेरी साड़ी की तारीफ ही सही.."

"आसमान से टूटा सितारा..अक्सर नशे के समन्दर में गिरता है.. खैर मेरी छोड़ो तुम बताओ...आयत..कॉलेज की सबसे ब्रिलियंट लड़की आज एक हाउस वाइफ बन के कैसे रह गई...याद है कितना झगड़ा किया था तुमने मुझसे ये कहकर कि मैं अभी शादी नहीं करना चाहती मुझे ये करना है वो बनना है ऑल दैट.." पिछली यादों की रौ मैं थोड़ा तल्ख़ हो उठा

उसने एक सांस में ग्लास खाली किया...ग्लास पास की टेबल पे रखा और बोली "ओह इतनी कड़वाहट वेद...कॉलेज टाइम पे हम सपनों में जीते हैं...बाद में पता चलता है हमें कि..दुनिया के कटोरे में सपने रेजगारी की तरह होते हैं.. जो खनकते खूब हैं पर उनसे कुछ खरीदा नहीं जा सकता.. भूल जाते हैं दुनिया नोटों से चलती है चिल्लर से नहीं.."

"पर तुम्हारे जैसे नायाब सिक्के को सहजने के लिए ये गुल्लक हमेशा थी" मैंने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा

उसने अपना हाथ मेरे हाथ में रहने दिया एक नजर हदीस को देखा और मुझसे बोली" वेद..जानते हो नायाब होना या लाजवाब होना बहुत बेबस भी बनाता है..खासतौर पे एक लड़की को...लड़की जितनी ज्यादा ब्यूटीफुल हो..टैलेंटेड हो..उतने ही ज्यादा लड़के उसे अपना बनाने के लिए लगे रहते हैं"

"अच्छा..तो अब मैं तुम्हारे लिए उस भीड़ का एक हिस्सा भर हो गया.. आयत...खूब दुनियादारी सीख ली तुमने भी"मैं उसकी बात काटते हुए बोला

"बात पूरी न होने देने की आदत अब तो छोड़ दो..." उसने अपना हाथ छुड़ाते हुए कहा

"हम्म..बताओ...सुनूँ तो बेमिसाल बेबस कैसे हो जाता है" मैंने डिब्बी से एक सिगरेट निकाली पर सुलगाई नहीं

"तुमने कॉइन्स कलेक्टर देखे हैं...जो अनोखे अनोखे सिक्के इकठ्ठा करते हैं.. वेद...सिक्के का अनोखा होना ही उसकी मुसीबत बनता है ..उसे पकड़ के गुल्लक में बंद कर दिया जाता है...और...बाजार की खुली हवा से महरूम कर दिया जाता है..अनोखे सिक्के को गुल्लक में बंद होना ही है...फिर क्या फर्क पड़ता है वो वेद की गुल्लक हो या हदीस की" कहकर वो चली गई

"आयत..तो कम से कम इस खाली गुल्लक को तोड़ती ही जाओ.." मैं चीख के उससे ये कहना चाहता था पर वो जा चुकी थी...गुल्लक के मुंह में सिक्के की जगह सुलगती सिगरेट लग चुकी थी और धुआँ खनकने लगा था।

-तुषारापात®™

Monday 7 March 2016

नमः शिवाय

एक बहुत बड़े शहर का नक्शा एक छोटे से कागज़ पे बनाया जा सकता है पर क्या उस नक़्शे में एक जगह से दूसरी जगह उँगली रखने मात्र से आप वहां पहुँच जायेंगे नहीं न उसके लिए तो आपको स्वयं ही यात्रा करनी पड़ेगी नक्शा सिर्फ आपकी मदद करता है ।

भगवान् की मूर्तियों/चित्र/कथाओ को भी एक नक़्शे की तरह लेना चाहिए और अपनी जीवन यात्रा अपना कर्म नैतिकता से करना चाहिए तभी आप सच्चे धार्मिक हैं।

भगवान शिव के स्वरुप की बहुत ही व्यवहारिक और वैज्ञानिक विवेचना के इस एक उदाहरण से इसे समझा जा सकता है है शिव जी के माथे पे चन्द्रमा का मतलब है अपने मन मस्तिष्क में क्रोध नहीं आने देना शीतलता धारण करना, ऐसे ही जटाओं से गंगा का निकलना प्रतीक है कि अपने मस्तिष्क से हमें सदैव ऐसे सद व सात्विक विचारों का ही प्रवाह करना चाहिए जैसे गंगा पावन है। तीसरी आँख से अभिप्राय ,आज्ञा चक्र का जागृत होना और संहार में या कहूँ निर्णय लेते समय निस्पक्ष होने से है।महादेव के शरीर पे भस्म से हमें ये सीख लेनी चाहिए कि मृत्यु शाश्वत सत्य है जीवन के मद में हमें ये कभी नहीं भूलना चाहिए।धर्म और परोपकार के पथ पे निंदा और आलोचना को भी विष समझ के सहज स्वीकार लेना चाहिए। शिव जी हर समय नारायण या राम राम क्यों जपते हैं वो इसलिए की सब कुछ करते हुए भी अपने नाम की चाह नहीं करना चाहिए वरन् दूसरों के नाम को आगे बढ़ाने के काम से आप बहुत बड़े बन जाते हो
प्रकृति के संहार की शक्ति का प्रतीक हैं शिव और संहार पालन का ही एक रूप है

अगर ऊपर बताये गए तरीकों का पालन आप करते हैं तभी आप शिव भक्त हैं नहीं तो शिव की फ़ोटो मूर्ति के आगे चाहे धूप जलाओ चाहे चन्दन लगाओ या फिर दूध बहाओ सब व्यर्थ है।
परंतु हर सामान्य और साधारण व्यक्ति इसे नहीं समझ सकता उसे समय लगता है पहले वो भी सिर्फ चित्र पूजता है धीरे धीरे उसके चरित्र को समझ पाता है हम आप और जितने लोग आज इस बात को समझ चुके हैं वो भी पहले इसी अवस्था से गुज़र चुके हैं इसलिए हमें किसी का उपहास नहीं उड़ाना चाहिए वरन् ऐसे लोगों को समझाना चाहिए की सच क्या है।
आप चाहे जितनी ऊँची मंजिल पे पहुँच जाये पर ये मत भूलिए कि आये आप भी पहली मंजिल से हैं।

-तुषारापात®™ 

Friday 4 March 2016

आविष्कार का पिता

"अ..देखिये मिसेज...अरर..मिस...मेरा मतलब...आवश्यकता जी.. ये बम्बई दिल्ली के जैसा कोई बड़ा शहर तो है नहीं..ये एक छोटा सा मगर अपनी संस्कृति से बहुत गहराई के साथ जुड़ा हुआ शहर है...और आप अपनी स्थिति तो बेहतर जानती ही हैं..तो इस तरह की बातों को एक कान से सुनिए और दूसरे से निकाल दिया कीजिये ...इसी में आपकी भलाई है"..अधेड़ चतुर्वेदी ने मीठी चाशनी में पगी मिर्च जैसे ये शब्द आवश्यकता से कहे

"लेकिन...चतुर्वेदी साहब..आते जाते हर रोज मोहल्ले वालों के ताने सुनना अब बर्दाश्त नहीं होता...आप मेरे लिए किसी और मोहल्ले में मकान ढूँढिये..यूँ यहाँ रहना मुश्किल है मेरा" आवश्यकता ने चतुर्वेदी की निगाहों का निशाना देखते हुए अपना आँचल ठीक करते हुए कहा

"आप समझ ही नहीं रहीं हैं..मैं जो कह रहा हूँ...अच्छा आप खुद ही बताइये..अब तक आप कितने मकान बदल चुकी हैं... कुछ दिन के बाद वहाँ भी यही सब शुरू होता है...बेहतर है आप किसी पॉश इलाके में मकान किराये पर लीजिये..पर उसके लिए आपका बजट नहीं है...अब इतने पैसे में तो..ऐसी ही जगह मिलेगी..और बड़ी मुश्किल होती है..मकान ढूँढने में..एक बिन बाप के बच्चे की माँ..." चतुर्वेदी कहते कहते चुप हो गया पर उसकी सांस्कृतिक आँखें आवश्यकता का पर्यटन कर रही थीं

"हाँ चतुर्वेदी साहब...पैसे की समस्या तो है ही..इतने कम किराये को भी समय से नहीं दे पाती..पर क्या करूँ..दिल छिल के रह जाता है जब लोग मेरे बेटे आविष्कार को...नाजायज और न जाने ऐसी कितनी गालियाँ सुना सुना के उसका मजाक बनाते हैं...नाजायज का ये ताना वो मासूम क्या जाने..." आवश्यकता की आवाज भर्रा गयी पर उसने खुद पे नियंत्रण किया पराये मर्द के सामने वो खुद को कमजोर नहीं दिखाना चाहती थी

"हम्म..अच्छी तरह समझता हूँ...वैसे आपका बेटा आविष्कार बहुत प्यारा लड़का है..और तेज दिमाग का भी है...अगर उसको कोई धनवान पिता का साया मिल जाए..जो उसको अच्छे स्कूल में पढ़ा लिखा सके..तो बहुत नाम करेगा..आपसे एक बात कहता हूँ..बुरा न मानियेगा..किसी पैसे वाले से शादी कर लीजिये..अभी तो आप जवान हैं...तीस से ज्यादा की नहीं होंगी..अगर आप कहें तो मैं आपसे..."चतुर्वेदी ने बड़ी धूर्तता से अपनी विधुरता को बदलने का प्रयास किया

"शायद आप ठीक ही कहते हैं...आवश्यकता आविष्कार की जननी है मगर धन उसका वो पिता है जिसके अभाव में आविष्कार जुगाड़ या कबाड़ बन के रह जाता है" उसने डूबी आवाज में चतुर्वेदी से कहा और इस बार कंधे से थोड़ा सरक आये आँचल को ठीक करने का कोई प्रयास नहीं किया।

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