tag:blogger.com,1999:blog-79991816362279730002024-03-13T08:30:17.746+05:30तुषारापात®™तुषार सिंह 'तुषारापात' हिंदी के एक उभरते हुए लेखक हैं जो सोशल मीडिया के अनेक मंचों पे बहुत लोकप्रिय हैं इनके लिखे कई लेख, कहानियाँ, कवितायें और कटाक्ष सभी प्रमुख हिंदी अख़बारों में प्रकाशित होते रहते हैं तथा रेडियो fm पर भी कई कार्यक्रमो के लिए आपने लिखा है। कुछ हिंदी फिल्मों के लिए आप स्क्रिप्ट भी लिख रहे हैं।
आप इन्हें यहाँ भी पढ़ सकते हैं: https://www.facebook.com/tusharapaat?ref=hlAnonymoushttp://www.blogger.com/profile/01302480354923389935noreply@blogger.comBlogger553125tag:blogger.com,1999:blog-7999181636227973000.post-38969589839934955322021-09-28T14:43:00.001+05:302021-09-28T14:43:37.727+05:30फ़ितरत<div>के फ़ितरत ही ऐसी है मग़रूर इंसान की </div><div>दाँत खट्टे न हों जब तक ज़ुबाँ मीठी नहीं होती</div><div><br></div><div>~#तुषारापात</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/01302480354923389935noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7999181636227973000.post-39263363209593733572021-08-30T15:47:00.001+05:302021-08-30T15:47:42.966+05:30कृष्णार्जुन<div>गांडीव जिसे था सिद्ध</div><div>लक्ष्यभेद के लिये प्रसिद्ध</div><div>दृष्ट उसे था नियतिशाख पे</div><div>काल बना बैठा है गिद्ध </div><div><br></div><div>विनती की उसने केशव से </div><div>विचलित होगा हर शव से </div><div>उसे सुनाई गई हर लोरी</div><div>लुप्त होगी काल के रव में </div><div><br></div><div>चहुँओर होगा मृत्यु का नृत्य</div><div>आह! कितनी क्रूरता का कृत्य</div><div>जगत मिथ्या, तो जगतेश्वर!</div><div>कौन स्वामी और कौन भृत्य?</div><div><br></div><div>बोले कृष्ण सुनकर अर्जुन-रूदन </div><div>पार्थ! ले देख काल का हर मर्दन </div><div>उपभोगी को चुकाना पड़ता मूल्य </div><div>मैं कोष, निसंकोच कर तू पुनर्भरण </div><div><br></div><div>यह ब्रह्माण्ड मेरी कनिष्ठा का अणु</div><div>मैं विशेषण से परे क्यूँकि हूँ सहिष्णु </div><div>मत हो भयभीत यह सब अतीत </div><div>मैं ही जन्मता विषाणु और विष्णु</div><div><br></div><div>गांडीव उठा हे कुंती पुत्र! महारथी!</div><div>मोह त्याग अधर्मियों के हैं वे साथी</div><div>कर स्थापित धर्म का राज, रख लाज</div><div>सृष्टि चलाने वाला बना है तेरा सारथी!</div><div><br></div><div>~#तुषारापात</div><div><br></div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/01302480354923389935noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7999181636227973000.post-71657337258506396882021-08-19T01:08:00.001+05:302021-08-19T01:08:45.990+05:30माचिस<div>किताब, एक माचिस की डिब्बी है </div><div>पन्ने को उंगलियों पे रगड़ो, अक़्ल रोशन हो जाती है।</div><div><br></div><div>#तुषारापात</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/01302480354923389935noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7999181636227973000.post-58295552764974534712021-06-02T16:50:00.001+05:302021-06-02T16:51:59.213+05:30केंद्र बनना है तो परिधि तोड़ो<p dir="ltr">यह मानव का आदिम गुण है कि वह स्वयं को सदैव केंद्र में रखने का प्रयास करता है, वास्तव में प्रत्येक व्यक्ति पहले से ही ब्रह्माण्ड का केंद्र है क्योंकि किसी गोलाकार वस्तु का हर बिंदु उसका केंद्र होता है।</p>
<p dir="ltr">मनुष्य का स्वयं को केंद्र में स्थापित करने का प्रयत्न वास्तव में उसकी स्वयं की काल्पनिक परिधि का आविष्कार करना है, इसके लिये वह नित्य नयी नयी त्रिज्यायें (आकांक्षायें) खींचता रहता है। यदि वह इन परिधियों का निर्माण करना छोड़ दे अर्थात अपने चारों ओर के व्यक्तियों से अपेक्षायें रखना समाप्त कर दे तो वह जान जाता है कि वह इस लघु जीवनवृत्त का नहीं बल्कि ब्रह्माण्ड का केंद्र है।</p>
<p dir="ltr">~#तुषारापात</p>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/01302480354923389935noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7999181636227973000.post-36636442757929224782021-05-19T15:18:00.001+05:302021-05-19T15:18:27.622+05:30मानचित्र सपाट किन्तु भू गोल<div>संसार के मानचित्र पर </div><div>अपने मान को, वह </div><div>चित्रित करने था निकला </div><div><br></div><div>कुछेक राष्ट्र पर, उसके</div><div>युद्धक-अश्व का खुर, लगते ही</div><div>लगा उसके नाम का ठप्पा </div><div><br></div><div>आर्यावर्त के मार्ग में </div><div>एक सन्यासी से, वह</div><div>सत्ता विन्यासी टकराया</div><div><br></div><div>मैं विश्वविजेता सिकन्दर</div><div>तू दीन हीन एक नग्न नर </div><div>कहकर उपहास उड़ाया </div><div><br></div><div>मानचित्र सपाट किन्तु भू गोल</div><div>करता रह जायेगा परिक्रमा, हे भोल</div><div>धूनी रमाने वाला कहकर मुस्काया।</div><div><br></div><div>~#तुषारापात</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/01302480354923389935noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7999181636227973000.post-52219118481856005462021-05-17T11:55:00.001+05:302021-05-17T11:55:42.093+05:30मूर्खता की बात <div>मूर्खो का राजा होने के लिये बुद्धिमानी की नहीं, मूर्खता की सबसे बड़ी बात करनी होती है।</div><div><br></div><div>~#तुषारापात</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/01302480354923389935noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7999181636227973000.post-40392040635771845642021-05-13T13:58:00.001+05:302021-05-13T13:58:09.706+05:30सांख्यिकी <div>हुक्मरान से पूछा </div><div>इतने बीमार क्यों बढ़े</div><div>उत्तर में </div><div>ठीक होने वाली की अधिक संख्या पाई</div><div><br></div><div>आसमान से पूछा</div><div>कि इतने क्यों मरे</div><div>उत्तर में </div><div>जन्म लेने वालों की अधिक संख्या आई</div><div><br></div><div>दोनों ही </div><div>माँग से अधिक </div><div>आपूर्ति कर रहे हैं </div><div><br></div><div>मगर माँग क्या थी </div><div>और आपूर्ति क्या हुई</div><div>यह सांख्यिकी का नहीं</div><div>नीतिशास्त्र का विषय है।</div><div><br></div><div>~#तुषारापात</div><div><br></div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/01302480354923389935noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7999181636227973000.post-33920099623023810482021-05-13T00:08:00.001+05:302021-05-13T13:58:40.723+05:30पाँव, नाव, गाँव <div>एक लहर का जाना </div><div>दूसरी का है आना </div><div>पर्यटक! किनारे पर </div><div>अपने पाँव जमा के रख </div><div><br></div><div>एक चक्रवात की शांति</div><div>दूसरे की तोड़ती भ्रांति </div><div>माँझी! बीच समंदर</div><div>अपनी नाव बना के रख </div><div><br></div><div>एक का नगर जाना</div><div>दूसरे को है बुलाना </div><div>निवासी! ठहरकर </div><div>अपना गाँव बचा के रख </div><div><br></div><div>~#तुषारापात</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/01302480354923389935noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7999181636227973000.post-88757415983115104272021-05-11T23:21:00.001+05:302021-05-11T23:21:16.773+05:30रात की रेल <div>रात की रेल जब पटरी पर आती है</div><div>बेटिकट आँखों की नींद उड़ जाती है </div><div><br></div><div>~#तुषारापात</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/01302480354923389935noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7999181636227973000.post-84583347334965102152021-05-10T22:42:00.001+05:302021-05-10T22:42:04.592+05:30हैसियत<div>ज़िंदगी प्रीपेड प्लान बनी है और</div><div>साँसों के रिचार्ज हैसियत से बाहर हैं।</div><div><br></div><div>~#तुषारापात</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/01302480354923389935noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7999181636227973000.post-50544402762783975382021-05-10T10:28:00.001+05:302021-05-10T11:24:08.232+05:30जलन <div>सातों आसमानों में तेरे</div><div>रत्ती भर न मिलती थी</div><div><br></div><div>चिढ़कर छीन ली तूने</div><div>सीने में मेरे, जो</div><div>ज़रा सी हवा चलती थी।</div><div><br></div><div>~#तुषारापात </div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/01302480354923389935noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7999181636227973000.post-91009573789549796402021-05-03T22:35:00.001+05:302021-05-03T22:35:44.543+05:30धूपघड़ी <div>बुरा है बहुत तो भला करिये</div><div>बदल जायेगा जान लीजिये </div><div><br></div><div>वक़्त को भी आराम चाहिये</div><div>धूप-घड़ी को जरा छाँव करिये</div><div><br></div><div>~#तुषारापात</div><div><br></div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/01302480354923389935noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7999181636227973000.post-40440417744116909692021-02-15T23:24:00.001+05:302021-02-15T23:24:30.400+05:30चाँद के धब्बे<div>ये काले धब्बे यूँ ही नहीं इसपर दिखते हैं</div><div>चाँद की बाँहों में हर रात बादल सुलगते हैं </div><div><br></div><div>~तुषारापात</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/01302480354923389935noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7999181636227973000.post-53540984704723203932021-02-08T23:32:00.001+05:302021-02-08T23:36:59.645+05:30हैसियत<div>घड़ी में मेरी तस्वीर लगाके</div><div>उसने मेरी हैसियत</div><div>बताने का इंतज़ाम किया </div><div>सेकण्ड की सुई ने</div><div>हर मिनट</div><div>एक सिफ़र मेरे नाम किया </div><div><br></div><div>~#तुषारापात</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/01302480354923389935noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7999181636227973000.post-50359577866937945822021-02-06T23:53:00.001+05:302021-02-06T23:53:25.773+05:30बंदद्वार का बंदनवार <div>समय-चक्र से श्रापित</div><div>अर्पित पुष्प हुए कंकाल </div><div>जग उपहासता, कहकर </div><div>अशुभ कितना यह बंद-द्वार</div><div><br></div><div>किन्तु, कौन जाने बाँध लिया </div><div>किसने, अपनी ड्योढ़ी पर काल</div><div>जग के अर्पित, समस्त </div><div>पुष्प जो करदे अस्वीकार </div><div>ईश्वर आता स्वयं लगाने </div><div>उस द्वार पर हरित बंदनवार!</div><div><br></div><div>~#तुषारापात</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/01302480354923389935noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7999181636227973000.post-59938942527544479712020-12-31T12:31:00.001+05:302020-12-31T12:31:20.835+05:302020<div>क्या कहें इस बरस कितने ट्विस्ट हो गये</div><div>के एक '20-20' में करोड़ों 'टेस्ट' हो गये </div><div><br></div><div>#तुषारापात</div><div><br></div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/01302480354923389935noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7999181636227973000.post-72764449253006412402020-12-31T12:04:00.001+05:302020-12-31T12:04:16.014+05:302020<div>इस साल के सारे दिन तो वेस्ट हो गये</div><div>एक 20-20 में करोड़ों 'टेस्ट' हो गये</div><div><br></div><div>#तुषारापात</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/01302480354923389935noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7999181636227973000.post-41075124745496723692020-12-29T23:33:00.001+05:302020-12-29T23:33:36.711+05:30शाखों ने कभी झुलाया था <div>वो खेत बेचकर शहर आया </div><div>राशनकार्ड बनवा के फूला नहीं समाया था </div><div><br></div><div>बिजली के तार पे बैठा बूढ़ा तोता </div><div>कहता है कभी शाखों ने उसे झुलाया था </div><div><br></div><div>#तुषारापात</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/01302480354923389935noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7999181636227973000.post-36658955896381929312020-12-01T13:05:00.001+05:302020-12-01T13:05:32.519+05:30रुआब<div>तूने बनायी हैं मंज़िलें ऊँची तो मुझको न दिखला रुआब</div><div>पत्थर हूँ मील का,रस्ता नहीं जो तेरे पैरों तले आ जाऊँगा</div><div><br></div><div>#तुषारापात</div><div><br></div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/01302480354923389935noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7999181636227973000.post-41008151883616595162020-08-27T18:36:00.001+05:302020-08-27T18:36:29.719+05:30मुझे विधाता है बनना<div>मैं छपूंगा कहीं?</div><div>नहीं! नहीं!</div><div>मैं रचूंगा ऋचाएं </div><div><br></div><div>और </div><div>तुम्हारे कानों में </div><div>युगों युगों के लिए </div><div>घुल जाऊँगा </div><div><br></div><div>मैं</div><div>नये कल्प के </div><div>आरम्भ में </div><div>तुम्हें वेद सुनाऊंगा</div><div><br></div><div>नहीं! </div><div>मुझे इस कल्प में </div><div>कहीं नहीं है छपना</div><div>इस कल्प के अंत तक </div><div>मुझे विधाता है बनना </div><div><br></div><div>~#तुषारापात</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/01302480354923389935noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7999181636227973000.post-59531617714034424782020-08-15T22:59:00.001+05:302020-08-15T22:59:12.940+05:30टूटा सितारा लुटा<div>सितारा टूटे तो दुआ पूरी होने की आस करते है लोग </div>किसी के मरने में भी अपना मतलब तलाश लेते हैं लोग <div><br></div><div>~#तुषारापात</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/01302480354923389935noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7999181636227973000.post-54156766393545409242020-07-25T19:41:00.001+05:302020-07-25T19:41:19.205+05:30चुभन का निशान <div>"क्या इस बार भी सच हार जाएगा..झूठ की जीत आखिर कब तक यूँ ही होती रहेगी...क्या कोई भी सच के साथ नहीं है?"</div><div><br></div><div>"कोशिश करके देख लो..सच को लेकर आगे बढ़ो..देखो कौन साथ आता है तुम्हारे..लोग झूठ के विरोध में तो कभी आते ही नहीं.. और.. न ही सच के साथ चलते हैं..बस सच बोलने वाले के साथ थोड़ी दूर यूँ टहल आते हैं.. मानो दिल बहलाने को सिनेमा देख आए हों"</div><div><br></div><div>"पर लोग सिनेमा में भी तो सच की जीत की कहानियों पे ताली बजाते हैं फिर क्यों नहीं आएंगे साथ"</div><div><br></div><div>"सिनेमा किन्नरों के स्वांग जैसा है जो क्षणिक दबाव बनाता है..सच के लिए ताली बजाने वाले हाथ झूठ के लिए कभी अपनी मुठ्ठियाँ नहीं कसते..."</div><div><br></div><div>"मुठ्ठियाँ न भी कसें..हाथ भी न उठाएं..मगर धीमी ही सही..मेरी आवाज में अपनी आवाज़ तो मिला सकते हैं..मैं सबसे आगे चलने को तैयार हूँ...मैं सच के लिए मरने के लिए भी तैयार हूँ"</div><div><br></div><div>"अपने आगे चलने की तुम्हारी तमन्ना ये जरूर पूरी कर देंगे.. तुम्हारे मरने के बाद ये सब आएंगे तुम्हारे जनाज़े के पीछे..ये कहते कहते कि राम नाम सत्य है...."</div><div><br></div><div>"तो क्या करूँ मैं..बचपन से मुझे सिखाया गया कि सच ही सबकुछ है..एक सच सौ झूठ पे भारी है..क्या किताबों में लिखा वो सब सच, झूठ था..इस सच के लिए लड़ते लड़ते हर जगह से निष्काषित हूँ मैं..और जिन लोगों ने मुझे निष्काषित किया वो मुझे ही भगौड़ा कहते हैं.."</div><div><br></div><div>"सच कहूँ तो इस झूठ और सच की लड़ाई की बात ही बेमानी है..झूठ के सैनिक बहुत निर्दयी हैं..और सच..सच की कोई सेना ही नहीं है..बस एक पैदल है जो सच का झंडा उठाए दिखता है मानो कोई बहुत बड़ी सेना उसके पीछे आ रही हो..नियति ने उस पैदल के रूप में तुम्हें चुन लिया है..तुम मरोगे तो कोई और इस झंडे को पकड़ लेगा..पर.. उसके भी पीछे कोई सेना नहीं होगी..मेरी मानो झूठ में घुलमिल जाओ फिर देखो इस झंडे को कितना बढ़िया रथ मिल जाएगा.. झूठ चारो ओर ऐसे फैला हुआ है जैसे बसन्त में सरसों, और रही बात सच के किताबों में होने की..हाँ..सच किताबों में मिलता है..मगर सूखे फूलों की तरह.."</div><div><br></div><div>"जानता हूँ..सरसों के पीले फूल देखकर लोग हर्षाते हैं मगर उसके तेल को कड़वा कहते हैं.. औषधि मीठी नहीं होती.. झूठ के फूल गुदगुदी करते हैं मगर सच का एक सूखा फूल काँटे की तरह चुभता है....और ये सूखा फूल ..टूट जाएगा.. बिखर जाएगा..लेकिन.. चुभन का गहरा निशान बना जाएगा... फिर भले ही ये झूठे..झूठे न कहे जायें..लेकिन चुभन का निशान लगे लोग सच्चे नहीं हैं.. .. सब जान तो जाएंगें।"</div><div><br></div><div>#चुभन_का_निशान</div><div>~#तुषारापात</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/01302480354923389935noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7999181636227973000.post-27685601220791905712020-07-23T12:27:00.001+05:302020-07-23T12:27:52.737+05:30हिंदुस्तान<div>कोई उसे सरदार तो कोई मुसलमान कहता है</div><div>वो आदमी खुद को मगर हिन्दुस्तान कहता है </div><div><br></div><div>~#तुषारापात </div><div>(आज़ाद पर कार्यक्रम करते हुए)</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/01302480354923389935noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7999181636227973000.post-67469771535333473522020-07-22T21:51:00.001+05:302020-07-22T21:51:34.136+05:30आज़ाद <p dir="ltr">जो चाहता है के बस्ती में उसकी कोई सवेरा लाये<br>
वो अपनी आँख के तारे को सूरज की तरह तपाये</p>
<p dir="ltr">~तुषारापात </p>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/01302480354923389935noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7999181636227973000.post-20468102017446422252020-07-15T16:44:00.001+05:302020-07-15T16:54:10.424+05:30औघड़<div>#औघड़</div><div><br></div><div><div>शिव ढूँढते हैं</div><div> </div><div>शक्ति को</div><div><br></div><div>पाके अपने को निर्बल।</div><div><br></div><div>गृहस्थी की गली से</div><div><br></div><div>प्रेम के बंधक यान को </div><div><br></div><div>छुड़ाने के लिए </div><div><br></div><div>पुरुष मल लेता है </div><div><br></div><div>शरीर पे भस्म </div><div><br></div><div>'शव' को </div><div><br></div><div>'शिव' बनाने को।</div><div><br></div><div>~#तुषारापात</div></div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/01302480354923389935noreply@blogger.com0