Tuesday 26 July 2016

लव ऐट फर्स्ट साइट

वो अपने दोस्त को बी4 में बिठा के अपने कोच बी1 में आया है,डिब्बे में हल्का सा उजाला है ज्यादातर लोग सो रहे हैं जो लोग अभी कुछ देर पहले कानपूर से चढ़े हैं वो भी लेट चुके हैं और क्यों न लेटें रात के साढ़े बारह से ऊपर का टाइम जो हो चूका है,ट्रेन भी अपनी रफ़्तार में है।

वो अपना सीट नम्बर ढूँढता धीरे धीरे आगे बढ़ता है हाँ ये रही 16 नम्बर अरे पर ये क्या इसपर तो कोई और सो रहा है वो थोड़ा तैश में आकर उसे जगाने वाला होता ही है कि सोने वाले का एक पैर कम्बल से बाहर आता है डिब्बे में जल रही एक मात्र लाइट के रिफ्लेक्शन से उस पैर में पड़ी पायल चमकने लगती है हल्के अँधेरे में भी वो पंजे की गुलाबी रंगत देख लेता है फिर कुछ हिचकते हुए कहता है "एक्सक्यूज़ मी... मिस.. अ..मैडम.. सुनिये ये मेरी बर्थ है.."

कम्बल हटता है वो हलकी नींद से जागी चेहरे पे बिखरे बाल लिए उठती है और एक सिस्का एल ई डी सा चमकता चेहरा देखके वो ठगा सा खड़ा रह जाता है कुछ बोल नहीं पाता वो कुछ देर तक उसे देखती है फिर पूछती है "ओ हेल्लो...इतनी रात को क्या मुझे ताकने के लिए उठाया है?"

वो हड़बड़ाते हुए जल्दी से कहता है "अ.. आप मेरी बर्थ पे हैं...ये बी1 16 ही है न.. ये मेरी सीट है"

"व्हाट रबिश...ऐसा कैसे हो सकता है...अपना टिकेट चेक करो.."उसने अपने बालों को बाँधते हुए थोड़ा जोर से कहा आसपास के लोग भी अब इंटरेस्ट से उनकी बात सुनने लगे

उसने 15 नम्बर की सीट पे लगा स्विच ऑन कर कूपे में लाइट जलाई और अपना टिकेट निकाल कर उसे पढ़के सुनाने लगा "अबोध श्रीवास्तव मेल 28 कोच बी1 सीट नम्बर 16 कानपूर सेंट्रल टू न्यू डेल्ही प्रयागराज एक्सप्रेस...ये देखिये" कहकर अबोध ने उसके हाथ में टिकेट दे दिया उसने उलट पुलट कर टिकेट देखा फिर अपने पर्स से अपना टिकेट निकाल कर उसे सुनाया "प्रयागराज एक्सप्रेस...बी1..16..कानपूर सेंट्रल टू न्यू देहली.. चैतन्या मिश्रा..24" कहकर चैतन्या ने अबोध को अपना टिकेट दिखाया और वापस रख लिया

अबोध हल्का सा परेशान हुआ पर उसके हिलते गुलाबी होंठ और चमकते दाँतों में खुद को गुम होता भी महसूस कर रहा था खुद को संभाल के वो कहता है "पर ऐसा कैसे हो सकता है...मैं तो प्लेटफॉर्म पे लगे चार्ट में भी अपना नाम देख के चढ़ा हूँ..मेरा एक फ़्रेंड भी बी5 में सफर कर रहा है... उसका सामान चढ़वाने में मुझे जरा सी देर हो गई..और इतनी देर में आप मेरी सीट.."

"भई.. आप लोग टी टी से बात करिये..ये साला रेलवे डिपार्टमेंट का सर्वर कुछ भी कर सकता है..एक ही सीट पे दो दो लोगों को टिकेट वाह" 15 नम्बर की सीट पे लेटे इलाहाबादी अंकल आखिर कब तक बीच में न बोलते,इतने में टी टी आ जाता है अबोध उसे सारी बात बताता है टीटी चार्ट में नाम चेक करता है और वो चैतन्या से टिकेट माँगता है वो अपना टिकेट दिखाती है टिकेट देख कर टीटी मुस्कुराते हुए कहता है "मैडम आपका टिकेट इसी ट्रेन..इसी कोच..इसी सीट का है..पर..बस एक छोटी सी समस्या है..आपको कल इस ट्रेन से सफर करना था"

"क्या मतलब...टिकेट आज का ही तो है..26 जुलाई..देखिये डेट भी पड़ी है इसपर.."चैतन्या ने हड़बड़ाते हुए कहा

"मैडम...प्रयागराज कानपूर सेंट्रल 12 बजकर पाँच मिनट पर पहुँचती है.. और रात 12 बजे के बाद डेट बदल जाती है..टेक्निकली..आज 27 है.. आपकी ट्रेन कल जा चुकी है..अब आप इन्हीं के साथ सीट शेयर करिये ट्रेन पूरी फुल है..सीट नहीं है...मैं अभी लौट के आता हूँ आपके पास" टीटी ने कहा और आगे टिकेट चेक करने चला गया

स्थिति बदल चुकी थी अभी जो मास्टर था वो अब बेग्गर हो चुका था "सॉरी.. आई एम सो स्टुपिड..बट मेरा दिल्ली पहुँचना बहुत जरूरी है.. कैन आई शेयर विद यू......" चैतन्या ने अपनी बड़ी बड़ी आँखें नचाते हुए अबोध से कहा,अबोध के मन में कैडबरी वाले न जाने कितने लड्डू फूटे उसने कहा "श्योर..बट वेट अ मिनट...अंकल आप ऊपर वाली सीट पे चले जायेंगे प्लीज हमें थोड़ी सुविधा हो जायेगी" उसने 15 नम्बर की साइड लोवर वाले अंकल से कहा और वो मान गए चैतन्या ऊपर से उतर के नीचे आई गुलाबी सूट में उसकी सुंदरता और निखर रही थी अबोध उसे देखता ही रह गया दोनों आधी आधी सीट पे बैठ गए और आपस में बातें करने लगे,अबोध तो उसपर दिल ही हार बैठा था उनके बीच मोबाइल नम्बर एक्सचेंज हुए और बात करते करते दोनों दिल्ली आने से थोड़ा पहले सो गए।

ट्रिंग ट्रिंग...ट्रिंग...मोबाइल की घंटी बजती है..चैतन्या मोबाइल पर अबोध का नम्बर देखती है और म्यूट करके एक तरफ रख देती है उसकी रूममेट उससे पूछती है "किसका फोन है जो उठा नहीं रही..?"

"आज ही ट्रेन में साथ आया है...थोड़ा भाव दिखाना जरूरी है..वही अपनी पुरानी कानपूर सेंट्रल से प्रयागराज वाली ट्रिक में फँसा नया मुर्गा है... पिछली बार फँसा अंकल तो बस चार महीने टिका था...पर ये यंग है और रिच भी...आठ दस महीने तो ऐश कराएगा ही" चैतन्या ने आँख मारते हुए कहा और फिर अबोध को फोन कर कहा "हाई.. वो मैं न..मैं..नहा रही थी.........."

लव ऐट फर्स्ट साइट जैसी घटना लाखों में किसी एक की सच्चाई बनती है और मेरे लाल तुम बाकी के 99999 में हो जिन्हें लड़कियाँ__________ बनाती हैं (रिक्त स्थान की पूर्ति अपने मन में करें,कमेंट में नहीं)

मन करे तो शेयर करो,जनहित में जारी द्वारा-
-तुषारापात®™

Friday 22 July 2016

विश्वास...आस्था का

"याद है पिछले साल जब हम लोग शिमला घूमने गए थे तो कुफरी में मौसम अचानक खराब होने से..कितनी बुरी तरह...घंटों..वहाँ फँसे रहे थे..गॉड कितना भयानक तूफान था..."आस्था बिस्कुट को चाय में डुबोती हुई बोली

"हाँ..याद है...पर मैडम..सुबह सुबह वो सब कहाँ से याद आ गया...अरे देखो...ये लो..गया तुम्हारा बिस्कुट चाय में" विश्वास उसके कप की ओर इशारा करते हुए तेजी से बोला

आस्था ने उस ओर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया वो उँगलियों में फँसे बचे हुए बिस्कुट के टुकड़े को फिर से चाय में डुबोने लगी और बोली "विश्वास कल रात मैंने न...एक बहुत ही अजीब सपना देखा.."

"सपना...कैसा सपना" विश्वास चाय का एक सिप लगाता है और प्लेट से एक बिस्कुट उठाते हुए उससे पूछता है

"मैंने देखा कि हम लोग वैसी ही किसी बहुत ठंडी जगह में फँस गए हैं... चारों ओर सिर्फ बर्फ ही बर्फ हैं...और हम..दो तीन दिनों से वहाँ भटक रहे हैं...खाने पीने का सारा सामान खत्म हो चुका है..भूख से बेहाल हम दोनों थक के एक जगह निढाल होकर पड़ गए हैं...और अब दोनों में से किसी एक से एक कदम भी उठाया नहीं जा रहा" आस्था ऐसे बोलती गई जैसे अभी भी वो वहाँ फँसी हो,डर उसकी आवाज से साफ महसूस किया जा सकता था

विश्वास सुनता गया और शरारती अंदाज में बोला "वैसे जान बड़ा रोमैंटिक सीन होगा न...दूर दूर तक..सिर्फ सफेद उजली बर्फ..और हम दोनो बिल्कुल अकेले...वो भी 'भूखे'...."कहकर उसने हलकी सी आँख मारी और मुस्कुराया

आस्था भी हल्के से मुस्कुरा दी और आगे कहने लगी "आगे तो सुनो....हम लोगों का बेस कैंप वहाँ से लगभग दस ग्यारह किलोमीटर दूर है..ये बात मैं तुम्हें बताती हूँ..पता नहीं सपने में अचानक से तुम इतने स्मार्ट कहाँ से हो गए..जो कहते हो कि अगर कुछ खाने को मिल जाए तो.. हममें ताकत आ जायेगी और हम अपने बेस कैंप तक पहुँच सकते हैं...और मजे की बात मुझे तुरंत ही..अचानक से..एक पैकेट में दो रोटियाँ घी से चुपड़ी हुई मिल भी जाती हैं..मगर..."कहते कहते वो चुप हो जाती है और चाय में बिस्कुट का वो बचा टुकड़ा भी छोड़ देती है

"मगर..मगर क्या...आगे तो बोलो.." विश्वास उतावला हो उससे पूछता है

"मगर वो दोनों रोटियाँ...तुम मुझसे छीन के खा जाते हो...मुझे एक टुकड़ा भी नहीं देते..और तभी मेरी आँख खुल जाती है" आस्था ने मायूस आवाज में कहा

"हा हा हा हा..तुम औरतें सपनो में भी अपने पति को ऐसे ही देखती रहती हो..कमाल है...वैसे सपना है सपने में तो हम कुछ भी देखते हैं.."विश्वास हँसते हँसते ही बोला

"हँसों नहीं...मैं सीरियस हूँ...भूख तो हम दोनों से ही नहीं सधती है...ऊपर से तुमने उस समय जब मैं तीन दिन से भूखी थी..अकेले ही वो दोनों रोटियाँ खा लीं...एक तो मुझे दे सकते थे न...कभी अगर ऐसा कुछ रियल वर्ल्ड में हो तब भी क्या तुम ऐसा ही करोगे? बताओ न..क्यों किया तुमने ऐसा ?" आस्था मोस्ट कॉमन स्त्री चिंता मोड में आ चुकी थी

"तुमने सपना अधूरा ही छोड़ दिया...पूरा देखती तो पता चलता न...अच्छा सुनो...मैंने क्यों किया ऐसा..हमें बेस कैंप तक पहुँचने की ताकत चाहिये थी..एक एक रोटी खाने से हमारी ताकत बँट जाती...इसलिए वो दोनों रोटी मैंने खाईं...और..तुम्हें..अपनी बाहों में उठाकर..ग्यारह किलोमीटर चलकर ...बेस कैंप में ले आता हूँ और इस तरह हम दोनों सेफ हो जाते हैं और हमारी जान बच जाती है" कहकर वो आस्था को झट से अपनी बाहों में उठा लेता है और दोनों की खिलखिलाहट कमरे में गूँजने लगती है।

आस्था की चाय में पड़े बिस्कुट के दोनों टुकड़े घुल चुके थे।

-तुषारापात®™ 

Monday 18 July 2016

गिरहबान

उसने अपना टॉप उतारा और दरवाजे पे लगी खूँटी पे टाँग दिया बालों में लगा क्लच निकालकर बेसिन पे रखा और नल खोल दिया पानी बाल्टी में भरने लगा अपना लोवर उतारने ही वाली थी कि उसे दरवाजे और बाथरूम की जमीन के बीच की दराज से एक रुकी हुई परछाई नजर आई उसने झट से अपना लोवर ऊपर किया और टॉप वापस पहनकर तुरंत दरवाजा खोला परछाई जा चुकी थी उसने बाहर निकल कर भी देखा कोई नहीं था मम्मी किचेन में थी पापा पूजा कर रहे थे और भाई लॉबी में बैठा मोबाइल पे लगा हुआ था
अजीब से एक डर के साथ वो धड़कते दिल से वापस बाथरूम में आई और जल्दी जल्दी नहाने की रस्म सी पूरी की

कई दिनों से उसे लग रहा था कि कोई उसे नहाते हुए देखने की कोशिश करता है उसके अंतः वस्त्रों के साथ भी खिलवाड़ हो रहा था एक बार तो कुछ चिपचिपा सा...उफ़्फ़ सोच के ही उसे उबकाई आई

कॉलेज जाने की पब्लिक बस की कई गन्दी छुहन उसके लिए अब आम हैं राह चलते उसके यौवन का मापन करती नजरें उसे पहले चुभती थीं अब नहीं ,अपने टीचरों और साथ पढ़ने वाले लड़कों के 'सहयोगी' रवैये को भी खूब समझती है उनके इस अति सहयोगात्मक रवैये से वो अपने कई काम निकलवाने की खूबी भी ईजाद कर चुकी थी अपने बॉयफ्रेंड के साथ वो ओपन थी ये सब तो उसे आम लगता था पर अपने घर में हो रहीं हरकतें उसे बहुत परेशान करती थीं

रात में खाना पीना निपटा के हर युवा की तरह अपने कमरे का दरवाजा बंद कर वो भी इंटरनेट पे आ जाती कुछ देर फेसबुक पे रहती उसके लिए लार टपकाते लोगों के मैसेज देखती कुछ के साथ थोड़ी बहुत चुहलबाजी करती और फिर अपने बॉयफ्रेंड के साथ रात भर वीडियो चैट पे बतियाती रहती

आज की रात भी वो अपने बॉयफ्रेंड के साथ मूड में आगे बढ़ रही थी कि उसके कमरे के दरवाजे पे दस्तक होती है वो जल्दी से अपने कपड़े ठीक करती है और मोबाइल तकिये के नीचे छुपाकर दरवाजा खोलती है उसका भाई कमरे में घुस आता है दरवाजा बंद करता है और उसे पकड़ के कहने लगता है कि उसे सब पता है कि वो अपने बॉयफ्रेंड के साथ क्या क्या गुल खिलाती है और मोबाइल पे क्या क्या दिखाती रहती है वो भी उससे सब कुछ दिखाने की डिमांड करने लगता है धक्का मुक्की होने लगती है और अचानक भाई के धक्के से उसका सर टेबल से टकराता है और वो सिसक सिसक के मरने लगती है

उसका भाई मम्मी पापा को बताता है कि वो किस तरह परिवार की इज्जत खराब कर रही थी उसका मोबाइल उठाकर चैट की पहले से ऑन विंडो पर उसकी सारी करतूतें उन्हें दिखाता है

केस मीडिया में भी उछलता है लोग चटकारे लगा लगा के खबर देखते हैं कुछ उसकी फेसबुक प्रोफाइल ढूंढते हैं कुछ नए जोक्स भी बनते हैं कई इंसेस्ट पॉर्न वीडियो देखने वाले ,लड़कियों के इनबॉक्स में नंगी फोटो भेजने वाले और आपसी रिश्तों में सम्बन्ध वाली मस्तराम की कहानियाँ पढ़ने वाले भी यही कहते हैं "उसके भाई ने जो किया सही किया ऐसी गन्दी लड़कियों के साथ ऐसा ही होना चाहिए।"

पुरुष अपने गिरहबान में नहीं झाँकते क्योंकि उन्हें स्त्रियों के गिरहबानो में झाँकना पसंद है।

-तुषारापात®™

Friday 15 July 2016

छोटू

"जिज्जी...मुकुंद को सुबह दस..साढ़े दस बजे के बीच तुम्हारे घर इसीलिए भेज देती हूँ... यहाँ तो एक टाइम (रात) का खाना ही बन जाए तो बहुत है...मोहल्ले की औरतों से सिलाई कढ़ाई का काम कभी कभी ही मिलता है" रजनी ने घर आई अपनी बड़ी ननद कुसुम के एक सवाल के जवाब में ये कहा और उससे अपनी आँखें चुराते हुए थोड़ी दूर बैठे अपने सबसे छोटे बेटे मुकुंद को देखने लगी

"भाभी...भईया ने तो शराब में अपने को बर्बाद कर डाला है.. समझती हूँ तभी तो तुमको अपनी गली के बगल वाली गली में मकान दिलवाया..... किराये वगैरह की चिंता मत करना...वो मैं देख लूँगी" कुसुम ने उसका हाथ दबाते हुए कहा

रजनी अपने एक कमरे के मकान में चारो ओर नजर दौड़ाती हुई,ग्लानि और कृतज्ञता से दबी भर्राई आवाज में बोली "जिज्जी तुम्हारा ही सहारा है ...बस मुकुंद जब सुबह आया करे...तो तुम खुद ही उससे खाने का पूछ लिया करो.....और अपने से उसे खाना दे दिया करो....वो माँगने में शरमाता है...कई बार भूखा ही लौट आता है...सात साल का ये लड़का अपना स्वाभिमान अच्छी तरह समझने लगा है"

"हाँ..मुझे ही ध्यान रखना था...पर नहीं पता था...भाभी...हालात इतने..." कुसुम के रुंधे गले से आगे आवाज न निकल पाई ,अपने को सँभालते हुए उसने आगे कहा "अच्छा भाभी चलती हूँ...हिम्मत रखना..भगवान दिन फेरेगा जरूर" रजनी उठी कुसुम के पैर छूकर उसने उसको विदा किया और घर के कामकाज में लग गई

कम पढ़ी लिखी रजनी के पति ने अपना सबकुछ शराब में भस्म कर डाला था,वो मोहल्ले में तुरपाई और फाल आदि लगाने का काम कर किसी तरह अपने तीनो बच्चों को पाल रही थी

इसी तरह दिन बीत रहे थे कि गर्मी की छुट्टियों में उसकी छोटी बहन किरण अपने पति के साथ उससे मिलने आई और उसकी स्थिति जानकर दुखी हुई किरण के पति जो पैसे से मजबूत माने जाते थे (उनकी दवा की दुकान थी) सबकुछ सुनकर एकदम से निर्णायक स्वर में बोले "दीदी..एक काम करो ये मुकुंद को हम अपने साथ लिए जाते हैं...यहाँ तो ये कुछ पढ़ लिख भी नहीं पायेगा...वहाँ आगरा में हम इसका एक स्कूल में एडमिशन करा देंगे आराम से पढ़ेगा और खा पीकर मस्त भी रहा करेगा" किरण को भी अपने पति का ये सुझाव बहुत पसंद आया उसने भी अपनी दीदी को इसके लिए राजी हो जाने को कहा

"पर ऐसे कैसे भेज दूँ...मेरे बगैर तो ये कभी एक दिन भी...कहीं नहीं रहा" रजनी ने सशंकित मन से कहा ,एक माँ चाहे जितनी मजबूर हो अपने बच्चे अपने कलेजे के टुकड़े को अपने से अलग करना उसके लिए आसान नहीं होता लेकिन मुकुंद के सुनहरे भविष्य के लिए वो किसी तरह हाँ कह देती है रजनी के पति को इसपे क्या ऐतराज होता उसकी तो एक बला ही छूटी थी

"नहीं माँ...माँ..माँ..मैं कहीं नहीं जाऊँगा... माँ मुझे खुद से दूर मत करो...मैं वादा करता हूँ...कभी खाने के लिए..तुम्हें..तंग नहीं करूँगा.."मुकुंद चिल्ला रहा था पर किरण और उसके पति ने उसे जबरदस्ती कार में बिठा लिया और रजनी से विदा ली,रजनी चौराहे पे खड़ी सुबक रही थी और जाती हुई कार को तब तक देखती रही जब तक वो आँख से ओझल न हो गई

आगरा में किरण का ससुराल एक संयुक्त परिवार था उसके पति और उनके भाइयों के भरे पूरे परिवार थे सास ससुर आदि सब एक साथ ही एक विशाल भवन में रहते थे मुकुंद का एक सस्ते मद्दे सरकारी स्कूल में पहली कक्षा में नाम लिखवा दिया गया और उसे नए कपड़े और भर पेट भोजन भी मिलने लगा पर वो अपनी माँ की याद में दुखी रहता था,धीरे धीरे वो नए माहौल में ढलने लगा

"छोटू... छोटू...ये ले जरा ये गर्म पानी की बाल्टी ऊपर छत पे नरेश चाचा को दे आ.." छोटी चाची की आवाज आई

"अरे..छोssटूss...कहाँ मर गया...स्कूल से आया और गायब हो गया...बहू ओ किरण...जरा छोटू को भेज बाजार...मेरी तंबाखू तो मँगवा दे..."किरण के ससुर चिल्ला रहे थे

स्कूल से वापस आकर वो अपना बस्ता भी नहीं रख पाता था कि उसके कानों में रोज ऐसी ही आवाजें...नहीं नहीं..चीखें सुनाई देने लगती थीं, वो उसे पढ़ा रहे थे,खिला पिला रहे थे,पर वे सब उसे उसके नाम से क्यों नहीं बुलाते हैं,साढ़े सात साल का लड़का अब ये अच्छी तरह समझ चुका था

माँ का लाडला 'मुकुंद' माँ-सी के यहाँ 'छोटू' हो चुका था।

-तुषारापात®™

Saturday 9 July 2016

मलाई की गिलौरी

"देख बहु...तू नई नई आई है...इन नौकरों को ज्यादा सर पे मत चढ़ाना...सुवरिया का बाल होता है इनकी आँखों में"सासू माँ ने अंतरा को गृहस्थी की बागडोर सौंपते हुए नसीहत दी

"जी मम्मी जी" अंतरा ने हामी भरी

"और सुन ये लक्ष्मी से एक टाइम खाने की बात हुई है...जो भी बचा-खुचा हुआ करे दे दिया करना उसको...हाँ पहले बर्तन और पूरा झाड़ू पोछा करवा लिया करना...बहुत नालायक है एक काम ढंग से नहीं करती कम्बख्त" सासू माँ ने काम निकलवाने की तकनीक समझाई,अंतरा ने हाँ के अंदाज में सर हिलाया और उनके पैर छूकर उन्हें तीर्थ यात्रा पे विदा किया

अब आज से खाना बनाना और नौकरों से काम करवाने के सारे काम-धाम उसके जिम्मे हो चुके थे पंद्रह दिन में ही उसने पूरे घर का काया कल्प कर दिया,सबके पसंद का खाना घर में बनने लगा वो भी बिना खाना बर्बाद हुए और लक्ष्मी भी अपना काम अब अच्छे से करने लगी

"अरे अंतरा...ये क्या लक्ष्मी के आते ही तू उसे खाना दे देती है...वो भी आज का बना ताजा खाना.." सासू माँ तीर्थ से लौट चुकी थीं और आज पहली बार बदली हुई व्यवस्था और चमकते हुए घर को देख रहीं थीं

"हाँ मम्मी जी...बेचारी धूप में..थकी हुई और भूखी प्यासी आती है...खाना खिला दो तो.. फ्रेश मूड से खुशी खुशी मन लगाकर सारे काम अच्छे से करती है.."अंतरा ने मुस्कुराते हुए कहा

"पर उसे ताजा खाना देने की क्या जरूरत है...बासी बचा खाना बेकार जाएगा...मेरे बेटे की कमाई बर्बाद कर रही है तू तो"सासू माँ ने नकली चिंता में अपना पक्ष लपेट कर पेश किया

"मम्मी जी...खाना उसी हिसाब से बनाती हूँ कि ज्यादा खाना बेकार न् जाए...और...जब खाना सबके मन का बनता है तो बचता भी बहुत कम है ..अगर.थोड़ा बहुत बचता है तो हम सब मिलके उसे खत्म कर लेते हैं..लक्ष्मी को भी दे देते हैं...अब जब लक्ष्मी को रोज खाना खिलाना ही है...तो.. जबरदस्ती खाना ज्यादा बना के उसे एक दिन का बासी खिलाने से अच्छा है.. घरवालों की तरह उसका भी खाना ताजा ही बना लिया जाए" अंतरा ने उनके हाथ में एक प्लेट देते हुए कहा जिसमे मलाई की गिलौरी (लखनऊ की मशहूर मिठाई) के दो पीस थे

"अच्छा सुन...ये गिलौरी बहुत जल्दी खराब हो जाती है...सबको आज ही खिला देना...फ्रिज में रखने पर भी कल तक इनका मजा मर जायेगा"

"मम्मी जी...पर ये तो बहुत सारी हैं...सबके खाने के बाद भी बचेंगी" फिर उसने प्रश्नवाचक मगर मुस्कुराती नजरों से उनसे पूछा "नौकरों को आज ही दूँ...या......"

सासू माँ के चेहरे पे एक जोर की मुस्कान आ गई "तू तो मेरी सास हो गई है" कहकर खिलखिलाते हुए उन्होंने एक गिलौरी अंतरा के मुँह में भर दी।

-तुषारापात®™

Wednesday 6 July 2016

आवास विकास योजना

"अमाँ आवास..बताये दे रहें हैं..बात बहुत अच्छी तरह दिमाग में बिठा लो...इस बार बीच में ना आना... मामला बहुत सीरियस है इस बार..कसम इमामबाड़े की..तुम्हारे यार को सच्चा वाला प्यार हो गया है" विकास ने अपनी दोनों आँखें पूरी गोल बनाते हुए कहा

आवास भी तैश में आ गया पान को चुभलाते हुए उसने जवाब दिया "वो तुमने घंटाघर वाला तिराहा देखा है न...तो ये समझ लो विकास मियाँ... मामला उसी तिराहे जैसा है..अब ये तो वही बताएंगी कि वो छोटे इमामबाड़े की तरफ (अपनी ओर इशारा करता है) मुड़ेंगी या बड़े इमामबाड़े (उसकी ओर इशारा किया) की तरफ जाएंगी"

"मतलब तुम अपनी भौजी को हमारी भाभी बनाने पे लगे हो...बस यही है तुम्हारी दोस्ती...अमाँ भाई मान जाओ...रास्ते से हट जाओ.....पहली बार जब उसका बस नाम ही सुने थे तभी से मोहब्बत हो गई थी उससे... हाय...योजना पांडे... और तुम तो जानते हो यार...ये 'पांडे' लड़कियाँ तुम्हारे इस भाई पे मर मिटती हैं... तुम्हारी कसम अगर ई पांडे नहीं होती तो हम बीच में न आते..." विकास गले पे चुटकी काटके कसम खाते हुए उससे बोला

"हाँ हाँ पता है ...तुम और तुम्हारा पांडे प्रेम...पिछली वाली पंडाइन के बच्चों के प्रिय मामा तुम्हीं हो.."आवास ने चटकारा मारा तभी सामने से योजना को अपने कुत्ते के साथ आते देख वो उसकी तरफ बढ़ा,विकास ने भी योजना को आते देखा वो भी उसके साथ हो लिया

"कैसी हो योजना...पांडे.."विकास ने पांडे पे जोर देते हुए मीठे स्वर में कहा

"जी माई सेल्फ वेरी मच फाइन..."उसने नए लखनऊ की अंग्रेजी में जवाब दिया और आवास से कुछ कहने ही जा रही थी कि विकास उसे थोड़ा किनारे ले जाकर कहने लगा "अरे कहाँ लफंगों के मुँह लगती हैं आप...कोई भी काम हो इस शरीफ बन्दे से कहिये...ये सब तो छिछोरे लड़के हैं.. लड़की को बस एक ही.. समझीं न.. एक ही नजर से देखते हैं"

"हाँ हाँ और ये भाई तो इतने शरीफ हैं कि 'टिप टिप बरसा पानी..पानी ने आग लगाई' वाले गाने में भी रवीना टंडन को नहीं..बस अक्षय कुमार को ही एकटक देखते हैं" आवास ने थोड़ा जोर से मजा लेते हुए कहा आसपास ठहाके गूँज गए

योजना उसे अनसुना करते हुए अपनी आँखें चमका के मीठी आवाज में विकास से बोली "मुझे न..अम्मा ने..मतलब मम्मी ने..इसे टहलाने भेज दिया है...मुझे बहुत 'इंसल्टी' फील होती है... वो...क्या...आप हमारे टॉमी को जरा पॉटी करवा देंगे..हम यहीं आपका इंतजार करते हैं"विकास का मुँह उतर गया पर जनाब कहते क्या खुद ही आगे बढ़कर बोले थे तो बस उसके हाथ से पट्टा लेकर कुत्ते को लेकर जाने लगा

आवास जोर से हँसा और बड़ी अदब (बनावटी) दिखाते हुए उसके पास आकर बोला "जाइये बड़े नवाब साहब ...जरा कुत्ते को पाखाने खास घुमा लाइए हुजूर..तब तक आपकी बेगम साहिबा का ध्यान हम रखते हैं" कहकर वो योजना के पास आया और उससे पूछा "ठंडा पियेंगी आप...अभी उसे टाइम लगेगा...आइये उधर दुकान पे चलते हैं"

"हाँ पर आप अपने दोस्त का इतना 'जोक' क्यों उड़ाते हैं" कहकर वो आवास के साथ ठन्डे की दुकान की तरफ चलने लगती है

"वो क्या है मियाँ भूल गए हैं...ये यू पी है यहाँ योजनाबद्ध विकास कभी नहीं होता..(फिर मुस्कुराते हुए कहता है)..हाँ आवासीय योजनाएं खूब घोषित होती रहती हैं" कहकर वो दुकान वाले चचा से दो स्प्राइट माँगता है।

-तुषारापात®™