Saturday 5 December 2015

धुलाई वाला

वाशिंग मशीन में कपड़े धोते धोते ये तुषारापात उत्पन्न हुआ (हाँ अपने कपड़े मैं खुद ही धोता हूँ क्योंकि मेरा मानना है की अपना जितना काम हो सके स्वयं करना चाहिए कई सारे ग्रह इससे मजबूत रहते हैं ;) खासतौर पे पत्नी जी वाला ग्रह सबसे ज्यादा)
तो वाशिंग मशीन (सेमी ऑटोमैटिक) में धोने के लिए हरा कुर्ता, अपनी भगवा धोती, नीली शर्ट,काली पैंट आदि कई कपड़े डाल के टाइमर सेट कर दिया और रिलैक्स हो के कुछ लिखने लगा। थोड़ी देर के बाद टाइमर जी ने अपनी चीखों से मुझे बताया की आपके डाले कपड़े बाहर निकलने के लिए बेक़रार हैं (हाँ ड्रेन करके पानी भी निकाला था) उसके बाद जब स्पिनर में डालने के लिए वाशर से कपड़े निकालने के लिए हाथ बढ़ाया तो देखा की सारे कपड़े आपस में उलझे हुए हैं, हरा कुर्ता भगवा धोती से दो दो हाथ कर रहा है और भगवा धोती ने हरे कुर्ते के साथ साथ नीली शर्ट का भी गला जकड़ रखा है काली पैंट भी पीछे नहीं थी उसने भी जहाँ जगह पाई वहां अपनी टांगे फंसा रखी थीं कुल मिला के हर महंगा सस्ता कपड़ा अपनी अपनी औकातानुसार जम के एक दूसरे से उलझा हुआ था।
अब जरा अपने अपने धर्मग्रन्थ केे पन्ने उलटिये और सोचिये की इस दुनिया की वाशिंग मशीन में हम सब अपनी शुद्धि और उन्नति के लिए भेजे नहीं गए थे क्या? और हम करते क्या हैं एक दूसरे से उलझते रहते हैं अपना रंग/धर्म एक दूसरे पे थोपते रहते हैं।
अच्छा एक बात और है कपड़े धोते समय हम सफ़ेद कपड़ों को अलग से धोते हैं कि कहीं दूसरे कपडे का रंग उनपर न लग जाये। हाँ सफ़ेद कपड़े हर रंग के साथ पहने खूब जाते हैं और अच्छे भी लगते हैं जैसे सफ़ेद शर्ट काली पैंट या सफ़ेद कुर्ता नीली जीन्स और भी न जाने कितने रंग के जोड़ीदार हैं सफ़ेद कपड़ों के।
आपको पता ही होगा सफ़ेद रंग सात रंगों से मिलकर बनता है यानी सफ़ेद रंग अपने में कई रंग समाहित करे रहता है और ऊपर से बिलकुल सादा बगैर कोई तड़क भड़क के बना रहता है,अब यही मैं कहना चाहता हूँ की सच्ची आध्यात्मिकता/सच्चा धर्म भी इसी सफ़ेद रंग की तरह है अगर आपको आपको अपनी आध्यतामिक उन्नति करनी है सच्चे धार्मिक बनना है तो इसी तरह अपने अंदर सभी रंगों को सोखना पड़ेगा मतलब सभी धर्मो को सम्मान देना होगा और उनकी सारी अच्छाइयाँ अपने अंदर समाहित करनी होगी सिर्फ लाल हरा या कोई और रंग पकड़ के आप कभी भी सफ़ेद रंग नहीं बना सकते और न ही सच्चे धार्मिक।
एक मित्र ने बहुत पहले कहा था की धार्मिकता और आध्यात्मिकता पे कुछ लिखिए उनसे इस लेख के माध्यम से यही बहुत साधारण सी बात कहना चाहता हूँ कि कट्टर धार्मिकता मात्र एक धर्म विशेष (वो चाहे जो कोई भी धर्म/मज़हब हो ) की रूढ़िवादिता को बढ़ावा देती है सिर्फ एक रंग को पकड़ने का मौका देती है और आध्यात्मिकता के अंतर्गत सभी पंथों की उत्कृष्ट मान्यताएं जो प्रयोगों द्वारा आप स्वयं सत्य सिद्ध करते हैं, समाहित होती हैं।
तो अब देखते हैं कौन कौन सभी रंगों को मिलाकर अपनी सफेदी पूरी करते हैं और कौन कौन अपना एक रंग विशेष का झंडा फहराते फिरते हैं।
-तुषारापात®™

विधाता

वो कहतें हैं :-
"लेखक हो, नकारा हो
बंद कमरे में बेकार से बैठे
न जाने अला बला क्या लिखते हो
घंटो की तुम्हारी कागज़ रंगाई से
एक रंगीन नोट भी नहीं छपा आज तक तुमसे
घड़ी और कैलेंडर देखो कभी तो पता लगे
स्याह बालों में कितनी सफ़ेद धारियां पड़ गयी"
मैं कहता हूँ ज़रा महसूस तो करो इसे
"जब कुंवारे सफ़ेद कागज़ से
मदहोश कलम का आलिंगन कराता हूँ
तो कितनी चिंगारियाँ सुलगती हैं
सुनो ये किलकारी सुनो
अभी अभी जन्मीं इस रचना की
ये बांटेगी किसी को ख़ुशी तो बाँट लेगी किसी का ग़म
डायरी मेरी है मेरा कैलेंडर/मेरी घड़ी
इसका हर एक अक्षर है एक सेकंड,
एक एक मिनट है हर एक शब्द
हर वाक्य एक घंटा है मेरा
पन्ना बदलता हूँ तो दिन बदल लेता हूँ
बंद कमरा है मेरा ब्रह्माण्ड,रचयिता हूँ मैं यहाँ
और कभी देखा है तुमने विधाता को कमाते हुए?"

-तुषारापात®™