Monday 10 July 2017

तिलमिलाता सावन

सावन आकर,गुस्साकर,ज़ोर से बरसता है
आषाढ़ की छुटपुट बारिश में,तुम क्यों भीगीं थीं ?
जेठ जाते ही सब्र तोड़ा,बस इक महीने की तो देरी थी

-तुषारापात®