Monday 13 November 2017

दो और दो हजार

कहाँ था मालूम कि दो और दो हजार होता है
दो उसने कही थी और दो ही हमने कही थी
फिर तमाम बातों से भरा क्यों अखबार होता है

#तुषारापात®

शो मस्ट गो ऑन

"भई वाह..सुधाकर जी..आज तो आपने कमाल कर दिया..क्या गज़ब के..डूब के भजन गाए आपने...पूरी पब्लिक भावों के समंदर में बह गई.. आज का आपका ये प्रोग्राम 'बच्चों के लिए भजन संध्या' तो सुपरहिट रहा.. सुपरहिट" चिल्ड्रेन्स डे की पूर्व संध्या पर आयोजित कार्यक्रम में जैसे ही सुप्रसिद्ध भजन गायक सुधाकर मिश्रा अपना अंतिम भजन गाकर बैक स्टेज आए उनसे मिलने को वहाँ पहले से तैयार खड़े मेयर चकोर सिधवानी उन्हें पकड़ के उनकी तारीफों के पुल बाँधने लगे, सुधाकर मिश्रा गुनगुना पानी जल्दी जल्दी पीते हुए उनका फरमाइशी अभिवादन कर कहते हैं "बहुत..बहुत..धन्यवाद मेयर साहब" और अपनी कार की ओर लगभग दौड़ के जाने लगते हैं

मेयर साहब उन्हें पीछे से रोकते हैं "अरे रुकिए तो..ये हमारी साली साहिबा आपकी बहुत बड़ी फैन हैं..खास आपके प्रोग्राम के लिए जबलपुर से यहाँ आई हैं..जरा एक दो तस्वीर..."

चकोर सिधवानी आगे कुछ और कहते कि सुधाकर ने उनकी साली साहिबा को नमस्कार किया और तेजी से उनसे आगे बढ़ते हुए कहा "मेयर साहब...माफ कीजियेगा अभी जरा जल्दी में हूँ..मेरा अपने शहर पहुँचना बेहद जरूरी है..तस्वीर फिर कभी....." कहकर वो मोबाईल कान से सटा,कार में बैठकर निकल गए

मेयर तिलमिला के रह गये, एक तो शहर के मेयर होने का नशा और दूसरे साली साहिबा और अपने अर्दली के सामने हुए अपने अपमान से वो भड़क गए "ये अपने को समझता क्या है..गवर्नर है क्या ये..साले की तारीफ पे तारीफ की..और मेयर होने के नाते इसका अपने शहर में इतना आदर सत्कार किया..इतने सारे स्कूलों से गरीब बच्चों को बुलवाया...और ये सीधे मुँह बात भी नहीं करके गया...जाओ जरा सुरेंद्र और विश्वास को तो लेकर आओ यहाँ" उन्होंने आयोजकों को बुलाने को अर्दली को लगभग डाँटने वाले अंदाज में भेजा, उसके बाद काफी देर तक मेयर साहब का 'कीर्तन' वहाँ चलता रहा।

भजन संध्या कार्यक्रम शुरू होने के पाँच मिनट पहले का दृश्य: (फ्लैशबैक)

"सर..सारे गेस्ट आ चुके हैं..हॉल पूरा खचाखच भरा है..सारे बच्चों को आपके कहने के अनुसार सबसे आगे बिठा दिया है..बस अब आपका इंतजार है...एंकर बस थोड़ी देर में आपको स्टेज पे इनवाइट करेगा.." सुरेंद्र ने सुधाकर के कमरे में आकर कहा

"ठीक है..मैं भी तैयार ही हूँ..वो हारमोनियम वगैरह वाले सबने अपनी जगह ले ली न" सुधाकर ने बस पूछने को पूछ दिया

"हाँ..सर..सब कुछ रेडी है बस आप आ जाइयेगा जब आपका नाम पुकारा जाए" कहकर सुरेंद्र स्टेज के काम संभालने चला गया

π...ऐसी लागी लगन मीरा हो गई मगन..π..सुधाकर मिश्रा कार्यक्रम के लिए तैयार थे कि तभी उनके मोबाइल की ये ट्यून बजती है वो झट से फोन उठाते हैं क्योंकि ये ट्यून उन्होंने घर के नंबर पे सेट की होती है... "हेलो..हेलो..हाँ..हाँ पिताजी बोलिये...पता नहीं फोन में नेटवर्क नहीं था बहुत देर से...नहीं नहीं अभी प्रोग्राम शुरू नहीं हुआ..अरे हुआ क्या बोलिये भी..इतना घबराए हुए क्यों लग रहे हैं" सुधाकर सांस रोक के दूसरी ओर से आवाज आने की प्रतीक्षा करने लगे

थोड़ी देर बाद उनके पिताजी की धीमी धीमी और रुआँसी आवाज़ मोबाइल में सुनाई देती है "बेटा..वो..बहू...बहू..की तबियत अचानक बिगड़ गई थी...वो..वो..उसे ब्लीडिंग...ब्लीड..बहुत ज्यादा खून आया...तो..डॉक्टर वसुंधरा के नर्सिंग होम में ले आए थे... तो..तो..वहाँ....डॉक्टरों ने बताया..कि...कि... बच्चा..मतलब... मिसकैरिज....हो गया है...बहू...बहू...पूरी तरह ठीक हैं पर बेहोश हैं...बेटे....डॉक्टर..ने..बहू को तो बचा लिया...पर बच्चा........................................................"

सुधाकर के हाथ से मोबाइल छूट गया, वो धम्म से सोफे पे बैठ गए तभी मंच से उन्हें तीसरी बार आवाज़ दी गई सुरेंद्र दौड़के उन्हें बुलाने आया और मन भर भारी पाँव उठाते वो मंच पे किसी तरह पहुँचे

मंच पे स्वागत आदि क्या क्या हुआ उन्हें कुछ याद नहीं था बस वो अपने आसन पे बैठे और सामने बैठे तमाम स्कूल के बच्चों को देखते हुए पहला भजन तुरंत गाने लगे "भए प्रगट कृपाला... दीन दयाला.... कौशल्या हितकारी....हरषित महतारी..." भजन की इस पंक्ति के साथ ही उनकी पलकों के बाँध से आँसूओं की नदी रिसने लगी।

चकोर चमकते सुधाकर को देख पाता है पर उसके पीछे की काली रात उसे दिखाई नहीं देती।

-तुषारापात®