Tuesday 9 August 2016

कवितादान

कविता स्त्री है
और पुरुष कवि है
आश्चर्य है
नहीं गया इस ओर ध्यान
नग्न लिपि को पहनाता
कवि अलंकृत परिधान

नश्वर कवि
अपने वरदहस्त से
उकेरता शब्दांगो की वक्रताएँ
भरता षोडशी चंचलताएँ
करता चिरयौवना
कविता का निर्माण

जीविका नहीं
न विपणन
है कविता उसका सृजन
यायावरी पाठक
छोड़ चीरहरण
कर अतीन्द्रिय सुख का संधान

कविता माँ है
कवि शिशु सा है
चक्रीय है ये विधान
कवि पिता है
कविता उसकी कन्या है
कर कवितादान
कवि हो जाता अंतर्ध्यान

-तुषारापात®™